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बीजेपी ने करार का किया दिखावटी विरोधः विकीलीक्स

१९ मार्च २०११

कांग्रेस के बाद बीजेपी भी विकीलीक्स के लपेटे में आ गई है. अमेरिकी राजनयिक संदेश के मुताबिक बीजेपी ने सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए परमाणु करार का दिखावटी विरोध किया. वह सत्ता में आई तो करार को नुकसान नहीं होने देगी.

आडवाणी ने दिया था भरोसा, बेफिक्र रहे अमेरिका!तस्वीर: UNI

भारत के हिंदू अखबार में प्रकाशित विकीलीक्स के इस नए खुलासे पर सत्ताधारी कांग्रेस की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई है. उसने कहा है कि अब बीजेपी खुद पर भी उन्हीं कसौटियों को लागू करे जिसकी उम्मीद वह सरकार से कर रही थी. इससे पहले विकीलीक्स के एक खुलासे में कहा गया कि सरकार ने 2008 में परमाणु करार के मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पैसे देकर सांसदों को खरीदा. इस मुद्दे पर बीजेपी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफा मांगा और संसद में भी हंगामा किया.

बैकफुट पर बीजेपी

बीजेपी ने दोहरे मानदंडों से इनकार किया है और कहा है कि विपक्ष के कड़े रुख के चलते ही सरकार को असैनिक परमाणु जवाबदेही विधेयक में 16 संशोधन करने पड़े. बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्य और पार्टी में आरएसएस के व्यक्ति समझे जाने वाले शेषाद्गी चारी का नाम विकीलीक्स की तरफ से जारी अमेरिकी केबल में आया है. इसके मुताबिक उन्होंने दिसंबर 2005 में दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के अधिकारी को बताया कि पार्टी के विदेश नीति प्रस्ताव में उन हिस्सों पर ज्यादा तवज्जो न दी जाए जिनमें अमेरिका के सामने यूपीए सरकार के झुकने की बात कही गई है.

केबल के मुताबिक, "चारी ने प्रस्ताव को खारिज किया और कहा कि इसका मकसद सिर्फ राजनीतिक फायदा लेना है. बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने ये बयान दिए. उन्होंने कहा कि बीजेपी अमेरिक-भारत के रिश्तों को लेकर नाराज नहीं है. वह सिर्फ इतना चाहती है कि भारत और अमेरिका की सरकारें परमाणु नीति पर और ज्यादा कदम उठाएं."

डील का दिखावटी विरोध

एक अन्य केबल में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले उस वक्त अमेरिकी दूतावास में उपराजदूत पीटर बरलीग ने बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात के बाद लिखा कि वरिष्ठ बीजेपी नेता ने परमाणु डील के मामले को फिर से खोलने के अपनी पार्टी के संभावित कदम को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और संकेत दिया कि बीजेपी अंतरराष्ट्रीय समझौतों को हल्के में नहीं लेती.

तस्वीर: dpa

आडवाणी ने माना कि जुलाई 2008 में बीजेपी का सार्वजनिक रूख यह था कि यह समझौता देश की रणनीतिक स्वायत्तता को नियंत्रित करता है और अगर वह सत्ता में लौटी तो इसकी समीक्षा की जाएगी. लेकिन इस रुख से उस वक्त के घरेलू राजनीतिक घटनाक्रम जुड़े थे. अमेरिकी राजनयिक ने लिखा है कि बीजेपी नेता का रुख बिल्कुल साफ था कि बीजेपी की ऐसी कोई योजना नहीं है कि डील के मुद्दे को फिर से खोला जाए. उनकी राय में विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय समझौतों को हल्के में नहीं लेना चाहिए.

मुझे कुछ याद नहीं

जब चारी से अमेरिकी केबल में उनका नाम आने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कुछ भी कहने इनकार किया. उन्होंने इतना ही कहा कि उन्होंने रिपोर्ट नहीं देखी है. साथ ही उन्हें यह भी याद नहीं पड़ता दिसंबर 2005 में उन्होंने उपराजदूत रॉबर्ट ब्लेक से कभी बात भी की. उन्होंने कहा, "मुझे नाम याद नहीं है. मुझे नहीं पता मैं 2005 में किससे मिला." उन्होंने कहा कि जरूरी हुआ तो पार्टी इस बारे में कुछ कहेगी."

जावड़ेकर ने कहा है कि उनके रुख में कोई विरोधाभास नहीं है. उनका कहना है, "हमने राज्यसभा और लोकसभा, दोनों जगह अपना रुख साफ कर दिया है. हमने प्रेस में भी बयान जारी किया है कि हम अमेरिका और भारत के सामरिक रिश्तों का मूल्य समझते हैं और ऊर्जा के सभी साधनों का इस्तेमाल होना चाहिए." लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी बीजेपी की सफाई को काफी नहीं मान रहे हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एमजी

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