ब्रसेल्स और काबुल में फंसा अफगान
८ जनवरी २०१४![](https://static.dw.com/image/17149181_800.webp)
मां जो कहती है, अली उसका तर्जुमा करता है, "अगर हम लौटे, तो मारे जाएंगे." वह कहता है, "तालिबान की वजह से". अली ने बेल्जियम के स्कूल में फ्रांसीसी भाषा सीख ली है. अली जैसे करीब 450 परिवार हैं, जो बेल्जियम सरकार से अपील कर रहे हैं कि उन्हें देश से निकाला न जाए. बेल्जियम का कहना है कि अब उनका देश अफगानिस्तान सुरक्षित है और वे लौट सकते हैं.
ये लोग महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं और चार लोगों ने तो भूख हड़ताल शुरू कर दी है. कुछ अफगान लोगों ने तो ब्रसेल्स में खाली पड़ी इमारतों पर भी कब्जा कर लिया है और कह रहे हैं कि उनके पास कोई और ठिकाना नहीं. काफी लोगों को बिगूनेज चर्च में पनाह दी गई है. वे नवंबर से सिटी सेंटर के पास इसी जगह पर जमे हैं. दान में दी गई चटाइयों और टेंटों से काम चल रहा है और सर्दी किसी तरह काटी जा रही है. चर्च में दो टॉयलेट और एक सिंक है. 180 से 200 लोगों को इसे साझा करना पड़ रहा है.
हारा नहीं तालिबान
समीर हमदर्द को ग्रुप का प्रवक्ता चुना गया है. उनका कहना है, "आधी रात के बाद यहां बहुत ज्यादा सर्दी हो जाती है. लेकिन लोग फिर भी यहां रहने को तैयार हैं क्योंकि वे अफगानिस्तान के जीवन से भयभीत हैं." अमेरिकी नेतृत्व वाली आइसैफ सेना पिछले 12 साल से अफगानिस्तान में तैनात है और इस साल के आखिर में वह इलाका छोड़ रही है. उनके पीछे तालिबान रह गए हैं, जिन्हें अब तक परास्त नहीं किया जा सका है. हालांकि बेल्जियम प्रशासन का कहना है कि देश में बहुत से हिस्से अब सुरक्षित हैं और वहां रहा जा सकता है.
शरणार्थी मामलों की उप मंत्री मैगी डीब्लॉक का कहना है कि वह अफगान लोगों की मांग के आगे नहीं झुकने वाली हैं. बेल्जियम में इस साल चुनाव होने हैं और डीब्लॉक का कहना है, "मैं इस फैसले को आगे नहीं बढ़ाने वाली हूं. अफगान लोगों पर भी वही नियम लागू होते हैं, जो दूसरों पर. भूख हड़ताल से ज्यादा अधिकार नहीं मिलते. मैं अपनी राय नहीं बदलने वाली हूं. अगर वे नहीं रह सकते, तो उन्हें जाना ही होगा."
शांति तो नहीं
लेकिन अफगान लोगों के पास आरिफ हसनजादा की मिसाल है, जिसे बेल्जियम में पनाह नहीं दी गई और 2013 में तालिबान ने उसकी हत्या कर दी. 26 साल के कैस अहमदी का सवाल बहुत सीधा है, "अगर अफगानिस्तान में सब ठीक है, तो अमेरिका, यूरोप और बेल्जियम के सैनिक वहां क्यों हैं. अगर हम अफगानिस्तान लौटेंगे, तो हम मुक्त नहीं रहेंगे, हम सुरक्षित नहीं रह पाएंगे." अहमदी अपनी पत्नी और तीन साल की बेटी के साथ चर्च में रह रहे हैं.
हालांकि अफगानों का प्रदर्शन सुर्खियां बटोर रहा है, जिसके बाद प्रधानमंत्री एलियो डीरूपो ने शरण मांगने वालों को दोबारा अर्जी जमा करने को कहा है. बेल्गा समाचार एजेंसी ने लिखा है कि उनसे सुरक्षा के ताजा हालात पर रिपोर्ट मांगी गई है और उन्हें भरोसा दिया गया है कि उनकी अर्जियों को फौरन देखा जाएगा.
ब्रसेल्स की निवासी इसाबेला मार्शेल उन जगहों की फोटोग्राफी करती हैं, जहां अफगान लोग गैरकानूनी ढंग से रह रहे हैं और जहां से उन्हें हटाया जा रहा है. मार्शेल का कहना है कि अधिकारी अजीब तरह से व्यवहार कर रहे हैं और उनके दिमाग में सिर्फ आने वाले चुनाव ही हैं, "आर्थिक मंदी की वजह से लोग अपने रोजगार को लेकर चिंतित हैं. हम पूरी दुनिया की गरीबी को नहीं संभाल सकते. लेकिन यहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है."
कोई विकल्प नहीं
कई अफगान लोगों का कहना है कि अगर उनके पास कोई विकल्प होता, तो वे कभी बेल्जियम में नहीं रहना चाहते. उनका कहना है कि प्रदर्शन के दौरान पुलिस उन पर ज्यादती करती है और मीडिया में उनके खिलाफ रिपोर्टें छापी जाती हैं. 21 साल का मोहताब इस शर्त पर बात करता है कि उसका उपनाम इस्तेमाल न किया जाए, "यहां बहुत से लोग मुझे पसंद नहीं करते हैं. मैं यहां पैसों के लिए नहीं आया हूं. मैं किसी और चीज के लिए नहीं आया हूं. मैं अपने जीवन के लिए आया हूं." उसको इस बात का पूरा अंदेशा है कि अगर वह लौटा, तो उसे देश छोड़ कर भागने की वजह से तालिबान मार डालेंगे. वह 2009 में बेल्जियम पहुंचा और शरण लेने के बाद यहीं के स्कूल में जाने लगा. उसने कई सर्टिफिकेट हासिल कर लिए और यहां की प्रमुख भाषा फ्लेमिश भी सीख ली. इसके बाद वह ब्रसेल्स के कुछ रेस्त्रां में काम करने लगा.
लेकिन जब उसकी शरणार्थी अर्जी खारिज हो गई, तो रोजगार और घर भी चला गया. रुंआसा हो उठा मोहताब कहता है, "मुझे अम्मी, अब्बू और भाई की बहुत याद आती है. क्या करूं... मेरे पास कोई चारा ही नहीं."
एजेए/आईबी (डीपीए)