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बुंडेसलीगा को चुभती दर्शकों की खामोशी

४ दिसम्बर २०१२

इस हफ्ते बुंडेसलीगा के मैच जब शुरू हुए तो मैदान गहरी खामोशी में डूबे थे, न तालियां, न पटाखे, न सीटियां और न ही शोर शराबा. हजारों दर्शकों ने चुपचाप बैठ कर 12 मिनट 12 सेकेंड तक मैच देखा और बताया कि वो नाराज हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मैच के दोनों दिन जर्मनी के फुटबॉल प्रेमियों ने देश भर के स्टेडियमों में विरोध का यह तरीका अपना कर सनसनी फैला दी. मैच के पहले 12 मिनट 12 सेकेंड तक हजारों दर्शकों ने मैच एकदम खामोशी से देखा. मैदान में गूंज रही थी तो बस रेफरी की सीटियों की आवाज, दर्शकों की गैलरी में शोक वाली खामोशी छाई थी. यह विरोध नए सुरक्षा नियमों को लेकर है. जर्मन फुटबॉल लीग के अधिकारियों ने नए सुरक्षा नियम लागू किए हैं.

शनिवार को बायर लेवरकूजेन और न्यूरेम्बर्ग के बीच जब मैच हुए तो कुछ घरेलू दर्शक तो शुरू के 12 मिनटों के लिए बाय एरिना (स्टेडियम की गैलरी) से बाहर निकल गए. इन शुरुआती कुछ मिनटों में दर्शकों से भरी रहने वाले एरिना में कुछ नजर आ रहे थे तो बस विरोध के नारे लिखे बैनर, इन बैनरों में एक पर लिखा था, "यह वो है जो तुम चाहते हो? हमारा रास्ता यहीं खत्म नहीं होगा. दर्शक संस्कृति कहावत बन कर नहीं रहेगी."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

विरोध का यह तरीका खिलाड़ियों पर बहुत भारी पड़ा. मैच के दौरान एक दूसरे को पुकारती उनकी चीखें और बूटों की चरमराहट साफ साफ सुनी जा सकती थी जिनका आमतौर पर दर्शकों के शोर शराबे में कभी अहसास भी नहीं होता. यह सन्नाटा खिलाड़ियों के दिमाग में हथौड़े की चोट की तरह बज रहा था. माइंज के साथ भिड़ने वाले फ्रैंकफर्ट के कोच अर्मिन वेह कहते हैं, "मुझे यह बेहद डरावना और अनजाना लगा." फ्रैकफर्ट के कप्तान पिर्मिन श्वेगलर का इस बारे में कहना था, "पहले 12 मिनट में तो बिल्कुल भी बुंडेसलीगा का अहसास नहीं था." उधर माइंज के कोच थॉमस टुकेल ने कहा, "दर्शकों का समर्थन इसका हिस्सा है, यह सचमुच बहुत अटपटा हो जाता है जब आप गूंज और भिनभिनाहटों को सुन सकते हैं, और आप जानते हों कि यह जगह भरी हुई है लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा."

पटाखों की मनाही और तलाशी

खिलाड़ियों को अभी एक और मैच ऐसी ही हालत में खेलना होगा क्योंकि विरोध 12 दिसंबर को खत्म होगा. इसी दिन क्लबों को सुरक्षा के नए नियमों पर दस्तखत करने हैं. दर्शकों के गले में जो प्रस्ताव सबसे ज्यादा चुभ रहा है उनमें समर्थन टिकटों को घटा कर 10 फीसदी से 5 फीसदी किया जाना भी है. इसके अलावा सपोर्ट स्टैंडिंग एरिया पर रोक, स्टेडियम में पटाखों पर रोक और सभी दर्शकों की स्टेडियम में घुसने से पहले शरीर की तलाशी.

