जंग से बदहाल देशों के लोग एक नए जीवन की चाह में यूरोप का रुख कर रहे हैं और ऐसा करने में अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं. तुर्की से ग्रीस के कॉस में घुसने की कोशिश करते ऐसे ही लोगों की दास्तान.
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रात के अंधेरे में अचानक ही नौजवानों का एक झुंड सड़क पर निकलता है. प्लास्टिक की कश्ती को संभाले हुए, छिपते छिपाते एजियन के समुद्र तक ले जाता है. यहां खड़े हो कर समुद्र में दूर कहीं दिखती टिमटिमाहट इन्हें अपनी ओर खींच रही है. यह रोशनी एक द्वीप की है, जिसका नाम है कॉस. ग्रीस का यह द्वीप महज चार किलोमीटर दूर है. इन नौजवानों की आजादी बस चार ही किलोमीटर दूर है. लेकिन यह जरा सा फासला तय करना आसान नहीं. ये लोग तुर्की के बोद्रुम में खड़े हैं. वैसे तो यह शहर सैलानियों में लोकप्रिय रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त से यह अवैध रूप से यूरोप आने का सबसे लोकप्रिय रास्ता बन गया है.
जिस प्लास्टिक की कश्ती को ये लोग यहां ले कर आए हैं, उसमें ज्यादा से ज्यादा चार लोग ही सवार हो सकते हैं. लेकिन ये आठ हैं. कश्ती में एक बिजली की मोटर लगा कर कॉस तक पहुंचा जा सकता है. मोहम्मद अली भी ऐसी ही एक कश्ती के इंतजार में बैठा है. 36 साल का अली सीरिया में वकालत की पढ़ाई कर रहा था. अपनी बीवी और दो बेटों के साथ वह सीमा पार कर सीरिया से तुर्की तो आ गया, पर अब आगे का रास्ता मुश्किल दिख रहा है. कुछ दिन पहले तस्करों ने उन्हें कश्ती में ले जाने का वायदा किया था. लेकिन जब चार की जगह कश्ती में 16 लोगों को देखा, तो अली ने ना जाने का फैसला किया, "वह नाव डूबने वाली थी. मुझे डर था कि हम मर जाएंगे, इसलिए मैं नहीं गया."
यही आज की हकीकत है
अली की तरह यहां सीरिया, ईरान, मध्य पूर्व, लीबिया और अफ्रीका के अन्य देशों के लोग हैं, जो ग्रीस से होकर यूरोप में प्रवेश करना चाहते हैं. एक तरफ बोद्रुम के रेस्तरां में बैठे पर्यटक तुर्की के लजीज खाने का लुत्फ उठा रहे हैं, तो दूसरी ओर ताड़ के पेड़ों के नीचे बैठे शरणार्थी किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं. वह चमत्कार किसी तस्कर के रूप में आएगा और इन्हें यहां से किसी वीरान बीच पर ले जाएगा. वहीं से फिर इन्हें नाव में भर कर कॉस भेजा जाएगा. हालात ये हैं कि जिन दुकानों पर पर्यटकों को लुभाने के लिए फ्रिज के मैग्नेट और चाबी के छल्ले मिलते थे, वहां अब लाल रंग के लाइफगार्ड भी बिकने लगे हैं. शरणार्थी इन्हें अपने साथ ले जाते हैं ताकि अगर कहीं नांव डूब जाए, तो वे इनके सहारे अपनी जान बचा सकें. एक दुकानदार का कहना है, "यही आज की हकीकत है."
