ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा को "जेल जाना ही होगा." सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें सुनाई गई 12 साल के कैद की सजा पर अमल रोकने से इनकार कर दिया है.
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अभी यह साफ नहीं है कि दो बार के राष्ट्रपति लूला कब गिरफ्तार होंगे लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक अगले हफ्ते तक यह हो जाएगा. लूला की याचिका पर 11 जजों की बेंच में 10 घंटे तक चली सुनवाई बुधवार को शुरू हुई और गुरुवार को खत्म. फैसले पर 5-5 जज बंटे हुए थे आखिरकार मुख्य न्यायाधीश कार्मेन लूसिया के वोट के बाद फैसला लिया गया. कार्मेन लूसिया ने कहा कि सजा पर अमल रोकना, "छुटकारे की तरफ ले जा सकता है."
जजों की तरह ही देश के लोग भी इस फैसले पर बंटे हुए हैं. एक तरफ सेना के शीर्ष जनरल ने वामपंथी दल के संस्थापक के लिए जेल की सजा का अनुरोध किया और इसे लेकर देश में लोकतंत्र पर सवाल उठाए जा रहे हैं. आमतौर पर राजनीति में दखल से दूर रहने वाली सेना के कमांडर ने लूला को जेल भेजने की मांग की. सेना प्रमुख एडुआर्डो विलास बोआस ने इस बारे में ट्वीट किया है. हालांकि सेना प्रमुख के बयान की कड़ी आलोचना भी हुई है. दूसरी ओर लूला को देश की राजनीति में फैले भ्रष्टाचार का चेहरा भी माना जाता है. उन्हें सजा दिलाना देश में चले भ्रष्टाचार विरोधी अभियान "कार वाश" का मकसद रहा है और अब उनकी सजा अभियान चलाने वालों के लिए जीत की निशानी है.
हालांकि वामपंथी लोग 2003-2020 के शासन को वह समय मानते हैं जिसमें देश के लाखों लोग गरीबी के दलदल से बाहर निकले. उनके लिए भ्रष्टाचार का पूरा मामला एक जालसाजी है जो न्यायपालिका के जरिए दक्षिणपंथी नेताओं को आसान जीत दिलाने के लिए तैयार किया गया है. इन नेताओं में मौजूदा राष्ट्रपति मिषेल टेमर भी शामिल हैं. वामपंथी दल वर्कर्स पार्टी के प्रमुख ग्लेइसी हॉफमैन ने कहा, "यह ब्राजील और लोकतंत्र के लिए एक बुरा दिन है."
दुनिया के नेता जो आसमान से सीधे जमीन पर गिरे
भ्रष्टाचार, घूसखोरी, सत्ता का दुरुपयोग, विद्रोह या फिर अमेरिका. ये चंद वजहें हैं बीते डेढ़ दशक में कई नेताओं के पतन की. एक नजर इस सदी में सत्ता के शिखर से जमीन पर आ गिरे नेताओं पर.
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लुई इनासियो लूला दा सिल्वा, ब्राजील
ब्राजील के नेता लूला को भ्रष्टाचार और पैसों के हेरफेर का दोषी माना गया है. 2003 से 2010 तक राष्ट्रपति रहे लूला ने देश को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमुख स्थान दिलाया और सबसे बड़े लातिन अमेरिकी देश के विकास को तेज रफ्तार दी. उन्हें आबादी के बड़े एक हिस्से को गरीबी से निकालने का श्रेय दिया जाता है.
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क्रिस्टीना फर्नांडिस दे किर्शनर, अर्जेंटीना
2007 से 2015 तक अर्जेंटीना की राष्ट्रपति रहीं क्रिस्टीना फर्नांडिस दे किर्शनर देश की प्रथम महिला भी रह चुकी हैं. उन्हें 2016 में भ्रष्टाचार विरोधी जांच के दौरान घूसखोरी के एक मामले में दोषी पाया गया जिसमें ब्राजील के भी कई बड़े लोग शामिल थे. किर्शनर को सरकारी निर्माण के ठेके पसंदीदा कंपनियों को देने का दोषी माना गया.
