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बेटी को इंसाफ चाहिए

३ अप्रैल २०१३

इस महीने एनएसयू आतंकी गिरोह के बेआटे चैपे के खिलाफ मुकदमा शुरू हो रहा है. इस गिरोह द्वारा मारे गए 10 लोगों में से एक मेहमत कुबासिक की बेटी मुकदमे से पहले याद कर रही हैं कि इस हत्या ने उनके परिवार की जिंदगी कैसे बदल दी.

तस्वीर: DW/A. Grunau

"ओह, अब बेटी को भी पता चल जाएगा," ये शब्द गमजे कुबासिक के कानों में तब पड़े जब वह 4 अप्रैल 2006 को अपने पिता की गुमटी में पहुंचीं. वहां लोगों की भीड़ थी, पुलिस और एंबुलेंस की गाड़ियां थीं. डॉर्टमुंड शहर की चार लेन की चौड़ी सड़क से सटी गुमटी के गेट पर लाल उजले बैंड लगे थे. पुलिस ने गमजे को कियॉस्क के अंदर जाने से रोक दिया.

उस मंगलवार की सुबह 20 साल की गमजे ने अपने पिता को उठाया, यह कहने के लिए कि वह छोटे भाई को किंडरगार्टन ले जा रही है. वे कुछ और देर सो सकते हैं. यह सुनाते हुए गमजे की आवाज कांपने लगती है. "ठीक है, मेरी बच्ची," पिता ने कहा था. गमजे उन पलों को याद करती हैं, "वह अंतिम मौका था जब मैंने उन्हें देखा था."

मेहमत कुबासिक करीब 15 साल से जर्मनी में रह रहे थे. वे तुर्की के थे, जहां कुर्द और अलवी धार्मिक संप्रदाय के होने के कारण 80 के दशक में वे अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे. उन्होंने जर्मनी शरण के लिए आवेदन दिया जो मान लिया गया. 2003 में उन्होंने जर्मन नागरिकता ले ली. मेहमत की बेटी बताती हैं कि नया देश उनके अनुरूप था, जर्मनी लोकतंत्र था, "और मेरे पिता भी."

गोली मार कर हत्या

हत्यारा दोपहर 12 से एक बजे के बीच गुमटी में घुसा होगा. चेस्का ब्रांड की पिस्तौल से उसने काउंटर के पीछे खड़े मेहमत कुबासिक पर कई गोलियां चलाईं. इस पिस्तौल से पहले भी सात लोगों की हत्या की जा चुकी थी. दो गोलियां सिर में लगीं, वह पीछे की ओर गिर पड़े. यह बातें बाडेन वुर्टेमबर्ग के प्रांतीय अपराध कार्यालय की 2007 की रिपोर्ट में लिखी हैं.

इस बात को सात साल हो चुके हैं, लेकिन मौत का काला साया अभी भी कुबासिक परिवार की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है. बेटी गमजे बताती हैं कि कुछ दिन पहले उनकी मां एलिफ जब अपनी एक दोस्त के साथ सड़क पर जा रही थीं तो उन्होंने अपने पीछे दो लोगों को देखा जो उनके विचार में नवनाजी थे. उन्हें डर लगा, वे बदहवास हो गईं. उनके पति की हत्या से पहले भी दो लोग गुमटी के बाहर देखे गए थे.

तस्वीर: privat

मुकदमे का इंतजार

27 वर्षीया गमजे बताती हैं कि इस तरह की घटनाएं नियमित रूप से होती रहती हैं. उन्हें भी अक्सर डर लगता है, लेकिन फिर वे हिम्मत जुटाती हैं. वे खास कर म्यूनिख हाई कोर्ट में होने वाले मुकदमे के लिए मजबूत रहना चाहती हैं, जहां वे 70 याचिकाकर्ताओं में से एक हैं. वे अभियुक्तों के चेहरे के भाव देखना चाहती हैं, "अगर वे इंसान हैं तो वे मृतकों के रिश्तेदारों को उनकी आंखों में झांकना बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे."