कुछ नावें तो ऐसी हैं, जिन्हें इंटरनेट पर महज 100 यूरो में खरीदा जा सकता है. इनमें सवार होने के लिए ये लोग तस्करों को 1000 यूरो तक चुकाते हैं. कई बार नाव शुरू में ही डूब जाती है. तट से ज्यादा दूर ना होने पर लोग जैसे तैसे अपनी जान बचा लेते हैं. एक महिला नाव को छोड़ कर तट की ओर भागने लगती है. पलट कर वह चीखती है, "तुम लोग अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हो. नाव में पानी भर चुका है, वापस आ जाओ." लेकिन ये लोग यहां से निकलने के लिए इतने बेचैन हैं कि अपनी जान को खतरे में डालने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
जंग ने सब तबाह कर दिया
आंकड़े बताते हैं कि इस साल रिकॉर्ड लोगों ने यूरोप में प्रवेश करने की कोशिश की है. ग्रीस के अनुसार 134,988 लोग तुर्की के रास्ते वहां पहुंचे हैं, जबकि इटली ने जुलाई तक संख्या 93,540 बताई है. वहीं स्पेन और माल्टा में आंकड़ा 237,000 पार कर चुका है. इस साल 2,300 लोग यूरोप आने की चाह में अपनी जान गंवा चुके हैं. बोद्रुम और कॉस के बीच कितनी जानें गयीं, इस पर कोई आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं. केवल जुलाई में ही कॉस पहुंचने वाले सीरियाई लोगों की संख्या करीब 7,000 रही.
सीरिया के मोहम्मद अली को इन आंकड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो बस युद्धग्रस्त देश छोड़ कर अपने परिवार के साथ कहीं शांति में रहना चाहता है. इसीलिए वह एक बार फिर समुद्र पार करने की कोशिश करेगा और इस बार लाइफ जैकेट पहन कर, "मेरे लिए सबसे जरूरी मेरा परिवार है. अब मेरे पास अपने देश में रहने का कोई कारण नहीं बचा है. जंग ने सब तबाह कर दिया है."
जर्मनी के रिफ्यूजी कैंप
जर्मन आप्रवासन दफ्तर ने 2015 में तीन लाख शरणार्थियों के आने की उम्मीद की थी. लेकिन लोगों का भागना जारी है और इस बीच 4,50,000 शरणार्थियों के जर्मनी आने की संभावना है. पूरे जर्मनी में उनके रहने का इंतजाम किया जा रहा है
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कैंप में तीन महीने
राइनलैंड पलैटिनेट प्रांत के ट्रियर शहर में शरणार्थियों के रजिस्ट्रेशन का दफ्तर है. यहां स्थित कैंप में 850 लोगों के रहने की जगह है. जर्मनी आने वाले शरणार्थियों को सबसे पहले ऐसे रजिस्ट्रेशन कैंपों में भेजा जाता है. पहले उन्हें वहीं रहना पड़ता है. तीन महीने बाद उन्हें किसी शहर या जिले में रहने भेजा जाता है. वहां रहने की व्यवस्था जगह के हिसाब से अलग अलग तरह की है.
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रहना सिटीहॉल में
इस समय शरणार्थियों की बड़ी संख्या के कारण ज्यादातर रजिस्ट्रेशन कैंप भरे हुए हैं. इसलिए आपात कैंपों के रूप में दूसरी इमारतों का इस्तेमाल किया जा रहा है. नॉर्थराइन वेस्टफेलिया प्रांत के हाम शहर में सिटीहॉल में 500 शरणार्थियों के रहने की जगह बनाई गई है. 2700 वर्गमीटर बड़े हॉल को पार्टीशन डाल कर छोटे कमरों में बदल दिया गया है. हर ब्लॉक में 14 बिस्तर लगे हैं.
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सोना स्कूल क्लास में
शरणार्थियों को रहने के लिए शहरों में भेजा जाता है, लेकिन उनकी संख्या शहरों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है. आखेन शहर को जून में अचानक 300 शरणार्थियों को लेना पड़ा. उन्हें एक साथ ठहराने का एकमात्र विकल्प इंदा हायर सेकंडरी स्कूल था. योहानिटर राहत संगठन के वोलंटीयर्स स्कूल के कमरों में बिस्तर लगाकर शरणार्थियों के लिए तैयारी कर रहे हैं.
