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कला

पर्दे पर उतरेगी क्वीन विक्टोरिया और मुंशी करीम की कहानी

फैसल फरीद
२३ नवम्बर २०१६

ब्रिटिश शासन ने क्वीन विक्टोरिया और उनके खास हिंदुस्तानी नौकर रहे अब्दुल करीम के किस्से को हमेशा परतों में रखा था. अब पहली बार एक ब्रिटिश फिल्मकार ही इस कहानी को सिल्वर स्क्रीन पर लाने जा रहा है.

Bildergalerie Königshäuser
सन 1861 की इस तस्वीर में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया अपने पति प्रिंस अल्बर्ट के साथ. तस्वीर: picture alliance/akg-images/A. Miles

क्वीन विक्टोरिया और अब्दुल करीम की अनोखी मित्रता पर आधारित फिल्म का निर्माण आगरा में शूटिंग के साथ ही शुरू हो गया. अब्दुल करीम, आगरा के रहने एक सामान्य व्यक्ति थे लेकिन उनके ब्रिटेन के शाही घराने से घनिष्ठ संबंधों ने हलचल मचा दी थी. इस फिल्म का निर्माण ब्रिटिश डायरेक्टर स्टीफन फ्रेयास कर रहे हैं. फिल्म की कहानी लेखिका शर्बानी बासु की किताब 'विक्टोरिया एंड अब्दुल: द ट्रू स्टोरी ऑफ क्वीन्स क्लोजेस्ट कॉन्फिडांट' पर आधारित है.

अब्दुल करीम की कहानी भी काफी फिल्मी है. भारत में ब्रितानी शासनकाल के दौरान ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया ने 1887 में भारतीय नौकरों को एक समारोह के दौरान इंग्लैंड बुलाने का आदेश दिया. उनका मानना था कि चूंकि भारतीय नौकर हिंदुस्तानी रीतिरिवाजों से परिचित होते हैं इसलिए उनके माध्यम से वे भारतीय राज घरानों से सम्पर्क करने में सहायक होंगे. आगरा के जेल सुपरिटेन्डेन्ट जॉन टाइलर ने कुछ भारतीयों को इस मकसद के लिए चुना जिसमें 23 साल के असिस्टेंट क्लर्क अब्दुल करीम भी थे. पानी के जहाज से इन्हें 1887 में इंग्लैंड पहुंचाया गया.

धीरे धीरे करीम क्वीन के विश्वासपात्र हो गए और क्वीन को वो हिन्दुस्तानी भाषा, खान-पान के बारे में बताने और सिखाने भी लगे. एक खादिम-मालिक से बढ़कर यह रिश्ता शिक्षक-छात्र का हो गया. एक समय ऐसा भी आया जब करीम के रहने के लिये अलग व्यवस्था की गयी और वो खुद घोड़ागाडी से चलने लगे. उनका रुतबा इतना बढ़ गया की क्वीन ने उन्हें सी वी ओ का खिताब भी दिया गया, जिसे रॉयल विक्टोरियन ऑर्डर में 'कमांडर' का खिताब कहते हैं.

1850 में भारत से ब्रिटेन ले जाए गए कोहिनूर हीरे को वापस पाने की भारत की तमाम कोशिशें अब तक बेकार साबित हुई हैं. इसे ब्रिटिश राज में महारानी विक्टोरिया को पेश किया गया था. देखिए तस्वीरें. 

इस तरक्की के कारण करीम से लोग जलने लगे और इसमें दूसरे नौकरों के अलावा कई शाही घराने के लोग भी थे. करीम की बेरोकटोक आवाजाही महल के कई हिस्सों में थी. वे धीरे धीरे क्वीन के सचिव की हैसियत रखने लगे. क्वीन भी उनसे उर्दू में पत्र-व्यवहार करने लगीं. करीम को अलग घर रॉयल पैलेस ऑफ विंडसर, बालमोरल इन स्कॉटलैंड और ऑस्बॉर्न हाउस में दिया गया. उनकी घोड़ागाडी के साथ एक फुटमैन भी लगाया गया. अर्श पर पहुंचने के बाद करीम से लोगों की जलन बढ़ गयी थी. दोनों के रिश्तों पर चर्चा भी शुरू हो गई.

क्वीन विक्टोरिया के निधन के बाद किंग एडवर्ड ने उनको 1901 में वापस भारत भेज दिया गया जहां करीम का देहांत हो गया और आज भी उनकी कब्र आगरा के पंचकुइयां में हैं. करीम दोबारा कभी इंग्लैंड नहीं जा पाए. क्वीन और करीम से संबंधित बहुत से अभिलेख आज भी आगरा के अभिलेखागार में संरक्षित हैं.

इसी दास्तां पर फिल्म की शूटिंग आगरा के कटरा फुलेल मोहल्ले में हुई है. करीम का किरदार भारतीय अभिनेता अली फजल निभा रहे हैं. शूटिंग के लिए फिल्म क्रू आगरा के ताजमहल के निकट मुगलकालीन गार्डन महताब बाग भी पहुंचा था. लेकिन यहां पर शूटिंग के लिए क्वीन विक्टोरिया की बड़ी मूर्ति महताब बाग में लगाए जाने का कुछ लोग विरोध करने लगे. इनमें स्थानीय हिंदूवादी संगठनों ने प्रमुखता से हिस्सा लिया क्योंकि किसी भी मूर्ति को संरक्षित स्मारक में ले जाने और लगाने पर मनाही है.

आगरा के महताब बाग में क्वीन विक्टोरिया की मूर्ति लगाने का विरोध करते हिंदुत्ववादी संगठनकर्ता.

पुलिस के बीचबचाव से शूटिंग फिर शुरू हुई और ताजमहल के आसपास के इलाके की कई गलियों और स्मारकों में की गई. फिल्म के लाइन प्रोड्यूसर अकरम मलिक ने बताया की भारत में होने वाली फिल्म की शूटिंग का हिस्सा पूरा हो गया है. उन्होंने माना की फिल्म की शूटिंग में अड़चनें आई थीं और बजरंग दल के कार्यकर्ता विरोध दर्ज करने आ गए थे लेकिन स्थानीय प्रशासन की मदद से मामला सुलझ गया.

मलिक नहीं मानते की फिल्म में कुछ भी विवादास्पद है. उनके अनुसार इंग्लैंड के राजपरिवार की सहमति से ही फिल्म का निर्माण हो रहा है और इसकी शूटिंग भी इंग्लैंड में की गयी है. मलिक ने बताया की फिल्म अगले साल सितंबर में रिलीज होगी. फिल्म की पटकथा ली हॉल ने लिखी है और क्वीन विक्टोरिया की भूमिका में हैं ऑस्कर पुरस्कार विजेता हॉलीवुड की मशहूर अदाकारा जूडी डेंच.

 

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