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पार्क ग्वेन हई, दक्षिण कोरिया
भ्रष्टाचार के आरोप में कई महीने तक देश की जनता के भारी विरोध प्रदर्शन के बाद दक्षिण कोरिया की पहली महिला राष्ट्रपति पार्क ग्वेन हई को पद से हटा दिया गया. ग्वेन हई को जबरन वसूली, घूसखोरी और सत्ता के दुरुपयोग का दोषी करा दिया गया है. पार्क ग्वेन हई पर दिसंबर 2016 में महाभियोग लगा.
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एहुद ओल्मर्ट, इस्राएल
71 साल के एहुद ओल्मर्ट 2006 से 2009 के बीच देश के प्रधानमंत्री थे. 2014 में उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी माना गया. फरवरी 2016 में वह जेल गये लेकिन 2017 की जुलाई में उनकी सजा कम कर उन्हें रिहा कर दिया गया. जेल जाने वाले वह इस्राएल के पहले पूर्व प्रधानमंत्री हैं. उनके बाद देश की बागडोर बेन्यामिन नेतन्याहू ने संभाली.
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आद्रियान नास्तासे, रोमानिया
2012 में आद्रियान नास्तासे को भ्रष्टाचार के आरोपों में दो साल की सजा सुनाई गई. रोमानियाई क्रांति के बाद के दौर में वह पहले पू्र्व प्रधानमंत्री थे जिन्हें कैद की सजा सुनायी गयी. वह 2004 से 2006 तक रोमानिया के प्रधानमंत्री थे.
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चार्ल्स जी टेलर, लाइबेरिया
लाइबेरिया के शासक चार्ल्स जी टेलर को 2012 में 50 साल के कैद की सजा सुनाई गई. उन्हें सिएरा लियोन में 1990 के दशक में हुए गृह युद्ध के दौरान हुए आम लोगों के उत्पीड़न का दोषी माना जाता है. जर्मनी में दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुए नूरेमबर्ग ट्रायल्स के बाद टेलर पहले ऐसे राष्ट्रप्रमुख हैं जिन्हें अंततराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल ने दोषी करार दिया है. वह 1997 से 2003 तक लाइबेरिया के राष्ट्रपति थे.
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अली अब्दुल्लाह सालेह, यमन
यमन में भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह को 2012 में सत्ता से हटना पड़ा जिस पर वह 1990 से ही काबिज थे. उनके बाद अब्दरब्बु मंसूर हादी को राष्ट्रपति बनाया गया. लेकिन जब हूथी विद्रोहियों ने राजधानी सना पर कब्जा कर लिया, तो हादी को भी देश छोड़ने कर जाना पड़ा. सालेह खुले तौर पर हूथी बागियों का साथ दे रहे हैं.
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कर्नल मु्म्मर गद्दाफी, लीबिया
1969 से 2011 तक लीबिया के शासक रहे कर्नल मुअम्मर गद्दाफी को क्रांतकारी, राजनेता और तानाशाह कई नामों से जाना जाता है. उनके शासन में ज्यादातर लीबिया मोटे तौर पर एकजुट और शांत रहा हालांकि लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन और पश्चिमी देशों से उनके रिश्ते बनते बिगड़ते रहे. अरब वसंत की आंधी में जिन देशों की सरकारें बदली उनमें लीबिया भी है. बाद में कर्नल गद्दाफी की सरेआम हत्या कर दी गयी.
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होस्नी मुबारक, मिस्र
मिस्र में शासन की कमान लंबे समय तक मुहम्मद होस्नी मुबारक के हाथ में रही है. पहले सेना के कमांडर रहे होस्नी मुबारक ने 1981 में मिस्र की बागडोर संभाली और 2011 तक शासन पूरी तरह उनकी मुट्ठी में रहा. अरब वसंत के दौर में ही तरहरीर चौक पर जमा भीड़ उन्हें सत्ता से हटाने पर अड़ गयी और उन्हें जाना पड़ा. बाद में उन पर मुकदमों का दौर चलता रहा.
