ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में यौन हिंसा पर ढीली व्यवस्था
१९ नवम्बर २०२१
ब्रिटिश विश्विद्यालयों में यौन हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं लेकिन उनसे निपटने का कोई ठोस ढांचा नहीं है. कैंपसों में हिंसा के खिलाफ आई शिकायतों पर दबे छुपे कार्रवाई करना, उच्च शिक्षण संस्थानों के रवैये की पोल खोलता है.
विज्ञापन
ब्रिटेन के सौ विश्वविद्यालयों में हाल ही में हुए दो ऑनलाइन सर्वे में पुरुष छात्रों ने पिछले दो साल के दौरान बलात्कार, उत्पीड़न या किसी अन्य यौन अपराध में लिप्त होने की बात स्वीकार की. पांच सौ चौवन छात्रों पर किए गए सर्वे में 63 ने महिलाओं के प्रति दकियानूसी सोच जाहिर करते हुए माना कि उन्होंने कभी ना कभी यौन हिंसा की है. ये रिपोर्ट एक बहुत बड़ी समस्या का बहुत छोटा लेकिन अहम सुबूत सामने रखती है. इससे पहले भी विश्वविद्यालयों में यौन अपराधों पर रिपोर्टें आती रही हैं हांलाकि उच्च शिक्षा में यौन हिंसा का ये मसला जटिलताओं से भरा है. हिंसा की घटनाएं आम हैं लेकिन इस पर आंकड़े जुटाना इतना आसान नहीं है.
उदाहरण के लिए ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारतीय और चीनी छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं लेकिन वे यौन हिंसा पर खुलकर बात करने से कतराते हैं. इसकी तह में सांस्कृतिक वजहें तो हैं ही, विश्वविद्यालय के रवैये और छात्रों के अकादमिक भविष्य पर उसके असर का डर भी उन्हें कुछ बोलने से रोकता है. उच्च शिक्षा में यौन हिंसा पर शोध और लॉबी करने वाली संस्था 1742 ग्रुप से जुड़ीं डॉक्टर अद्रिजा डे कहती हैं कि भारतीय या दक्षिण एशियाई छात्र ही शिकायत करने से डरते हैं, ऐसा नहीं है.
अद्रिजा कहती हैं, "भविष्य का डर किसी भी छात्र-छात्रा को बोलने से रोकता है लेकिन भारतीय घरों में कुछ खास किस्म की बातें आम हैं जैसे एक लड़की ने मुझसे कहा कि अगर मैंने ऐसी किसी भी बात का जिक्र किया तो वापस बुलाकर मेरी शादी कर दी जाएगी.” छात्रों में डर अगर एक बात है तो ध्यान देने वाला दूसरा पहलू ये भी है कि जहां शिकायतें दर्ज हुईं, क्या वहां कोई ठोस नतीजा निकला.
चुप्पीऔर गुप-चुप कार्रवाई
अमेरिका से ब्रिटेन के कार्डिफ शहर स्थित रॉयल वेल्श कॉलेज ऑफ म्यूजिक ऐंड ड्रामा में पढ़ने आईं सिडनी फेडर का अनुभव कैंपस में हिंसा रोकने की नीयत पर सवालिया निशाना लगाता है. 2017 में अपनी स्नातक डिग्री के आखिरी साल में एक रिहर्सल के दौरान सिडनी को यौन हिंसा झेलनी पड़ी. कॉलेज की लाइब्रेरी में काम करने वाले एक साथी छात्र की इस करतूत की शिकायत उन्होंने अधिकारियों से की. सिडनी से इस घटना के बारे में एक बार पूछताछ हुई लेकिन कॉलेज की जांच में क्या हुआ, इसे गुप्त रखा गया.
