रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने की केंद्र की कथित कोशिशों के विरोध में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष समेत दो गैर-सरकारी सदस्यों के इस्तीफे ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है
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भारत में रोजगार के लिहाज से नए साल की शुरुआत ठीक नहीं रही है. इस महीने की शुरुआत में खबर आई थी कि बीते साल लगभग 1.10 करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं और अब महीने के आखिर में नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के एक सर्वेक्षण के हवाले से यह बात सामने आई है कि वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बीते 45 वर्षों में सबसे ज्यादा रही. बीते दिनों सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया था. उस समय भी सवाल उठा था कि जब नौकरियां ही नहीं हैं, तो आरक्षण देने की क्या तुक है.
क्या कहती है रिपोर्ट
दो साल पहले हुई नोटबंदी के बाद यह देश में बेरोजगारी पर किसी सरकारी एजंसी की ओर से तैयार सबसे ताजा और व्यापक रिपोर्ट है. इसमें कहा गया है कि देश में वर्ष 1972-73 के बाद बेरोजगारी दर सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है. शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है, जो ग्रामीण इलाकों में इस दर (5.3 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा है.
रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों की शिक्षित युवतियों में वर्ष 2004-05 से 2011-12 के बीच बेरोजगारी की दर 9.7 से 15.2 फीसदी के बीच थी, जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 17.3 फीसदी तक पहुंच गई. ग्रामीण इलाकों के शिक्षित युवकों में इसी अवधि के दौरान बेरोजगारी दर 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 10.5 फीसदी तक पहुंच गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के 15 से 29 साल की उम्र वाले युवकों में बेरोजगारी की दर वर्ष 2011-12 में जहां पांच फीसदी थी, वहीं वर्ष 2017-18 में यह तीनगुने से ज्यादा बढ़ कर 17.4 फीसदी तक पहुंच गई. इसी उम्र की युवतियों में यह दर 4.8 से बढ़ कर 13.6 फीसदी तक पहुंच गई.
विशेषज्ञों का कहना है कि खेती अब पहले की तरह मुनाफे का सौदा नहीं रही. इसी वजह से ग्रामीण इलाके के युवा रोजगार की तलाश में अब खेती से विमुख होकर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जाने लगे हैं. शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करने वाले निर्माण क्षेत्र में आई मंदी के चलते नौकरियां कम हुई हैं.
ये देते हैं सबसे ज्यादा नौकरियां
ये देते हैं सबसे ज्यादा नौकरियां
दुनिया भर में सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाली कंपनियां या संस्थान कौन हैं? फोर्ब्स पत्रिका ने 2015 के आंकड़ों के आधार पर एक सूची तैयार की है, जिसमें भारतीय सेना और भारतीय रेल भी शामिल है. डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
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फॉक्सकॉन
इलेक्ट्रिक सामान बनाने वाली ताइवान की मल्टीनेशनल कंपनी फॉक्सकॉन दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी एम्पलॉयर है जिसमें 12 लाख लोग काम करते हैं.
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भारतीय सेना
इस फेहरिस्त में नौवें नंबर पर भारतीय सेना आती है जिसमें लगभग 13 लाख लोग काम करते हैं. भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में शामिल है.
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भारतीय रेल
भारत की लाइफलाइन कही जाने वाली भारतीय रेल दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी एम्पलॉ़यर है जिसमें 14 लाख लोग काम करते हैं.
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स्टेट ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना
चीन की सरकारी बिजली कंपनी स्टेट ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना में 15 लाख लोग काम करते हैं और यह सातवीं सबसे बड़ी एम्पलॉयर है.
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चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन
16 लाख कर्मचारियों के साथ चीन की यह सरकारी तेल कंपनी भी दुनिया के सबसे बड़े एम्पलॉयर्स में शामिल है.
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एनएचएस
ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा एनएचएस में 17 लाख लोग काम करते हैं. अपनी दक्षता और महारथ के लिए एनएचएस दुनिया भर में मशहूर है.
