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बेबी गैंडों का अनाथालय

७ अगस्त २०१२

काले रंग के गैंडे का बच्चा कोला के बोतल से दूध पीता है, इधर उधर भागता है और अपनी देख रेख करने वालों को पकड़ लेना चाहता है. किसी ने सींगों के लिए उसके मां बाप की हत्या कर दी, जिसके बाद उसे अनाथालय में रखा जा रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

दक्षिण अफ्रीका के इस एंताबेनी सफारी में चार महीने का यह गैंडा दूर से दिख जाता है. भारी भरकम शरीर से थुल थुल करके दौड़ता भागता. उसका तो अभी तक नाम भी नहीं रखा गया है लेकिन उसकी शख्सियत देख कर सब खुश हैं. अमेरिका से आई संरक्षण की पढ़ाई कर रही अलाना रसेल का कहना है, "वह अपनी चमड़ी से आपके बाल और आपका शरीर महसूस करने की कोशिश करता है. आपके चेहरे को अपने जुबान से चाटना चाहता है. वह सब कुछ करना चाहता है, जिसकी इजाजत नहीं. बिलकुल चार महीने के छोटे बच्चे की तरह." उसका वजन 100 किलो हो चुका है.

प्रिटोरिया से कोई 250 किलोमीटर दूर मोकोपाने शहर का यह अनाथालय सवाना की पहाड़ियों में बसा है. यह गैरमुनाफे वाला संगठन है, जो मारे गए गैंडों के बच्चों को पाल रहा है. दक्षिण अफ्रीका में पिछले साल 448 गेंडों को मारा गया था और इस साल अब तक 300 से ज्यादा गैंडे मारे जा चुके हैं. अफ्रीका के 2000 सफेद गेंडों में से एक तिहाई दक्षिण अफ्रीका में रहते हैं, जबकि 4800 काले गैंडे भी हैं, जिनके विलुप्त हो जाने का खतरा है.

काले बाजार में गैंडे की सीगों की जबरदस्त मांग है और इसी वजह से वे शिकारियों के हाथों चढ़ जाते हैं. उनकी सींगें और नाखून एशियाई देशों में भेजी जाती है, जहां उससे आयुर्वेदिक दवाइयां बनती हैं. हालांकि विज्ञान कई बार इस बात को साबित कर चुका है कि इससे बनी दवा का कोई फायदा नहीं.

शिकार से खतरे में गैंडेतस्वीर: CC/Sabi Sabi Private Game Reserve

अनाथालय में काम करने वाली संरक्षणवादी कारेन ट्रेंडलर का कहना है कि जितने गैंडे मारे जाते हैं, उनमें से एक तिहाई या तो गर्भवती होती हैं या उनका छोटा बच्चा होता है, "अफसोस की बात है कि इसकी वजह से कई गैंडे बचपन में ही अनाथ हो जाते हैं और हमने सोचा कि उनके बारे में विचार किया जाना जरूरी है." पिछले दो दशक में उन्होंने 200 गेंडों को पाला है और इस वजह से उन्हें मामा राइनो भी कहा जाने लगा है. उनका कहना है, "अब एक खास तरह का अनाथालय है, जिसमें गेंडों के मासूम बच्चों को रखा जा सकता है."

यह अनाथालय सितंबर तक पूरा हो जाएगा, जिसके बाद यहां 25-30 बच्चे गेंडों को एक साथ रखा जा सकेगा. अगर उनका यह इंतजाम नहीं होता तो बहुत मुमकिन था कि उनकी जान चली जाती. अनाथालय में देख रेख वाले चार कमरे और एक आईसीयू होगा. वहां बेबी गेंडों को चौबीसों घंटे इंक्यूबेटर में भी रखने का प्रावधान होगा. ट्रेंडलर का कहना है, "जैसे जैसे वे बड़े होते जाते हैं, वैसे वैसे उन्हें बड़े और बड़े जगहों पर छोड़ा जाता है. एक बार वो दो ढाई साल के हो जाते हैं, तो उन्हें प्राकृतिक जगहों पर छोड़ दिया जाता है." अगर उनका मनुष्यों से ज्यादा संपर्क न रहे, तो वो आसानी से जंगल में रह सकते हैं.

अनाथालय में 10 सेंटीमीटर मोटी छत ढाली जा रही है ताकि बारिश होने से कोई खतरा न रहे. अनाथालय के इस पहले गैंडे को तब तक कहीं और रखा जाएगा, जब तक यह जगह तैयार नहीं हो जाती. अनाथालय में एक दूसरा गेंडा भी है जो शिकारियों की देन नहीं, बल्कि अपनी मां का सताया हुआ है. इसकी मां ने इसे अपनाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद इसकी जो दुर्दशा हुई कि इसे आईसीयू में रखना पड़ा.

बहुत सी बातों को ध्यान में रखा जा रहा है, मिसाल के तौर पर माइक और नाना को यहां तैनात किया गया है. ये दोनों वयस्क गैंडे हैं और बच्चों को सिखाएंगे कि गैंडे कैसे रहते हैं. पर्यटकों के लिए जानवरों को देखने की इजाजत नहीं होगी और रिसर्च का काम पूरी सख्ती के साथ किया जाएगा. प्रोजेक्ट चलाने वालों को उम्मीद है कि एक दिन इतने लोग होंगे कि अनाथ हुए गेंडों के लिए कोई समस्या नहीं रहेगी.

ट्रेंडलर का कहना है, "अगर वे जंगल में दोबारा जा सकें तो बहुत अच्छा है. फिर वे अगली नस्ल को बढ़ा सकेंगे."

एजेए/एमजे (एएफपी)

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