कोविड महामारी के कारण नौकरियां खत्म होने और आर्थिक कठिनाइयों का गंभीर असर प्रवासी कामगारों पर पड़ा है. यूरोपीय देशों से आए कामगार लाखों की संख्या में ब्रिटेन छोड़ रहे हैं.
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ब्रिटेन में कोरोना महामारी से देश को निकालने का चरणबद्ध कार्यक्रम सार्वजनिक हो चुका है. फिलहाल वायरस म्यूटेशन से आगे निकलने और वैक्सीन में भरोसा जगाने की दिक्कतें खासी बड़ी नजर आ रही हैं. हालांकि इस दौर से निकलने के रास्ते में आगे और भी चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं. ब्रेक्जिट के बाद बीते दो महीनों में व्यापारिक दिक्कतों से निपटने के लिए चल रही कोशिशों की खबरें आती रही हैं लेकिन इस सबके बीच एक सिलसिला और भी चल रहा है- लाखों प्रवासियों के ब्रिटेन छोड़ने का सिलसिला जिसका एक बड़ा हिस्सा यूरोपीय प्रवासियों का है.
अंदेशा यह है कि राजधानी लंदन समेत ब्रिटेन के कई शहरों में जनसंख्या का स्वरूप, श्रम बाजार और सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने पर इसका गहरा असर होगा. फिलहाल ठोस नतीजे सामने आने में अभी वक्त लगेगा. धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां फिर शुरू होने और कामगारों की जरूरत बढ़ने पर यह खुलकर सामने आएगा कि श्रम की उपलब्धता इस पलायन से कैसे प्रभावित हो रही है. सवाल यह भी है कि इस जरूरत को पूरा करने के लिए क्या ब्रिटिश कामगार पर्याप्त होंगे.
आंकड़े, रोजगार और प्रवासी
कोविड महामारी के चलते आंकड़े इकट्ठे करने में हो रही परेशानियों के बावजूद ब्रिटेन में प्रवासियों और श्रम बाजार पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुमानों के मुताबिक प्रवासी कामगारों की संख्या तेजी के साथ कम हुई है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय स्थित माइग्रेशन ऑब्जर्वेट्री का अनुमान है कि साल 2020 की आखिरी तिमाही में प्रवासी कामगारों की संख्या 83 लाख हो गई है जो 2019 की उसी तिमाही में 92 लाख थी यानी 10 फीसदी की गिरावट.
ये सब बदलाव लाएगा ब्रेक्जिट
यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच ब्रेक्जिट समझौता हो गया है. अब तक ज्यादातर नागरिकों को ब्रेक्जिट की हकीकत का सामना नहीं हुआ है. पहली जनवरी को जब वे सोकर उठेंगे तो उनके लिए बहुत कुछ बदला हुआ होगा.
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यूरोपीय बंधन से आजादी
पांच दशक तक यूरोपीय संघ का हिस्सा रहने के बाद ब्रिटेन आजादी की एक नई राह पर है. पांच दशक के निकट आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समन्वय के बाद अब ब्रिटेन सारे फैसले अकेले ले सकेगा.
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काम करने का अधिकार
हालांकि कोरोना की वजह से यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच आवाजाही में यूं भी कमी आई है, लेकिन भविष्य में आवाजाही और कम हो सकती है. दोनों के नागरिकों को अब एक दूसरे के यहां रहने और काम करने का स्वाभाविक अधिकार नहीं होगा.
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मौजूदा प्रवासियों की स्थिति
यूरोप में वैध रूप से रहने वाले 10 लाख ब्रिटिश नागरिकों और ब्रिटेन में रहने वाले 30 लाख यूरोपीय नागरिकों की स्थिति बहुत नहीं बदलेगी. समझौते के अनुसार आम तौर पर उनके अधिकार वही रहेंगे जो इस समय हैं.
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रोजगार पर भी असर
मुक्त आवाजाही के खात्मे का मतलब श्रम बाजार पर दबाव भी होगा. टूरिस्ट वीजा पर यूरोप आए ब्रिटिश नागरिक या ब्रिटेन गए यूरोपीय नागरिक अब फटाफट किसी रेस्तरां या बार में पार्ट टाइम जॉब शुरू नहीं कर सकेंगे.
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पर्यटन वीजा
एक दूसरे के यहां छुट्टी बिताने के लिए वीजा लेने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के लोग 180 दिनों में 90 दिन ही रह पाएंगे जबकि ब्रिटेन यूरोपीय नागरिकों को लगातार छह महीने रहने की अनुमति देगा.
