पुलिस ने इन लोगों को तब निकाला जब सड़क पर जाने वाले लोगों ने एक ट्रक में से शोर सुना. यह ट्रक एक सर्विस स्टेशन पर खड़ा था.
दक्षिण पश्चिमी इंग्लैंड के टॉन्टन में एक ट्रक में 12 पुरुष और तीन महिलाएं पाए गए. पुलिस ने ट्रक चलाने वाले जर्मन चालक को गिरफ्तार कर लिया है. इन लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई. पुलिस ने बताया कि सभी अच्छी हालत में हैं, "कुल 15 लोग विपत्ति में पाए गए. इनमें महिलाएं, पुरुष और 15 साल का एक लड़का भी था. उन्होंने बताया कि वो इरिट्रिया और कश्मीर से हैं, वे काफी परेशान थे क्योंकि गाड़ी में काफी गर्मी थी. जर्मनी के एक व्यक्ति को इन लोगों को अवैध तरीके से ब्रिटेन में लाने के संदेह में गिरफ्तार किया गया है. अपने ट्रक में लोगों को देख कर वह काफी हैरान था और उसने जांच में हमारी मदद की." यूरोप की इस लॉरी को पुलिस ने जब्त कर लिया है.
इससे पहले शनिवार को ब्रिटेन के एक बंदरगाह पर स्टाफ को एक शिपिंग कंटेनर में से चिल्लाने की आवाजें सुनाई दी. इस कंटेनर में 34 अफगान सिख थे. और सभी पानी की कमी, शरीर का तापमान कम होने और हवा की कमी से जूझ रहे थे. इतना ही नहीं बेल्जियम से आने के दौरान एक आदमी की मौत भी हो गई. मंगलवार को उत्तरी आयरलैंड की पुलिस ने बताया कि उन्होंने हत्या के संदेह में एक आदमी को गिरफ्तार किया है.
इन मामलों ने एक बार फिर ब्रिटेन की सीमा सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं और इस पर भी कि किस तरह दुनिया के दूर देशों से लोग जान जोखिम में उठा कर ब्रिटेन अवैध तरीके से आने की कोशिश करते हैं.
हत्या का संदेह
उत्तरी आयरलैंड की पुलिस ने मंगलवार को बताया कि उन्होंने एक 34 साल के आदमी को हत्या के संदेह में गिरफ्तार किया है. शिपिंग कंटेनर में मृत मिले अफगान सिख की हत्या के सिलसिले में पुलिस ने उसे पकड़ा है.
काबुल में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भागे इन इन सिखों की उम्र एक से 70 साल के बीच थी. टिलबरी डॉक्स के कंटेनर में मिले ये सभी लोग एकदम बीमार थे. 40 साल के मीत सिंह कपूर सेब्रुगे से उत्तरी सागर की यात्रा के दौरान मारे गए. उनके नौ और बारह साल के दो बच्चे भी कंटेनर में उनके साथ ही थे. मौत के कारणों का अभी पता नहीं चल सका है.
सभी प्रवासियों की जांच की जा रही है. ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने बताया, "सभी 34 लोग ब्रिटेन में शरण के लिए आवेदन करेंगे. फिलहाल हम उनके लिए घरों का इंतजाम कर रहे हैं और जरूरतमंदों को मदद भी. ब्रिटेन अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी पूरी गंभीरता से स्वीकार करता है और उसका अच्छा इतिहास है कि उन सभी को सुरक्षा दी गई जिन्हें इसकी जरूरत थी."
ब्रिटेन शेंगेन समझौते में शामिल नहीं हुआ और इसके लिए उसने अवैध प्रवासियों की समस्या एक कारण बताया था. यूरोपीय संघ के 28 में से 22 सदस्य देशों ने साझा सीमा पर पासपोर्ट और वीजा की जांच खत्म कर दी है.
जुलाई अगस्त में जहां दुनिया के देशों में स्कूलों का नया साल शुरू होता है, वहीं लेबनान में शरणार्थी बच्चे सदमे के मारे और सड़कों के हवाले हैं. कुछ अस्थाई स्कूल उन्हें सामान्य जीवन का अहसास कराने के लिए बनाए गए हैं.
तस्वीर: Amy Leangसात साल की नरिमन बेरुत के रेस्तरां के बाहर टिशू पेपर बेचती है. सीरिया छोड़ने के वक्त वह दूसरा क्लास में थी. ये पैकेट उसे उसके अंकल देते हैं. हर दिन उसे शाम छह बजे के पहले 12 हजार लेबनानी पाउंड्स कमाने ही हैं.
तस्वीर: Amy Leangमोहम्मद और अहमद जूते पॉलिश कर पैसा कमाते हैं. 2011 से वो स्कूल नहीं गए. अहमद बताता है, "हम स्कूल मिस करते हैं. लेकिन स्कूल में हम से कहा गया कि हम शरणार्थी हैं तो ही वो हमें लेंगे. लेकिन मेरे पिता बीमार हैं उन्हें सीरिया जाना ही होगा. अगर वो पंजीकरण करवाते हैं तो सीमा पर उन्हें पकड़ लिया जाएगा. इसलिए हम स्कूल नहीं जाते."
तस्वीर: Amy Leangतीन साल का सिमोन सीरिया में रहने वाले आर्मेनियाई परिवार का हिस्सा है. जो रेफ्यूजी बच्चे स्कूल नहीं जाते, वो दिन भर टीवी देख कर या खेल कर बिताते हैं. यूएन के मुताबिक चार लाख बच्चों में से सिर्फ 90,000 ही स्कूल जाते हैं.
तस्वीर: Amy Leangबेरुत के करम जितून स्कूल को चलाने वाले गैर सरकारी संगठन की एक संस्थापक शार्लोट बैर्ताल बताती हैं, "वो अपने माता पिता की कहानियां सुनते हैं. लड़ाई की, पैसे खत्म हो जाने की बात करते हैं. जब वो स्कूल आते हैं, तो फिर बच्चे बन जाते हैं." स्कूलों की क्रिएटिव क्लास थैरेपी की तरह काम करती हैं.
तस्वीर: Amy Leangइंग्लिश सीखता एक बच्चा. इन शरणार्थी बच्चों को लेबनान के पब्लिक स्कूल में दाखिल कराने की कोशिश करवाई जाएगी बशर्ते पैसे और जगह कम न पड़े. 14 साल की सुजाने कलाकार बनना चाहती हैं. वो कहती हैं, "ये मेरा दूसरा जीवन है. स्कूल के बिना जिंदगी एकदम बेकार लगती है."
तस्वीर: Amy Leangग्यारह साल की डायना बेरुत के इस स्कूल में गणित की कक्षा में ध्यान लगाने की कोशिश कर रही हैं. टीचर नासिर अल इस्सा के मुताबिक, "एक मुश्किल ये है कि परिवार घर पर बच्चों को नहीं पढ़ाते. पढ़ाई सिर्फ स्कूल में ही होती है."
तस्वीर: Amy Leangबच्चे स्कूल में खाना खाते हैं, आस पास के इलाके में एक कमरे का किराया 400 से 500 डॉलर के बीच है. एंड्र्यू सालामेह चर्च और गैर सरकारी संगठन के साथ मिल कर स्कूल चला रहे हैं. वह कहते हैं कि किराये के लिए इतना पैसा देने पर उनके पास खाना खरीदने के लिए कुछ नहीं बचता.
तस्वीर: Amy Leangबेरुत के इस स्कूल से आस पास के अपार्टमेंट दिखते हैं. स्कूली बच्चों के परिवार यहीं आस पास ही रहते हैं. कुछ कमरे तो सीढ़ियों के नीचे या फिर छत पर भी हैं.
तस्वीर: Amy Leangस्कूल में कई तरह की वर्कशॉप और रचनात्मक कक्षाएं होती हैं. जिससे बच्चों को मदद मिलती है. जरूरत होने पर बच्चों को डॉक्टर के पास भी भेजा जाता है. 12 साल की आश्ता रचनात्मक लेखन क्लास में खिड़की से बाहर झांकती हुई.
तस्वीर: Amy Leangकिराये के कमरों में रह रहा परिवार. सीरिया में खेती करने वाले हैदर (असली नाम नहीं) बताते हैं, "मैं इन्हें यहां ले आया क्योंकि मुझे डर था कि ये कभी नहीं पढ़ेंगे. मैं उन्हें पढ़ाना चाहता था. बहुत बड़ा नुकसान है. अगर इन्हें कोई रास्ता नहीं मिला तो ये पूरी पीढ़ी खो जाएगी."
तस्वीर: Amy Leangसीरिया की सीमा से लगे लेबनानी शहर बार एलियास में गैर सरकारी संगठन सावा ने स्कूल शुरू किया है. यहां पढ़ाने वाले टीचर शम्स इब्राहिम भी शरणार्थी हैं. वह बताते हैं, "बच्चे इतने डर से गुजरे हैं और उन्हें इतना तनाव है कि अब वह और नहीं कर सकते. डर की सीमा वो पार कर चुके हैं."
तस्वीर: Amy Leang
एएम/एमजे (एएफपी)