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मैकडॉनल्ड
अमेरिकी फास्ट फूड चेन मैकडॉनल्ड दुनिया की चौथी ऐसी कंपनी है जो लोगों को सबसे ज्यादा नौकरियां देती है. दुनिया भर में इस कंपनी के आउटलेट्स हैं, जिनमें 19 लाख लोग काम करते हैं.
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वॉलमार्ट
दुनिया के टॉप 3 एम्पलॉयर में अमेरिकी सुपरमार्केट चेन वॉलमार्ट तीसरे नंबर पर है जिसमें 21 लाख लोग काम करते हैं.
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चीन की सेना
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन की सेना दूसरी सबसे बड़ी एम्पॉयर है, जिसके साथ काम करने वालों की संख्या 23 लाख है.
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अमेरिकी रक्षा मंत्रालय
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय दुनिया का सबसे बड़ा एम्पलॉयर है जिसके कर्मचारियों की संख्या 32 लाख है.
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रिपोर्ट पर विवाद क्यों
एनएसएसओ की उक्त रिपोर्ट विवादों में घिरी रही है. राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कामकाज के तरीके पर सरकार से मतभेदों की वजह से नाखुश होकर इसी सप्ताह उसके दो गैर-सरकारी सदस्यों, पीसी मोहनन व जेवी मीनाक्षी ने इस्तीफा दे दिया. आयोग के अध्यक्ष रहे मोहनन कहते हैं, "बीते कुछ महीनों से यह महसूस हो रहा था कि सरकार हमारी बातों को गंभीरता से नहीं ले रही है और हमें अनदेखा किया जा रहा है. आयोग के हाल के फैसलों को भी लागू नहीं किया गया." मोहनन के मुताबिक उक्त रिपोर्ट को बीते दिसंबर में ही सार्वजनिक किया जाना था. लेकिन सरकार इसे दबाने का प्रयास कर रही थी. केंद्र सरकार ने हालांकि इन दोनों के इस्तीफे पर सफाई दी है. लेकिन इससे एक गलत संदेश तो गया ही है.
अब सरकार चाहे बेरोजगारी के आंकड़ों को दबाने का जितना भी प्रयास करे, रोजगार परिदृश्य की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. सेंटर ऑफ मॉनीटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) ने अपनी हाल की एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में बीते साल 1.10 करोड़ नौकरियां कम हुई हैं. हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा कर सत्ता में आने वाली एनडीए सरकार के लिए यह स्थित अच्छी नहीं कही जा सकती. वह भी तब जब अगले दो-तीन महीने में लोकसभा चुनाव होने हैं.
रोजगार के अभाव में शिक्षित बेरोजगारों में हताशा लगातार बढ़ रही है. नौकरी के लिए आवेदन करने वालों के आंकड़े इस हताशा की पुष्टि करते हैं. मिसाल के तौर पर बीते साल मार्च में रेलवे में 90 हजार नौकरियों के लिए ढाई करोड़ बेरोजगारों ने आवेदन किया था. इसी तरह गुजरात में 12 हजार नौकरियों के लिए 9.70 करोड़ ने आवेदन भेजा था. सबसे दयनीय हालत तो उत्तर प्रदेश में देखने को मिली. बीते साल अगस्त में वहां चपरासी के 62 पदों के लिए भारी तादाद में आवेदन करने वालों में 3,700 आवेदक पीएचडी डिग्रीधारी थे.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का आकलन है कि भारत में बेरोजगारों की तादाद वर्ष 2019 में बढ़ कर लगभग दो करोड़ पहुंच जाएगी. लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जमीनी हालत इससे भी भयावह है. उक्त अनुमान 3.5 फीसदी बेरोजगारी दर पर आधारित है. एक अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमलेंदु मुखर्जी कहते हैं, "केंद्र के दावों और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर है. एक ओर जहां नौकरियां तेजी से घट रही हैं, वहीं दूसरी ओर बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है. इस असंतुलन को पाटने की दिशा में ठोस पहल जरूरी है." विशेषज्ञों का कहना है कि बेरोजगारी अगर इसी रफ्तार से बढ़ती रही, तो हालात विस्फोट होने का अंदेशा है.
