बीजेपी का अनुशासन बनाम अन्य पार्टियों में अनुशसानहीनता
समीरात्मज मिश्र
११ दिसम्बर २०२०
ऐसा क्या है कि बीजेपी में नेताओं को सब कुछ ठीक लग रहा है और दूसरी पार्टियों में रहना इन्हें अपमानित कर रहा था, जबकि इससे पहले बीजेपी में भी कम बगावत नहीं हुई है.
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हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बाद तब तक निवर्तमान मुख्यमंत्री रहे और राज्य बीजेपी के एकमात्र चेहरा सुशील मोदी को उनकी पार्टी ने एक झटके में राज्य की राजनीति से बाहर कर दिया. यह तो गनीमत है कि उन्हें राज्यसभा का टिकट देकर दिल्ली की ओर रवाना कर दिया गया वरना कयास तो उनके राजनीतिक वानप्रस्थ के लग चुके थे.
सुशील मोदी इकलौते नेता नहीं हैं जिन्हें बीजेपी की मौजूदा राजनीति में अचानक अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया गया हो बल्कि यह सूची काफी लंबी है. बिहार में राजीव प्रताप रूडी, शाहनवाज हुसैन से होते हुए यूपी में लक्ष्मीकांत वाजपेयी, विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह तक लंबी सूची है.
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के मूल कैडर के तमाम नेताओं को कई बार किनारे लगाते हुए अन्य पार्टियों के नेताओं को तवज्जो दी गई लेकिन किसी नेता ने उफ तक नहीं की और न ही इसका प्रतिवाद किया या ये कहें कि प्रतिवाद कर नहीं सके.
उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह कि कई नेता जो दूसरी पार्टियों से बीजेपी में शामिल हुए, बीजेपी में उन्हें शुरुआती दौर में कुछ लाभ मिला भी, लेकिन बाद में वो भी किनारे लगा दिए गए, लेकिन प्रतिवाद न कर सके. जबकि ये नेता अपनी पार्टियों में शीर्ष पदों पर रह चुके थे और यह कहते हुए बीजेपी में शामिल हुए थे कि उन्हें उनकी पार्टी में सम्मान नहीं मिल रहा है.
यूपी में रीता बहुगुणा जोशी और उनके भाई विजय बहुगुणा इस संबंध में बेहतरीन उदाहरण हैं. विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मूल निवासी होने के बावजूद वहां की स्थानीय राजनीति से कोई वास्ता नहीं रखते थे फिर भी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया. उत्तराखंड में आई भीषण तबाही के बाद जब विजय बहुगुणा पर तमाम आरोप लगे तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. लेकिन पद से हटने के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और बीजेपी के दामन में जा बैठे. बीजेपी उन्होंने किस उम्मीद में ज्वॉइन की थी, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन वहां जाने के बाद राजनीतिक रूप से वे गायब हो गए.
नरेंद्र मोदी ने दिए इतने सारे नारे
कोरोना महामारी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया है. इससे पहले भी वे ऐसे कई नारे दे चुके हैं जो लोगों की जुबान पर चढ़ गए.
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दवाई भी कड़ाई भी
राजकोट में एम्स की आधारशिला रखने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2021 के लिए नया नारा दिया है. नया नारा कोरोना महामारी के संदर्भ में हैं और प्रधानमंत्री मानते हैं कि भारत इस महामारी से लड़ने में कामयाब हुआ है.
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आत्मनिर्भर भारत
कोरोना महामारी के मुश्किल दौर में नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दे कर देशवासियों को इस दिशा में सोचने को कहा कि जिन चीजों को भारत आयात करता है, उन्हें घरेलू बाजार में ही कैसे बनाया जाए.
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अच्छे दिन आएंगे
2014 के आम चुनावों से पहले मोदी ने नारा दिया "अच्छे दिन आने वाले हैं" और लोगों से अपील की कि अगर वे अच्छे दिन चाहते हैं तो उन्हें वोट दें और बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी यह बात मानी भी.
