बैंक ऑफ जापान के गवर्नर हरुहिको कुरोडा ने कहा है कि तेजी से बुजुर्ग होती आबादी से अर्थव्यवस्था को मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा.
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बैंक ऑफ जापान के गवर्नर हरुहिको कुरोडा का कहना है कि जापान में आबादी की बढ़ती उम्र और कम होती जनसंख्या परेशानी की बात है. इस वजह से भविष्य के लिए आर्थिक नीतियां बनाने में मुश्किल होगी. कुरोडा ने बताया कि आगे चल कर ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो घटती आबादी के बावजूद आर्थिक विकास को ना रोकें.
कुरोडा अप्रैल 2013 से बैंक ऑफ जापान के गवर्नर है और उन्होंने इन बरसों में जापान की अर्थव्यवस्था को डिफ्लेशन (जब मंहगाई की दर शून्य से नीचे चली जाती है और चीजों के दाम नहीं बढ़ते) से बचाया है. बैंक ऑफ जापान ने अर्थव्यवस्था में नकदी की कमी ना हो और आर्थिक विकास पर भी बुरा असर ना पड़े, इसका पूरा ध्यान रखा है. बीओजे ने नकारात्मक ब्याज दर नीति (जिसमें आपको बैकों में आपने पैसे रखने पर ब्याज नहीं मिलता है) को भी लागू किया है ताकि उधार देने की लागत लंबे समय तक ना बढ़े.
कुरोडा ने कहा कि मंहगाई को काबू करने के साथ व्यवसाय को कैसे आगे बढ़ाना है और इसके लिए जो पारंपरिक रणनीति का इस्तेमाल होता है, उसे हम अच्छे से समझते हैं. लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि बैंक ने जो अपरंपरागत तरीके अपनाए हैं, उनके अप्रत्याशित परिणाम भी सामने आ सकते हैं.
कुरोडा के मुताबिक विकास के लिए उठाए जाने वाले कदमों के लिहाज से सेंट्रल बैंक की भी सीमाएं होती हैं. खासतौर पर तब जब देश का कर्ज बढ़ रहा हो और उपभोक्ताओं की मांग नहीं बढ़ रही हो. उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह श्रम और अन्य सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाएं ताकि विकास और तेजी से हो सके और सरकार मंहगाई दर का 2 प्रतिशत का लक्ष्य भी पूरा कर सके.
कई साल पहले जापान की आबादी घटनी शुरू हुई. अब तेजी से आबादी का बड़ा हिस्सा उम्रदराज हो रहा है. इसकी वजह से कंपनिया जापान में निवेश भी नहीं कर रही हैं और नए रोजगार भी पैदा नहीं हो पा रहे हैं. कंपनियां उन देशों पर ध्यान दे रही हैं जो तेजी से बढ़ रहे हैं. कुरोडा के मुताबिक इस बुजुर्ग आबादी की वजह से कई उत्पादों और सेवाओं की मांग भी बढ़ी है, यानि आर्थिक गतिविधियों के नए अवसर भी सामने आ रहे हैं.
जापान के 78 वर्षीय वित्त मंत्री, तारो एसो ने कहा कि "आप मेरा उदाहरण ले सकते हैं. जापान में कई बुजुर्ग स्वस्थ हैं और अपने जीवन में बहुत लंबे समय तक काम करते हैं. जिसकी वजह से कई नये मौके मिलते हैं."
वहीं गवर्नर हरुहिको कुरोडा ने ये भी कहा कि सबसे बड़ी चुनौती ये है कि बुजुर्ग आबादी का ख्याल कैसे रखा जाए, खासतौर पर तब जब काम करने वालों की संख्या और कम होने वाली हैं.
उन्होंने कहा कि इसकी वजह से सरकार पर ज्यादा बोझ पड़ेगा क्योंकि लोगों की देखभाल के लिए और पेंशन के लिए सरकार को और पैसा देना होगा. लोग अपने भविष के लिए ज्यादा पैसा बचाएंगे और इसकी वजह से विकास पर बुरा असर पड़ेगा.