क्या बीमार कर रही आपकी नौकरी?
क्या बीमार कर रही आपकी नौकरी
आज कल नौकरीपेशा लोगों के बीच "बर्नआउट" शब्द आम हो गया है. यह काम के बोझ से होने वाले बहुत गंभीर मनोवैज्ञानिक असर के बारे में है, लेकिन कई लोगों को खुद ही लगने लगता है कि वे बर्नआउट के शिकार हैं. देखिए क्या है इसके लक्षण.
आम तौर पर हर चीज को लेकर आप ज्यादा कटु या निन्दापूर्ण टिप्पणी दे देते हैं. अच्छे सहकर्मियों के बारे में भी कमियां ढ़ूंढते रहते हैं. दूसरों को किसी काम का श्रेय मिलने पर जलन महसूस करते हैं. तो कहीं ना कहीं आपके काम का बोझ भी आपको ज्यादा सनकी बना रहा है.
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भाग जाना, भूल जाना चाहते हैं
सुबह दफ्तर पहुंचे कुछ ही घंटे हुए और आप वहां से निकलने का इंतजार करने लगे. किसी ऐसी जगह जाने का ख्याल आने लगे जहां शांति और सुकून हो. ऐसी "लालसा" असल में "बर्नआउट" की ओर इशारा करती है. भाग जाना किसी मुश्किल स्थिति से निकलने की सबसे आम प्रतिक्रिया होती है.
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आसान कामों में भी गलतियां होना
आप जो काम चुटकियां बजा कर कर लेते थे, उनमें भी गलतियां होने लगी हैं. ऐसा ध्यान भटकने के कारण होता है और अगर ऐसा ही चलता रहे तो ध्यान देना चाहिए कि कहीं आप भी "बर्नआउट" के शिकार तो नहीं हो रहे. पिछली मीटिंग में कही गयी कोई बात याद नहीं रही या रोजमर्रा के काम भूलने लगे हैं.
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हमेशा थके थके से
क्या वीकेंड को लेकर हमेशा आपका प्लान यही रहता है कि पूरा दिन सोकर बिताना है. ऐसी थकान महसूस होती हो जो आराम करके उठने के बाद भी ना जाती हो. यह थकान, तनाव और "बर्नआउट" के लक्षण हो सकते हैं. यह हालात शारीरिक से ज्यादा मानसिक और भावनात्मक थकान की ओर इशारा करते हैं.
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खुद पर संदेह
आप जहां भी हैं, जो भी काम कर रहे हैं, बड़ी मेहनत से वहां तक पहुंचे हैं. ऐसा क्यों होने लगा है कि कभी कभी आप अपनी ही क्षमताओं पर ही संदेह करने लगे हैं. अपने बारे में, अपने भविष्य के बारे में सोचने पर अंधेरा दिखता हो, तो यह भी बर्नआउट ही है. काम के अत्यधिक बोझ से आपका दिमाग कभी कभी ऐसे भी निपटने की कोशिश करता है.
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बदन में दर्द
कभी सिर का दर्द तो तो कभी पीठ में, ऐसा दर्द जो कभी नहीं जाता. आपको दर्द हमेशा महसूस होता रहता है, लेकिन इतना ज्यादा भी नहीं होता कि आप तुरंत डॉक्टर के पास जाने का सोचें. कभी कभी यह दर्द आपके काम के शेड्यूल से जुड़ा भी हो सकता है. अत्यधिक तनाव से कई बार बुखार से लेकर दिल की बीमारियां तक लग जाती हैं.
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छोटी छोटी बातों पर चिढ़ना
कभी बॉस की बुराई तो कभी चालू बनने वाले सहकर्मियों की- ऐसा नहीं कि कोई बॉस सचमुच बुरा नहीं होता या बाकी लोग धोखा नहीं देते, लेकिन यह भी सच है कि सभी ऐसे नहीं होते. तो अगर आप हमेशा सबके बारे में ऐसे ही ख्याल रखते हैं, तो उसका कारण भी आपका "बर्नआउट" हो सकता है. (एमएल/आरपी)