बुरकिनी बहस: नग्न त्वचा की ताकत
२३ जून २०१७बुरकिनी हेडस्कार्फ, ट्यूनिक और लेगिंग्स का मेल है, जो बहुत सी मुस्लिम महिलाएं स्विम सूट की जगह पहनती हैं. जब पिछले साल फ्रांसीसी अधिकारी अपने समुद्र तटों पर बुरकिनी पहनने पर प्रतिबंध लगाना चाहते थे, तो जर्मनी में भी उस पर गंभीर बहस हुई. मुस्लिम महिलाओं को बुरकिनी हटाने को कहते पुलिस वालों की तस्वीरों पर इंटरनेट पर भी काफी चर्चा हुई. कुछ ने इस तरह की पाबंदी का विरोध किया तो कुछ ने इसे फ्रांसीसी और पश्चिमी मूल्यों की रक्षा बताया.
हाल ही में जारी हुए वीडियो - बिकीनी या बुरकिनी? - को कुछ ही दिनों के अंदर 5 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा है. इसमें 20वीं सदी के आरंभ से जर्मनी में बीच पर स्विमसूट के बदलते फैशन को दिखाया गया है. इस वीडियो पर मिली प्रतिक्रिया दिखाती है कि इसे लेकर समाज में कितना विवाद है और महिलाएं सार्वजनिक रूप से कितना अंग दिखा सकती हैं. यह भी पता चलता है कि इसका व्यक्तिगत आजादी, सामाजिक वर्चस्व और राजनीति से क्या लेना देना है.
राजनीतिक विरोध के रूप में महिला नग्नता
अतीत में नारीवादी कार्यकर्ताओं ने महिला नग्नता का इस्तेमाल महिलाओं के दमन के खिलाफ संघर्ष के लिए किया. पश्चिमी देशों में 1960 के दशक में आयी यौन क्रांति के दौरान नग्नता, राजनीतिक विरोध का एक औजार बन गया. उसे पुरुष-प्रधान सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरा माना जाता था. हाल के समय में यूक्रेन में गठित रैडिकल फेमिनिस्ट ग्रुप 'फेमेन' महिलाओं के शोषण के खिलाफ खुली छाती वाले प्रदर्शनों के लिए विख्यात हुआ है.
इसके अलावा नग्नता का इस्तेमाल महिला शरीर के मिथक को तोड़ने और पुरुषों की निगाहों को सेक्स के पुट से अलग करने के लिए हुआ है. और इस बात के लिए संघर्ष करने के लिए कि महिलाओं को जो चाहे पहनने का हक है, उसे सेक्स का निमंत्रण नहीं समझा जाना चाहिए. आजकल कुछ महिलाएं बिना किसी सामाजिक संदेश के भी अपने शरीर का इस्तेमाल करती हैं. अमेरिकी सेलिब्रिटी किम कार्डेशियान उस संस्कृति का प्रतीक हैं जिसमें महिला नग्नता का किसी विरोध से ज्यादा मुनाफे से लेना देना है.
लेकिन क्या शरीर के एक हिस्से को दिखाना और दूसरे हिस्से को नहीं दिखाना, आजादी है? क्या पश्चिम में महिलाओं पर कपड़ा त्यागने का दबाव है, जैसे कि मुस्लिम महिलाओं पर शरीर ढक कर रखने के लिए दबाव डाला जाता है?
इंटरनेट पर बहस
बुरकिनी वीडियो पर इंटरनेट यूजर्स की टिप्पणी में एक सहमति दिखती है. एक फारसी यूजर ने लिखा है, "बुरकिनी और बिकीनी में अंतर ये है कि बुरकिनी को स्वतंत्र रूप से नहीं चुना गया है. वह कर्तव्य है, सामाजिक दबाव है." अंग्रेजी पेज के एक यूजर ने लिखा है, "ऐसा नहीं हो सकता कि हम आजादी का समर्थन करें और फिर अपवाद रखें. या तो हम उनके चुनाव का समर्थन करते हैं कि वे क्या चाहती हैं, या नहीं." एक अरब यूजर ने लिखा है, "मेरी राय में अरब पुरुषों की आंखों पर पर्दा कर देना चाहिए. मैं इससे अपने को अलग नहीं रख रहा."
तो क्या महिलाओं पर बुरकिनी पहनने के लिए दबाव डाला जा रहा है? ऐसा नहीं कहा जा सकता. इसके कई कारण हैं, उनमें उस सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की भी भूमिका है जहां से ये महिलाएं आती हैं. फ्रांस में बुरकिनी पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश इस सोच के साथ की गई कि वह धार्मिक प्रतीक है. लेकिन प्रतिबंध लगाते ही वह धार्मिक प्रतीक से राजनीतिक प्रतीक बन गया, जिसमें उपनिवेशों में फ्रांस की बर्बरता की यादें भी शामिल थीं.
बुरकिनी पर क्यों है विवाद
लेकिन चुनाव की आजादी का इस्तेमाल किया जाए तो क्या बुरकिनी पिछड़ेपन का प्रतीक नहीं है. बहुत से यूजरों ने लिखा है बुरकिनी पहनने के हक का उसी तरह आदर होना चाहिए जैसे उसे अस्वीकार करने का. एक यूजर ने लिखा है कि मुसलमान महिलाओं के खुले में बुरकिनी पहनने से बेहतर होगा कि वे घर में रहें. एक दूसरे यूजर ने लिखा है, "दूसरी संस्कृतियों के साथ न्याय करने के लिए हम इस बात की अनुमति दे रहे हैं कि पश्चिमी संस्कृति को सौ साल या उससे भी पीछे धकेल दिया जाए."
लेकिन ये बात भी तय लगती है कि पश्चिमी दुनिया में बुरकिनी, बिकीनी की जगह फिलहाल नहीं ले सकता. सच्चाई यही है कि पूरे शरीर को ढकने वाली बुरकिनी इस समय बहुत सारी महिलाओं को एक ऐसी सार्वजनिक जगह पर जाने की संभावना दे रहा है, जो पहले उनके लिए वर्जित था. ये जगहें थीं स्विमिंग पूल या समुद्र तट. इस बहस में ये सवाल भी उठता है कि क्या गर्मी के दिनों में पूरे शरीर को ढकने वाली बुरकिनी आरामदेह होती है? महिलाओं ने इस पर नहीं लिखा है लेकिन बहुत से पुरुषों ने लिखा है कि महिलाओं को गर्मी वाले दिन क्या पहनना चाहिए.
फ्रांस ने बुरकिनी पर प्रतिबंध पिछले साल ही हटा लिया था, लेकिन उस पर बहस अभी खत्म नहीं हुई है.
रिपोर्ट: फरहद मिर्जा