कुरोडा ने जोर देते हुए कहा कि आने वाले दिनों में सामाजिक सुरक्षा को और मजबूत करना होगा. वित्तीय प्रणाली को और बेहतर बनाना होगा जिसके साथ इनोवेशन और उत्पादन को भी बढ़ाना पड़ेगा. अगर लोग ऐसे ही निराश रहे तो भविष्य के साथ वर्तमान भी मुश्किल में पड़ जाएगा. लोग अभी के निवेश और उपभोग के तरीकों से निराश होकर पैसे नहीं खर्च कर रहे हैं और इससे भविष्य में और बड़ी मुश्किल हो सकती है.
एनआर/ओएसजे (एपी)
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंडराते सात संकट
क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर संकट में घिर सकती है, क्या फिर से दुनिया वैश्विक मंदी की चपेट में आ सकती है. मौजूदा उतार चढ़ाव ऐसा सोचने के लिए दुनिया को मजबूर कर रहे हैं. जानिए क्या हैं जोखिम.
2008 के बाद से अब तक दुनिया में ऋण का स्तर 60 फीसदी तक बढ़ गया है. विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में "बैड लोन" एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है. तकरीबन 1,82,000 करोड़ डॉलर सरकारी और निजी क्षेत्रों में ऋण के तौर पर फंसे हुए हैं. अब सवाल उठने लगा है कि अगर अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है तो क्या हमारे पास कर्ज की भरपाई करने के लिए पूंजी होगी.
ग्लोबल अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा उभरते बाजारों से आता है, लेकिन इनमें जोखिम का खतरा काफी है. अधिकतर ऐसे बाजारों में विदेशी मुद्रा और डॉलर का दबदबा रहता है. ऐसी स्थिति में जब अमेरिका ब्याज दर बढ़ाता है, सिस्टम से पैसा बाहर जाने लगता है और बाजार कमजोर पड़ जाते हैं. हाल में अर्जेंटीना और तुर्की में कुछ ऐसा ही देखने को मिला.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कर रियायतें और कारोबारी नियमन कर अब भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी बनाए रखने में सफल रहे हैं. इसके बावजूद बड़ी कंपनियां इस अनिश्चितता भरे माहौल में बड़ा निवेश करने से कतरा रहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएम) का मानना है कि साल 2018 में आर्थिक विकास शिखर को छूने के बाद धीमा धीमा पड़ जाएगा.
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4. कारोबारी विवाद
अमेरिका और चीन एक दूसरे के उत्पादों पर शुल्क लगा रहे हैं. चीन ने अमेरिकी मांस और सब्जियों पर तो वहीं अमेरिका ने चीन से आने वाले स्टील, टैक्सटाइल्स और तकनीक पर शुल्क बढ़ा दिया है. दोनों देश का यह विवाद करीब 360 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. आईएमएफ के अनुमान मुताबिक ये कारोबारी जंग अमेरिका की जीडीपी को 0.9 फीसदी तो वहीं चीन की जीडीपी को 0.6 फीसदी तक प्रभावित करेगी.
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5. चरमराती बैंकिंग व्यवस्था
व्यवस्थित बैंकिग सेक्टर के अलावा अब कई वित्तीय संस्थाएं भी लेनदेन में सक्रिय हो गए हैं. यूरोपियन सेंट्रल बैंक के मुतबिक यूरोपीय संघ में ऐसे शेडो बैंक करीब 40 फीसदी वित्तीय लेनदेन के लिए जिम्मेदार हैं. यही नहीं, बहुत से वित्तीय संस्थाओं के पास भी जोखिमों से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है.
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6. ब्रेक्जिट का असर
मार्च 2019 में ब्रिटेन, यूरोपीय संघ से पूरी तरह अलग हो जाएगा. समय तेजी से निकल रहा है लेकिन अब तक यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने की योजना पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है. अगर मुक्त व्यापार समझौता नहीं हो पाता है तो सिर्फ जर्मन कंपनियों को ही सालाना 3 अरब यूरो का टैरिफ चुकाना होगा.
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7. इटली की नीतियां
लोकलुभावन नीतियों का वादा करने वाले इटली के राजनीतिक दल देश में समान आय और रिटायरमेंट की उम्र कम करने के पक्ष में हैं. वहीं इटली 240 खरब डॉलर के ऋण के साथ यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा कर्जदार भी है. इसके साथ ही डूबते कर्जों के मामले में इटली का दुनिया में पहला स्थान है. (पाउल क्रिस्टियान ब्रिट्ज/एए)