बुंडेसलीगा को हिला देने वाली मौत
९ अगस्त २०१३बॉन के टेलीकॉम दफ्तर के एक कमरे को प्रेस कांफ्रेंस के लिए तैयार किया गया था. बात 2009 की है. जर्मनी और चिली के मैच के पहले शाम में यहां पत्रकार जमा होने वाले थे.
मैच रद्द कर दिया गया. हालांकि पत्रकार जरूर पहुंचे. वे खामोश थे, एक विशाल स्याह वीडियो स्क्रीन को देख रहे थे. एक अजीब सी चुप्पी ने कमरे के माहौल को डरावना सा बना दिया था. कुछ ही पलों में रोबर्ट एंके की पत्नी टेरेसा प्रेस से मुखातिब होने वाली थीं.
आम तौर पर प्रेस कांफ्रेंस से पहले पत्रकार बतियाते रहते हैं. लेकिन हनोवर के रेलवे ट्रैक पर एक दिन पहले जो हुआ था, उसने उनके मुंह पर मानो ताला जड़ दिया था. वहां रोबर्ट एंके ने अपनी जान ले ली थी.
दोपहर एक बजे के थोड़ी ही देर बाद टेरेसा एंके कैमरों के सामने आईं. बहुत ही महीन और भर्राई सी आवाज में उन्होंने अपने पति के डिप्रेशन, उनकी खुदकुशी और इंसान रोबर्ट एंके के बारे में बात की. जिन पत्रकारों ने कभी एंके का इंटरव्यू किया था, वे जानते थे कि वह एक मिलनसार और अपनी ही कमियों को गिनाने वाले फुटबॉलर थे.
उनकी पत्नी एक दूसरे व्यक्ति, बीमार, डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति के बारे में बता रही थीं, "जब वह गंभीर अवसाद में होते थे, तो बहुत मुश्किल होती थी. यह साफ है क्योंकि उनमें ड्राइव नहीं रह गया था, जल्द सेहतमंद होने की उम्मीद नहीं रह गई थी." टेरेसा बताती हैं कि मुश्किल यह भी थी कि पूरा मामला सार्वजनिक न हो. "यह उनकी इच्छा थी, क्योंकि उन्हें अपना करियर खोने का डर था." करियर तो नहीं, पर जिन्दगी जरूर खत्म हो गई.
समाज से दूर करता अवसाद
टेरेसा एंके ने ऐसे घाव को छेड़ दिया, जिससे आज के युग का हर शख्स दो चार हो सकता है, "अवसाद" - इसने रोबर्ट एंके को इस तरह जकड़ लिया था कि वे आखिरी दिनों में किसी से भी मदद लेने को तैयार नहीं थे, अपनी पत्नी से भी नहीं.
तीन साल पहले एंके परिवार को सबसे बड़ा सदमा लगा था, जब उनकी मासूम बेटी लारा चल बसी थी. वह दिल की बीमारी के साथ पैदा हुई थी और इस दुनिया को उसने सिर्फ दो साल ही देखा. उस वक्त रोबर्ट एंके जर्मनी की राष्ट्रीय टीम के गोलकीपर थे.
उस वक्त रोबर्ट ने कहा, "हमारी बेटी लगभग एक साल तक अस्पताल में रही, जिसमें से आधा वक्त आईसीयू में बिताया. इससे आपके सोचने समझने का नजरिया बदल जाता है. मैंने प्राथमिकताएं तय करना सीखा." हालांकि मई 2009 में उन्होंने अपनी बेटी लीला को गोद लिया और इसके साथ नई उम्मीद भी जगी. किस दुख से टेरेसा ने यह बात कही होगी, "हमें लगा कि प्यार काफी होगा." लेकिन आखिरकार यह काफी नहीं था.
फुटबॉल सब कुछ नहीं
हनोवर के गोलकीपर की खुदकुशी से सहानुभूति की लहर दौड़ गई. इसके कुछ ही दिन बाद जर्मनी के राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों ने एक चिट्ठी तैयार की, "हम अब भी तुम्हारी मौत को अपने आस पास महसूस कर रहे हैं. हम कुछ भी बोलने के लायक नहीं हैं. हैरान और असहाय महसूस कर रहे हैं. जब हमें यह दिल दुखाने वाली खबर मिली, तो हमें मानो लकवा मार गया हो. हम अपने दुख को शब्दों में नहीं उतार सकते."
एंके की खुदकुशी के पांच दिन बाद हनोवर के स्टेडियम में एक भावपूर्ण शोक सभा हुई. सहानुभूति का यह आलम था कि 35,000 लोग जमा हुए. राष्ट्रीय कोच योआखिम लोएव के साथ कई देसी, विदेशी फुटबॉल संघों के खिलाड़ी और दूसरे अधिकारी जमा हुए.
जर्मनी के पूर्व चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर, लोवर सेक्सनी राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री क्रिस्टियान वुल्फ और जर्मनी के गृह मंत्री थोमस डे मेजियर भी पहुंचे. जर्मन खेल इतिहास में यह सबसे बड़ा शोक समारोह था.
जर्मन फुटबॉल संघ के अध्यक्ष थियो स्वान्सिगर ने अपने भाषण में अपील की, "सिर्फ दिखावे पर मत जाइए. उसके बारे में भी सोचिए जो लोगों के अंदर है, शक और कमजोरी. फुटबॉल सब कुछ नहीं होता." उन्होंने ईमानदारी और सम्मान के साथ खेलने की सलाह दी.
कैसे बदले फुटबॉल
सभी मान रहे थे कि चोटी के फुटबॉल में कुछ बदलाव की जरूरत है. लेकिन एंके की मौत के पांच साल बाद क्या बदला है? जवाब है, बहुत ज्यादा नहीं बदला है. हनोवर के दूसरे गोलकीपर मार्कुस मिलर ने 2011 में मानसिक तौर पर थका होने की शिकायत की. उन्होंने तीन महीने की छुट्टी ले ली. जब वह लौटे तो उन्होंने कहा कि यह उनके जीवन का सबसे अच्छा फैसला था.
लेकिन आंद्रेयास बीयरमन का मामला इसका उलटा है. सेंट पॉली टीम के इस खिलाड़ी ने भी अपनी बीमारी को दुनिया के सामने ला दिया. लेकिन नतीजा यह हुआ कि इसके बाद उनके कांट्रैक्ट को बढ़ाया नहीं गया. बीयरमन की सलाह देखिए, "मैं अवसाद से घिरे किसी फुटबॉलर को अपनी बीमारी के बारे में बताने की सलाह नहीं दूंगा."
रोबर्ट एंके की मौत ने फुटबॉल की दुनिया को सदमे में डाल दिया था. मानवीय फुटबॉल की थियो स्वान्सिगर की अपील अब किसी को याद नहीं. लेकिन टेरेसा एंके अपने रोबर्ट एंके फाउंडेशन के साथ इस बात के लिए संघर्ष कर रही है कि पेशेवर फुटूॉल में अवसाद के मामलों पर और खुल कर बात होनी चाहिए. लेकिन फुटबॉल एक प्रतियोगी खेल है और भविष्य में भी रहेगा. ऐसा खेल जहां ताकतवर की जीत होती है और कमजोर हारता है. पिछले सालों के मुकाबले सफलता का दबाव और बढ़ ही गया है.
रिपोर्टः थोमस क्लाइन/एजेए
संपादनः महेश झा