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अब की बार, मोदी सरकार
इन्हीं चुनावों में "अबकी बार मोदी सरकार" का नारा भी खूब चला. सिर्फ भारत में नहीं, अमेरिका में भी इसी तर्ज पर "अब की बार, ट्रंप सरकार" सुनाई दिया.
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विकास का नारा
2014 का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया. हर रैली में मोदी ने चुनाव जीतने के बाद देश में विकास और काला धन वापस लाने की बात कही.
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मेक इन इंडिया
सत्ता में आने के बाद सितंबर 2014 में मोदी ने "मेक इन इंडिया" अभियान की शुरुआत की. आत्मनिर्भर भारत की तरह यहां भी नारे के केंद्र में उत्पादन भारत में कराना ही था.
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स्वच्छ भारत
इसी दौरान "स्वच्छ भारत अभियान" की भी शुरुआत हुई. इंटरनेट में चलने वाले तरह तरह के चैलेंज की तरह इस अभियान के तहत कई सिलेब्रिटी हाथ में झाड़ू लिए नजर आए.
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जहां सोच, वहां शौचालय
स्वच्छता की बात करते हुए मोदी टॉयलेट के मुद्दे पर भी आए और शौचालय का यह नारा दिया. वैसे चुनावों से पहले भी वे टॉयलेट के मुद्दे को छेड़ चुके थे. तब उन्होंने कहा था, "पहले शौचालय, फिर देवालय."
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बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ
इसके बाद जनवरी 2015 में उन्होंने "बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ" का नारा दिया जिसका मकसद देशवासियों को जागरूक करना और महिलाओं और लड़कियों की स्थिति सुधारना था.
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डिजिटल इंडिया
इसी साल जुलाई में "डिजिटल इंडिया" अभियान की शुरुआत हुई. लक्ष्य सरकारी स्कीमों को इंटरनेट के माध्यम से नागरिकों तक पहुंचाने का था.
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कैशलेस इकोनॉमी
2016 में नोटबंदी का ऐलान करते हुए मोदी ने "कैशलेस इकॉनॉमी" का नारा दिया. हर नागरिक के पास बैंक अकाउंट होने की बात कही गई.
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फिर एक बार
2019 के आम चुनाव में नारा आया, "फिर एक बार मोदी सरकार". नारा सच भी हुआ. देश में एक बार फिर मोदी की ही सरकार आई.
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हर हर मोदी, घर घर मोदी
इन चुनावों में यह फर्क था कि ना अच्छे दिनों की बात हो रही थी और ना ही विकास की. अखबार "हर हर मोदी, घर घर मोदी" वाले नए नारे से भरे रहे.
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मैं भी चौकीदार
मोदी ने "चौकीदार" का नारा दिया तो विपक्ष ने "चौकीदार चोर है" का. मोदी समर्थक "मैं भी चौकीदार" के नारे के साथ सोशल मीडिया पर उतर आए. लोग अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने लगे.
2014 में दिए गए इस नारे का अपनी दूसरी पारी में मोदी ने थोड़ा विस्तार कर दिया और इसे.. "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" बना दिया.
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अंग्रेजी में भी
सिर्फ हिंदी में ही नहीं, नरेंद्र मोदी ने अंग्रेजी में भी कई नारे दिए हैं जैसे स्टार्ट अप इंडिया स्टैंड अप इंडिया, मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस, जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट.
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यही हाल उनकी बहन रीता बहुगुणा जोशी का रहा जो महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी में कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी थीं. कांग्रेस से विधायक रहीं लेकिन पार्टी में उन्हें सम्मान नहीं दिखा तो बीजेपी में चली गईं. बीजेपी में जाने पर एक फायदा तो उन्हें जरूर हुआ कि राज्य में कैबिनेट मंत्री बन गईं लेकिन दो साल बाद अब केवल सांसद बन कर रह गई हैं.