दो दिन के विरोध के बाद ही समर्थकों के संगठन मानने लगे हैं कि अधिकारियों को अपने फैसले पर दोबारा सोचना होगा. 12:12 का विरोध शुरु करने वाले सगठन प्रो फैन्स के प्रवक्ता फिलिप मार्कहार्ड्ट का कहना है, "हम देख रहे हैं कि हर कोई इसके खिलाफ है, इसलिए इस पर हम जल्दी ही बातचीत होगी, यह योजना दर्शकों और डीएफएल के बीच गहरी खाई पैदा कर देगी."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कुछ क्लबों ने भी नई योजना पर चिंता जतातई है. हनोवर के अध्यक्ष मार्टिन किंड का कहना है कि दर्शकों की आशंका जायज है. उनका कहना है, "हम नियमों पर बाचतीत और दोबारा विचार जारी रखना चाहते हैं और 12 दिसंबर तक इस पर कोई फैसला ले लेना चाहिए." हालांकि इसके साथ ही किंड ने दर्शकों से प्रस्तावों को पढ़ कर उस पर दोबारा वचार करने के लिए भी कहा है. उनका कहना है कि यह प्रस्ताव दर्शकों की सुरक्षा और हितों को ध्यान में रख कर ही तैयार किए गए हैं.

दर्शकों की आशंका है कि नई रिपोर्ट राजनीतिक दबाव का नतीजा है जिसे मीडिया की इन खबरों से बल मिला है कि फुटबॉल दर्शक "गुंडे" और "अतिवादी" हैं. लोगों के जेहन में ड्यूसेलडॉर्फ और फैंकफर्ट के बीच मैच के बाद फॉर्टूना स्टेडियम के बाहर भिड़े समर्थकों की वह तस्वीर ताजा है जिसके बाद 98 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. हालांकि अक्टूबर में शुरू हुए "आई फील सेफ (मैं सुरक्षित महसूस करता हूं)" अभियान पर 57 हजार से ज्यादा समर्थकों ने दस्तखत किए हैं और फुटबॉल अधिकारियों को यह बताने की कोशिश की है कि यहां होने वाली हिंसा उतना बड़ी समस्या नहीं है जितनी कि वो सोच रहे हैं.

सस्ते टिकट

दर्शकों का यह भी कहना है कि नए नियमों में उन्हें बहुत कुछ खोना पड़ेगा. डॉर्टमुंड के समर्थकों के संगठन के प्रवक्ता यान हेनरिक ग्रुस्जेकी का कहना है कि नए नियमों से सचमुच नुकसान होगा क्योंकि इससे बुंडसलीगा का असली गुण लुप्त हो जाएगा. यह वो चीज है जिसने बुंडसलीगा को यूरोप का राजदूत बना रखा है. बुंडसलीगा के क्लबों पर दर्शकों का नियंत्रण है किसी विदेशी उद्योगपति या किसी और का नहीं. उनका कहना है कि दर्शक संस्कृति इसकी अनोखी पहचान है जो हर हाल में बचाई जानी चाहिए. गुस्जेगी का कहना है, "अगर दर्शकों की टिकटें कम हो गईं और स्टैंडिंग एरिया से उन्हें हटा दिया गया तो फिर मैच ऐसे ही होंगे जैसे कि इन दिनों शुरुआत के 12 मिनटों में होते हैं. मुझे नहीं लगता कि कोई खिलाड़ी या अधिकारी ऐसा चाहेगा."

हालांकि बुंडसलीगा के सीईओ क्रिस्टियान साइफर्ट का कहना है कि नए नियम का मकसद दर्शक संस्कृति को खत्म करना नहीं है. सीफर्ट ने कहा है, "हम उन आखिरी बड़ी लीगों में से हैं जहां स्टैंडिंग एरिया है और कोई भी इन्हें छूना नहीं चाहता. क्लब सस्ते टिकट रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि यह माना जाता है कि जर्मनी में जिन लोगों के पास ज्यादा पैसा नहीं है वो भी मैच देखने के लिए यहां आ सकें."

इसके साथ ही साइफर्ट चेतावनी भी देते हैं कि अगर कुछ समझौते नहीं किए गए तो राजनेताओं को इसमें देखल देना पड़ेगा. उनका कहना है, "सचमुच राजनेताओं की तरफ से बहुत बड़ा खतरा है कि अगर हमने समस्या नहीं सुलझाई तो वो हमें केवल सीट रखने पर विवश कर देंगे और तब स्टैंडिंग एरिया नहीं होगा, ऐसे में जाहिर है कि टिकटों की कीमत बढ़ेगी." कम शब्दों में कहा जाए तो दर्शकों को यह प्रस्ताव मानना पड़ेगा नहीं तो उन पर लगने वाले नियम और ज्यादा भारी होंगे.

रिपोर्टः बेन नाइट/एनआर

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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