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बॉन के बाजार में हिन्दी गाना

Anwar Jamal Ashraf१५ अप्रैल २०१३

2007 की एक शाम. बॉन का बाजार और वहां कहीं सीढ़ियों पर शुक्रवार का आनंद लेते कुछ युवा. चूंकि मैंने उस शाम साड़ी पहन रखी थी. उन लड़के लड़कियों ने मुझे देख कर गाना गाना शुरू किया बोले चूड़ियां, बोले कंगना..

तस्वीर: Getty Images

मैं हैरान हो कर पलटी कि यहां इतने भारतीय कहां से आए.. पलटने के बाद मुझे और आश्चर्य हुआ क्योंकि वो गाना गाने वाले कोई भारतीय नहीं बल्कि जर्मन युवक युवतियां थे.. जो मेरी साड़ी देख कर मेरा ध्यान खींच रहे थे.

टीवी पर

यही वो दौर था जब जर्मन टीवी चैनल आरटीएल ने हिन्दी फिल्मों की सीरीज दिखानी शुरू की और जर्मन युवाओं के दिल में रंगीन पोशाकें और फिल्मी डांस गाना घर कर रहा था.
एक भारतीय के तौर पर हिन्दी फिल्मों को जर्मन में देखना. 2005 से 2008 के बीच इन फिल्मों की डीवीडी मार्केट में दिखाई देने लगी. इसी दौरान जर्मनी के एक छोटे डिस्ट्रीब्यूशन हाउस रैपिड आई मूवी ने यश राज बैनर और धर्मा प्रोडक्शन की कई फिल्मों के अधिकार खरीद लिए. भारतीय सिनेमा पर नजर रखने वाली डॉयचे वेले की वरिष्ठ पत्रकार मोनिका जोन्स कहती हैं, "जर्मनी का उच्च वर्ग काफी पहले से भारतीय फिल्में देखता था. लेकिन 2005 में जैसे ही बॉलीवुड की कुछ फिल्में टीवी पर आईं तो वे सीधे आम लोगों तक पहुंच गईं. लोगों को वो इतनी पसंद आई कि एक ही फिल्म कई बार दिखाई गईं."

तस्वीर: DW/I.Bhatia

तकनीकी पक्ष बेहतर होने का भी फायदा हुआ. जोन्स कहती हैं, "फिल्मों को क्वालिटी के लिहाज से जर्मन नजरिए का ख्याल रखते हुए पेश किया गया. वह आम स्टोरों के मल्टीमीडिया कॉर्नर पर बिकने लगी. मुझे लगता है कि यह टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ."

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे को "वेर सु एर्स्ट कॉम्ट, क्रिग्ट डी ब्राउट" नाम मिला. जर्मन के हिसाब से मतलब था 'जो पहले पहुंचेगा, दुल्हन ले जाएगा.' अनुवादित नाम सुनकर भले हंसी आए, लेकिन बाबूजी के गुस्से के इर्द गिर्द घूमती राज और सिमरन की कहानी खट्टा मीठा मनोरंजन कर गई. इस दौरान आरटीएल ने हर शनिवार बॉलीवुड के नाम कर दिया. 'उंड गंज प्लोट्लिष इस्ट एस लीबे' नाम से 'कुछ कुछ होता है' आई. कैंसर से मरती पत्नी के सामने रोते पति को देख पता चला कि पूरब के एक देश में रिश्ते अथाह गहरे और भावुक होते हैं.

बॉलीवुड डांस की इंट्री

इसी के साथ शुरू हुआ बॉलीवुड डांस का फैशन... जगह जगह, छोटे बड़े शहरों में बॉलीवुड डांस क्लास ऑफर की जाने लगीं. अक्सर इन स्टूडियो को चलाने वाली ट्रेनर भी जर्मन ही होतीं. बॉन में उलरिके कून्ह्ट कई साल से बॉलीवुड डांस सिखा रही हैं. वह कहती हैं, "युवाओं को अक्सर ये बहुत अच्छा लगता है. हालांकि ये डांस या तो पहली बार में पसंद आ जाता है या फिर बिलकुल पसंद नहीं आता. स्कूली लड़कियों को ये डांस प्रोग्राम करना बहुत ही अच्छा लगता है."

तस्वीर: mlp

जहां तक बात जर्मनी की है यहां के फिल्म उद्योग दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पूरी तरह ध्वस्त हो गया. इसके बाद से वह अपनी धारा नहीं ढूंढ सका है. अधिकतर जर्मन लोग बॉलीवुड के बारे में नहीं जानते हैं. हालांकि क्वालिटी फिल्मों पर नजर रखने वाले लोगों को यह भी पता है कि भारत में विशुद्ध बॉलीवुड से अलग कुछ बहुत ही स्तरीय फिल्में भी बनती हैं.

पढ़ाई में भी

भारत में भारतीय संस्कृति को विशेष तौर पर पढ़ाया जाता है, जिसे इंडोलॉजी कहा जाता है. बॉलीवुड को भी इसमें खास तौर पर शामिल किया जाता है. बॉन यूनिवर्सिटी में इंडोलॉजी पढ़ाने वाली लेक्चरर युस्टीना कुरोवस्का छात्रों को भारत की फिल्में भी दिखाती हैं, "यूरोप में ज्यादातर लोगों को नहीं पता कि भारत का सिनेमा सिर्फ बॉलीवुड नहीं है. वहां अच्छा मराठी सिनेमा है. वहां सत्यजीत रे, श्याम बेनेगल और आमिर खान जैसे फिल्म निर्माता भी हैं. वहां जाने भी दो यारो, गोलमाल और देव डी जैसी फिल्में भी बनती हैं. लेकिन यह दुर्भाग्य है कि व्यावसायिक सिनेमा के लिहाज से बॉलीवुड सिर्फ नाच गाने की सीमा में बंध कर रह गया, हालांकि अब स्थिति बदल रही है. युवा फिल्म निर्माता काफी प्रयोगधर्मी हैं. गानों की परख बदल रही है."

पिछले साल 2012 में बॉन यूनिवर्सिटी ने खास बॉलीवुड सेमेस्टर पढ़ाया. उस दौरान भारत की कई फिल्में देखने वाली छात्रा आलीन कहती हैं, "मुझे बॉलीवुड की फिल्मों में जरूरत से ज्यादा नौटंकी दिखती है. हां, गुणों के लिहाज से भारत का समानांतर सिनेमा बढ़िया है लेकिन जर्मनी में ऐसी फिल्में खोजना बहुत मुश्किल है."
हालांकि इसका लार्जर दैन लाइफ होना ही इसे अलग पहचान भी देता है. इन फिल्मों के दीवानों के लिए बॉलीवुड से हिन्दी सीखें नाम से एक पॉकेट बुक भी निकाली गई है. डानियल क्रासा की यह किताब खास जर्मनों के लिए है. इसमें बॉलीवुड की बाराखड़ी. "जानी, ये चाकू है" से लेकर "तेरा नाम क्या है बसंती" तक के कई मशहूर संवादों का मतलब समझाया गया है.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः अनवर जे अशरफ

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