पूरे उत्तर भारत में हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में करोड़ों के मूल्य की फसल बरबाद हो गई. नुकसान के सदमे से कई किसानों ने आत्महत्या कर ली है.
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पिछले सप्ताह पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश समेत लगभग पूरे उत्तर भारत में सिर्फ बेमौसम बारिश ही नहीं हुई बल्कि ओले भी गिरे. जहां आम नागरिकों के लिए यह मौसम की असामान्य घटना थी, तो वहीं इन सभी राज्यों में महीनों से अपनी-अपनी फसल पर मेहनत कर रहे किसानों के लिए यह एक भारी आपदा थी.
उत्तर भारत में सर्दियों में रबी का कृषि मौसम होता है जिसमें गेहूं, जौ, सरसों, तिल, मसूर दाल इत्यादि जैसी फसलें बोई जाती हैं और वसंत ऋतू में इनकी कटाई होती है. पिछले सप्ताह जब बारिश के साथ ओले गिरे तब इन सभी राज्यों में फसल या तो कटाई के लिए तैयार खड़ी थी या काट कर मंडी में ले जाने के लिए. दोनों ही सूरतों में फसल असुरक्षित थी और हुआ वही जिसका किसानों को डर था. इतनी फसल बर्बाद हो गई जिसका मूल्य करोड़ों में जाएगा.
एक अनुमान के अनुसार अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 255 करोड़ रुपये मूल्य की फसल बर्बाद हो गई. ये बर्बादी प्रदेश के कम से कम 35 जिलों में देखी गई और इस से प्रदेश के लगभग 6.5 लाख किसान प्रभावित हुए. जिला प्रशासन का कहना है कि जिलों की तरफ से नुकसान की विस्तृत रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी गई है और अभी तक किसानों की फौरी मदद के लिए जिलों को 66 करोड़ रुपये की धनराशि दे भी दी गई है. पर यह राशि पर्याप्त नहीं है. देखना होगा कि फसल बीमा योजना इन हालत में किसानों के कितना काम आती है.
एक और अनुमान के अनुसार राजस्थान में भी इस बारिश और ओले पड़ने से कम से कम 19 जिलों में लाखों एकड़ में कटाई के लिए तैयार खड़ी सरसों, गेहूं, चना, जौ, जीरा, धनिया और कुछ सब्जियों की फसल बर्बाद हो गई. प्रदेश में सरसों की कुल पैदावार के 10 प्रतिशत के बर्बाद हो जाने का अनुमान है. बताया जा रहा है कि इस नुकसान की वजह से अकेले भरतपुर जिले में चार किसान सदमे और दिल के दौरे से मर चुके हैं.
इसी तरह पंजाब में भी किसानों को भारी नुकसान हुआ है. हजारों एकड़ में फैली गेहूं की फसल नष्ट हो गई. नुकसान की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी गई है लेकिन राज्य सरकार की तरफ से अभी स्थिति का आंकलन पूरा नहीं हुआ है. किसान संगठनों का कहना है कि 30 प्रतिशत से भी ज्यादा गेहूं और लगभग 70 प्रतिशत सब्जियां बर्बाद हो गई हैं और किसानों को इसके अनुसार ही हर्जाना मिलना चाहिए.
धीरे-धीरे यह मुद्दा इतना ज्वलंत होता जा रहा है कि अब इसकी गूंज संसद में भी सुनाई दे रही है. राजस्थान के नागौर लोक सभा क्षेत्र से सांसद हनुमान बेनीवाल ने इसे संसद में उठाया.
भारत में सरकारें कई दशकों से फसल बीमा योजनाएं चला रही हैं लेकिन ये योजनाएं किसानों के नुकसान की सटीक भरपाई करने में सफल नहीं हुई हैं. हाल ही में एक आरटीआई आवेदन से पता चला कि नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पिछले साल फसलों के नष्ट होने का 3000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हर्जाना किसानों को अभी तक नहीं मिला है.
भारत में फसलों का बर्बाद होना हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अब यह और भी बड़ी समस्या हो गई है. अमूमन, पूरे उतर भारत में फरवरी तक सर्दियां खत्म हो जाती हैं, लेकिन इस साल अभी तक हल्की ठंड बाकी है. पहले तो मौसम का सटीक पूर्वानुमान किसानों तक पहुंचता नहीं था और अब मौसम का पूर्वानुमान लगाना ही मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में किसानों की समस्या का स्थायी समाधान नजर नहीं आ रहा है.
भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है लेकिन देश के बहुत से किसान बेहाल हैं. इसी के चलते पिछले कुछ समय में देश में कई बार किसान आंदोलनों ने जोर पकड़ा है. एक नजर किसानों की मूल समस्याओं पर.
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भूमि पर अधिकार
देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है. असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
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फसल पर सही मूल्य
किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता. वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है. मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा.ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
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अच्छे बीज
अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है. लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं. इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
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सिंचाई व्यवस्था
भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है. इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है.
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मिट्टी का क्षरण
तमाम मानवीय कारणों से इतर कुछ प्राकृतिक कारण भी किसानों और कृषि क्षेत्र की परेशानी को बढ़ा देते हैं. दरअसल उपजाऊ जमीन के बड़े इलाकों पर हवा और पानी के चलते मिट्टी का क्षरण होता है. इसके चलते मिट्टी अपनी मूल क्षमता को खो देती है और इसका असर फसल पर पड़ता है.
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मशीनीकरण का अभाव
कृषि क्षेत्र में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है लेकिन अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एक बड़ा काम अब भी किसान स्वयं करते हैं. वे कृषि में पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. खासकर ऐसे मामले छोटे और सीमांत किसानों के साथ अधिक देखने को मिलते हैं. इसका असर भी कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और लागत पर साफ नजर आता है.
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भंडारण सुविधाओं का अभाव
भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है. ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं. भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं.
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परिवहन भी एक बाधा
भारतीय कृषि की तरक्की में एक बड़ी बाधा अच्छी परिवहन व्यवस्था की कमी भी है. आज भी देश के कई गांव और केंद्र ऐसे हैं जो बाजारों और शहरों से नहीं जुड़े हैं. वहीं कुछ सड़कों पर मौसम का भी खासा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में, किसान स्थानीय बाजारों में ही कम मूल्य पर सामान बेच देते हैं. कृषि क्षेत्र को इस समस्या से उबारने के लिए बड़ी धनराशि के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता भी चाहिए.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
पूंजी की कमी
सभी क्षेत्रों की तरह कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. लेकिन इस क्षेत्र में पूंजी की कमी बनी हुई है. छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है. लेेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं.