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बॉक्सर बनें महिलाएं: मेरी कोम

२५ नवम्बर २०१२

भारत की स्टार महिला मुक्केबाज एमसी मेरी कोम मणिपुर में बॉक्सिंग अकादमी शुरू कर चुकी हैं. वह चाहती हैं कि भारत की महिलायें मुक्केबाजी में आएं तो ओलंपिक में स्वर्ण पदक पर मुक्का मारे. मेरी कोम से खास बातचीत.

तस्वीर: AFP/Getty Images

कहते हैं कि हर कामयाब पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है. लेकिन मणिपुर की महिला बॉक्सर एमसी मेरी कोम के मामले में यह कहावत उलट गई है. कम से कम मेरी कोम तो अपनी कामयाबी का श्रेय पति ओनलर व परिवार को देती हैं. एमसी मेरी कोम को बाक्सिंग के खेल ने जो कुछ दिया है, अब वह उसे लौटाना चाहती हैं. इस साल लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक विजेता एमसी मेरी कोम कहती हैं कि वह अपनी अकादमी के जरिए एक ऐसी नई मेरी कोम तैयार करना चाहती हैं जो ओलंपिक में कांस्य की बजाय सोना जीत सके. उनकी कामयाबी ने महिला बॉक्सिंग के प्रति लोगों का नजरिया भी बदला है. एक विज्ञापन फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में कोलकाता पहुंची मेरी कोम ने डॉयचे वेले को अपने संघर्ष, पारिवारिक जीवन और भावी सपने के बारे में कुछ सवालों के जवाब दिए. पेश हैं उसके प्रमुख अंशः

डॉयचे वेले: ओलम्पिक के बाद जीवन में क्या बदलाव आया है ?

मेरी कोम: जीवन में तो कोई खास बदलाव नहीं आया है. लेकिन व्यस्तता काफी बढ़ गई है. मैं लगातार यात्राएं कर रही हूं. कभी इस राज्य में तो कभी उस राज्य में. ओलम्पिक से पहले अभ्यास और प्रशिक्षण में व्यस्त थी और अब विभिन्न समारोहों की वजह से.

ओलम्पिक में आपकी कामयाबी का क्या असर पड़ा है ?

इससे खासकर महिला बॉक्सिंग के प्रति समाज का नजरिया बदला है. मैं चाहती हूं कि पूर्वोत्तर भारत के युवक-युवतियां इस खेल में दिलचस्पी लें. मेरी कामयाबी ने खासकर युवतियों में बॉक्सिंग के प्रति दिलचस्पी बढ़ाई है. मैं चाहती हूं कि इस खेल को अपनाने वाली युवतियों को मेरी तरह संघर्ष नहीं करना पड़े.

तस्वीर: AFP/Getty Images

मणिपुर सरकार ने आपकी बाक्सिंग अकादमी के लिए भी जगह आवंटित की है. आगे क्या योजना है ?

अभी जमीन मिली है. जल्दी ही उस पर आगे काम शुरू होगा. अपनी अकादमी के जरिए एक ऐसी नई मेरी काम तैयार करना चाहती हूं जो ओलंपिक में कांस्य की बजाय सोना जीत सके.

आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा क्या है ?

मेरे पति और परिवार. उनके सहयोग के बिना मुझे कामयाबी नहीं मिल सकती थी.

आपके बेटों की भी बॉक्सिंग में दिलचस्पी है. क्या आप उनको प्रशिक्षण देती हैं ?

मेरे दोनों बेटे एक-दूसरे के या मेरे साथ बॉक्सिंग खेलते हैं. जब उनका दांव गलत होता है तो मैं उनको सही तरीका सिखाती हूं. औपचारिक प्रशिक्षण जैसा कुछ नहीं है.

आप अपनी आत्मकथा भी लिख रहीं हैं ?

हां, लगभग आधा काम पूरा हो गया है. मुझे हाल के दिनों में लिखने का ज्यादा समय ही नहीं मिला है. लेकिन उसे जल्दी पूरा करना है.

तस्वीर: DW

आप पर फिल्म भी बन रही है ?

मैं इससे खुद को काफी सम्मानित महसूस कर रही हूं. मुझे उम्मीद है कि मेरे संघर्ष और सफर पर बनने वाली यह फिल्म पूरे देश खासकर युवाओं को प्रेरित करेगी.

खाली समय में क्या करती हैं ?

अभी तो ज्यादा समय नहीं मिलता. लेकिन मुझे खाना बनाना और टीवी सीरियल्स देखना पसंद है.

रियो ओलम्पिक की तैयारी शुरू कर दी है?

अभी नहीं. फिलहाल तो सामान्य अभ्यास चल रहा है. अगले महीने इस बारे में सोचूंगी.

बॉक्सिंग के क्षेत्र में आने वाले युवक-युवतियों को आप क्या सलाह देंगी?

कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. लक्ष्य पर निगाह रखें और सपनों का पीछा करें.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

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