सर्वे: 29 प्रतिशत महिलाओं ने सार्वजनिक स्थलों पर छेड़खानी का सामना किया
एक सर्वे के मुताबिक भारत में 29 प्रतिशत महिलाओं ने ट्रेन, स्टेशनों, सार्वजनिक जगहों और सड़कों पर छेड़छाड़ या यौन शोषण का अनुभव किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary
पब्लिक प्लेस पर छेड़खानी
लोकल सर्कल्स के सर्वे में दावा किया गया है कि 29 प्रतिशत महिलाओं ने सार्वजनिक स्थानों पर छेड़खानी और यौन शोषण का सामना किया. 9 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उन्होंने या उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने एक बार से ज्यादा इसको अनुभव किया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
कहां सबसे ज्यादा छेड़खानी
ट्रेन, स्टेशन, सार्वजनिक स्थल और सड़कें शीर्ष स्थान हैं जहां भारतीय महिलाओं ने छेड़छाड़ या यौन शोषण का सामना किया. सर्वे में शामिल 17 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि लोकल ट्रेनों, मेट्रो या इसके स्टेशनों पर ऐसा हुआ. 20 प्रतिशत ने कहा कि भीड़भाड़ वाले समारोहों में ऐसा हुआ. 7 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि धार्मिक स्थानों पर उनके साथ ऐसी घटना हुई, वहीं 10 फीसदी ने बाजार को ऐसी घटना वाली जगह बताया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary
सिर्फ 23 प्रतिशत ने दर्ज कराई एफआईआर
छेड़खानी का सामना करने वाली सिर्फ 23 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने एफआईआर या पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. सर्वे में दावा किया गया कि 15 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज नहीं की या कोई कार्रवाई नहीं की. वहीं 23 प्रतिशत ने बताया कि उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया, 15 प्रतिशत ने एफआईआर नहीं करने का फैसला किया.
तस्वीर: DW/P. Samanta
319 जिलों में सर्वे
लोकल सर्कल्स ने इस सर्वे के लिए भारत के 319 जिलों में 14,000 नागरिकों से 24,000 से ज्यादा प्रतिक्रिया हासिल किए और उनके आधार पर ये नतीजा जारी किया. सर्वे में 65 प्रतिशत पुरुष थे जबकि 35 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
चिंता है बलात्कार की घटनाएं
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने 2019 में कहा था कि महिलाओं के खिलाफ दर्ज 4 लाख मामलों में से 32,033 मामले रेप से संबंधित थे. अक्सर रेप की पीड़ित महिलाएं धमकी के डर से मामले की रिपोर्ट नहीं करती हैं.
तस्वीर: Getty Images
महिला सुरक्षा से जुड़ा बजट
गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था हेल्पलाइन केंद्रों की स्थापना, आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाओं और अधिकारियों के लिए लिंग-संवेदीकरण प्रशिक्षण के लिए निर्धारित राशि का इस्तेमाल नहीं किया गया. उसके मुताबिक फंड में पहले ही आवंटन कम है और उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/Y. Nazir
6 तस्वीरें1 | 6
सिडनी बताती हैं, "मुझे ना कुछ बताया गया ना ही कार्रवाई के नतीजे के बारे में संपर्क किया गया. बाद में जब मैंने कानूनी केस किया तब पता चला कि उस लड़के ने अपराध स्वीकार किया था लेकिन मुझे इस सबसे बिल्कुल अलग रखा गया. उसे सजा मिली या नहीं मिली इसका भी कुछ पता नहीं चला बल्कि उसने बाकायदा अपनी पढ़ाई वहीं से पूरी की." सिडनी ने जिस लड़के के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी बाद में कॉलेज की करीब एक दर्जन लड़कियों ने उस लड़के के अवांछनीय व्यवहार की बात उठाई लेकिन ये कोई गंभीर मसला बनकर मीडिया में छाया हो, ऐसा नहीं हुआ. सिडनी ने हिंसा झेलने वाली लड़कियों के साथ एक मोर्चा बना लिया जिसमें बहुत से विश्वविद्यालयों की छात्राएं शामिल हैं.
दरअसल विश्वविद्यालयों में यौन हिंसा पर जुबानी जमा-खर्च के अलावा उनसे निपटने में कोई गंभीरता दिखती नहीं है. ब्रिटेन के 140 विश्वविद्यालयों की प्रतिनिधि संस्था यूनिवर्सिटीज यूके ने 2016 में एक टास्क फोर्स गठित की जिसने विश्वविद्यालयों में यौन हिंसा समेत छात्रों के दुर्व्यवहार से निपटने के लिए गाइडलाइन जारी की. गौरतलब है कि ये महज सलाहें हैं, हिंसा के मामलों में कार्रवाई को दिशा देने के लिए विश्वविद्यालय स्वतंत्र हैं. यानी कोई बाध्यकारी नियम-कायदे नहीं बनाए हैं. यौन अपराधों के लिए किसी विशेष कमेटी या निश्चित सेल जैसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है.
न्याय बनाम व्यावसायिक हित
ये सवाल उठना लाजमी है कि विश्वविद्यालय आखिर अपने छात्र-छात्राओं के साथ हो रही हिंसा या दुर्व्यवहार के मामलों पर सख्ती दिखाने के बजाय दबाना-छिपाना क्यों चाहते हैं. 1752 ग्रुप के साथ मिलकर रिसर्च कर रहीं ऐरिन शैनन का मानना है कि ब्रिटेन में विश्वविद्यालय एक व्यवसाय है और छात्र उसके ग्राहक. कोई भी बिजनेस गलत वजहों से खबरों में आने का जोखिम नहीं उठाना चाहता. एरिन बताती हैं कि बहुत कम विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां शिकायत दर्ज करने या मदद की कोई प्रक्रिया रखी गई है. हालांकि कुछ विश्वविद्यालयों में सामने आए मामलों की संख्या पिछले कुछ सालों में खासी बढ़ी है.
दुनियाभर में हिंसा के भंवर में फंसी हैं महिलाएं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा शोध के मुताबिक दुनिया भर में हर तीसरी महिला ने शारीरिक या यौन हिंसा का सामना किया है. संगठन ने महिलाओं पर अब तक का सबसे बड़ा शोध किया है.
तस्वीर: Andrew Cabballero-Reynolds/AFP/Getty Images
महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर सबसे बड़ा शोध
विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके साझेदारों ने एक नए शोध में पाया कि विश्व में तीन में से एक महिला को अपने जीवनकाल में शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा. संगठन का कहना है कि यह शोध महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर सबसे बड़ा अध्ययन है.
तस्वीर: Arnd WIegmann/REUTERS
अपनों द्वारा हिंसा
इस शोध के मुताबिक हिंसा की शुरुआत कम उम्र में ही हो जाती है. 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग में, हर चार में से एक महिला को अपने अंतरंग साथी के हाथों हिंसा का अनुभव करना पड़ा है.
तस्वीर: Abdul Sattar/DW
"हर देश और संस्कृति में हिंसा"
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हिंसा हर देश और संस्कृति में है, जो लाखों महिलाओं और उनके परिवारों को नुकसान पहुंचाती है. कोविड-19 महामारी के दौर में स्थिति ज्यादा बिगड़ी है.
करीब 31 फीसदी, 15-49 वर्ष आयु वर्ग में या 85 करोड़ से अधिक महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया. इस अध्ययन के लिए साल 2000 से 2018 तक इकट्ठा किए गए आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
"पति या साथी आम अपराधी"
साथी या पति द्वारा हिंसा के मामले को सबसे सामान्य बताया गया है. गरीब देशों की महिलाओं के साथ इस तरह की हिंसा सबसे अधिक होती है. यौन अपराध से जुड़े मामले कई बार रिपोर्ट नहीं किए जाते और असली आंकड़े अधिक हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Yalcin
गरीब देशों का हाल
गरीब देशों में 37 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवन में साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया. कुछ देशों में तो यह आंकड़ा 50 प्रतिशत तक है. वहीं यूरोप की बात की जाए तो वहां यह दर 23 प्रतिशत है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Meyer
कम उम्र से ही हिंसा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हिंसा की शुरुआत खतरनाक रूप से कम उम्र में ही हो जाती है. 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की युवतियां जो किसी रिश्ते में थीं, उनमें चार में से एक ने अपने साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का सामना किया.
तस्वीर: Colourbox
7 तस्वीरें1 | 7
ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी एक स्वतंत्र नियामक संस्था ऑफिस फॉर स्टूडेंट ने साल 2020 में रखे प्रस्तावित उपायों में विश्वविद्यालयों को हिदायत थी कि अगर कैंपस में होने वाली यौन हिंसा पर शिकायत, कार्रवाई और मदद के समुचित प्रबंध नहीं होते हैं तो संस्थानों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग बंद हो सकती है. इन प्रस्तावों पर संस्था दो साल बाद दोबारा नजर डालेगी यानी यहां भी धीमी चाल और कारगर योजना जैसा कुछ नहीं रखा गया. स्थिति को देखते हुए अद्रिजा डे दलील देती हैं कि अगर सवाल बदलाव का है तो वो इस तरह के आधे-अधूरे तरीकों से नहीं लाया जा सकता.
ये समस्या दरअसल विश्वविद्यालयों में ताकत के ढांचे की मरम्मत और कैंपस संस्कृति को ठीक करने से जुड़ी है. फिलहाल जितनी भी आवाजें उठ रही हैं वो सभी हिंसा झेल चुकी छात्राओं या शोधकर्ताओं की तरफ से हैं. दुनिया भर के छात्रों का गढ़ होने पर गर्व करने वाले ब्रिटेन के पास उन छात्र-छात्राओं को सुरक्षित माहौल देने का इरादा नहीं है. आवाजें उठी हैं और उठती रहेंगी लेकिन उनकी गूंज का असर समस्या को जड़ से उखाड़ने में फिलहाल कामयाब नहीं हुआ है.
विदेशी रिसर्चरों में लोकप्रिय हैं ये जर्मन यूनिवर्सिटी
बर्लिन और म्यूनिख की यूनिवर्सिटी विदेशी रिसर्चरों में अत्यंत लोकप्रिय है. ये जानकारी जर्मनी के हुम्बोल्ट फाउंडेशन ने दी है, जो विदेशी रिसर्चरों को स्कॉलरशिप भी देता है.
तस्वीर: dapd/picture-alliance/dpa/DW
फ्री यूनिवर्सिटी बर्लिन
राजधानी बर्लिन के पश्चिमी हिस्से में स्थित यूनिवर्सिटी में प्रति सौ प्रोफेसर 121 विदेशी रिसर्चर काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture alliance/Arco Images/Schoening
हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी बर्लिन
राजधानी के पूर्वी हिस्से में स्थित यह यूनिवर्सिटी भी लोकप्रिय है. यहां हर सौ प्रोफेसर पर 88 विदेशी रिसर्चर हैं.
बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी से म्यूनिख की टेक्निकल यूनिवर्सिटी थोड़ा ही पीछे है. यहां विदेशी रिसर्चरों का अनुपात 100 और 61 है.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/K. Amthor
गोएटिंगेन यूनिवर्सिटी
गोएटिंगेन सामाजिक शास्त्रों में रिसर्च के लिए जाना जाता है. सौ में 60 के साथ जर्मनी आने वाले विदेशी रिसर्चर की यह अहम पसंद है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Rampfel
याकोब्स यूनिवर्सिटी ब्रेमेन
ब्रेमेन समुद्र पर बसा व्यापारिक शहर होने के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. विदेशी रिसर्चरों का अनुपात 51 है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बॉन यूनिवर्सिटी
पश्चिमी जर्मनी की पुरानी राजधानी इस बीच संयुक्त राष्ट्र और टेलिकॉम जैसी कंपनियों का केंद्र है. यहां की यूनिवर्सिटी में 100 प्रोफेसर पर 49 विदेशी रिसर्चर हैं.
तस्वीर: picture-alliance/S. Ziese
पोट्सडम यूनिवर्सिटी
बर्लिन की लोकप्रियता देश का सबसे बड़ा शहर होने के कारण भी है. इसका लाभ पड़ोस के शहर पोट्सडम को भी मिला है. यहां सौ में 48 विदेशी रिसर्चर हैं.
तस्वीर: picture-alliance/D. Kalker
कोंसटांस यूनिवर्सिटी
झील के किनारे बसी कोंसटांस की यूनिवर्सिटी अपने रिसर्च सुविधाओं के लिए जानी जाती है. यहां सौ प्रोफेसरों पर 47 विदेशी रिसर्चर काम करते हैं.