गांधी परिवार की परंपरागत संसदीय सीट अमेठी अब बीजेपी के पास चली गई है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने 55 हजार वोटों से हराकर इस सीट पर भगवा परचम लहरा दिया है.
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केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी इस सीट से दूसरी बार बीजेपी प्रत्याशी थी. वहीं राहुल गांधी अमेठी से चौथी बार चुनाव मैदान में थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल ने स्मृति को करीब एक लाख वोटों के अंतर से हराया था. राहुल गांधी को तकरीबन चार लाख वोट मिले थे. वहीं ईरानी को तीन लाख वोट मिले थे. लेकिन इस बार स्मृति ने बाजी पलट दी.
सवाल उठता है कि आखिर स्मृति ईरानी ने यह किया कैसे? जानकार मानते हैं कि स्मृति ने इसके लिए पूरे पांच साल मेहनत की, और एक-एक व्यक्ति को जोड़ने और एक-एक वोट को सहेजने का काम किया.
अमेठी के राजनीतिक जानकार तारकेश्वर कहते हैं, "स्मृति ईरानी का अमेठी से लगातार जुड़ाव उन्हें जीत के द्वार पर खड़ा करता है. राहुल का जनता से दूर होना उन्हें हराता है. 2014 का चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी यहां लगातार सक्रिय रहीं. उन्होंने गांव-गांव में प्रधानों और पंचायत सदस्यों को अपने साथ जोड़ा. यह उनके लिए कारगर साबित हुआ. हर सुख-दु:ख में अमेठी में सक्रिय रहना उन्हें राहुल से बड़ी कतार में खड़ा करता है."
उन्होंने बताया, "कांग्रेस का जिले में संगठन ध्वस्त हो गया था. राहुल महज कुछ लोगों तक ही सीमित रहे. यही कारण है कि चुनाव हार गए. वह पांच सालों में जनता से जुड़ नहीं पाए हैं."
तारकेश्वर बताते हैं, "स्मृति ईरानी ने तीन अप्रैल को टिकट मिलने के बाद से ही गांव-गांव जाकर प्रचार किया है. उन्होंने एक दिन में 15-15 जनसभाएं की हैं. सपा, बसपा और कांग्रेस से नाराज लोगों को भी बीजेपी ने अपने पाले में ले लिया और इसका उन्हें फायदा मिला. वहीं सपा और बसपा का वोट राहुल गांधी को ट्रांसफर नहीं हो पाया, यह भी राहुल की हार का एक बड़ा कारण था."
आमतौर पर बाकी पार्टियां कांग्रेस को इस सीट पर वाकओवर देती आई हैं. लेकिन 2014 में बीजेपी ने यहां से स्मृति ईरानी को उतारकर मुकाबले को काफी रोमांचक बना दिया, और इस बार उसने सीट पर कब्जा कर लिया.
तारकेश्वर ने कहा, "केंद्रीय योजनाएं शौचालय, आवास योजनाओं का लाभ भी बहुत सारे लोगों को मिला है. सम्राट साइकिल का मुद्दा भी कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना है. इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कई बार जोर-शोर से उठाया."
संग्रामपुर के रमेश कहते हैं, "रोजगार अमेठी की बड़ी समस्या है. इस कारण लोग यहां से पलायन कर रहे हैं. इस बार राहुल गांधी ने ध्यान नहीं दिया. राजीव गांधी के समय शुरू की गई कई परियोजनाएं और कार्यक्रम राहुल के सांसद रहते एक एक करके बंद होते गए. इससे हजारों लोगों की रोजी-रोजगार पर असर पड़ा. इस पर ही अगर वह ध्यान दे लेते तो शायाद इतनी परेशानी न उठानी पड़ती."
संग्रामपुर के ही एक बुजुर्ग रामखेलावन कहते हैं, "जो प्यार हमें राजीव गांधी से मिला, शायद उनकी यह पीढ़ी हमें नहीं दे पाई है. ये हम लोगों की तरफ देखते भी नहीं हैं."
जामों ब्लॉक के चिकित्सक सुजीत सिंह राहुल के कार्यकाल में क्षेत्र की बिगड़ी चिकित्सा व्यवस्था को लेकर सवाल उठाते हैं. उन्होंने कहा, "राजीव गांधी जीवन रेखा एक्सप्रेस वर्ष में एक माह अमेठी के लिए आती थी. इसमें सारी चिकित्सा टीम होती थी, जो गरीबों का उपचार करती थी. यहां तक कि बड़े-बड़े आपरेशन भी होते थे. यह योजना सालों से बंद है, और इसे शुरू कराने के लिए राहुल ने कोई उचित कदम नहीं उठाए हैं."
गौरीगंज के रामदीन कहते हैं, "राजीव गांधी के समय के पुराने और निष्ठावान कांग्रेसी धीरे-धीरे पार्टी से दूर होते चले गए. जबकि सच्चाई यह है कि ये लोग ही पार्टी के चुनाव अभियान की पूरी कमान संभालते थे. अगर ये लोग साथ होते तो शायद नतीजे राहुल के पक्ष में नजर आते."
सिंहपुर के किसान फगुना की अपनी अलग कहानी है. उन्होंने कहा, "राजीव गांधी ने सम्राट बाईसाइकिल नाम की कंपनी बनाकर हम जैसे कई किसानों की मदद की थी लेकिन उनके बाद फैक्ट्री घाटे में चली गई और उसे बंद कर दिया गया.
कांग्रेस का इन राज्यों में सूपड़ा साफ
एक वक्त था जब भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस का हर राज्य में दखल हुआ करता था. 2019 में कांग्रेस मुट्ठी भर राज्यों में सिमट कर रह गई है. एक नजर ऐसे प्रदेशों पर जहां कांग्रेस को इन चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली.
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आंध्र प्रदेश
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मणिपुर
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मिजोरम
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सिकिक्म
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कर्ज के कारण कंपनी की जमीन नीलाम हो गई. इस जमीन को राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट ने खरीद लिया. ट्रस्ट में राहुल गांधी ट्रस्टी हैं और किसानों को जमीन लौटाने की मांग को लेकर स्मृति ईरानी ने पांच साल तक लड़ाई लड़ी. स्मृति ईरानी के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जमीन लौटाने का वादा किया है. इसी आशा से हम किसानों का झुकाव उस ओर हो गया है."
अमेठी लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें अमेठी जिले की तिलोई, जगदीशपुर, अमेठी और गौरीगंज सीटें शामिल हैं. जबकि रायबरेली जिले की सलोन विधानसभा सीट भी अमेठी में आती है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में पांच सीटों में से चार पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी और महज एक सीट समाजवादी पार्टी (सपा) को मिली थी.
अमेठी लोकसभा सीट को कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता रहा है. इस सीट पर इससे पहले 16 चुनाव और दो उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने यहां 16 बार जीत दर्ज की है. 1977 में लोकदल और 1998 में भाजपा को यहां से जीत मिली थी. इस सीट से संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के अलावा राहुल गांधी सांसद रहे हैं और अब यह सीट स्मृति की हो गई है.
मोदी लहर में बह गए ये कद्दावर नेता
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कई दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव में हार गए हैं. कांग्रेस नेताओं समेत कई क्षेत्रीय दिग्गजों और राजनीतिक विरासत संभाल रहे कई उम्मीदवारों को भी करारी मात मिली है. एक नजर ऐसे ही बड़े नामों पर
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राहुल गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बीजेपी की स्मृति ईरानी से अमेठी की सीट हार गए हैं. यह पहला मौका है जब गांधी परिवार का कोई सदस्य अमेठी से हारा है. 1980 में संजय गांधी इस सीट से चुने गए. उनकी असमय मृत्यु के बाद राजीव गांधी 1981 से लेकर 1991 तक सांसद बने रहे. 1999-2004 तक सोनिया गांधी सांसद रहीं और 2004 के बाद से यह सीट राहुल गांधी के पास थी.
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मल्लिकार्जुन खड़गे
लोकसभा में कांग्रेस के नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में अपनी सीट गुलबर्गा से चुनाव हार गए. वो पिछली बार इस सीट से सांसद थे. यह पहली बार है जब खड़गे को किसी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा हो.
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ज्योतिरादित्य सिंधिया
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया अपनी पारंपरिक गुना सीट भी नहीं बचा सके हैं. साल 1957 के बाद से यह पहली बार होगा जब सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा में नहीं होगा. ज्योतिरादित्य करीब 1.25 लाख वोटों से हारे हैं.
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वीरप्पा मोइली
कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वीरप्पा मोइली चिकबल्लापुर सीट से चुनाव लड़ रहे थे. उन्हें बीजेपी के बीएन बाचेगौड़ा ने करीब पौने दो लाख वोट से हरा दिया.
