विकसित और संभ्रात कहे जाने वाले ब्रिटेन में कई लड़कियों के पास सैनेटरी पैड खरीदने के पैसे नहीं होते. वे पीरियड के दौरान अखबार, मोजे या टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करती हैं.
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हे गर्ल्स नाम की कंपनी ब्रिटेन में पीरियड के दौरान गरीबी का सामना करने वाली लड़कियों की पीड़ा सामने रख रही है. ब्रिटेन के कई अखबारों में कंपनी ने विज्ञापन देकर बताया कि बड़ी संख्या में लड़कियां महंगे सैनेटरी पैड्स नहीं खरीद पाती हैं. पीरियड के दौरान वे अखबार, टॉयलेट पेपर या मोजे को सैनेटरी पैड की तरफ इस्तेमाल करती हैं.
कंपनी की संस्थापक सेलिया हडसन कहती हैं, "पीरियड्स के दौरान गरीबी या माहवारी से जुड़े प्रोडक्ट्स के अभाव में कई लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती हैं."
ब्रिटिश समाज और मीडिया की सोच पर तंज करते हुए हडसन ने कहा, "हर कोई सोचता है कि ऐसा भारत और अफ्रीका में होता है, वे हमारी लड़कियों के बार में नहीं सोचते." अपने विज्ञापन में सैनेटरी प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी ने लोगों से कहा है कि "अपने सैनेटरी पैड्स खुद बनाओ."
हे गर्ल्स कंपनी एक सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कंपनी है. कंपनी का दावा है कि वह एक पैकेट सैनेटरी पैड बेचने पर एक गरीब लड़की को पैड का एक पैकेट मुफ्त देती है. अब तक कंपनी 8,50,000 पैकेट बांट चुकी है.
कंपनी चाहती है कि ब्रिटेन के सुपरमार्केट उसके प्रोडक्ट बेचें ताकि इससे होने वाला मुनाफा गरीब लड़कियों की मदद में खर्च हो. 2017 में चैरिटी प्लान इंटरनेशनल ने एक सर्वे किया था. सर्वे में पता चला कि ब्रिटेन में 10 फीसदी लड़कियां तंगहाली के चलते सैनेटरी प्रोडक्ट्स नहीं खरीद पाती हैं.
(पीरियड्स होने पर स्कूल नहीं जाती लड़कियां)
पीरियड्स होने पर स्कूल नहीं जाती लड़कियां
तमाम कोशिशों के बाद भी दक्षिण एशियाई मुल्कों में अब तक लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा हासिल करना आसान नहीं है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों में हर तीसरी लड़की पीरियड्स के दिनों में स्कूल नहीं जाती.
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नहीं जा पाती स्कूल
दक्षिण एशियाई देशों में सरकारें बच्चों की पढ़ाई के लिए तमाम कार्यक्रम चलाने का दावा करती हैं. लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों में हर तीसरी लड़की पीरियड्स के वक्त स्कूल नहीं जाती. और इसका बड़ा कारण है स्कूलों में टॉयलेट की कमी. कुछ लड़कियों को इसकी जानकारी भी नहीं होती.
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क्या है समस्या
चैरिटी संस्था वॉटरएड और यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र के कई देश विश्व स्वास्थ्य संगठनों (डब्ल्यूएचओ) के मानकों पर सटीक नहीं बैठते. डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक हर 25 लड़कियों पर एक टॉयलेट होना चाहिए लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है और लड़कियां स्कूल जाने से कतराने लगती हैं.
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चौंकाने वाले आंकड़ें
खबरों के मुताबिक नेपाल के एक जिले में 170 लड़कियों पर एक ही टॉयलेट है. वॉटरएड संस्था के मुख्य कार्यकारी टिम वेनराइट कहते हैं कि अगर लड़कियां सैनिटरी प्रॉडक्ट्स तक पहुंच न होने के चलते स्कूल नहीं जाएंगी, तो वह अपना शिक्षा का अधिकार इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी.
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जरूरत किसकी
वेनराइट कहते हैं कि सरकारों को स्कूलों में न सिर्फ स्वच्छ पानी बल्कि साफ-सफाई के साथ पर्याप्त टॉयलेट्स की भी व्यवस्था करनी चाहिए. रिपोर्ट बताती है कि यहां की लड़कियों को पीरियड्स से जुड़ी कोई खास जानकारी भी नहीं होती. श्रीलंका में दो-तिहाई लड़कियां बताती हैं कि उन्हें पीरियड्स शुरू होने के पहले इसके बारे में कुछ नहीं पता था.
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली संस्था कहती है कि लड़कियां अकसर सहयोग और जानकारी हासिल करने के लिए मांओं या अपनी टीचर्स के पास जाती हैं. लेकिन अगर उनमें जानकारी और आत्मविश्वास की कमी है, तो हो सकता है कि वह एक टैबू का रूप ले.