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बुर्के और नकाब में ढका टीवी चैनल

२४ अगस्त २०१२

मिस्र में होस्नी मुबारक के बाद काफी बदलाव आए हैं. मारिया टीवी भी इनमें से एक है. यह एक ऐसा चैनल है जो केवल महिलाओं के लिए है और जहां महिलाएं ही काम करती हैं, लेकिन नकाब पहन कर.

तस्वीर: dapd

एक तरफ महिलाओं के टीवी पर आने को उनकी स्वतंत्रता माना जा रहा है, तो वहीं नकाब से ढंकी महिलाओं को देख कर सामाजिक कार्यकर्ता गुस्से में भी हैं. उनका मानना है कि इस तरह के चैनल कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं. अबीर शाहीन मारिया टीवी में ऐंकर हैं. लोग केवल उनकी भूरी आंखों को पहचानते हैं. उसके अलावा दर्शकों को और कुछ भी नहीं दिखता. सर से पैर तक वह काले रंग के बुरके में ढंकी होती हैं. हाथों पर दस्ताने और चेहरे को पूरी तरह छिपाने के लिए नकाब.

इस चैनल को शुरू हुए करीब एक महीना हो गया है और नकाब केवल स्क्रीन के सामने नहीं, स्क्रीन के पीछे भी पहना जाता है. अबीर शाहीन का कहना है कि इस चैनल के जरिए वह महिलाओं के खिलाफ भेदभाव से लड़ रही हैं. शाहीन की नजर में औरतों का लिबास यही होना चाहिए. यही बात वह अपने प्रोग्राम में भी समझाती हैं. वह मानती हैं कि यह चैनल इस बात का सबूत है की मिस्र की क्रांति एक बड़ी सफलता थी.

तस्वीर: dapd

नकाब पर बहस

चैनल पर हर रोज छह घंटे कार्यक्रम प्रसारित होते है. शाहीन भले ही नकाब पहनने की सीख दें, लेकिन ब्यूटी टिप्स देना भी नहीं भूलती. इसके अलावा सेहत के लिए घरेलू नुस्खे, बच्चों के पालन पोषण और घर चलाने पर भी बात होती है. साथ ही महिलाएं फोन के जरिए शादी और पति के धोखे पर भी बात करती हैं. लेकिन पुरुषों को किसी भी तरह इस से जुड़ने की इजाजत नहीं है. वे फोन भी नहीं कर सकते. यदि कोई महिला बिना नकाब के शो पर आना चाहे तो उसके चहरे को स्क्रीन पर छिपा दिया जाता है.

अबीर शाहीन कहती हैं, "एक मुस्लिम औरत के लिए कपड़े पहनने का एक ही सही तरीका है और वह है नकाब. यह इस्लाम के कानून में लिखा है." वह मानती हैं कि नकाब से ही एक औरत की सही पहचान होती है. नकाब किस तरह से ओढा गया है, इससे औरत के व्यक्तित्व की पहचान होती है. हालांकि मिस्र के अधिकतर मुस्लिम इसके खिलाफ हैं. अल अजहर यूनिवर्सिटी को देश में सुन्नी इस्लाम की सबसे अहम संस्था माना जाता है. इस संस्था ने नकाब पर रोक लगाने तक की बात कही है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि कुरान में नकाब का कोई जिक्र ही नहीं है.

सैली जोनीतस्वीर: zugeliefert von ivat

बढ़ता कट्टरपंथ

लेकिन कुछ कट्टरपंथियों के लिए तो नकाब वाली ये औरतें भी हराम हैं. शेख इब्राहिम का कहना है कि चैनल पर भले ही औरतों के चहरे ना दिखते हों, लेकिन उनकी आवाज सुनी जा सकती है और यह पुरुषों को बहका सकती है. उनके अनुसार औरतें जो भी कहें उसे आदमियों की आवाज में रिकॉर्ड कर के ही चलाना चाहिए.

महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली सैली जोनी पहले इस चैनल के खिलाफ थीं. वह कहती हैं, "पहले इस तरह की बातें उठती थीं कि इस से औरतों को बुर्का या नकाब पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. लेकिन मुझे लगता है कि मैं महिलाओं के हक के लिए लड़ रही हूं, इसलिए जरूरी है कि इन महिलाओं के पास भी मीडिया में अपना कोई प्रतिनिधि हो."

जोनी बताती हैं कि मिस्र में पिछले कुछ सालों में लोग कट्टरपंथ की तरफ बढ़ने लगे हैं, "स्कूली लड़कियों में हिजाब और नकाब का चलन मेरे समय में नहीं था. यह चलन इस्लामी राष्ट्रपति के चुनाव से आया है. लोग खुद को इसमें ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं."

जोनी जैसे अन्य कार्यकर्ताओं को डर है कि भविष्य में कट्टरपंथ और बढेगा. जबकि शाहीन खुश हैं कि वह ऐसे एक चैनल की ऐंकर हैं. यह बात अलग है कि दुनिया में कोई उनको पहचान नहीं सकता.

रिपोर्ट: विक्टोरिया क्लेबर / ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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