गमजे कुबासिक अपने पिता के लिए इंसाफ चाहती हैं और चाहती हैं कि किसी दूसरे परिवार के साथ वैसा न हो, जो उनके और नौ अन्य मृतकों के परिवार के साथ हुआ. यही वजह है कि वे घर में नहीं बैठीं और 2012 में बर्लिन में मृतकों के लिए हुए केंद्रीय शोक समारोह में बोलीं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने मृतकों के परिवार वालों से इस बात के लिए माफी मांगी कि उन पर सालों तक गलत संदेह किया जाता रहा और तब बंद हुआ जब 2011 में एनएसयू का अपराध कबूल करने वाला वीडियो आया.

संदेह के साए में

मेहमत की हत्या के बाद एलिफ और गमजे से पुलिस ने अलग अलग छह घंटे पूछताछ की. गमजे कहती हैं कि जिस तरह के सवाल पुलिस ने उन पर दागे, वह उनके लिए सदमा था. "क्या आपके पिता ड्रग लेते थे? क्या वे ड्रग बेचते थे?"पुलिस ने माफिया के साथ संपर्कों के बारे में पूछा और प्रतिबंधित कुर्द पार्टी पीकेके के बारे में भी. पुलिस के एक दस्ते ने कुत्तों के साथ कुबासिक के पूरे घर की तलाशी ली. पिता की गाड़ी के पुर्जे-पुर्जे अलग कर दिए और तीनों बच्चों के लार के नमूने लिए. उन्हें कुछ नहीं मिला. जब गमजे ने पुलिस से यह कहा कि हत्या के पीछे उग्र दक्षिणपंथियों का हाथ होना चाहिए तो उन्हें बताया गया कि इसके कोई सबूत नहीं हैं.

मेहमत कुबासिक की हत्या के दो दिन बाद कासेल शहर में 21 वर्षीय हालित योजगाट को उसी हथियार से मारा गया. मीडिया ने जांचकर्ताओं के ही संदेह को आगे बढ़ाया कि मृतक अवैध कारोबार में शामिल हो सकते हैं. गमजे कुबासिक निराशा और अवसाद का शिकार हो गईं क्योंकि डॉर्टमुंड में उनके पीठ पीछे बातें होने लगी. वह साबित नहीं कर सकती थी कि उसके पिता निर्दोष थे.

जांच में भूल पर गुस्सा

गमजे कुबासिक को जांच में हुई गलतियों और घरेलू खुफिया सेवा पर गुस्सा है. साथ ही नष्ट कर दिए महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर भी. वे पूछती हैं कि ऐसा कुछ कैसे हो सकता है जबकि चांसलर अंगेला मैर्केल ने शोक सभा में भरोसा दिलाया था कि सच्चाई का पता लगाने के लिए सब कुछ किया जाएगा. मृतक का परिजन होने के नाते वे पूछती हैं, "हम इस देश में कितने सुरक्षित हैं?"

हालांकि उन्हें पता है कि एनएसयू मुकदमे में बहुत से सवाल अनुत्तरित रहेंगे, वे अपने वकील के साथ सच्चाई और इंसाफ के लिए लड़ना चाहती हैं. इसके लिए उन्हें चांसलर और राष्ट्रपति के समर्थन की उम्मीद है. म्यूनिख की अदालत में मुकदमे के लिए कमरे का छोटा होना उनमें यह भावना पैदा करता है कि "मुकदमे को लोग किसी तरह भुला देना चाहते हैं." लेकिन मीडिया और सह वादी परिजनों की वजह से ऐसा होगा नहीं.

शादी के बाद गमजे कुबासिक कुछ दिनों तक अपने पति के साथ तुर्की में रहीं, लेकिन फिर वापस आ गईं. वे कहती हैं, "जर्मनी मेरा देश है, मैं भी जर्मन हूं. इसे मैं नष्ट नहीं होने दूंगी और मेरा परिवार भी नहीं. यह देश हम सबका है नाजियों का नहीं."

एमजे/एजेए (डीडब्ल्यू)

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