इनके अलावा बीएसपी से बीजेपी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर ऐसे और भी कई नाम हैं जो अपनी मूल पार्टियों में बड़ी राजनीतिक हैसियत रखते थे लेकिन बीजेपी में आने के बाद गुम से हो गए हैं. मूल बीजेपी कैडर वाले नेताओं की सूची तो और लंबी है जो कि अपनी पार्टी में तमाम योगदान के बावजूद हाशिये पर हैं.
मसलन, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, जिनके प्रदेश अध्यक्ष रहते बीजेपी ने यूपी में 71 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, जिनके प्रदेश अध्यक्ष रहते पार्टी ने विधानसभा में 324 सीटें जीतीं लेकिन पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनाया. केशव मौर्य तो राज्य सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं भी लेकिन लक्ष्मीकांत वाजपेयी की राजनीतिक स्थिति यह है कि वो न तो पार्टी पदाधिकारी, न ही विधायक और न ही सांसद हैं. इन सबके बावजूद उन्होंने कभी यह जाहिर करने की कोशिश नहीं की कि इन सबका उन्हें कोई मलाल भी है.
सवाल उठता है कि ऐसा क्या है कि बीजेपी में इन तमाम नेताओं को सब कुछ ठीक लग रहा है और अपनी पार्टियों में रहना इन्हें अपमानित कर रहा था. जबकि इससे पहले बीजेपी में भी कम बगावत नहीं हुई है.
कल्याण सिंह जैसे नेता पार्टी छोड़ गए, नई पार्टी बना ली और यहां तक कि मुलायम सिंह के साथ समझौता करके उन्होंने सरकार भी बनाई. बाबरी मस्जिद ढहाने पर उस समय अफसोस तक जताया था लेकिन पार्टी में उनकी ससम्मान वापसी हुई और आज परिवार में कई सदस्य उपकृत हो रहे हैं.
भारत: क्या निरंकुश हो रहा है लोकतंत्र
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वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखते हैं, "यह सब मोदी काल के भाजपा में ही हो सकता है. इतना कुछ कांग्रेस नेतृत्व एक तो करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. किसी तरह से कुछ करने की कोशिश भी होती है तो पार्टी में सार्वजनिक रूप से बगावत हो जाती है. बगावत भाजपा में भी एक समय होती थी. उमा भारती, कल्याण सिंह, मदन लाल खुराना कई उदाहरण हैं, जो बिदके थे. लेकिन जब समझ गए पार्टी के बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं तो लौट के घर को आ गए.”
शिशिर सोनी इसके पीछे अमित शाह और नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुशलता और परिश्रम को बताते हैं. वो कहते हैं कि आज तमाम नेता ऐसा करने की कोशिश इसलिए नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि बीजेपी को यहां तक पहुंचाने वाले और वहां तक उसे नियंत्रित करने वाले इन्हीं दोनों नेताओं के अधीन हैं. दूसरे, बगावत करके उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा और दूसरी कोई ऐसी पार्टी है नहीं जो वो शामिल होकर अपनी ‘इज्जत बचा सकें'.
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि जिस तरह पूरे देश को विकल्पहीनता का डर दिखाया जा रहा है, वही डर इन नेताओं के भीतर भी है. लेकिन यह स्थाई नहीं है, "सत्ता में जो भी पार्टी रहती है वह इसी तरह का रवैया अपनाती है और कोई नेता तब तक बगावत की हिम्मत नहीं कर सकता है जब तक कि उसे यह भरोसा न हो कि जनता के बीच उसकी राजनीतिक हैसियत क्या है. बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व ने किसी नेता को इस लायक छोड़ा ही नहीं है जो अपनी अलग राजनीतिक छवि गढ़ सके. जिनकी छवि थी, उन्हें किनारा लगा दिया गया और जो हैं, वो मौजूदा नेतृत्व के सिर्फ कृपापात्र हैं. ऐसे में उन्हें पार्टी से कुछ मिले या न मिले, चुपचाप स्वीकार करना पड़ता है.”
