1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बुंडेसलीगा में हुड़दंग

२० अगस्त २०१३

कोलोन में आंसू बम, कार्ल्सरूहे में झगड़ा, डुसेलडॉर्फ में आगजनी. जर्मनी में फुटबॉल के दौरान हिंसा बढ़ गई है. अब जानकारों का कहना है कि इस मामले में इंग्लैंड से सीखने की जरूरत है.

तस्वीर: Reuters

कुछ दृश्य तो फुटबॉल के बड़े बड़े फैन्स को भी परेशान कर देते हैं. जब नकाबपोश लोग चारदीवारी फांद कर फुटबॉल पिच पर पहुंच जाते हैं, जलती मशालें फेंकने लगते है. इनसे निकलने वाला काला धुआं पूरे स्टेडियम में फैल जाता है. ऐसे नजारे 80 और 90 के दशक में भी दिखते थे. लेकिन कोलोन के पुलिस प्रमुख फोल्कर लांगे के मुताबिक हिंसा का चरित्र बदल गया है.

लांगे का कहना है, "आज कल हर चीज की प्लानिंग होती है और कई बार जान बूझ कर हिंसा की शुरुआत होती है. पहले के दिनों में अचानक हिंसा हो जाती थी. आज तो लगता है कि वे सैनिक टुकड़ियों की तरह हैं और विध्वंस के सही तरीके अपनाते हैं."

मार्च में कोलोन के लोगों ने बोरुसिया मोएंशनग्लाडबाख के शांतिपूर्ण समर्थकों से भरी एक बस पर घात लगा कर हमला किया. यह बस हाइवे पर जा रही थी, जब कई गाड़ियों ने इसे चारों तरफ से घेर लिया और इसे एक पेट्रोल पंप में मोड़ने पर मजबूर किया. वहां बेसबॉल, बैट और पत्थरों से लैस 40 लोगों ने इस पर हमला किया.

कार्ल्सरुहे और यान रेगेन्सबुर्ग के बीच मैच मेंतस्वीर: picture-alliance/dpa

कोलोन की टीम के प्रशंसकों को जानने वाले राइनर मेंडेल का कहना है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में ऐसी चीज पहले नहीं देखी थी. वह कई दशकों से प्रशंसकों के साथ बात कर रहे हैं और उनका कहना है कि उन्हें प्रशंसकों के नियमों के बारे में पता है.

उन्होंने कहा, "पहले के जमाने में वे हमला करते थे, लेकिन कुछ फेंक कर नहीं मारते थे. अगर कोई गिर जाता था, फिर सब कुछ रुक जाता था. लेकिन आज इसमें नया आयाम जुड़ा है क्योंकि आग भी शामिल हो गई है, पत्थर और बोतलें भी."

जर्मन शहर कोलोन में खेल अकादमी के एक अनुशासनात्मक ग्रुप के हाराल्ड लांगे का कहना है कि कई प्रशंसक समझते हैं कि रोमन कैंडल कही जाने वाली फुलझड़ियां खतरनाक नहीं हैं, ये 1000 डिग्री के तापमान तक पहुंच सकती हैं.

हालांकि दूसरे जानकारों का कहना है कि वे इस मामले को अलग तरीके से देखते हैं. सेहत के लिए नुकसानदेह धुएं के अलावा आग और लपटें बहुत ज्यादा तापमान पर उठती हैं और इससे जलने पर लोग जीवन भर के लिए अपाहिज हो जाएंगे या उन पर जले हुए का निशान रह जाएगा. पटाखों से कान के पर्दों को नुकसान पहुंच सकता है.

मेंडल का कहना है कि इंग्लैंड से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, "वहां कानून और नियम बिलकुल साफ हैं. हर किसी को पता है कि अगर वे पकड़े जाएंगे, तो क्या होगा और इसलिए वहां ऐसी चीजें नहीं होती हैं."

बेकाबू फैनतस्वीर: picture alliance/GES-Sportfoto

उनका कहना है कि जिन लोगों पर स्टेडियम में हुल्लड़ मचाने का आरोप लगा हो, उनकी जज के सामने सुनवाई होने तक महीनों या सालों लग सकते हैं. हालांकि दूसरे फुटबॉल प्रेमी देशों के मुकाबले जर्मनी में इसकी समस्या थोड़ी कम है.

कोलोन पुलिस के लांगे कहते हैं, "हमें स्टेडियम में सुरक्षा को लेकर किसी तरह की समस्या नहीं है. हमें सिर्फ कुछ लोगों से समस्या है, जो सीमा पार कर जाते हैं." उनका कहना है कि स्टेडियम के जिम्मेदार लोग स्थिति को बेहतर बना सकते हैं, "सिर्फ कुछ लोग फुटबॉल को खराब कर रहे हैं. और वे जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं."

रिपोर्टः ओलिविया फ्रित्ज/एजेए

संपादनः आभा मोंढे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें