भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली संस्था, सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनमी, सीएमआईई के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक अप्रैल में 75 लाख लोगों की नौकरी चली गई है. पिछले चार महीनों में बेरोजगारी की दर सबसे ऊंची पाई गई है.
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कोविड-19 महामारी ने भारत को इस समय अपने सबसे खराब और सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में पहुंचा दिया है. न सिर्फ लोग बीमार हो रहे हैं और मारे जा रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाएं भी चरमराती नजर आती हैं. एक तरफ ये विकरालता है तो दूसरी तरफ लोगों की दुश्वारियां बढ़ाता रोजगार पर आया संकट है.
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनमी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कोरोना के कहर के बीच बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है. जीवन और रोजगार के हाहाकार के बीच सरकारों के पास राहत के लिए फिलहाल कोई तात्कालिक नीति नजर नहीं आती. क्या भारत एक नए संकट की ओर बढ़ रहा है जिसमें जीवन स्वास्थ्य भोजन रोजगार पर्यावरण सब कुछ दांव पर लगा है या यह समय नीतियों की दूरदर्शिता और आपात एक्शन प्लान के दम पर बदला जा सकता है, यह सवाल विशेषज्ञों और नीति नियंताओं से लेकर एक्टिविस्टों और आमलोगों तक में पूछा जाने लगा है.
कोविड-19 की दूसरी लहर और उसके चलते विभिन्न राज्यों में स्थानीय स्तरों पर लगाए गए सीमित अवधि वाले लॉकडाउन या कर्फ्यू से आर्थिक गतिविधियों में ठहराव आ गया था. कहीं वे पूरी तरह से थम गईं तो कहीं अवरुद्ध हो गई और इसका असर नौकरियों पर भी पड़ा है. चार महीने में बेरोजगारी की दर आठ फीसदी हो चुकी है. इसमें शहरी इलाकों में साढ़े नौ फीसदी से ज्यादा की दर देखी गई है, तो ग्रामीण इलाकों में सात प्रतिशत की दर. मार्च में राष्ट्रीय दर साढ़े छह प्रतिशत थी, शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी तदानुसार कम ही थी.
सीएमआईई के मुताबिक चिंता यह भी है कि न सिर्फ बेरोजगारी की दर ऊंची बनी रह सकती है, बल्कि श्रम शक्ति की भागीदारी की दर भी गिरने का खतरा है. हालांकि पहले लॉकडाउन की तरह हालात उतने गंभीर नहीं हैं, जब बेरोजगारी 24 प्रतिशत की दर तक पहुंच गई थी. वैसे यह भी सच है कि पिछले साल डांवाडोल हुआ रोजगार बाजार पूरी तरह संभला भी नहीं था कि यह नए दुष्कर हालात बन गए.
कोरोना: मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर
लोकल सर्किल्स के ताजा सर्वे के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण भारत में ज्यादातर लोग चिंतिति, उदास और गुस्से में हैं. कोरोना की ताजा लहर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाला है. जानिए लोगों की क्या है राय.
तस्वीर: Piero Cruciati/AFP
61 फीसदी लोग उदास, चिंतित और गुस्से में
लोकल सर्किल्स के सर्वे शामिल लोगों से भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों पर सवाल पूछे गए. सर्वे में पाया गया कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के कारण लोग अत्यधिक तनाव महसूस कर रहे हैं. सर्वे में शामिल लोगों ने बताया कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है. सर्वे के मुताबिक देश में 61 फीसदी लोग उदास, चिंतित और गुस्से में हैं.
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भारत ने दूसरी लहर को कैसे संभाला
कोरोना की दूसरी लहर के भारत द्वारा संभाले जाने को लेकर पूछे गए सवाल पर 45 फीसदी लोगों की राय है कि देश ने इसको सही तरीके से नहीं संभाला. लोग सरकार की नाकामी से नाराज दिखे वहीं 45 फीसदी ने कहा देश कोविड को संभालने में सही रास्ते पर है.
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विशेषज्ञों पर क्या है राय
कोरोना की दूसरी लहर को लेकर विशेषज्ञों द्वारा उसे संभाल पाने को लेकर पूछे जाने पर सर्वे में शामिल 61 फीसदी लोग अनिश्चय की स्थिति में नजर आए.
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कई बीमारी के शिकार हो रहे
सर्वे में पता चला कि कोरोना काल में नींद नहीं आना, गुस्सा आना और चिंता से जुड़ी गंभीर बीमारियां भी लोगों को हो रही हैं.
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25 हजार लोगों से पूछे गए सवाल
सर्वे में 25 हजार से अधिक लोगों से सवाल पूछे गए. देश के 324 जिलों के लोगों से कोरोना की दूसरी लहर के बीच सवाल किए गए. सर्वे में प्रतिक्रिया देने वाले 65 फीसदी पुरुष थे जबकि 35 फीसदी महिलाएं.
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लेकिन अकेले महामारी पर इसका दोष मढ़ देना क्या जमीनी हकीकत से मुंह फेरने की तरह नहीं होगा? संख्या के लिहाज से देखें तो इस साल जनवरी में रोजगार से जुड़े लोगों की संख्या थी 40 करोड़. मार्च में यह 39.81 करोड़ पर पहुंच गई और अप्रैल में और गिरकर 39 करोड़ ही रह गई. महामारी की बढ़ती दहशत, रोजाना संक्रमण और मौत के बढ़ते आंकड़े, हालात की भयावहता दिखा रहे हैं. टीकाकरण की बहुत सुस्त रफ्तार को भी चिंता का कारण बताया जा रहा है.
पिछले साल मई के पहले हफ्ते में सीएमआईई के डाटा के मुताबिक बेरोजगारी की दर 27 प्रतिशत थी. नवंबर 2020 में देश में कुल रोजगार 39 करोड़ से कुछ ज्यादा रह गया जबकि 2019 में यह संख्या 40 करोड़ से कुछ ज्यादा थी. महिलाओं की स्थिति तो और भी बुरी रही.
रिपोर्ट के मुताबिक वैसे भी महिला श्रम बाजार में 71 प्रतिशत पुरुष हिस्सेदारी है और महिला भागीदारी महज 11 प्रतिशत की रह गयी है. फिर भी बेरोजगारी में उनकी दर पुरुषों से अधिक है. छह प्रतिशत के मुकाबले 17 प्रतिशत. देखा जाए तो पिछले साल के आर्थिक नुकसान का वास्तविक खामियाजा अब सामने दिखने लगा है.
वेतनभोगी कर्मचारियों पर 2020-21 भारी गुजरा और उनका रोजगार छूट गया. माना जाता था कि चूंकि वेतन की सुरक्षा कवच में रहते हुए यह वर्ग कोविड-19 की भीषणताओं को झेल जाएगा और उस पर वैसी मार नहीं पड़ेगी जैसे अन्य वर्गों पर लेकिन इस साल और इस असाधारण हालात ने वह भ्रम भी तोड़ दिया. एक अनुमान के मुताबिक सप्ताहांत मे भारत की आधा से ज्यादा आबादी घरों में ही सिमट कर रह गई थी.
भारत में सांसों का संकट
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन की कमी से मरीज और उनके रिश्तेदार लाचार घूम रहे हैं. ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से कई मरीजों की मौत हो जा रही है. कई मरीजों को अस्पताल में बेड भी नहीं मिल पा रहा है.
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शहर दर शहर लोग बेहाल
भारत के बड़े शहर हो या छोटे हर जगह कोरोना के मरीजों को बेहतर इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना के मरीजों का भार नहीं उठा पा रही है.
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शहर दर शहर लोग बेहाल
देश के कई गुरुद्वारों में कोरोना के मरीजों को निशुल्क ऑक्सीजन दी जा रही है. मरीजों के लिए राजधानी दिल्ली में खास इंतजाम किए गए हैं. दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी की तरफ से 250 बेड का कोविड फैसिलिटी सेंटर बनया गया.
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शहर दर शहर लोग बेहाल
उत्तर भारत में इस वक्त भीषण गर्मी पड़ रही है. मरीज ही नहीं उनके रिश्तेदारों को कड़ी धूप में अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.
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शहर दर शहर लोग बेहाल
कोरोना के जो मरीज घर पर अपना इलाज करा रहे होते हैं जब उनका ऑक्सीजन लेवल अचानक गिर जाता है तो उन्हें अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं. ज्यादातर उनके हाथ निराशा ही लगती है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
शहर दर शहर लोग बेहाल
भारत में कोरोना वायरस विकराल रूप ले चुका है. बड़े अस्पताल और छोटे अस्पताल दोनों ही कोरोना के मरीज लेने से इनकार कर रहे हैं. कई बार डॉक्टर भी मजबूरी में मरीजों को घर ले जाने की सलाह दे देते हैं.
अस्पताल में जगह नहीं मिलने के बाद परिजनों का बुरा हाल हो जाता है. वे अस्पताल प्रशासन के आगे कई बार हाथ जोड़ते भी नजर आते हैं.
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शहर दर शहर लोग बेहाल
दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज को अस्थायी कोविड-19 देखभाल केंद्र के रूप में बनाया गया है. दिल्ली में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने के साथ ही ऑक्सीजन, इंजेक्शन और दवाइयों का संकट हो गया है.
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शहर दर शहर लोग बेहाल
सिर्फ दिल्ली ही नहीं कई राज्यों में पिछले कुछ दिनों से ऑक्सीजन का संकट बना हुआ है. हाईकोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को ऑक्सीजन सप्लाई करने को लेकर आदेश भी दे चुका है.
अस्पताल में बेड ही नहीं बल्कि एंबुलेंस जैसी जरूरी सेवा भी कई मरीजों को नसीब नहीं हो रही है. अनेक राज्यों में मरीज रिक्शा, ऑटो रिक्शा, मोटर साइकिल पर सवार होकर अस्पताल तक पहुंचते हैं.
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कोविड-19 की पहली लहर में जिनकी नौकरियां चली गई थीं वे अब कहां हैं. जानकारों और अलग अलग रिपोर्टों और सीएमआईई एजेंसी के अध्ययन की मानें तो उनमें से ज्यादातर प्रवासी कामगार खेती में लौट चुके होंगे या ग्रामीण इलाकों में खेती से जुड़े छोटेमोटे काम धंधों या मजदूरी आदि में लगे होंगें.
हो सकता है कुछ वापस शहरों को लौटकर दोबारा किस्मत आजमाने शहरों को लौट आए हैं लेकिन अभी इसका विधिवत डाटा नहीं है कि कितने लौटे कितने रह गए कितनों का काम छूटा और कितनों का काम मिल पाया और काम मिला भी तो वे किस तरह का मिला और उससे उनकी आय में सुधार आया या गिरावट आई. ये सब बिंदु एक विशाल सामाजिक संकट की ओर भी इशारा करते हैं जो कोविड-19 और सरकारों की कार्यशैलियों की वजह से दरपेश है.
सीएमआईई का डाटा हालात की अत्यधिक गंभीरता का अंदाजा ही नहीं देता और न ही यह सिर्फ नौकरियों के हाल और गांवों शहरों की मौजूदा तकलीफों और दबावों और नई असहायताओं को आंकड़ों की रोशनी में बयान करता है, बल्कि यह सरकारों के लिए भी खासकर केंद्र सरकार के लिए आपात ऐक्शन की जरूरत भी दिखाता है.
बेरोजगारी के इस संकट से निपटने के लिए आखिरकार केंद्र को ही प्रोएक्टिव कदम उठाने होते हुए मजबूत दूरगामी नीति बनानी होगी. और उसमें सभी राज्यों और आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, चिकित्सा और विधि विशेषज्ञों को साथ लेना होगा. ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के नारे को वास्तविक लोकतांत्रिक अर्थों में अमल में लाए बिना तो इस कठिन हालात पर काबू पाना नामुमकिन है. केंद्र ही नहीं राज्यों की सरकारों की कार्यक्षमता के लिए भी ये कड़े इम्तहान का वक्त है.
महामारी ने छीनी आय
गैलप सर्वे के मुताबिक दुनियाभर में कोरोना वायरस महामारी के कारण दो में से एक व्यक्ति की आय में गिरावट दर्ज की गई. खासकर कम आय वाले देशों में लोगों पर सबसे अधिक आर्थिक मार पड़ी है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
नौकरी गई, काम के घंटे कम हुए
गैलप सर्वे के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर में हर दो में से एक व्यक्ति की कमाई में गिरावट आई. कम आय वाले देशों में लोगों को खास तौर से नौकरी गंवानी पड़ी या उनके काम के घंटों में कटौती हुई.
तस्वीर: Andrey Popov/Panthermedia/imago images
तीन लाख लोग, 117 देश
इस सर्वे में 117 देशों के तीन लाख लोगों को शामिल किया गया. सर्वे में पाया गया कि जिनके पास नौकरी थी उन्होंने कोरोना वायरस के कारण कम कमाया. सर्वे के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 1.6 अरब वयस्कों पर इसका असर हुआ.
तस्वीर: Arenberger Dominikanerinnen
कहीं कम कहीं ज्यादा असर
गैलप के शोधकर्ताओं के मुताबिक अलग-अलग देशों में आमदनी में कमी का प्रतिशत अलग रहा. थाईलैंड में जहां 76 प्रतिशत उच्च रहा तो वहीं स्विट्जरलैंड में 10 प्रतिशत रहा.
तस्वीर: DW/P. Samanta
अन्य देशों का हाल
बोलिविया, म्यांमार, केन्या, युगांडा, इंडोनेशिया, होंडुरास और इक्वाडोर के जिन लोगों पर सर्वे किया गया उनमें से 70 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि वे वैश्विक स्वास्थ्य संकट के पहले जितना कमाते थे अब उतना नहीं कमा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
महिलाओं की आय पर भी असर
गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम ने अप्रैल 2021 में अपने एक शोध में कहा था कि महामारी से महिलाओं की आय पर बहुत असर पड़ा है. उसके मुताबिक दुनियाभर में महिलाओं की आय में 800 अरब डॉलर का नुकसान महामारी के कारण हुआ.
तस्वीर: AFP/M. U. Zaman
अस्थायी रूप से काम बंद
गैलप के मुताबिक सर्वे में शामिल किए गए आधे से अधिक लोगों ने कहा कि उन्होंने अस्थायी रूप से अपना काम या बिजनेस करना बंद कर दिया है, जिसका मतलब है कि विश्वभर में 1.7 अरब लोगों ने अपना काम अस्थायी रूप से बंद किया.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
तीन में से एक की गई नौकरी
सर्वे में यह भी पता चला कि कोरोना महामारी के कारण हर तीन व्यक्तियों में से एक की नौकरी चली गई या उनका बिजनेस ठप हो गया. जिसका मतलब है कि दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोगों ने ऐसे हालात का सामना किया.