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मोनसांटो की नजर पाकिस्तान पर

२६ अगस्त २०१३

भारत में झटके खाने के बाद जीन संवर्धित बीज बेचने वाली कंपनियां पाकिस्तान का रुख कर रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में होने वाले नुकसान की भरपाई ये कंपनियां पाकिस्तान में करना चाहती हैं.

तस्वीर: Fotolia/siwi1

भारत में सर्वोच्च अदालत ने जीन संवर्धित (जीएम) बीजों के परीक्षण पर रोक लगा रखी है. इस मामले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति गठित की थी. 23 जुलाई को तकनीकी समिति ने सुझाव दिया कि खेतों में जीन संवर्धित फसलों के परीक्षण पर रोक लगाई जानी चाहिए. समिति के मुताबिक रोक तब तक लगी रहनी चाहिए जब तक सरकार नियामक और सुरक्षा का ढांचा तैयार नहीं करती.

अगस्त 2012 में भी भारतीय संसद की एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में जीन संवर्धित खाने पर बैन लगाने का सुझाव दिया था. इससे पहले मार्च 2012 में बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, केरल और कर्नाटक जैसे पांच राज्यों ने भी जीन संवर्धित बीजों पर प्रतिबंध लगाया.

पाकिस्तान के कराची में हैडिंग रूट्स फॉर इक्विटी नाम के गैर सरकारी संगठन से जुड़ी डॉक्टर अजरा सईद का आरोप है कि भारत में मिले करारे झटकों के बाद अब ये कंपनियां पाकिस्तान को लुभाने की कोशिश कर रही हैं. उनके मुताबिक हाल ही में तीन बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, मोनसांटो, पायनियर और सिनजेनटा ने पाकिस्तान सरकार से संपर्क किया. कंपनियों ने खाद्य सुरक्षा मंत्रालय से जीन संवर्धित मक्का और कपास को बाजार में उतारने की मांग की है.

सरकार ने पाकिस्तानी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी को निर्देश दिए हैं कि वह जीन संवर्धित खेती के पर्यावरण पर होने वाले असर का आकलन करे.

जर्मनी की बायर कंपनी का जीन संवर्धित कपास बीजतस्वीर: Bayer

सईद का आरोप है कि दिग्गज एग्रो केमिकल अमेरिकी कंपनी मोनसांटो लंबे समय से पाकिस्तान में जीन संवर्धित मक्का का परीक्षण करने की अनुमति चाह रही है. कंपनी चाहती है कि पाकिस्तान में वह अपने बीज खुद ही टेस्ट करे.

भारत का उदाहरण देते हुए सईद अपनी सरकार से भी जीन संवर्धित बीजों पर रोक लगाने की मांग कर रहीं हैं. साफ चेतावनी देते हुए वह कहती हैं, अगर ऐसा नहीं किया गया तो "न सिर्फ स्थानीय फसलों के बीज खत्म होगें बल्कि इसके आगे छोटे और भूमिहीन किसानों पर इसकी भयावह मार पड़ेगी."

भारत में 2002 के दौरान महाराष्ट्र के किसानों ने जीन संवर्धित बीजों से कपास की खेती की. इससे किसान ऐसे बर्बाद हुए कि पूछिए मत. सामाजिक कर्याकर्ताओं के मुताबिक एक दशक में ढाई लाख किसानों ने आत्महत्या की. असल में किसानों को हर साल महंगे बीज खरीदने पड़ते थे, उन बीजों को बेचने वाली कंपनी उन्हें महंगा कीटनाशक इस्तेमाल करने को कहती थी, इसके बावजूद फसल ऐसी नहीं हुई कि मुनाफा हो सके. विदर्भ और आंध्र के कपास किसान सालों ऐसा करते करते उजड़ गए.

जो बात लोग महसूस कर रहे थे, उसे ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स ने खुलकर कह दिया. 2008 में दिल्ली में एक सम्मेलन के दौरान प्रिंस चार्ल्स ने साफ कहा कि जीन संवर्धित फसलों की खेती किसानों को आत्महत्या की ओर धकेल रही है. इस बेबाक बयान से सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी बल मिला, उन्होंने जीन संवर्धित खेती के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. प्रिंस चार्ल्स का बयान और लगातार बढ़ते प्रदर्शन से भारत सरकार दवाब में आई.

सईद कहती हैं कि उनके देश को भारत से सीख लेनी चाहिए. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के जलवायु परिवर्तन आयोग के सदस्य परवेज आमिर कहते हैं, "ये एक राक्षस को पैदा करने जैसा है. पाकिस्तान के पास अभी भी सभी तरह की फसलों का दोगुना उत्पादन करने की क्षमता है, इसके लिए सही तरीके से बढ़िया जल प्रबंधन करना होगा और संस्थागत रुकावटों को दूर करना होगा."

ओएसजे/एएम (आईपीएस)

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