पाकिस्तान के शहर पेशावर में एक कॉ़लेज में घुसे तालिबानी चरमपंथियों के हमले में 9 लोग मारे गये हैं. पुलिस का कहना है कि हमलावर बुर्के पहनकर आये थे.
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अधिकारियों का कहना है कि हमला पेशवार के एग्रीकल्चरल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में हुआ. हालात से निपटने के लिए पुलिस और सेना को तैनात किया गया और जवाबी कार्रवाई में सभी हमलावर मारे गये. इस घटना में 35 लोग घायल भी हुए हैं.
पाकिस्तानी तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है और कहा है कि उन्होंने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई एक सुरक्षित ठिकाने को निशाना बनाया है.
पेशावर के पुलिस चीफ ताहिर खान का कहना है कि हमलावर एक ऑटो रिक्शा में सवार हो कर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के परिसर में पहुंचे. परिसर में दाखिल होने से पहले उन्होंने गार्ड को गोली मार कर घायल किया.
क्या भूल गये सब ओसामा बिन लादेन को
ओसामा बिन लादेन की मौत के छह साल बाद आज अल-कायदा की स्थिति कमजोर पड़ गयी है. लेकिन अब भी दुनिया से आतंकवाद का खात्मा नहीं हुआ. अल-कायदा के खिलाफ अमेरिका की जीत जरूर हुई थी लेकिन अब दुनिया आईएस से परेशान है.
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अल-कायदा की जगह
आतंकवादी समूह अल कायदा और इसके प्रमुख ओसामा बिन लादेन को भुलाने में अमेरिका से ज्यादा इस्लामिक स्टेट का हाथ रहा है. आईएस ने ना केवल मध्यपूर्व में अल-कायदा की खाली जगह को भरा बल्कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र पर भी अपना दबदबा कायम किया, जहां कभी अल-कायदा सक्रिय था.
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आईएस का खौफ
आज तालिबान के कई गुटों समेत दक्षिण एशिया के कई आतंकवादी समूह, इस्लामिक स्टेट (आईएस) के करीब जा रहे हैं. आईएस ने पिछले कुछ सालों में ही इराक और सीरिया के कई इलाकों में अपना दबदबा कायम किया. दुनिया भी आज ओसामा बिन लादेन को भूल कर, आईएस प्रमुख अबु-बकर बकदादी से खौफ खा रही है.
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लादेन की मौत
मई 2011 में जब अमेरिकी सुरक्षा बलों ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में लादेन को मारा था तो पूरी दुनिया ने चैन की सांस ली थी. लादेन अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन था जिस तक पहुंचने में अमेरिका को छह साल से भी अधिक का समय लगा. इस दौरान पाकिस्तान पर भी आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे
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कायम कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद
आज भले ही अल-कायदा कमजोर पड़ गया हो लेकिन कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा फलती फूलती जा रही है. बिन लादेन को मरे सालों हो गये लेकिन उसकी मौत से लेकर अब तक कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद नये चरम पर पहुंच गया है.
अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि अल कायदा के पतन का सबसे अधिक लाभ आईएस को मिला है और आज यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है. लेकिन इनके काम करने के तरीके में बड़े अंतर है.
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तरीके में अंतर
आईएस ने सीरिया और इराक के कुछ क्षेत्रों में सफलतापूर्वक अपने केंद्र स्थापित किये हैं वहीं अल-कायदा ने कभी अपने क्षेत्र स्थापित नहीं किये. आईएस ने वित्तीय संसाधनों के लिये इराक और सीरिया के तेल क्षेत्रों में भी अपना नियंत्रण स्थापित किया.
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बाकी है अल-कायदा
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि दक्षिण एशिया में अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठन अब भी सक्रिय हैं और आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. विशेषज्ञों को आशंका है कि अगर अफगानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद नहीं किया गया तो अल-कायदा वहां फिर से जड़ें जमा सकता है.
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कहां है अल-जवाहिरी
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अल कायदा प्रमुख अल-जवाहिरी पाकिस्तान के कराची शहर में छुपा हो सकता है. कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि अल-कायदा को कमजोर समझना अमेरिका की भूल हो सकती है. क्योंकि वह भी अमेरिका के खिलाफ किसी साजिश में शामिल हो सकती है.
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एक घायल छात्र एहतेशान हक ने रॉयटर्स को बताया कि यूनिविर्सिटी के होस्टल में लगभग 400 छात्र रहते हैं लेकिन उस वक्त वहां 120 छात्र ही थे क्योंकि ज्यादातर लोग छुट्टियों में घर गये हुए थे. उन्होंने कहा, "हम सो रहे थे जब हमने गोलियां चलने की आवाजें सुनीं. मैं उठा और चंद सेकंडों के भीतर हर कोई भाग रहा था और चिल्ला रहा था कि तालिबान ने हमला कर दिया है."
दिसंबर 2014 में पाकिस्तानी तालिबान ने पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला किया गया था जिसमें 134 बच्चे मारे गये थे. यह हमला पाकिस्तान के इतिहास के सबसे बड़े हमलों में से एक था.