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चिकित्सा बीमा
यूरोप आने वाले ब्रिटिश नागरिकों और ब्रिटेन जाने वाले यूरोपीय नागरिकों को अब अलग से चिकित्सा बीमा लेना होगा. उन्हें यूरोपीय हेल्थ इंश्योरेंस कार्ड जारी नहीं किया जाएगा. यह कार्ड पूरे यूरोपीय संघ में चिकित्सा सुविधा मुहैया कराता है.
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पालतू जानवर
ब्रेक्जिट का असर पालतू जानवरों की आवाजाही पर भी होगा. गर्म स्पेन में लंबी छुट्टियां बिताने वाले ब्रिटिश नागरिक अक्सर पालतू जानवर साथ लाते थे. उन्हें अब यात्रा से 21 दिन पहले टीका लगवाना होगा और हेल्थ सर्टिफिकेट लेना होगा.
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ड्राइविंग लाइसेंस
ताजा समझौते के बाद ड्राइवरों को कोई समस्या नहीं रहेगी. उनके ड्राइविंग लाइसेंस मान्य होंगे लेकिन ब्रिटिश चैनल पार करने वाले यात्रियों को साबित करना होगा कि उनके पास जरूरी बीमा है.
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शिक्षा और रिसर्च
ब्रिटेन ने ब्रेक्जिट के साथ ही यूरोपीय छात्र आदान प्रदान कार्यक्रम इरास्मस से भी बाहर निकलने का फैसला किया है. इस कार्यक्रम के तहत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के दूसरे सदस्य देशों के छात्र एक दूसरे के यहां पढ़ सकते थे.
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एक ब्रिटिश थिंक टैंक- इकॉनॉमिक स्टैटिस्टिक्स सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (इस्को) का अनुमान है कि इस अवधि में ब्रिटेन की कुल जनसंख्या में करीब 13 लाख की कमी आई है. सेंटर के मुताबिक राजधानी लंदन में रहने वालों की संख्या में करीब 7 लाख की गिरावट का अंदेशा है यानी प्रवासियों की एक बड़ी संख्या इस दौर में बाहर निकल चुकी है. ये आंकड़े सरकारी रिपोर्टों पर आधारित अनुमान हैं जिनकी पूरी तरह पुष्टि होने के लिए अभी और प्रमाण चाहिए.
इतना तय है कि कोविड के कारण नौकरियां खत्म होने और आर्थिक कठिनाइयों का गंभीर असर प्रवासी कामगारों पर पड़ा है. इनमें पोलैंड, लात्विया, स्लोवाकिया जैसे यूरोपीय देशों से आए कामगार लाखों की संख्या में हैं. ब्रिटेन छोड़ने वाले यूरोपीय प्रवासियों में ज्यादातर वे लोग हैं, जो पिछले कुछ बरस के दौरान आए थे या जिनका कोई स्थायी पारिवारिक आधार नहीं है. उम्मीद यह भी है कि शायद प्रवासी वापिस लौटें लेकिन ब्रेक्जिट के बाद वीजा हासिल करने के नए नियमों के मद्देनजर कितने लोग इसमें कामयाब होंगे, इसका दावा नहीं किया जा सकता. हालांकि सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ कोविड और आर्थिक अवसरों का सिमटना ही इस अभूतपूर्व पलायन का कारण हैं.
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युवा यूरोपीय प्रवासियों का पलायन
साल 2020 में कोविड की भयंकर परिस्थितियों को प्रवासियों के लौटने की नजर से अहम माना जा रहा है लेकिन इस सिलसिले की शुरूआत ब्रेक्जिट की लंबी और तनावपूर्ण प्रक्रिया के दौरान ही हो चुकी थी. अपने भविष्य और सुरक्षा को लेकर उपजी चिंताओं ने खासकर युवा यूरोपीय प्रवासियों को ब्रिटेन से विदा लेने के लिए मजबूर कर दिया. मध्य इंग्लैंड के लेमिंग्टन स्पा इलाके में काम करने वाले एक इतालवी जोड़े- टोमाशो रोमानो और लौरा ने साल 2019 में ब्रेक्जिट के बाद भेद-भाव झेलने के कारण इटली वापिस लौटने का फैसला किया.
ब्रेक्जिट: रेफरेंडम के बाद से अब तक क्या क्या हुआ
24 जून 2016 को ब्रिटेन ने जनमत संग्रह कर यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला लिया और पूरी दुनिया को चौका दिया. तब से अब शुरू हुआ तारीख पर तारीख का सिलसिला थमता नहीं दिखता. जानिए कहां तक पहुंची है ब्रेक्जिट की गाड़ी.
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जून 2016: जनता का फैसला
जनमत संग्रह के दौरान 24 जून को 52 फीसदी ब्रिटेन वासियों ने यूरोपीय संघ से अलग होने के हक में वोट दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इसे "ब्रिटेन के लोगों की मर्जी" कहा और अगली ही सुबह अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कैमरन ब्रेक्जिट के हक में नहीं थे.
तस्वीर: Reuters/S. Wermuth
जुलाई 2016: ब्रेक्जिट मतलब ब्रेक्जिट
11 जुलाई को तत्कालीन गृह मंत्री टेरीजा मे ने प्राधमंत्री का पद संभाला और देश से वायदा किया: "ब्रेक्जिट मतलब ब्रेक्जिट". हालांकि जनमत संग्रह से पहले मे भी कैमरन की ही तरह ब्रेक्जिट विरोधी थीं. पद संभालते वक्त उन्होंने यह घोषणा नहीं की कि वे ईयू के साथ ब्रेक्जिट पर चर्चा कब शुरू करेंगी.
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मार्च 2017: अलविदा
29 मार्च को टेरीजा मे ने आर्टिकल 50 के तहत ब्रेक्जिट की प्रक्रिया शुरू की. ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने की औपचारिक तारीख 29 मार्च 2019 तय की गई. यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष डॉनल्ड टस्क ने उस वक्त अपने बयान के अंत में कहा, "हमें अभी से आपकी कमी खलने लगी है. आपका शुक्रिया. अलविदा."
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जून 2017: बहस शुरू
19 जून को ब्रसेल्स में ब्रेक्जिट की प्रक्रिया पर बहस शुरू हुई. पहले चरण की बातचीत में ब्रिटेन ईयू द्वारा तय कई गई टाइमलाइन से संतुष्ट नहीं दिखा. लेकिन बावजूद इसके उसे ईयू की शर्तें माननी पड़ीं. ईयू ने ब्रेक्जिट को दो चरणों में बांटा. पहले चरण में तय होना था कि ब्रिटेन ईयू से कैसे अलग होगा. और दूसरे चरण में तय होना था कि ब्रेक्जिट के बाद ईयू और ब्रिटेन के संबंध कैसे आगे बढ़ेंगे.
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जुलाई से अक्टूबर 2017: पहला चरण
पहले चरण पर बहस तो हुई लेकिन तीन मुख्य मुद्दों पर कोई ठोस नतीजा निकलता नहीं दिखा. पहला, ईयू छोड़ने के बाद ब्रिटेन किस तरह से ईयू के बजट में भागीदार होगा. दूसरा, ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन और ईयू के नागरिकों के अधिकार क्या क्या होंगे. और तीसरा, क्या ब्रिटेन आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच दरवाजे खुले रख सकेगा.
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दिसंबर 2017: दूसरा चरण
बाकी के सभी 27 सदस्य देशों ने माना कि दूसरे चरण की बहस शुरू की जा सकती है. इस चरण में ईयू और ब्रिटेन के बीच भविष्य में होने वाले व्यापार के लिए शर्तें तय करनी थीं. डॉनल्ड टस्क ने चेतावनी दी कि दूसरे चरण की बातचीत ब्रिटेन के लिए बेहद मुश्किल साबित हो सकती है.
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जुलाई 2018: इस्तीफे
ब्रिटेन के विदेश मंत्री बॉरिस जॉनसन और ब्रेक्जिट मंत्री डेविड डेविस ने ब्रेक्जिट से जुड़ी योजना पर असहमति दिखाते हुए इस्तीफे दे दिए. इस योजना के अनुसार ब्रिटेन और ईयू के बीच व्यापार के दौरान सभी वस्तुओं पर एक जैसे नियम लागू होने थे. जेरेमी हंट और डोमिनीक राब ने जॉन्सन और डेविस की जगह ली.
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सितंबर 2018: नाकाम मे
ब्रेक्जिट के लिए मे के प्रस्ताव ईयू के नेताओं की पसंद से काफी दूर दिखे. हालात यहां तक पहुंच गए कि डॉनल्ड टस्क ने इंस्टाग्राम पर टेरीजा मे को ट्रोल करते हुए एक तस्वीर डाली. तस्वीर में टस्क और मे साथ खड़े हैं और उसे कैप्शन दिया गया, "केक का एक टुकड़ा चाहेंगे? माफ कीजिए, साथ में चेरी नहीं मिलेगी."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/T. Monasse
दिसंबर 2018: अविश्वास मत
10 दिसंबर को मे ने ब्रेक्जिट डील पर संसद में होने वाले एक वोट को स्थगित कर दिया. अगले दिन वे जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से मिलीं और उनसे समर्थन की मांग की. लेकिन इसी दौरान विपक्षी सांसद अविश्वास प्रस्ताव ले आए. हालांकि मे इसे जीत गईं.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
जनवरी 2019: संसद में डील
16 जनवरी में ब्रिटिश संसद में टेरीजा मे की ब्रेक्जिट डील पर मतदान हुआ. डील के खिलाफ 432, जबकि डील के पक्ष में सिर्फ 202 वोट पड़े. डॉनल्ड टस्क ने इस पर सुझाव दिया कि ब्रिटेन के लिए सबसे अच्छा उपाय यही होगा कि वह ईयू में ही बना रहे. इस बीच विपक्षी लेबर पार्टी ने एक बार फिर अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर दी.
तस्वीर: Reuters
मार्च 2019: बढ़ाई समय सीमा
मे डील में बदलाव कर 12 मार्च को इसे फिर से संसद में ले कर आईं. इस बार डील के खिलाफ 391 और पक्ष में 242 वोट पड़े. यूरोपीय संघ के नेताओं ने चेतावनी दी कि ऐसी स्थिति में "नो डील ब्रेक्जिट" यानी बिना किसी समझौते के ही ब्रिटेन को ईयू से अलग होना होगा. दो दिन बाद सांसदों से ब्रेक्जिट की तारीख आगे बढ़ाने के हक में वोट दिया. अगली तारीख 12 अप्रैल की थी.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/W. Szymanowicz
मार्च 2019: तीसरी बार
29 मार्च - शुरुआत में इसी दिन को ईयू से अलग होने का दिन चुना गया था. इस दिन टेरीजा मे तीसरी बार डील का प्रस्ताव संसद में ले कर पहुंचीं. एक बार फिर उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. इस बार 344 वोट उनके खिलाफ थे, जबकि 286 उनके हक में. एक समझौते की उम्मीद में मे विपक्षी नेता जेरेमी कॉर्बिन से मिलीं और अपनी ही पार्टी के लोगों को नाराज कर बैठीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/House of Commons/M. Duffy
अप्रैल 2019: तारीख पर तारीख
12 अप्रैल की डेडलाइन तक तो कोई समझौता होता नहीं दिख रहा था. इसलिए मे ने समयसीमा और आगे बढ़ाने की मांग की. सवाल था कि इस बार कितना और समय दिया जाए. नई तारीख तय हुई 31 अक्टूबर की. अगर ब्रिटेन चाहे तो उससे पहले भी अलग हो सकता है. लेकिन अब ऐसे में उसे मई में होने वाले यूरोपीय संघ के चुनावों में हिस्सा लेना होगा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Augstein
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अपने फैसले पर बातचीत करते हुए टोमाशो ने कहा, "जैसे-जैसे ब्रेक्जिट की प्रक्रिया उलझती जा रही थी, हमारे आस-पास माहौल बदलने लगा था. अखबारों में प्रवासियों के खिलाफ हमलों की खबरें दिखने लगी थीं लेकिन हमें नहीं लगा था कि हमारे साथ ऐसा होगा. फिर एक दिन वेल्स में काम के बाद मैं अपने बॉस के साथ एक पब में गया. बाहर बारिश हो रही थी, तो हमने सोचा कि अंदर ही खड़े होकर कुछ खा लेंगे लेकिन पब में काम करने वाले कर्मचारी का रवैया बेहद रूखा और कड़ुवाहट भरा था. उसने कहा कि ब्रेक्जिट हो चुका है. अब अगर आपको यहां कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा? मुझे उस पल लगा कि अब यह हमारा घर नहीं हो सकता”.
टोमाशो की पार्टनर लौरा अंतरिक्ष विज्ञान की छात्रा रही हैं और उन्हें काम करने के लिए ब्रिटेन मुनासिब लगा लेकिन ब्रेक्जिट के बाद यहां से निकलने का विकल्प उन्हें भी तार्किक लगा. लौरा कहती हैं, "मेरे क्षेत्र में इटली में काम की संभावनाएं कम थीं और मैं अंतरराष्ट्रीय अनुभव लेना चाहती थी जिसके लिए ब्रिटेन बेहतर लगा. जब ब्रेक्जिट का लंबा सिलसिला शुरू हुआ, तो प्रवासी होने की वजह से कई बार मुझे अस्पताल में भेद-भाव झेलना पड़ा. हमने आपस में बात की और घर वापसी सही विकल्प दिखाई दिया. वैसे भी हम नहीं चाहते कि भविष्य में होने वाले अपने बच्चे को ऐसे माहौल में बड़ा करें”.
