इस्राएल की नाकेबंदी, चरमराती अर्थव्यवस्था और अब महामारी के थपेड़ों के बीच गाजा पट्टी में लड़कियां बन रही हैं मुक्केबाज. गाजा पट्टी में पहली बार आयोजन हो रहा है सिर्फ महिलाओं के लिए मुक्केबाजी की प्रतियोगिता का.
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गाजा पट्टी में एक अंधेरे से बेसमेंट में घंटी बजती है और दो किशोरियां सर पर हेल्मेटऔर मोटे दस्ताने पहने रिंग में एक दूसरे के चक्कर लगाने लगती हैं. रिश्तेदारों और दोस्तों के प्रोत्साहन भरे शोरगुल के बीच वो एक दूसरे पर मुक्कों की बरसात शुरू कर देती हैं. ये इस फिलिस्तीनी एन्क्लेव का महिलाओं का पहला बॉक्सिंग टूर्नामेंट है.
कमेंट्री करने वाले की गर्जनदार आवाज वहां जुटी दर्शकों की छोटी सी भीड़ के शोर को दबा देती है. लोग कोरोना वायरस महामारी की परवाह ना करते हुए मैच देखने आए हैं. दोनों मुक्केबाजों में से एक 15-वर्षीय फराह अबू अल-कुमसान हैं. वो कहती हैं उन्होंने लंबे समय तक इंटरनेट पर बॉक्सिंग को देखा-समझा और फिर परदे से रिंग में कूदने का फैसला लिया.
उत्साह से भरी हुई फराह कहती हैं, "मैं माइक टाइसन और मोहम्मद अली जैसे मुक्केबाजों को देखती थी. मुझे उन्हें लड़ते देखना बहुत अच्छा लगता है. वो बहुत ही अच्छी मुक्केबाजी करते हैं और अक्सर अपने मैच पहले राउंड में ही जीत जाते हैं." पिछले शुक्रवार लड़कियों और महिलाओं ने अपने अपने वजन की श्रेणियों के अनुसार टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था.
20-वर्षीय मुक्केबाज रीटा अबू रहमा कहती हैं, "कई लोगों को लगता है कि हम जो कर रहे हैं वो गलत है और हम नैतिक मूल्यों और परंपरा का अनादर कर रहे हैं. लेकिन मेरे, मेरे परिवार और मेरे दोस्तों के लिए ये सब सामान्य है और वो सब मेरा समर्थन करते हैं." लंबे भूरे बालों वाली अबू रहमा कहती हैं, "बॉक्सिंग मेरे नारीत्व से, मेरे एक औरत होने से कुछ भी कम कहीं करता. लड़कों और लड़कियों दोनों को अधिकार है कि वो अपने पसंद का खेल खेल सकें."
गाजा पट्टी फिलिस्तीन के तट पर एक घनी आबादी वाला इलाका है. इसकी आबादी करीब 20 लाख है और यहां एक दशक से भी ज्यादा से इस्लामिस्ट मूवमेंट हमास का शासन है. इस्राएल द्वारा लगाई गई नाकेबंदी की वजह से यहां की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है. बेरोजगारी दर लगभग 50 प्रतिशत है और युवाओं में यह दर 65 प्रतिशत है.
महिला मुक्केबाजों के 35-वर्षीय कोच ओसामा अयूब कहते हैं, "यह एक ओलंपिक बॉक्सिंग क्लब है लेकिन हमारे पास संसाधन नहीं है" जिससे हम सब को दस्ताने और हेड गियर उपलब्ध करवा सकें. लेकिन उनका कहना है कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वो कम संसाधनों के बावजूद टूर्नामेंट का आयोजन कर पा रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि वो जल्द मुक्केबाजों को प्रांतीय प्रतियोगिताओं के लिए गाजा से बहार ले जा पाएंगे.
उन्होंने बताया, "महिलाओं के लिए एक बॉक्सिंग टूर्नामेंट का फिलिस्तीन में पहली बार आयोजन हो रहा है. आज यहां 45 प्रतियोगी थे और इनमें से जो सबसे अच्छी होगी" वो फरवरी में कुवैत में होने वाली एक चैंपियनशिप में फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधित्व करेगी. उन्होंने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि इस्राएल उनके मुक्केबाजों को एरेज रेखा पार करने देगा ताकि वो कुवैत जा सकें.
