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बॉलीवुड नहीं काय पो छे

१३ फ़रवरी २०१३

गुजरात के अहमदाबाद में तीन दोस्तों, ईशान, ओंकार और गोविंद की कहानी, यानी काय पो छे. एक फिल्म जो भारत की आत्मा क्रिकेट, धर्म और राजनीति का चित्रण है.

अभिषेक कपूर के साथ सिद्धार्थ रॉय कपूरतस्वीर: DW/A. Mondhe

काय पो छे यानी "(पतंग) काटा है." फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर से पूछने पर कि यह फिल्म तो एकदम बॉलीवुडिया नहीं लगती, वो कहते हैं, "यह फिल्म बॉलीवुड नहीं, हिन्दी फिल्म है, जो भारत की आत्मा को दिखाती है. दिखाती है कि गुजरात के लोगों पर पहले प्रकृति की मार और फिर सांप्रदायिक दंगों का वार का कैसा असर हुआ. हमने कोशिश की है कि कहानी जितनी संभव हो सादी और खालिस रहे."

वहीं फिल्म के प्रोड्यूसर रोनी स्क्रूवाला कहते हैं, "यह फिल्म सिर्फ क्रिकेट और राजनीति की नहीं है बल्कि यह भारत के असली रंग को दिखाती है, जो गहरे तक क्रिकेट, धर्म और राजनीति से जुड़ा है. उसके रग रग में ये सब बसता है. क्रिकेट उस देश को साथ खड़ा करता है."

कई मीटर ऊंचाई से दीव के समंदर में मजे के लिए छलांग लगा देने वाले ईश, ओम और गोवी असल में ही जिंदगी के भंवर में छलांग लगाते दिखाई देते हैं. यह फिल्म चेतन भगत की किताब "थ्री मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ" पर बनाई गई है. यह अहमदाबाद की गलियों में रहने वाले उच्चमध्यमवर्गीय दोस्तों की कहानी है, जिनमें दीवानगी है, क्रिकेट के लिए और जो क्रिकेट अकादमी खोलने का अपना सपना पूरा करने के लिए तत्पर हैं. कहानी के तीन दोस्तों में स्टेट लेवल का क्रिकेटर है ईशान, जिसके लिए धर्म सिर्फ क्रिकेट है. राजनीति और धर्म में गुंथे परिवार से है ओम और तुलनात्मक रूप से गरीब परिवार से है गोवि, जो ट्यूशन पढ़ा कर और छोटे मोटे काम करके पैसे कमाता है.

मानवीय संवेदनाओं को समझते हुए लेकिन समाज और राजनीति के स्तर पर दो समुदायों में बंटते समाज और उसके मनोविज्ञान को दिखाती इस फिल्म का कहीं भी राजनीतिकरण नहीं हो पाया है. संवाददाता सम्मेलन के दौरान एक सवाल यूं खड़ा हुआ कि भूकंप और सांप्रदायिक दंगों की तारीख तो बिलकुल सही बताई गई लेकिन फिल्म में जो पार्टियां थीं उसके लोगों, झंडे और रंग को कहीं भी किसी राजनीतिक वास्तविकता से नहीं जोड़ा गया, इस पर निर्देशक अभिषेक ने बताया, "यह फिल्म विवादास्पद नहीं है. मीडिया है जो फिल्मों को विवादास्पद बनाता है. मैं आपको वाकया बताता हूं कि जब मेरी सेंसर बोर्ड से बात हुई, तो उन्होंने कहा हम इस फिल्म को यूं ही सर्टिफिकेट देंगे क्योंकि यह फिल्म किसी की भावना को आहत नहीं करती. यही मेरा भी उद्देश्य था, कि घटनाओं को जस का तस पेश किया जाए. उन्हें किसी भी पार्टी या राजनीति से दूर रख, सिर्फ इतना बताया जाए कि लोगों पर क्या गुजरी."

निर्देशक अभिषेकतस्वीर: DW/A. Mondhe

फिल्म में स्वानंद किरकिरे और अमित त्रिवेदी के संगीत के बारे में अभिषेक कहते हैं, "गीतों के जरिए हमने कहानी आगे बढाई है. हमें इतना कुछ कहना था, अगर इसके लिए गानों का हम इस्तेमाल नहीं करते तो फिल्म का रंग ऐसा नहीं बन पाता."

बर्लिन फिल्म महोत्सव बर्लिनाले में फिल्म के सारे टिकट पहले ही दिन बिक गए. जबकि फिल्म में कमेंटेटर के तौर पर अजय जड़ेजा के अलावा कोई बड़ा नाम शामिल नहीं है. निर्देशक अभिषेक ने पहले ही कहा था कि मल्टी स्टारर होने के कारण फिल्म में बड़े कलाकारों ने भाग लेने से इनकार किया था. संवाददाता सम्मेलन में पूछने पर कि नए कलाकारों को लेना कितनी बड़ी रिस्क है, उन्होंने कहा, "रिस्क तो फिल्म के बड़े बजट वाली होने पर होती है. तीनों कलाकारों ने शानदार काम किया है. आपने पर्दे पर देखा ही होगा." फिल्म में ईशान की भूमिका सुशांत सिंह राजपूत ने निभाई है. जबकि ओंकार शास्त्री की भूमिका में अमित साध और गोविंद पटेल की भूमिका में राजकुमार यादव हैं.

फिल्म को बॉलीवुडिया की मुहर से अलग रखने वाले अभिषेक ने फिल्म के आखिर का सीन एकदम देसी स्टाइल का रखा है, क्रिकेट का मैदान, भारत ऑस्ट्रेलिया का मैच, और ओंकार को तिरंगा पकड़ाता छोटा बच्चा.

रिपोर्टः आभा मोंढे, बर्लिन

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन


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