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बोस्निया: गरीबी और नाउम्मीदी का उबाल

१० फ़रवरी २०१४

1992 से 95 तक चले युद्ध के बाद एक बार फिर बोस्निया में अशांति का माहौल है. बोस्निया की जनता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और खराब अर्थव्यवस्था से ऊब चुकी है. सरकारी रवैये के खिलाफ जनता में रोष है.

तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

बोस्निया हर्जेगोविना में अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत से परेशान लोग पिछले हफ्ते सड़क पर उतर आए. देश की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां बेरोजगारी की दर 44 फीसदी है. पांच में से एक व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर है. आर्थिक मोर्चे पर सरकार की नाकामी को देख लोगों में जबरदस्त गुस्सा है. शुक्रवार को राजधानी सारायेवो और तुजला में प्रदर्शनकारियों ने सरकारी इमारतों में आग लगा दी. पूर्वोत्तर में बसा तुजला औद्योगिक केंद्र है. प्रदर्शनकारियों ने सारायेवो में दो सरकारी इमारतों के अलावा राष्ट्रपति के एक कार्यालय में को क्षति पहुंचाई. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों में 105 से अधिक लोग घायल हो गए. घायलों में 78 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं.

गरीबी से परेशान लोग

38 लाख की आबादी वाले देश में युद्ध के 20 साल बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राजनीतिक गतिरोध के चलते देश की अर्थव्यवस्था की हालत खराब हुई है और इसके लिए जिम्मेदार लोग इस्तीफा दें. ज्यादातर प्रदर्शनकारी देश में आर्थिक सुस्ती के लिए नेताओं को जिम्मेदार मानते हैं. निर्माण से जुड़ा काम करने वाले 40 वर्षीय निहाद कराक कहते हैं, "लोग प्रदर्शन इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे भूखे हैं. क्योंकि उनके पास नौकरी नहीं है. हमारी मांग है कि सरकार इस्तीफा दे. मेरे पास नौकरी है लेकिन मेरा वेतन सिर्फ 250 यूरो है (करीब 21 हजार भारतीय रुपये)." भ्रष्टाचार की मार झेल रहा बोस्निया यूरोप के सबसे गरीबों देशों में से एक है. जहां औसत मासिक वेतन करीब 420 यूरो है. सरकारी सांख्यिकी एजेंसी के मुताबिक देश में 44 फीसदी से ज्यादा श्रमजीवी जनसंख्या बेरोजगार है. हालांकि केंद्रीय बैंक के मुताबिक यह आंकड़ा 27.5 फीसदी है. सुस्त आर्थिक सुधारों को देखते हुए यूरोपीय संघ ने दिसंबर में कहा था कि वह वित्तीय सहायता आधा कर देगा.

गरीबी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं लोगतस्वीर: picture-alliance/dpa

ईयू में शामिल होने का सपना

बोस्निया ईयू में शामिल होने की उम्मीद लगाए बैठा है. इस मुद्दे पर वह 2012 के मध्य में उच्चस्तरीय बातचीत शुरू कर चुका है. तुजला में पिछले बुधवार को विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था. दरअसल मजदूरों ने प्रशासन पर यह आरोप लगाते हुए विरोध का एलान किया कि फर्जी तरीके से सरकारी फैक्ट्रियों का निजीकरण किया जा रहा है. मजदूरों का आरोप है कि उन्हें महीनों से वेतन नहीं मिला है. विरोध में शामिल कर्मचारी साकिब कोपिक के मुताबिक आर्थिक कमजोरी से निपटने में विफल सरकार को "यह जनता का जवाब है." स्थानीय अखबार दनेवनी अवाज ने अपने संपादकीय में लिखा, "यह आवाज गुस्से, भूख और भविष्य को लेकर नाउम्मीदी की है, जो संघर्ष के सालों से जमा है और अब यह उबाल पर है."

राजनीतिक विश्लेषक वहीद सहिक के मुताबिक, "ज्यादातर लोग दुख और गरीबी में जी रहे हैं. वे भूखे हैं. लोग उम्मीद खो चुके हैं, उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि हालात बेहतर होंगे. इसलिए उनके पास सिर्फ एक ही हथियार, विरोध है."

एए/एएम (एपी, डीपीए)

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