शरद प्रधान कहते हैं कि यह दौर लंबा नहीं चलने वाला है. उनके मुताबिक, "जब असंतोष उभरेगा तो तेजी से फैलेगा भी. अभी असंतोष जिनमें होगा भी वो उनका व्यक्तिगत असंतोष हो सकता है और ये वही लोग हैं जो कि अपने असंतोष के साथ जनता के असंतोष को नहीं जोड़ पा रहे हैं. आज की तारीख में किसान आंदोलन में यदि कोई बीजेपी नेता बगावत की हिम्मत दिखाता है तो उसका राजनीतिक भविष्य उज्ज्वल हो सकता है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ऐसा करने की हिम्मत किसमें है.”
10 दिसंबर 2020 की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है. आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक हो गया है क्योंकि आज देश के नए संसद भवन का शिलान्यास हुआ.
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भूमिपूजन से शुरुआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के लिए 10 दिसंबर को पूरे विधिवत तौर पर भूमिपूजन किया. पंडितों ने मंत्रों का उच्चारण किया और उसके बाद मोदी ने नए भवन के लिए नींव रखी. तैयार होने के बाद नया संसद भवन पुरानी संसद की जगह ले लेगा.
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सर्व धर्म प्रार्थना
करीब 971 करोड़ रुपये की लागत से बनने जा रहे संसद के नए भवन का निर्माण कार्य साल 2022 तक पूरा हो जाएगा. इसी साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ भी देश मनाएगा. ऐसे में नई संसद का महत्व और बढ़ जाएगा. देश के नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर सर्व धर्म प्रार्थना भी की गई.
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ऐतिहासिक दिन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के भूमिपूजन के बाद कहा कि आज का दिन बहुत ही ऐतिहासिक है. आज का दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर की तरह है. उन्होंने कहा, "130 करोड़ लोग नए संसद भवन को बनाएंगे. संसद हमारे लोकतंत्र की धरोहर है, 21वीं सदी के भारत के लिए निर्माण जरूरी है."
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न्यू इंडिया, न्यू पार्लियामेंट
प्रधानमंत्री ने शिलान्यास के मौके पर कहा, "आत्मनिर्भर भारत का गवाह बनेगा नया संसद भवन, आने वाली पीढ़ियों को गर्व होगा. हमारे हर फैसले में राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए."
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नए संसद भवन में नई सुविधाएं
नया संसद भवन भविष्य की जरूरतों को देखते हुए डिजाइन किया गया है. यह भवन पुराने भवन से हर लिहाज से आधुनिक और अधिक बड़ा और आकर्षक होगा. सांसदों की सीट पर विशेष इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स लगे होंगे.
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दो साल में बनेगी नई संसद
नया संसद भवन दो साल में बनकर तैयार हो जाएगा. नया संसद भवन 64,500 स्क्वायर मीटर में बनाया जाएगा, जो चार मंजिला होगा और इसका खर्च 971 करोड़ रुपये आएगा. नए संसद भवन का डिजाइन एचसीपी डिजाइन द्वारा तैयार किया गया है.
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आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
नया भवन भूकंप रोधी होगा. इमारत इस तरह से तैयार की जाएगी की कि यह सबसे आधुनिक तकनीक को आसानी से अपना ले. सीटों पर बायोमीट्रिक डाटा इकट्ठा करने का भी प्रावधान होगा जिससे वोटिंग में आसानी हो. इसी के साथ ऐसे गैजेट्स लगे होंगे जिससे भाषण का अनुवाद भी आसानी से हो सके. इमारत के भीतर देश की सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाया जाएगा.
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इतिहास में मोदी की छाप
कुछ जानकारों का कहना है कि मोदी इतिहास में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं और लंबे वक्त तक लोगों के जेहन में बने रहना चाहते हैं. इंडिया गेट के पास उन्होंने साल 2019 में शहीदों को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक समर्पित किया था. इंडिया गेट अंग्रेजों ने बनाया था और मोदी ने शहीदों को समर्पित करने के लिए वॉर मेमोरियल बनवाया और इसी तरह से नया संसद भवन भी बनवाया जा रहा है, जो पूरी तरह से आजाद भारत का बनवाया होगा.