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ब्रेक्जिट के बाद बेघरों का क्या होगा?

४ अप्रैल २०१९

ब्रिटेन की सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में यूरोप के विभिन्न देशों के लोग रहते हैं. ये बेघर हैं और अपने वतन लौटना नहीं चाहते. लेकिन जब ब्रिटेन ही यूरोप का हिस्सा नहीं रहेगा, तो इनका क्या होगा?

England Obdachlose in London
तस्वीर: DW/A. Frymann Rouch

ब्रिटेन के यूरोप से अलग होने के बाद देश को कई तरह के बदलावों और मुश्किलों से गुजरना होगा. चाहे आर्थिक हो या सामाजिक देश हर तरह की परेशानियों से जूझने के लिए खुद को तैयार कर रहा है. आयात निर्यात, चिकित्सा और खाने की चीजों के बढ़ते दाम पर तो खूब चर्चा हो रही है लेकिन सड़क पर रहने वाले बेघर लोगों पर इसका क्या असर होगा, इस ओर लोगों का ज्यादा ध्यान जाता नहीं दिखता.

ब्रिटेन की सड़कों पर सैकड़ों बेघर लोग रहते हैं जिनके पास वहां की नागरिकता नहीं है. अधिकतर लोग यूरोप के अलग अलग देशों से हैं और इनके पास अपनी पहचान दिखाने वाले कागजात भी नहीं हैं. ब्रेक्जिट के बाद इन लोगों को इनके देशों में वापस भेजना जरूरी हो जाएगा लेकिन कागजों की कमी के चलते यह करना भी आसान नहीं होगा.

39 साल के पिओत्र 15 साल पहले पोलैंड से इंग्लैंड आए थे. नौकरी छूटने के बाद से बेघर हुए लेकिन अपने देश वापस नहीं गए. कहते हैं कि सड़क पर रहने से खुश नहीं हैं लेकिन अब भी वापस नहीं जाना चाहते हैं, "मैं ब्रिटेन में ही रहना चाहता हूं. मुझे ये देश शानदार लगता है. सड़क पर रहने की दिक्कत इसलिए है क्योंकि मुझे काम नहीं मिल पा रहा. लेकिन मैं कानूनी रूप से यहीं पर रहना चाहता हूं."

ईयू से अलग होकर क्या मिलेगा ब्रिटेन को

देश भर में कितने विदेशी बेघर हैं, इस पर अलग अलग आंकड़े मौजूद हैं. एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल करीब ईयू के औसतन 1,000 लोग ब्रिटेन की सड़कों पर सो रहे थे. ये कुल बेघरों का बीस फीसदी है. गैर सरकारी संस्थाओं का दावा है कि असली आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है. कुछ लोग गाड़ियों में सोते हैं, दूसरों के घरों का इस्तेमाल करते हैं और आए दिन अपना ठिकाना बदलते रहते हैं. इस तरह के लोग कहीं भी रजिस्टर्ड नहीं होते.

ब्रिटेन को मार्च में ही यूरोप से अलग हो जाना था लेकिन किसी समझौते पर नहीं पहुंचने के चलते और वक्त मिल गया. अब 29 मार्च से पहले यहां आए लोगों को "सेटल्ड स्टेटस" के लिए आवेदन देना होगा ताकि वे साबित कर सकें कि वे कानूनी रूप से वहां रह रहे हैं. ऐसा ना करने पर उन्हें पेंशन, सोशल सिक्यूरिटी और स्वास्थ्य बीमा नहीं मिल सकेगा. डब्ल्यूपीआई इकॉनोमिक्स नाम की पब्लिक पॉलिसी कंसल्टंसी की रिपोर्ट के अनुसार बेघर लोगों तक इस तरह की अहम जानकारियां नहीं पहुंच पाती हैं. अकसर उनके पास इंटरनेट की भी सुविधा नहीं होती है और वे अधिकारियों से संपर्क साधने में संकोच करते हैं.

बेघर लोगों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन होप सेंटर के सीईओ रॉबिन बुरगेस का इस बारे में कहना है, "ब्रिटेन में ईयू के बेघरों की कहानी को एक राष्ट्रीय स्कैंडल के रूप में देखा जाना चाहिए." वे आगे कहते हैं, "हमारे पास ऐसी जानकारी है कि डिपोर्ट किए जाने के डर से कुछ ईयू शरणार्थियों ने अधिकारियों के पास जाना छोड़ दिया. नतीजतन उन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी और कुछ लोगों की जान भी चली गई." रॉबिन बुरगेस के इस दावे को साबित करने वाले कोई प्रमाण सार्वजनिक नहीं हैं लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में ब्रिटेन और वेल्स में रहने वाले बेघरों की मौत के मामले 25 फीसदी बढ़ गए हैं.

ब्रेक्जिट किन शर्तों पर होगा, इसका फैसला शायद 12 अप्रैल को दुनिया के सामने होगा. लेकिन फैसला कुछ भी हो पिओत्र और उन जैसे लोगों की बस एक ही ख्वाहिश है, "मैं चाहता हूं कि हर कोई ब्रिटेन में ही रह सके."

आईबी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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