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ब्रह्मांड की शिकारी आकाशगंगाएं

११ सितम्बर २००९

बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है. सुनते भी आए हैं और होता भी है. लेकिन अब पता चला है कि शिकार का यही खेल बहुत बड़े पैमाने पर वहां दूर अंतरिक्ष में भी चलता रहता है. यह कि बड़ी आकाशगंगा छोटी आकाशगंगाओं को हड़प जाती हैं.

बड़ी आकाशगंगाओं में छोटी मिल जाती हैं.तस्वीर: NASA

ऐसी एक कहानी हमारे अपने पड़ोस में यानी हमारे सबसे निकट की विशाल आकाशगंगा ऐंड्रॉमिडा के सिलसिले में घटती रही है. अंतरिक्षविदों का लंबे समय से यह अनुमान रहा है कि ऐंड्रॉमिडा अंतरिक्ष में शिकार खेलती रही है यानी अपने थोड़ा अधिक निकट आ जाने वाली बौनी आकाशगंगाओं को अपना आहार बनाती रही है. और अब ब्रह्मांड के रहस्यों के जासूसों को, अंतरिक्षविदों को, ऐंड्रॉमिडा के ख़ूंखार अतीत के पक्के प्रमाण हासिल हो गए हैं. उन छोटी आकाशगंगाओं के अवशेषों के रूप में, जिन्हें ऐंड्रॉमिडा ने अपना आखेट बनाया है.

विस्तृत अध्ययन

ऐसे ही एक ब्रह्मांडीय जासूस हैं, कैनेडा में ब्रिटिश कोलंबिया स्थित हर्ज़बर्ग इंस्टीट्यूट ऑव ऐस्ट्रॉनमी के ऐलन मैकॉनकी, जो इस संबंध में नेचर पत्रिका में छपे नए अध्ययन के मुख्य लेखक हैं. उनके अध्ययन-दल को टैलिस्कोपों द्वारा अंतरिक्ष के एक विशाल इलाक़े के अवलोकन से ऐंड्रॉमिडा के आसपास उसकी अतृप्त भूख के कोई आधा दर्जन निशान बिखरे मिले हैं. मैकॉनकी बहुत रोमांचित हैं कि ऐंड्रॉमिडा के माध्यम से यह साबित होता दिखाई दे रहा है कि बड़ी आकाशगंगाओं का निर्माण अनेक छोटी- छोटी आकाशगंगाओं के विलय से होता है.

मिल्की वे में धुंधतस्वीर: picture alliance/dpa

इस नाटकीय दृश्य के बारे में मैकॉनकी बताते हैं, "हमें काफ़ी मात्रा में ऐसी आकाशगंगाएं दिखाई दे रही हैं, जिन्हें हम बौनी आकाशगंगाएं कहते हैं, जो वास्तव में नष्ट हो चुकी हैं. तो ये ऐंड्रॉमिडा जैसी बड़ी आकाशगंगाओं में विलीन हो जाती हैं. ऐंड्रॉमिडा वास्तव में उन्हें चिथड़े-चिथड़े कर देती है और उसके कुछ समय बाद तक हमें उसके चारों तरफ़ तहस-नहस हो चुकी बौनी आकाशगंगाएं दिखाई देती हैं."

गुरुत्वाकर्षण का खेल

ब्रह्मांड में गुरुत्वाकर्षण का खेलतस्वीर: DW-TV

यह सवाल स्वाभाविक है कि ऐंड्रॉमिडा से दसियों लाख प्रकाशवर्षों की दूरी पर स्थित आकाशगंगाएं उसमें कैसे जज़्ब हो जाती हैं. मैकॉनकी बताते हैं कि कारण वही है -भौतिकी का जाना-पहचाना नियम गुरुत्वाकर्षण, "आकाशगंगा का द्रव्यमान बहुत, बहुत ही अधिक होता है और आसपास के सभी कुछ को अपने अंदर खींच लेता है. अगर ऐंड्रॉमिडा के पास से कुछ भी धीमी गति से गुज़र रहा है, तो उसका उस विशाल आकाशगंगा में खिंचना और जज़्ब होना स्वाभाविक है. "

मैकॉनकी के नेतृत्व में पैन-ऐंड्रॉमिडा पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत ऐंड्रॉमिडा और एक और पड़ोसी आकाशगंगा ट्रायैंगुलम का अध्ययन किया जा रहा है, एक मानचित्र तैयार किया जा रहा है. अपनी तरह के इस सबसे बड़े मानचित्र के आधार पर अंतरिक्षविद इस धारणा की परख कर सकेंगे कि आकाशगंगाएं, अन्य आकाशगंगाओं को भोजन बनाकर बड़ी होती चली जाती हैं. कहें, जंगल का क़ानून वहां बाक़ायदा लागू है.

पृथ्वी को क्या

पृथ्वी का क्या होगातस्वीर: AP

अंतरिक्ष के हमारे अपने इलाक़े में दो बड़ी आकाशगंगाएं हैं ऐंड्रॉमिडा और हमारी अपनी आकाशगंगा मिल्की वे, जिसके हम निवासी हैं, यानी जो हमारे ग्रह पृथ्वी का घर है. ऐंड्रॉमिडा हमसे कोई पच्चीस लाख प्रकाशवर्षों की दूरी पर है. ट्रायैंगुलम इसी परिवार की तीसरी आकाशगंगा है, जो ऐंड्रॉमिडा के एक-दहाई आकार की है.

कैनेडा की क्वीन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ैसर लैरी विड्रो के कंप्यूटर-अध्ययन के अनुसार, ऐंड्रॉमिडा और ट्रायैंगुलम के बीच दो से तीन अरब वर्ष पहले टकराव हुआ था. तब ट्रायैंगुलम के केवल कुछ सितारे उससे छिन गए थे, उसका इससे अधिक नुक़सान नहीं हुआ था. लेकिन कुछ अरब वर्षों में इन दो आकाशगंगाओं में फिर टकराव होने का अनुमान है, जिसकी चर्चा करते हुए मैकानकी कहते हैं, "अगले दो अरब वर्षों में, हम ट्रायैंगुलम के, ऐंड्रॉमिडा में पूरी तरह समा जाने, या फिर उसके हाथों पूरी तरह नष्ट हो जाने का अनुमान करते हैं."

भविष्यवाणी

हम भी निगल लिये जाएंगेतस्वीर: NASA

कुछ लोग यह भी सवाल कर सकते हैं कि अगर दूर अंतरिक्ष में कोई बड़ी मछली किसी छोटी मछली को निगल भी रही है, तो हमें इससे क्या. सवाल वाजिब है, लेकिन इसका एक वाजिब जवाब भी है. यह कि हम अपने निकट पड़ोस की बात कर रहे हैं. हम भी इसी मोहल्ले के रहने वाले हैं. हमारी अपनी आकाशगंगा मिल्की वे इसी इलाक़े में है. तो क्या, मिल्की वे के लिए भी ख़तरा मौजूद है?

भविष्यवाणी तो यही है. ऐंड्रॉमिडा के ट्रायैंगुलम के साथ टकराव के कुछ समय बाद विशाल ऐंड्रॉमिडा और मिल्की वे के बीच भी टक्कर होगी. परिणाम वही होगा. मिल्की वे ऐंड्रॉमिडा में जज़्ब हो जाएगी. ऐसा होने में लेकिन अभी कुछ अरब वर्ष बाक़ी हैं.

रिपोर्ट: वॉशिंगटन से गुलशन मधुर

संपादन: आभा मोंढे

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