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शीला दीक्षित
लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित दिल्ली उत्तर पूर्व से चुनाव मैदान में थीं. उनके सामने दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी थे. शीला दीक्षित करीब साढ़े तीन लाख वोट से चुनाव हार गई हैं.
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महबूबा मुफ्ती
जम्मू कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती को भी अनंतनाग सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है. वह यहां से कई बार जीत चुकी हैं.
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शिबू सोरेन
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख अपने गढ़ दुमका में हार गए है. भारतीय राजनीति का आदिवासी चेहरा माने वाले सोरेन को बीजेपी के सुनील सोरेन ने करारी शिकस्त दी है. झारखंड बनने के बाद से शिबू सोरेन तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
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दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की लोकसभा सीट से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में थे. उनके सामने मालेगांव धमाकों की आरोपी बीजेपी की प्रज्ञा सिंह ठाकुर थीं. दिग्विजय सिंह करीब 3 लाख 10 हजार वोट से हार गए हैं.
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एच.डी देवेगौड़ा
मोदी लहर से पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा भी नहीं बच सके हैं. वह कर्नाटक की तुमकुर सीट नहीं बचा पाए और बीजेपी उम्मीदवार से हार गए. अपनी पारंपरिक सीट हासन को अपने पोते के लिए छोड़कर वह तुमकुर से चुनाव लड़ रहे थे.
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भूपिंदर हुड्डा
हरियाणा के तीन बार लगातार मुख्यमंत्री रहे भूपिंदर हुड्डा सोनीपत सीट से चुनाव लड़ रहे थे. उन्हें बीजेपी के रमेश चंद्र कौशिक ने करीब 1 लाख 65 हजार वोटों से हराया.
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हरीश रावत
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के नेता हरीश रावत नैनीताल-उधमसिंहनगर सीट से बीजेपी के अजय भट्ट को चुनौती दे रहे थे. लेकिन अजय भट्ट ने उन्हें करीब सवा तीन लाख वोटों से मात दी.
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अशोक चव्हाण
महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण नांदेड सीट से मैदान में थे. उनके सामने बीजेपी के प्रतापराव पाटिल थे. पाटिल ने चव्हाण को करीब 35 हजार वोट से हरा दिया.
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सुशील कुमार शिंदे
भारत के पूर्व गृहमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेसी नेता शिंदे सोलापुर सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे थे. उन्हें बीजेपी के स्वामी सिद्धेश्वर ने करीब डेढ़ लाख वोटों से हरा दिया.
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शरद यादव
नीतिश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) से बगावत कर अलग हुए दिग्गज नेता शरद यादव को मधेपुरा सीट से एनडीए की ओर से उतारे गए जदयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव ने भारी अंतर से हराया है. शरद यादव इस सीट पर महागठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे थे.
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शत्रुघ्न सिन्हा
बीजेपी समर्थक माने जाने वाले कायस्थों की बहुलता वाली बिहार की पटना साहिब सीट पर मुकाबला दो कायस्थों के बीच ही था. नीतीश कुमार का काम और एनडीए का नाम रविशंकर को जीत दिला गई और दो बार जीत चुके शत्रुघ्न सिन्हा को उनकी स्टार छवि भी नहीं बचा पाई.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
प्रिया दत्त
मुंबई नॉर्थ-सेंट्रल से कांग्रेस की उम्मीदवार और दिवंगत अभिनेता सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त दो बार इस सीट से सांसद रह चुकी हैं. बीजेपी की पूनम महाजन ने उन्हें एक लाख से अधिक वोटों से हराया है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
जया प्रदा
समाजवादी पार्टी के आजम खान पहली बार रामपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़े और उन्होंने बीजेपी की प्रत्याशी अभिनेत्री जया प्रदा को एक लाख 30 हजार से ज्यादा मतों से हरा दिया. समाजवादी पार्टी की की टिकट पर जया प्रदा 2004 से 2014 तक रामपुर से सांसद रहीं.
तस्वीर: DW/N. Begum
राज बब्बर
उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीकरी सीट से उम्मीदवार बने पूर्व अभिनेता और कांग्रेस नेता राज बब्बर भी अपनी सीट नहीं बचा सके हैं. 2014 में वह गाजियाबाद में भी बुरी तरह हारे थे.