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बेकाबू होगा मौसम

३१ मार्च २०१४

कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी से इस सदी में भूख, बाढ़ और सूखे कारण दुनिया की हालत खराब होगी और संघर्ष के साथ ही प्रवासन बढ़ेगा. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ने पेश की विस्तृत रिपोर्ट.

तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन के लिए बने अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अध्यक्ष राजेन्द्र पचौरी ने कहा, "कार्रवाई करने का ये अलार्म है. अगर दुनिया ने अब भी कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए कुछ नहीं किया तो मामला हाथ से निकल जाएगा. " रिपोर्ट के सारांश में कहा गया है, "तापमान की डिग्री बढ़ने के साथ साथ गंभीर, व्यापक और सुधारे न जा सकने वाले असर होंगे."

वैसे तो पर्यावरणविद पहले से ही जलवायु परिवर्तन के खतरों से आगाह करवा रहे हैं लेकिन ताजा रिपोर्ट में खतरे की घंटी साफ सुनाई दे रही है. आईपीसीसी के पांचवे आंकलन का यह पार्ट दो है. 1988 में आईपीसीसी बनाई गई थी ताकि सरकारों को पर्यावरण में बदलाव और जलवायु परिवर्तन के बारे में वैज्ञानिक तथ्यों और बदलावों से रुबरू कराया जा सके.

क्योटो प्रोटोकॉल के खत्म होने के बाद की संधि पर दुनिया सहमत नहीं हो पाई है. सबसे ताकतवर देश कहा जाने वाला अमेरिका भी जलवायु परिवर्तन को काबू में करने के लिए कोई प्रस्ताव पास नहीं करवा पाया है क्योंकि अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की कोशिशें व्यावसायिक विकास में रोक लगाती हैं.

कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा, कहीं अति गर्मी तो कहीं अति बर्फबारीतस्वीर: DW

जापान के योकोहामा में पांच दिन चली बैठक के बाद आईपीसीसी की रिपोर्ट में कड़ी चेतावनी दी गई है.

कहा गया है कि इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होगी. 2100 तक समुद्र का स्तर 26-82 सेंटीमीटर बढ़ जाएगा.

खतरे

रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती का तापमान बढ़ने का असर हर डिग्री के साथ और गंभीर होता जाएगा. जब ये चार डिग्री के करीब बढ़ेगा तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे. तापमान में इजाफे के साथ मौसम खराब होने लगेगा और इसके कारण लोगों का प्रवासन भी बढ़ जाएगा. बढ़ते आप्रवासन के कारण सामाजिक अस्थिरता और संघर्ष बढ़ जाएंगे.

रिपोर्ट का अनुमान है कि एशिया और यूरोप में बारिश का मौसम, मात्रा, पैटर्न बदल जाएगा और इससे भीड़ वाले इलाकों में पानी की कमी और कई जगहों पर सूखे की आशंका प्रबल हो जाएगी. इसका सीधा असर खेती पर पड़ेगा, गेहूं, मक्का, धान की उपज कम हो जाएगी लेकिन मांग बढ़ेगी क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है.

इस सबका असर स्वास्थ्य पर भी होगा क्योंकि पानी से और गर्मी से होने वाली बीमारियां बढ़ेंगी साथ ही मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियों में भी इजाफा होगा.

नुकसान

संवेदनशील पौधे और जानवर, खासकर कोरल रीफ और आर्कटिक में रहने वाले जीवों की जान पर बन आएगी. चेतावनी देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इन सबके कारण पारिस्थितिकीय तंत्र में ऐसा बदलाव आएगा जिसे रोकना संभव नहीं होगा.

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने कहा कि रिपोर्ट एक अलार्म है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

सभी देशों को जलवायु में होने वाले बदलावों के लिए तैयार रहना जरूरी होगा. गर्म और गरीब देशों को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से बचने के कई उपाय बहुत ही आसान और सस्ते हैं. इनमें पानी का दुरुपयोग रोकने, गर्मी घटाने के लिए शहरों में ज्यादा बागीचे लगाना और उन इलाके से लोगों को जाने से रोकना जो मौसम की अति का शिकार हों.

ग्रीन पीस इंटरनेशनल के वरिष्ठ राजनीतिक सलाहकार काइसा कोसोनन के मुताबिक, "ये सिर्फ ध्रुवीय भालुओं, मूंगे की चट्टान या वर्षावन नहीं, जिन्हें खतरा हो, खतरा हमें (इंसानों को) है. जलवायु परिवर्तन का असर अब सब जगह देखा जा सकता है. हमें इसने परेशान करना शुरू कर दिया है. यह और कितना बुरा और गंभीर हो सकता है, यह निर्भर करेगा हमारे फैसलों पर. सरकारों के पास यह रिपोर्ट है. हमें उम्मीद है कि वो इसे अपने साथ ले जाएंगी और इस पर काम करना शुरू करेंगी."

एएम/ओएसजे (एएफपी, डीपीए)

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