1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बैठने के लिए केरल की महिलाओं का आंदोलन

विनम्रता चतुर्वेदी
२४ जुलाई २०१८

सेल्सगर्ल की नौकरी यानि 8 घंटे काम और मुस्कराते हुए लोगों से मिलना. लेकिन बैठने के लिए कुर्सी नहीं, टॉइलेट जाने की इजाजत नहीं. इस 'नहीं' को 'हां' में बदला है केरल की औरतों ने, जो 'बैठने के अधिकार' की लड़ाई लड़ रही थीं

Bangladesch Solarenergie
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मीनाक्षी (बदला हुआ नाम) एक साड़ी बेचने वाली दुकान पर बतौर सेल्सगर्ल काम करती है. उसे यहां आने वाले ग्राहकों को ऐसी साड़ियां दिखानी है कि वे उसे खरीदने पर मजबूर हो जाएं. वह सारा दिन खड़े होकर साड़ियां दिखाती रहती है और मुस्कराते हुए ग्राहकों की पसंद-नापसंद को सुनती है. लेकिन यह क्या, मीनाक्षी के पास कोई कुर्सी नहीं है जिसपर वह बीच-बीच में बैठ सके. ग्राहक न हो तब भी उसे खड़ा ही रहना होता है. दुकान के मालिक काम के बीच में पानी पीने या टॉयलेट जाने की इजाजत नहीं दी है.

ऐसे ही काम करने वाली केरल की कुछ महिलाओं ने अपनी स्थिति को बदलने का बीड़ा उठाया और अब जाकर केरल सरकार ने सेल्सगर्ल्स को बैठने का अधिकार दिया है. 

अमानवीय स्थिति

दरअसल, यह हाल देश की कई कामकाजी महिलाओं और पुरुषों का है जिन्हें काम के वक्त बैठने की इजाजत नहीं है. यह वर्कप्लेस का वह अमानवीय पहलू है जिसे हम जानकर भी अनजान हैं. बुनियादी अधिकार के इस मुद्दे को साल 2009-10 में कोझिकोड की पलीथोदी विजी ने उठाया था. टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम करने वाली विजी खुद इस समस्या से पीड़ित थीं और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें होने लगी थीं. पेन्नकुटम यानि महिलाओं के समूह नामक संघ बनाया गया और कोझिकोड से शुरू हुआ अभियान अन्य ज़िलों में भी फैलने लगा.

सबरीमाला मंदिर में "कोई भी जा सकता है"

विजी ने डॉयचे वेले से अपने अनुभव के बारे में बताया, ''सिलाई की दुकान में मेरे साथ ज्यादातर औरतें काम करती थीं. हम उमस भरी गर्मी में घंटों काम करते, लेकिन बैठने या टॉयलेट जाने की इजाजत नहीं मिलती थी. मालिक को इसके बारे में बोलो तो वे कहते थे कि क्या कोई ऐसा कानून बना है जिसके तहत बैठने की इजाजत दी जाए.'' इसी के बाद विजी ने ठान लिया कि वह कानून बनवाएंगी जिसमें कामकाजी महिलाओं को 'बैठने का अधिकार' मिले.  

2009 में शुरू हुआ यह सफर आसान नहीं था. पेशे से वकील और विजी के आंदोलन की गवाह अनीमा कहती हैं, ''तब मैं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की फेलो थी और मुझे विजी की बातों में दम लगा. मैंने अपने प्रोजेक्ट के तहत विजी के साथ काम करना शुरू किया. टेक्सटाइल इंडस्ट्री में महिलाओं की संख्या अधिक है, शायद इसलिए पुरुष प्रधान ट्रेड यूनियनों को समस्या बड़ी नहीं लगी. वहीं, इन यूनियनों में महिला नेताओं की संख्या न के बराबर थी, जो हमारी समस्या को गंभीरता से ले पातीं.''

सऊदी अरब में मिनी स्कर्ट पर हंगामा

01:50

This browser does not support the video element.

ट्रेड यूनियनों का समर्थन

विजी के मुताबिक, ''सबसे पहले कोझीकोड में पर्चे बांटकर लोगों को अपनी समस्या बताई. धीरे-धीरे अन्य इंडस्ट्री में काम करने वाली महिलाओं का समर्थन मिला. इसके बाद त्रिशूर में पहली बार स्ट्राइक हुई जिससे हमारी आवाज ट्रेड यूनियन को सुनाई दी.''

वकील अनीमा बताती हैं कि 2015 तक आते-आते सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) का समर्थन मिला और अन्य जिलों में स्ट्राइक हुई. हमें संगठित करने में यूनियनों ने मदद की और फिर एआईसीसीटीयू (ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन) तक आवाज पहुंची. मामला नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन के पास गया और फिर केरल सरकार को इसके लिए नियम तय करने के निर्देश दिए गए.''

केरल सरकार ने विजी समेत महिला कार्यकर्ताओं की बात को माना और अब तय किया है कि महिलाओं और पुरुषों को उनके काम करने की जगह पर रेस्ट रूम की सुविधा दी जाएगी. अनिवार्य रूप से कुछ घंटों का ब्रेक भी मिलेगा. जिन जगहों पर महिलाओं को देर तक काम करना होता है, वहां उन्हें हॉस्टल की भी सुविधा देनी होगी.

जल्द ही सरकार इस संबंध में एक अध्यादेश जारी करने वाली है. विजी का कहना है कि नोटिफिकेशन जारी होने के बाद वो नियमों को देखेंगी और अगर उसमें कोई कमी लगती है तो वे आगे भी अपना आंदोलन जारी रखेंगी.

पीरियड्स पर "चुप्पी तोड़ो"

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें