ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन होंगे भारत के अगले गणतंत्र दिवस समारोह पर मुख्य अतिथि. क्या इस यात्रा से महामारी की वजह से भारी आर्थिक नुकसान झेल रहे दोनों देशों के रिश्तों में एक नई ऊर्जा आएगी?
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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 26 जनवरी 2021 को होने वाले भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है. जॉनसन भारत की स्वतंत्रता के बाद उसके गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनने वाले सिर्फ दूसरे ब्रिटिश नेता बनेंगे. 1993 में जॉन मेजर मुख्य अतिथि बने थे.
ये जॉनसन की बतौर प्रधानमंत्री पहली विदेश यात्रा होगी. यह यात्रा ब्रेक्सिट के कुछ ही हफ्तों बाद होगी और यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद नई संधियां तलाशते ब्रिटेन के लिए भी अहम होगी. जॉनसन के कार्यालय ने मंगलवार 15 दिसंबर को कहा कि यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री भारत को अगले जी7 शिखर सम्मलेन में भाग लेने का न्योता भी देंगे, जिसकी मेजबानी ब्रिटेन करेगा. दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के अलावा सम्मलेन में शामिल होने वाला भारत तीसरा अतिथि देश होगा.
जॉनसन की भारत यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत करना, निवेश बढ़ाना और रक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना है. जॉनसन ने एक बयान में कहा, "इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है और वह यूके के लिए एक अत्यावश्यक सहयोगी बनता जा रहा है. दोनों देश रोजगार और विकास को बढ़ाने, सुरक्षा के प्रति साझा खतरों का सामना करने और हमारे घर की रक्षा करने के लिए मिल कर काम कर रहे हैं."
जॉनसन को यात्रा पर आने का निमंत्रण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था. यात्रा की घोषणा भी ऐसे समय में हुई है जब ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब भारत में हैं. मंगलवार को राब ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ एक प्रेस वार्ता में कहा, "दोनों देशों के बीच और गहरे व्यापारिक रिश्तों की संभावना है और मुझे लगता है कि हमारी अर्थव्यवस्था इसकी अनुमति देती है. हम अपने व्यापार मंत्रियों को यह करने के लिए कहना चाहेंगे और फिर देखना चाहेंगे कि क्या हासिल किया जा सकता है."
राब ने यह भी कहा कि ब्रिटेन ने अभी तक "सिर्फ यूरोप पर अपना ध्यान केंद्रित रखने में बहुत अदूरदर्शिता दिखाई थी" लेकिन अब वह और दूर भी देख सकता है. इस संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा, "निश्चय ही अगर आप भारत और इंडो-पैसिफिक इलाके को देखें और एक लंबी अवधि के बारे में सोचें तो आप महसूस करेंगे कि यह पर विकास के अवसर होंगे."
जयशंकर ने भी कहा कि दोनों देशों का अपने व्यापारिक रिश्तों को आगे बढ़ाने के प्रति "बहुत गंभीर इरादा है." जॉनसन के कार्यालय ने बताया कि दोनों देशों के व्यापार और निवेश-संबंधी रिश्ते बढ़ रहे हैं और इस समय इनका मूल्य 32 अरब डॉलर है. इससे पांच लाख लोगों को रोजगार भी मिलता है. उनके कार्यालय ने करना वायरस महामारी के दौरान दोनों देशों के बीच हुए सहयोग पर भी ध्यान दिलाया.
भारत का दवा उद्योग दुनिया की आधी से ज्यादा वैक्सीन सप्लाई कर रहा है. ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड/ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन की कम से कम एक अरब खुराकें पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट में बन रही हैं. जॉनसन के कार्यालय ने यह भी बताया कि इस बीच यूके को भारत से एक करोड़ से भी ज्यादा फेस मास्क और पेरासिटामोल के 30 लाख पैकेट मिले हैं.
ब्रिटेन ने तीन साल पहले यह घोषणा की थी कि वह यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा. इसके लिए 31 अक्टूबर की तिथि तय की गई है. शुरुआत में उम्मीद थी कि सबकुछ सौहार्दपूर्वक हो जाएगा लेकिन अब यह तलाक के मामले की तरह उलझता दिख रहा है.
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ब्रिटेन अलग होने में इतना समय लंबा समय क्यों ले रहा
ईयू से अलग होने के प्रस्ताव पर ब्रिटेन में खाने के टेबल से लेकर संसद तक में तीखी बहस हो रही है. यूरोपीय संघ के अन्य 27 देशों के मोर्चे का सामना कर रहे ब्रिटिश वार्ताकारों के लिए यह एक आदर्श स्थिति है. पूर्व पीएम टेरीजा मे ने ईयू से अलग होने का प्रस्ताव पेश किया तो उसे तीन बार ब्रिटिश संसद ने खारिज कर दिया था. ईयू ब्रेक्जिट समझौते का सम्मान करता लेकिन यह ब्रिटिश संसद से ही पास नहीं हो पा रहा है.
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ब्रिटेन के नए नेता ने ब्रेक्जिट वार्ता को कैसे प्रभावित किया
ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ईयू से अलग होने की दिशा में कदम बढ़ाया. ब्रेक्जिट वार्ताकार जिसके लिए वर्षों से काम कर रहे थे, बोरिस ने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से उसे दिनों में बदलने की कोशिश की. यह बदलाव ब्रिटेन के उत्तरी आयरलैंड और यूरोपीय संघ के सदस्य आयरलैंड के बीच के संबंधों की मांग को लेकर है. लेकिन जॉनसन के प्रस्ताव पर लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है.
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अगले चार सप्ताह में और क्या हो सकता है
जॉनसन काफी ज्यादा कहते हैं और ईयू बहुत कम. आयरलैंड की सीमा जैसे मुद्दे को जॉनसन फिर से तय करना चाहते हैं. सीमा का जो स्वरूप जॉनसन चाहते हैं, उसे कानूनी अमलीजामा पहनाना असंभव लगता है. इसके लिए ब्रेजिक्ट की जो सीमा 31 अक्टूबर तक तय की गई है, उसे फिर से बढ़ाना पड़ सकता है. हालांकि, जॉनसन का कहना है कि वे तय तिथि तक ईयू से अलग हो जाएंगे. इस समय सीमा को 'जीने और मरने' जैसी अहम बता रहे हैं.
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आयरिश सीमा को लेकर सबसे मुश्किल क्या है
आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच की सीमा तय करना एक बड़ी बाधा है. कोई भी पक्ष ठोस सीमा नहीं चाहता है. इस सीमा पर किसी तरह की जांच न होना 'गुड फ्राइडे शांति समझौते' की एक प्रमुख उपलब्धि रही है, जिसने 1998 में दशकों से जारी हिंसा को कम करने में मदद की. समस्या तब आती है जब ब्रिटेन ईयू से अलग होता है. ऐसे में आयरलैंड में ईयू और ब्रिटेन के अलग करने वाली नई सीमा बनानी होगी.
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समस्या से निपटने के लिए बोरिस जॉनसन की योजना
ब्रिटेन के नए ब्रेक्जिट प्रस्ताव में उत्तरी आयरलैंड को ईयू शुल्क क्षेत्र से हटाने के लिए कहा गया है. इसका मतलब यह आयरलैंड के लिए एक अलग सीमा शुल्क क्षेत्र होगा. इस सीमा से पार करने वाले ट्रकों को अलग से शुल्क देना होगा. ऐसे में काफी ज्यादा भौतिक जांच की संभावना बनती है,लेकिन ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव दिया है कि सीमा शुल्क को इलेक्ट्रॉनिक कर दिया जाए और काफी कम जगहों पर भौतिक जांच हो.
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यह अदृश्य सीमा कैसे काम करेगी
ब्रिटिश सरकार को उम्मीद है कि कागजी कार्रवाई को कारगर बनाने के लिए तकनीकी समाधान मिल सकता है. जबकि ईयू ने इस प्रस्ताव को काफी पहले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया है. नई योजना ईयू के एकल बाजार नियमों का पालन करने के लिए उत्तरी आयरलैंड में भी लागू होती है, जो अब ब्रिटेन के बाकी हिस्सों में लागू नहीं होगी. उत्तरी आयरलैंड और ब्रिटेन के बीच ले जाए जा रहे सामानों की जांच के लिए नई प्रणाली बनानी होगी.
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उत्तरी आयरलैंड के लोग ईयू के साथ रहना चाहते हैं
जॉनसन का प्रस्ताव है कि उत्तरी आयरलैंड के सदन को ब्रेक्जिट सीमा समझौते को मानने या ना मानने का मौका दिया जाए और इसे हर चार साल पर बढ़ाया जाना चाहिए. यह योजना उत्तरी आयरलैंड की गुड फ्राइडे शांति समझौते द्वारा स्थापित पावर शेयरिंग असेंबली पर निर्भर करती है. लेकिन दो साल पहले पावर-शेयरिंग असेंबली को भंग कर दी गई और फिर से गठित नहीं की गई. इस पर ईयू और आयरलैंड सहमत नहीं है.