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ब्रेक्जिट डील पर बंटी है ब्रिटिश संसद

१५ जनवरी २०१९

ब्रिटिश संसद में पांच दिनों तक ब्रेक्जिट के मसौदे पर चली बहस के बाद वोटिंग होनी है. सांसदों के विरोध और अविश्वास के कारण प्रधानमंत्री टेरीजा मे की हार लगभग तय है. कैसी होगी इसके आगे की राह.

England: Symbolbild Brexit
तस्वीर: Reuters/H. Nicholls

यूरोपीय संघ के साथ प्रधानमंत्री मे ने जो ब्रेक्जिट समझौता किया है, उसके उसी रूप में स्वीकार कर लिए जाने की संभावना बहुत कम है. चर्चा इस बात की है कि मसौदे को संसद में कितना समर्थन मिलता है. सवाल यह भी उठता है कि इसके बाद क्या होगा. क्या ब्रिटेन बिना किसी समझौते के ईयू से बाहर निकल जाएगा या फिर मार्च की अंतिम समयसीमा से पहले फिर से कोई ऐसा समझौता करने की कोशिश करेगा जो संसद को स्वीकार्य हो.

ब्रिटेन के 'सन' अखबार के पोलिटिकल एडिटर टॉम न्यूटन डन ने ट्वीट किया है, "मैंने सुना कि (प्रधानमंत्री) ने अभी अभी अपनी कैबिनेट को कहा है कि चाहे वोटिंग में कुछ भी हो, उनके पास केवल एक विकल्प है और वो है किसी भी तरह ब्रेक्जिट डील करवाना."

तस्वीर: Reuters/S. Dawson

यह भी तय माना जा रहा है कि टेरीजा मे यूरोप को छोड़ने के फैसले को वापस नहीं लेंगी. जून 2016 में ही ब्रिटेन की जनता ने एक राष्ट्रव्यापी रेफरेंडम में ब्रिटेन की ईयू सदस्यता छोड़ने का जनादेश दिया था. सदस्यता छोड़ने के आर्टिकल 50 के लागू होने के बाद ब्रिटेन के पास समझौते के साथ या बिना समझौते के ईयू छोड़ने की आखिरी तारीख 29 मार्च 2019 है.

ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में करीब 80 यूरोविरोधी सांसदों में एक जेकब रीस-मॉग ने एक ट्वीट कर कहा, "इस सड़े हुए समझौते को हराना ही होगा." वहीं एक प्रमुख यूरोसमर्थक नेता ऐना सॉबरी फिर से ब्रेक्जिट पर रेफरेंडम करवाने की पक्षधर हैं. मौजूदा समझौते को इन दोनों ही तरह के सांसदों का विरोध झेलना पड़ रहा है.

मसौदे पर हार से ना केवल ब्रेक्जिट डील बल्कि प्रधानमंत्री मे का करियर भी दांव पर लगा है. एक दिन पहले ही संसद में बहस के दौरान टेरीजा मे ने ईयू छोड़ने की आखिरी तारीख को आगे बढ़वाने की मांगों को अस्वीकार कर दिया था. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हमारे लोकतंत्र की खातिर, हमें 2016 के रेफरेंडम के नतीजे को मानना चाहिए."

यूरोजोन के वित्त मंत्रियों के प्रमुख मारियो सेंटीनो ने कहा है कि दोनों पक्ष फिर से बातचीत कर सकते हैं, ताकि ब्रिटेन को हार्ड ब्रेक्जिट के रास्ते ना जाना पड़े. यह ऐसी स्थिति होगी जब बिना किसी समझौते के ब्रिटेन को ईयू से निकलना पड़ेगा.

तस्वीर: Reuters/T. Melville

यूरोप के तमाम देशों में बीते 40 साल में व्यापार जगत ने अपनी सप्लाई चेन काफी मजबूती से बनाई है. अब अगर अचानक बिना किसी समझौते पर सहमति बनाए ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकल जाता है, तो ब्रिटिश कंपनियों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. मौजूदा समझौते की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि इसमें ब्रिटेन को ईयू की व्यापारिक संरचना से बाहर रखते हुए भी यूरोप और आयरलैंड के बीच की सीमा को खुला रखने की बात है. ऐसा तब तक रहेगा जब तक ब्रिटेन और ईयू के बीच एक नए आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो जाते, जिसमें सालों भी लग सकते हैं.

विपक्ष के नेता लेबर पार्टी के जेरेमी कॉर्बिन ने वोटिंग में हार के बाद देश में नए सिरे से चुनाव कराए जाने की मांग की है. ऐसा ना करने पर वे संसद में पीएम मे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दे चुके हैं. अगर मौजूदा मसौदे पर सहमति नहीं बनती है तो क्या प्रधानमंत्री पद छोड़ देंगी, इस सवाल पर सीधे सीधे जबाव देने की बजाए उनके प्रवक्ता ने कहा है, "वोटिंग के ठीक बाद, उसके नतीजों के हिसाब से वे तेजी से कार्रवाई करेंगी."

वोटिंग के बाद मे के पास नया समझौता पेश करने के लिए एक हफ्ते से भी कम समय होगा. अगर वे ईयू छोड़ने की समय सीमा बढ़वाना भी चाहें, तो उस तारीख को 30 जून से आगे बढ़ाने में दूसरी बड़ी अड़चन आएगी. तब नए यूरोपीय संसद का चुनाव होना है और यह साफ होना चाहिए कि ब्रिटेन उसका हिस्सा बनेगा या नहीं.      

आरपी/एमजे (डीपीए, रॉयटर्स)

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