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जीन अल आबिदिन बेन अली, ट्यूनीशिया
अरब वसंत में सबसे पहले जिस अरब शासक की सत्ता गई वह ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति बेन अली ही थे. ना सिर्फ सत्ता बल्कि उन्हें देश छोड़ने पर भी विवश होना पड़ा. ट्यूनीशिया में 1987 से लेकर 2011 तक उन्हीं का शासन था. ट्यूनीशिया से ही बाद में कई अन्य अरब देशों में बगावत और विरोध की चिंगारी भड़की.
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सद्दाम हुसैन, इराक
लंबे समय तक इराक के राष्ट्रपति रहे सद्दाम हुसैन ने एक नहीं दो दो बार अमेरिका से युद्ध लड़ा. पहली बार तो उनकी सत्ता किसी तरह बच गयी लेकिन 2003 में महाविनाश के कथित हथियारों की तलाश के नाम पर हुए अमेरिकी हमले में उनकी सत्ता जाती रही. इसके तीन साल बाद, 1980 के दशक में शियाओं के नरसंहार के एक मामले में इराकी कोर्ट के फैसले पर उन्हें फांसी दे दी गई.
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मुल्ला उमर, अफगानिस्तान
2001 में अमेरिका के न्यूयॉर्क और पेंटगान पर अल कायदा के हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से तालिबान के शासन मिटा दिया. अफगान तालिबान के नेता मुल्ला उमर को गिरफ्तारी से बचने में कामयाब रहे और कई साल तक छिपे रहने के बाद अप्रैल 2013 में उनकी मौत हो गई. हालांकि इसकी खबर दुनिया को बहुत बाद में मिली.
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अदालती लड़ाई में देश के चुनावी अभियान पर हावी हो रहे ध्रुवीकरण का अक्स नजर आ रहा है. देश में इसी साल चुनाव होने हैं और सर्वेक्षणों में लूला सबसे आगे हैं जबकि दूसरे नंबर पर धुर दक्षिणपंथी नेता और पूर्व सैन्य अधिकारी जेयर बोल्सोनारो. इनके बीच मध्यमार्गी पार्टी अभी अपने पैर टिकाने के लिए संघर्ष करती दिख रही है.
लूला को पिछले साल 12 साल एक महीने की सजा सुनाई गई थी. उन्हें एक कंस्ट्रक्शन कंपनी से घूस के रूप में अपार्टमेंट लेने का दोषी पाया गया. उन्होंने निचली अदालत में इसके खिलाफ अपील की मगर हार गए. मौजूदा कानून के मुताबिक उन्हें ऊंची अदालतों में अपील करने से पहले जेल जाना चाहिए. हालांकि लूला ने सुप्रीम कोर्ट में हेबियस कार्पस के लिए याचिका दायर की. वे चाहते थे कि अपीलों के दौरान लंबे समय तक जेल से बाहर रहने के लिए अदालत उन्हें अनुमति दे दे.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई भारी सामाजिक और राजनीतिक दबाव में की. बीते मंगलवार को करीब 20 हजार लोगों ने ब्राजील के सबसे बड़े शहर साओ पाओलो में प्रदर्शन कर मांग की कि लूला को चुनाव लड़ने से रोका जाए और उन्हें जेल भेजा जाए. 5000 से ज्यादा जजों और अभियोजकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि लूला को तुरंत जेल भेजा जाए. जजों को इस मामले में हजारों की तादाद में ईमेल भी मिले. इसके साथ ही कोर्ट को यह भी मानना पड़ा कि लूला देश में बेहद लोकप्रिय हैं और खासतौर से गरीबों के बीच. लूला को जेल में भेजने से उनकी चुनावी उम्मीदों को धक्का पहुंच सकता है. हालांकि वह चुनाव लड़ेंगे कि नहीं इस बात का फैसला एक दूसरी अदालत सुपीरियर इलेक्टोरल ट्राइब्यूनल करेगी.