ब्रिटेन के विभिन्न शहरों में आम जनजीवन पर प्रवासी समुदायों की गहरी सांस्कृतिक छाप है. होटल उद्योग और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी सेवाएं देने वाले छोटे व्यवसायों में यूरोपीय कामगार बड़ी संख्या में रहे हैं. लाखों की संख्या में प्रवासियों के जाने का व्यापक असर फिलहाल आंकड़ों की धुंध में लिपटा पड़ा है. लेकिन इसमें शक नहीं है कि दोबारा पटरी पर लौटने को बेकरार अर्थव्यवस्था में कामगारों की कमी के साथ ब्रिटेन के सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप पर इस पलायन के निशान स्पष्ट तौर पर देखने को मिलेंगे.
कभी यूके, कभी ग्रेट ब्रिटेन तो कभी इंग्लैंड, आखिर ये चक्कर क्या है. चलिए इस समझते हैं ताकि आगे ये कंफ्यूजन न रहे.
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यूनाइटेड किंगडम (यूके)
असल में इसका पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉदर्न आयरलैंड है. यूके में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स आते हैं. इन चारों के समूह को ही यूके कहा जाता है.
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ग्रेट ब्रिटेन
इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के संघ को ग्रेट ब्रिटेन कहा जाता है. तीनों अलग अलग प्रांत हैं. तीनों प्रांतों की अपनी संसद है लेकिन विदेश नीति और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर फैसला ग्रेट ब्रिटेन की संघीय संसद करती है. तस्वीर में बायीं तरफ इंग्लैंड का झंडा है, दायीं तरफ स्कॉटलैंड का. बीच में ग्रेट ब्रिटेन का झंडा है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ब्रिटेन
यह नाम रोमन काल में इस्तेमाल हुए शब्द ब्रिटानिया से आया है. ब्रिटेन इंग्लैंड और वेल्स को मिलाकर बनता है. हालांकि अब सिर्फ ब्रिटेन शब्द का इस्तेमाल कम होता है. यूरो 2016 में इंग्लैंड बनाम वेल्स का मैच.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Rain
इंग्लैंड
इंग्लैंड एक देश है. जिसकी राजधानी लंदन है. स्काटलैंड और वेल्स की तरह इंग्लैंड की अपनी फुटबॉल और क्रिकेट टीम हैं. इन टीमों में दूसरे प्रांतों के खिलाड़ी शामिल नहीं होते हैं.
तस्वीर: Reuters/J.-P. Pelissier
राजधानियां
उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफास्ट है. स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा है और वेल्स की राजधानी कार्डिफ है.
भाषा
अंग्रेजी भाषा होने के बावजूद इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स में लहजे का फर्क है. आम तौर पर मजाक में लोग एक दूसरे इलाके के लहजे का मजाक भी उड़ाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa
खासियत
स्कॉटलैंड के लोगों को अपनी विश्वप्रसिद्ध स्कॉच पर गर्व है. बैगपाइपर का संगीत स्कॉटलैंड की पहचान है. वहीं आयरलैंड के लोग आयरिश व्हिस्की और बियर का गुणगान करते हैं. इंग्लैंड मछली और चिप्स के लिए मशहूर है.
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मतभेद
राजस्व के आवंटन के अलावा ग्रेट ब्रिटेन (इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड) के प्रांतों के बीच विदेश नीति को लेकर भी मतभेद रहते हैं. यूरोपीय संघ की सदस्यता को लेकर मतभेद सामने भी आ चुके हैं. अगर ग्रेट ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकला तो स्कॉटलैंड स्वतंत्र देश बनने का एलान कर चुका है.
तस्वीर: Andy Buchanan/AFP/Getty Images
ईयू से मतभेद
यूरोपीय संघ के आलोचकों का कहना है कि ईयू की सदस्यता से ब्रिटेन को आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंची है. तटीय इलाकों में रहने वाले मछुआरे करीब करीब बर्बाद हो चुके हैं. बड़ी संख्या में पोलैंड से आए प्रवासियों का मुद्दा भी समय समय पर उठता रहा है.
तस्वीर: Reuters/T. Melville
राजनैतिक खींचतान
यूरोपीय संघ की नीतियां सदस्य देशों को लागू करनी पड़ती हैं. चाहे वह बजट का वित्तीय घाटा हो, शरणार्थियों का मुद्दा हो या फिर मार्केट रेग्युलेशन. ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन इसे राजनीतिक हस्तक्षेप करार दे चुके हैं.