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तंबुओं का कामचलाऊ कैंप
हाल के दिनों में जर्मनी में शरणार्थियों को ठहराने के लिए तंबुओं का मोहल्ला बसाना पड़ रहा है. सेक्सनी अनहाल्ट प्रांत के हाल्बरश्टाट के केंद्रीय रजिस्ट्रेशन सेंटर ने तंबुओं का शहर बसाकर शरणार्थियों के रजिस्ट्रेशन की क्षमता बढ़ा ली है. लेकिन जर्मनी में कड़ाके की सर्दी के कारण सर्दियों तक उनके लिए रहने की वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.
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"तीसरी दुनिया" की तरह
शरणार्थियों के लिए जर्मनी के सबसे बड़े कैंपों में से एक सेक्सनी के शहर ड्रेसडेन में है. यहां 15 देशों के 1000 से ज्यादा लोग रहते हैं. कैंप के निवासियों को बहुत धैर्य की जरूरत होती है. टॉयलेट के लिए लंबी कतार और खाने के लिए भी. आने वाले दिनों में यहां और शरणार्थियों को रखा जाएगा. कैंप में 1110 लोगों के रहने की जगह है.
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कंटेनर में जिंदगी
और शरणार्थियों को ठहरा पाने की क्षमता बढ़ाने के लिए जर्मनी में कई जगहों पर शरण की अर्जी देने वाले लोगों के रहने के लिए कंटेनर भी लगाए जा रहे हैं. ट्रियर के रिफ्यूजी कैंप में इस तरह के कंटेनर 2014 से ही हैं. इस समय इन कंटेनरों में कुल मिलाकर 1000 से ज्यादा शरणार्थी रह रहे हैं.
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रिफ्यूजी कैंपों पर हमले
दमकलकर्मी बाडेन वुर्टेमबर्ग प्रांत के रेमषिंगेन में शरणार्थियों के रहने के लिए तय एक मकान में लगी आग बुझा रहे हैं. निवासियों के कुछ हिस्से में शरणार्थियों का विरोध विदेशी विरोधी हिंसा में तब्दील होता जा रहा है. इस बीच तकरीबन हर रोज रिफ्यूजी कैंपों पर हमले हो रहे हैं, खासकर देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में.
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राजनीतिक समर्थन
केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्री और एसपीडी पार्टी के प्रमुख जिगमार गाब्रिएल मैक्लेनबुर्ग वेस्टपोमेरेनिया के एक रिफ्यूजी कैंप में बच्चों से बात कर रहे हैं. यहां 300 शरणार्थी रहते हैं. उन्होंने शहरों और ग्रामपंचायतों को शरणार्थियों के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाने की मांग की है. उनका कहना है कि शरणार्थियों का मामला शिष्टाचार का भी है.
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रहने के लिए नई इमारतें
शरणार्थियों को उचित ढंग से रहने की सुविधा देने के लिए कई जगहों पर नई इमारतें बनाई जा रही हैं. जैसे यहां बवेरिया प्रांत के न्यूरेम्बर्ग शहर के निकट एकेनताल में. कतारों में बने ये मकान 60 लोगों के रहने के लिए होंगे. पहले शरणार्थी यहां जनवरी 2016 से रहना शुरू करेंगे.
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कामचलाऊ व्यवस्था
लेकिन नई इमारतों के बनने तक शरणार्थियों को ठहराने के लिए और बहुत सारे कामचलाऊ प्रंबध करने होंगे. जैसे कि यहां म्यूनिख शहर के यूरो इंडस्ट्री पार्क में. यहां राहत संगठनों और फायर ब्रिगेड के 170 कर्मचारियों ने रातों रात शरणार्थियों के रहने के लिए दर्जन भर तंबू लगाए हैं और उनमें 300 बिस्तर लगाए हैं.