ब्रिटेन की सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में यूरोप के विभिन्न देशों के लोग रहते हैं. ये बेघर हैं और अपने वतन लौटना नहीं चाहते. लेकिन जब ब्रिटेन ही यूरोप का हिस्सा नहीं रहेगा, तो इनका क्या होगा?
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ब्रिटेन के यूरोप से अलग होने के बाद देश को कई तरह के बदलावों और मुश्किलों से गुजरना होगा. चाहे आर्थिक हो या सामाजिक देश हर तरह की परेशानियों से जूझने के लिए खुद को तैयार कर रहा है. आयात निर्यात, चिकित्सा और खाने की चीजों के बढ़ते दाम पर तो खूब चर्चा हो रही है लेकिन सड़क पर रहने वाले बेघर लोगों पर इसका क्या असर होगा, इस ओर लोगों का ज्यादा ध्यान जाता नहीं दिखता.
ब्रिटेन की सड़कों पर सैकड़ों बेघर लोग रहते हैं जिनके पास वहां की नागरिकता नहीं है. अधिकतर लोग यूरोप के अलग अलग देशों से हैं और इनके पास अपनी पहचान दिखाने वाले कागजात भी नहीं हैं. ब्रेक्जिट के बाद इन लोगों को इनके देशों में वापस भेजना जरूरी हो जाएगा लेकिन कागजों की कमी के चलते यह करना भी आसान नहीं होगा.
39 साल के पिओत्र 15 साल पहले पोलैंड से इंग्लैंड आए थे. नौकरी छूटने के बाद से बेघर हुए लेकिन अपने देश वापस नहीं गए. कहते हैं कि सड़क पर रहने से खुश नहीं हैं लेकिन अब भी वापस नहीं जाना चाहते हैं, "मैं ब्रिटेन में ही रहना चाहता हूं. मुझे ये देश शानदार लगता है. सड़क पर रहने की दिक्कत इसलिए है क्योंकि मुझे काम नहीं मिल पा रहा. लेकिन मैं कानूनी रूप से यहीं पर रहना चाहता हूं."
28 मार्च को ब्रिटेन ने 'अनुच्छेद 50' पर हस्ताक्षर के साथ औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. एक नजर उन बिंदुओं पर जो बेक्जिट की वजह माने जाते हैं.
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सरकारी धन पर बोझ
ब्रिटेन की समस्या यह है कि पूर्वी यूरोप के नए सदस्य देशों के नागरिकों के लिए खुली आवाजाही का सपना तो पूरा हुआ है लेकिन पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है.
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बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी
एक डर तो सस्ते विदेशी कामगारों के आने से देश में बेरोजगारी बढ़ने का और कामगारों के वेतन पर दबाव बढ़ने का है. इसकी वजह से ब्रिटेन में यूरोप विरोधी ताकतें मजबूत हुई हैं और परंपरागत पार्टियां कमजोर हुई हैं.
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वीटो का अधिकार
वित्तीय संकट के बाद एक ओर यूरोप को और एकताबद्ध करने की मांग हो रही है तो लंदन राष्ट्रीय संसदों की भूमिका बढ़ाना चाहता है. इससे राष्ट्रीय जन प्रतिनिधियों को ब्रसेल्स के मनमाने बर्ताव के खिलाफ लाल कार्ड दिखाने का अधिकार मिलेगा.
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सामाजिक भत्तों में कटौती
ब्रिटेन नहीं चाहता कि गरीब सदस्य देशों के सस्ते कामगार ब्रिटेन में सामाजिक भत्तों का लाभ उठाएं. ब्रिटेन चाहता है कि ईयू देशों से अचानक बहुत से लोगों के आने पर उसे रोक लगाने का हक होना चाहिए. आप्रवासियों को चार साल बाद भत्ता पाने का हक मिलेगा.
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संतान भत्ता
यूरोपीय संघ में वह सरकार संतान भत्ता देती है जहां मां बाप काम करते हैं, चाहे बच्चा कहीं और रह रहा हो. ब्रिटेन पोलैंड और रोमानिया के कामगारों को बच्चों के लिए भत्ता देता है. अब यह बहस हो रही है कि क्या भत्ते को संबंधित देश के जीवन स्तर के अनुरूप होना चाहिए.
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घनिष्ठ होता संघ
यूरोपीय संघ का लक्ष्य समय के साथ घनिष्ठ होना है. लंदन को यह पसंद नहीं है. ब्रिटेन को स्वीकार फॉर्मूला समापन घोषणा में है जिसमें कहा गया है कि ईयू का लक्ष्य खुले और लोकतांत्रिक समाज में रहने वाले साझा विरासत वाले लोगों के बीच भरोसा और समझ बढ़ाना है.
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दक्षिणपंथी ताकतों का असर
प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ईयू में बने रहने के लिए तमाम शर्तें रखी हैं. जाहिर है यूरोपीय संघ से रियायतें पाकर वे इसका पूरा राजनीतिक लाभ उठाएंगे और अति दक्षिणपंथी पार्टियों को कमजोर करना चाहेंगे.
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देश भर में कितने विदेशी बेघर हैं, इस पर अलग अलग आंकड़े मौजूद हैं. एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल करीब ईयू के औसतन 1,000 लोग ब्रिटेन की सड़कों पर सो रहे थे. ये कुल बेघरों का बीस फीसदी है. गैर सरकारी संस्थाओं का दावा है कि असली आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है. कुछ लोग गाड़ियों में सोते हैं, दूसरों के घरों का इस्तेमाल करते हैं और आए दिन अपना ठिकाना बदलते रहते हैं. इस तरह के लोग कहीं भी रजिस्टर्ड नहीं होते.
