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बेनजीर की बरसी और जरदारी की कुर्सी

२६ दिसम्बर २०११

पाकिस्तान की बेटी के नाम से मशहूर बेनजीर की हत्या ने 2007 में उनकी पार्टी के लिए सहानुभूति के जो दरवाजे खोले, चार साल बाद उस तारीख के आते आते पार्टी लोगों की नाराजगी और गुस्से का शिकार हो गई और रहनुमा कटघरे में.

तस्वीर: AP

स्वनिर्वासन से लौटी बेनजीर का इस्तकबाल करने पूरा पाकिस्तान उमड़ आया था पर जो नहीं आए उन्हीं में से कुछ उन्हें पाक धरती पर नहीं देखना चाहते थे. अक्टूबर से दिसंबर 2007 के बीच बेनजीर का वतन लौटना और जान गंवाने तक का सफर पूरा हो गया. बेनजीर की जान गई और उसके बाद अवाम के दिल में जगी सहानुभूति की लहर ने 2008 में पाकिस्तान के तख्त पर उनके विधुर आसिफ अली जरदारी का राजतिलक कर दिया.

कई सालों से परवेज मुशर्रफ की तानाशाही झेल रही जनता को उम्मीद थी कि अब देश तरक्की और अमन के रास्ते पर बढ़ेगा. हिंसा, आतंकवाद, खराब कानून व्यवस्था और लचर आर्थिक हालत से निजात पाने की सोच रहे देश को जरदारी के शासन से निराशा, गरीबी और अराजकता ही मिली.

पाकिस्तान की अवाम से जिस तरह का रिश्ता बेनजीर ने बनाया था उसकी झलक कभी भी जरदारी में लोगों को नजर नहीं आई. सरकार लोगों के मन में भरोसा जगा पाने में नाकाम रही और जरदारी ऐसा कुछ नहीं कर सके जिससे लोगों को महसूस हो कि वो संयोग या सहानुभूति से राष्ट्रपति नहीं बने हैं. बाढ़ के प्रलय ने जब 2 करोड़ लोगों को तबाह कर दिया तब जरदारी यूरोप के दौरे पर थे. एक के बाद एक कर विपत्तियां पाकिस्तान के सिर पर गिरती जा रही हैं और जरदारी की नाकामियों का चिट्ठा खुलता जा रहा है. बेनजीर के भ्रम में जरदारी का समर्थन करना पाकिस्तान की अवाम के लिए हर मोर्चे पर भारी पड़ता जा रहा है.b#b

दक्षिण एशिया का परेशान मुल्क जब लंबे समय की तानाशाही के बाद लोकतंत्र की रोशनी से चमका तो उसमें 35 साल की छोटी उम्र की बेनजीर के रूप में एक करिश्माई किरण भी थी. धुर विरोधी भारत के युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ कूटनीतिक गलबहिया कर बेनजीर ने दुनिया को अमन और तरक्की की तरफ बढ़ने का संकेत दिया. टूटी फूटी उर्दू और चाल ढाल में अंग्रेजीयत पहनने वाली बेनजीर में लोगों को उम्मीद नजर आई और बहुत थोड़े समय में वो उनकी प्यारी नेता बन गईं.

दो बार के शासन काल में महज साढ़े चार साल के लिए सत्ता संभालने वाली बेनजीर जब दशक भर से ज्यादा निर्वासन में रहने के बाद भी वतन लौटीं तो पाकिस्तान की जनता उनकी राहों में फूल बरसाने के लिए तैयार बैठी थी. निर्वासन के लंबे दौर ने भी न तो उनके करिश्मे को कम किया न उनकी पार्टी की ताकत को.

इसी करिश्मे की छाप जरदारी में ढूंढना कोई बहुत हैरान करने वाली बात नहीं थी लेकिन लोगों को उसका 10 फीसदी भी नहीं मिला. हद तो तब हो गई जब लोगों ने अपनी भड़ास निकालने के लिए जरदारी पर ताना कसने वाले एसएमएस भेजने शुरू किए तो उस पर भी सरकारी रोक लग गई.

पश्चिमी देशों के कुछ अधिकारियों ने तो पहले ही कह दिया है कि उनमें इतनी क्षमता नहीं कि वो आतंकवाद पर लगाम कसने के अमेरिकी अभियान में पाकिस्तान का नेतृत्व कर सकें. जरदारी सरकार की नाकामियों ने देश में सेना का महत्व और उनकी ताकत और बढ़ा दी है. खासतौर से हाल की कुछ घटनाओं ने तो उन्हें बिल्कुल हाशिए पर धकेल दिया है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पाकिस्तान के अंदर ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद बहुत मुमकिन है कि मेमोगेट कांड से उनकी उल्टी गिनती भी शुरू हो गई हो. सेना ने जांच शुरू कर दी है जिस दिन भी इसके पीछे की उनकी भूमिका साफ हुई राष्ट्रपति भवन के बाहर उनकी जगह तय कर दी जाएगी.

पति के रूप में बेनजीर के वारिस बन बैठे राष्ट्रपति जरदारी कभी भ्रष्टाचार की वजह से लंबा समय जेल में बिता चुके हैं और उन पर हत्या तक के आरोप भी लगे हैं. हालांकि बेनजीर का पति होना उनके लिए नए रास्ते खोलता गया है. लेकिन एक तरफ नाराज सेना, दूसरी तरफ गुस्साई जनता, तीसरी तरफ दूरी बढ़ाता अमेरिका और चौथी तरफ नाकों दम करने वाले कट्टरपंथियों ने जरदारी के लिए अब कोई रास्ता नहीं छोड़ा है.

अंदरखाने तो यहां तक कहा जा रहा है कि इलाज के बहाने राजधानी छोड़ने वाले जरदारी सिर्फ अपनी पत्नी बेनजीर भुट्टो की बरसी के लिए ही पाकिस्तान में हैं. इसके बाद उनकी राजनीतिक पारी पर यहीं विराम लग जाएगा और उन्हें पाकिस्तान के दूसरे शीर्ष नेताओं की तरह किसी और मुल्क की पनाह लेनी पड़ेगी.

रिपोर्टः निखिल रंजन

संपादनः महेश झा

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