टीम को यह भी उम्मीद है कि महामारी से भी प्रतियोगिता से पहले पीछा छूट जाएगा. गाजा पट्टी में लंबे समय तक संक्रमण के ज्यादा मामले नहीं आए थे लेकिन हाल के सप्ताहों में स्थिति बदली है और पिछले शनिवार (28 नवंबर) को ही एक ही दिन में 891 नए मामले सामने आए थे.
भारत में लोग समय कैसे बिताते हैं इस विषय पर सरकार ने पहली बार एक सर्वेक्षण कराया है. सर्वे में यह साबित हो गया है कि शहर हो या गांव, महिलाएं आज भी हर जगह चारदीवारी के अंदर ही सीमित हैं.
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कैसे बिताते हैं समय
सर्वेक्षण जनवरी से दिसंबर 2019 तक 5,947 गांवों और 3,998 शहरी इलाकों में कराया गया. इसमें 1,38,799 परिवारों ने भाग लिया, जिनमें छह साल से ज्यादा उम्र के 4,47,250 लोगों से सवाल पूछे गए.
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अपना ख्याल रखने में बिताते हैं ज्यादा वक्त
दिन के 24 घंटों में पुरुष और महिलाएं दोनों सबसे ज्यादा समय अपना ख्याल रखने में बिताते हैं. पुरुष उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों में बिताते हैं और महिलाएं उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त बिना किसी वेतन के घर के काम करने में बिताती हैं.
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रोजगार में महिलाओं की भागीदारी कम
सर्वे में पूरे देश में सिर्फ 38.2 प्रतिशत लोगों को रोजगार में व्यस्त पाया गया. ग्रामीण इलाकों में यह दर 37.9 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 56.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 19.2 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर 38.9 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 59.8 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 16.7 प्रतिशत है.
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उत्पादन में महिलाएं आगे
अपने इस्तेमाल के लिए सामान के उत्पादन में देश में सिर्फ 17.1 प्रतिशत लोग लगे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में यह दर 22 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 19.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 25 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर सिर्फ 5.8 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 3.4 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 8.3 प्रतिशत है.
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घर के काम करने में पुरुष बहुत पीछे
बिना किसी वेतन के घर के काम करने में ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 27.7 प्रतिशत है और महिलाओं की 82.1 प्रतिशत. शहरों में पुरुषों की भागीदारी है 22.6 प्रतिशत और महिलाओं की 79.2 प्रतिशत. ग्रामीण इलाकों में पुरुषों ने इन कामों में औसत एक घंटा 38 मिनट बिताए जब कि महिलाओं ने पांच घंटे एक मिनट. शहरी इलाकों में पुरुषों ने एक घंटा और 34 मिनट दिए जबकि महिलाओं ने चार घंटों से ज्यादा समय दिया.
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दूसरों की देख-भाल भी ज्यादा करती हैं महिलाएं
बिना किसी वेतन के दूसरों की देख-भाल करने में भी महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा आगे हैं. ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ 14.4 प्रतिशत पुरुष करते हैं जबकि महिलाओं का प्रतिशत 28.2 है. शहरी इलाकों में इसमें पुरुषों की भागीदारी 13.2 प्रतिशत है और महिलाओं की 26.3 प्रतिशत.
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पूजा-पाठ और लोगों से मिलने पर विशेष ध्यान
91.3 प्रतिशत भारतीय पूजा-पाठ, लोगों से मिलने और सामुदायिक गतिविधियों में शामिल होते हैं. इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों दोनों की भागीदारी है. ग्रामीण इलाकों में इन पर पुरुष एक दिन में औसत दो घंटे और 31 मिनट और महिलाएं दो घंटे और 19 मिनट बिताती हैं. शहरी इलाकों में महिलाएं और पुरुष दोनों ही इन पर एक दिन में औसत दो घंटे और 18 मिनट बिताते हैं.