ब्रिटेन को मार्च में ही यूरोप से अलग हो जाना था लेकिन किसी समझौते पर नहीं पहुंचने के चलते और वक्त मिल गया. अब 29 मार्च से पहले यहां आए लोगों को "सेटल्ड स्टेटस" के लिए आवेदन देना होगा ताकि वे साबित कर सकें कि वे कानूनी रूप से वहां रह रहे हैं. ऐसा ना करने पर उन्हें पेंशन, सोशल सिक्यूरिटी और स्वास्थ्य बीमा नहीं मिल सकेगा. डब्ल्यूपीआई इकॉनोमिक्स नाम की पब्लिक पॉलिसी कंसल्टंसी की रिपोर्ट के अनुसार बेघर लोगों तक इस तरह की अहम जानकारियां नहीं पहुंच पाती हैं. अकसर उनके पास इंटरनेट की भी सुविधा नहीं होती है और वे अधिकारियों से संपर्क साधने में संकोच करते हैं.
बेघर लोगों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन होप सेंटर के सीईओ रॉबिन बुरगेस का इस बारे में कहना है, "ब्रिटेन में ईयू के बेघरों की कहानी को एक राष्ट्रीय स्कैंडल के रूप में देखा जाना चाहिए." वे आगे कहते हैं, "हमारे पास ऐसी जानकारी है कि डिपोर्ट किए जाने के डर से कुछ ईयू शरणार्थियों ने अधिकारियों के पास जाना छोड़ दिया. नतीजतन उन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी और कुछ लोगों की जान भी चली गई." रॉबिन बुरगेस के इस दावे को साबित करने वाले कोई प्रमाण सार्वजनिक नहीं हैं लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में ब्रिटेन और वेल्स में रहने वाले बेघरों की मौत के मामले 25 फीसदी बढ़ गए हैं.
ब्रेक्जिट किन शर्तों पर होगा, इसका फैसला शायद 12 अप्रैल को दुनिया के सामने होगा. लेकिन फैसला कुछ भी हो पिओत्र और उन जैसे लोगों की बस एक ही ख्वाहिश है, "मैं चाहता हूं कि हर कोई ब्रिटेन में ही रह सके."
आईबी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
कितने करीब अमेरिका और ब्रिटेन?
ब्रिटेन और अमेरिका के खास संबंध 20वीं शताब्दी के अहम गठजोड़ों में से एक रहे हैं. लेकिन ब्रेक्जिट और अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देशों में कायम रिश्तों के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं.
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अर्थव्यवस्था
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. 20.4 ट्रिलियन डॉलर वाली अमेरिकी व्यवस्था का दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23 फीसदी की हिस्सा है. वहीं ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का स्थान दुनिया में पांचवां है. 2.9 ट्रिलियन डॉलर वाली इस अर्थव्यवस्था का वैश्विक जीडीपी में महज 3.3 फीसदी हिस्सा है.
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कारोबार
अमेरिका के लिए ब्रिटेन उसका सातवां सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. अमेरिका के टॉप 6 कारोबारी साझेदारों में चीन, कनाडा, मेक्सिको, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया शामिल हैं. वहीं ब्रिटेन के लिए अमेरिका उसका सबसे बड़ा साझेदार है. इसके बाद जर्मनी, नीदरलैंड्स, फ्रांस और चीन का नंबर आता है.
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अमेरिका, सैन्य खर्च
अमेरिका सेना पर पानी की तरह पैसा बहाता है. दुनिया के सात सबसे अधिक सैन्य खर्च करने वाले देशों के कुल खर्च के बराबर अमेरिका अकेला खर्च करता है. साल 2018 के लिए इसका रक्षा बजट 639.1 अरब डॉलर का था. रूस के बाद अमेरिका के पास ही सबसे ज्यादा हथियार हैं.
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ब्रिटेन, सैन्य खर्च
यूरोपीय संघ में ब्रिटेन रक्षा बजट पर सबसे अधिक खर्च करने वाला देश है. देश करीब 53 अरब यूरो सालाना रक्षा बजट पर खर्च करता है. फ्रांस और रूस ही यूरोप में परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं. ब्रिटेन ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैन्य गठबंधन को रक्षा क्षेत्र में नींव माना है.
तस्वीर: Imago/Pixsell/D. Marusic
ज्वाइंट ऑपरेशन
दोनों मुल्कों की सेनाओं ने यूरोप, कोरिया, कुवैत, ईराक, पूर्व यूगोस्लाविया, अफगानिस्तान, लीबिया और सीरिया में मिलकर काम किया है. अमेरिका के कई मिलिट्री बेस ब्रिटेन में बने हुए है. हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ने पश्चिमी देशों से नाटो में अधिक वित्तीय मदद देने की बात कही थी.
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खुफिया क्षेत्र
अमेरिका और ब्रिटेन के बीच खुफिया साझेदारी बहुत ही खास है. इंटेलिजेंस के मामलों में दोनों देश एक-दूसरे के बेहद करीब हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दोनों देशों ने खुफिया जानकारियां साझा करने का एक सौदा किया था. जिसमें कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भी शामिल किया गया. यह सौदा बाद में "फाइव आइज" के नाम से जाना गया.
तस्वीर: DW/S. Tanha
खुफिया खर्च
अमेरिका खुफिया बजट करीब 55 अरब डॉलर का है. इसमें मिलिट्री खुफिया तंत्र शामिल नहीं है. वहीं ब्रिटेन का इंटेलिजेंस बजट करीब तीन अरब डॉलर का है.
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वित्त
लंदन और न्यूयॉर्क दुनिया के दो बड़े वित्तीय केंद्र हैं. जहां लंदन अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग के लिए दुनिया का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा बाजार है, तो वहीं न्यूयॉर्क बॉन्ड और स्टॉक मार्केट के लिए मशहूर है.