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ब्रेक्जिट बाद के लिए कारोबारी संधि का क्या असर होगा

२५ दिसम्बर २०२०

ब्रेक्जिट के बाद कारोबारी संधि को लेकर आखिरी वक्त में समझौता हो गया है. आखिर इस समझौते को लेकर इतनी रस्साकसी क्यों बनी हुई थी और इससे ब्रिटेन पर क्या असर होगा?

UK Premier Boris Johnson
तस्वीर: Pippa Fowles/Xinhua/imago images

यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच आखिरी वक्त में हुए समझौते का मतलब है कि कारोबार करने वालों को एक जनवरी से सीमा पर नए शुल्कों और नई समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा. अगर यह नहीं हुआ होता तो महामारी के दौर में पहले से ही बेरोजगारी और आर्थिक दिक्कतों की जो मुश्किलें हैं वो और ज्यादा बढ़ जातीं.
गुरुवार शाम जब समझौते की खबर आई तो कॉर्पोरेट घरानों ,अधिकारियों और राजनेताओं के साथ ही आम उपभोक्ताओं ने और ट्रांसपोर्ट कर्मचारियों ने भी राहत की सांस ली. अन्यथा नए साल की शुरुआत से ही सामान की ढुलाई से लेकर तमाम तरह की मुश्किलों की आशंका ने लोगों को बेचैन कर रखा था.
बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर एंड्रयू बाइली ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि यूके-ईयू के बीच कारोबारी समझौता नहीं होने का ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के साथ ही कोरोना वायरस की महामारी पर भी लंबे समय के लिए और गहरा असर होगा. इस महामारी ने ब्रिटेन में पिछले तीन दशक की सबसे बड़ी मंदी पहले ही फैला रखी है.
इस समझौते पर अभी ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की संसदों की मुहर लगनी बाकी है. आइए देखें कि इस डील का क्या असर होगाा?

तस्वीर: Peter Dejong/AP Photo/picture alliance

क्या ब्रिटेन 1 जनवरी से बाहर हो जाएगा?

ब्रिटेन यूरोपीय संघ से 31 जनवरी को ही बाहर हो गया लेकिन इसके बाद वह यूरोपीय संघ के नियमों का पालन कर फिलहाल 31 दिसंबर तक नए आर्थिक रिश्ते के संक्रमण काल में है. समस्या यह थी कि इसके बाद क्या होगा?
ब्रिटेन यूरोपीय एकल बाजार से बाहर हो रहा है. ब्रिटेन के बाहर होने के बाद यह बाजार करीब 45 करोड़ लोगों का है. इस एकल बाजार के केंद्र में हैं व्यापार को बेहद सरल बनाना. यानी यूरोप के किसी देश में व्यापार पर इस बात का फर्क नहीं होता कि कंपनी कहां की है. इस एकल बाजार में यूरोप के 27 देश के साथ ही आइसलैंड और नॉर्वे भी शामिल हैं. इन सभी देशों में सामान, सेवा, पूंजी और लोगों की आवाजाही बिल्कुल मुक्त रूप से होती है.
ब्रिटेन सीमा शुल्क के संघ से भी बाहर हो रहा है. इस संघ ने सदस्य देशों के बीच सीमा शुल्क को खत्म कर दिया है और गैर सदस्य देशों के लिए एक संयुक्त सीमा शुल्क लिया जाता है. इस सीमा शुल्क संघ के लिए यूरोपीय संघ सदस्य देशों की तरफ से अंतरराष्ट्रीय कारोबार संधियां करता है और इस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसका ज्यादा असर होता है जो एक अकेले देश के लिए शायद मुमकिन नहीं होगा.

तस्वीर: Michel Spingler/AP Photo/picture alliance

ईयू-यूके का नया रिश्ता कैसा होगा?

नए समझौते की शर्तों के मुताबिक ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच सामान के कारोबार पर कोई शुल्क नहीं होगा. कार निर्माताओं के लिए यह खासतौर से राहत है. अगर डील नहीं हुई होती तो उन पर 10 फीसदी का शुल्क एक जनवरी से लग जाता. इसके साथ ही कोई कोटा भी नहीं होगा इसका मतलब है कि निर्यातक अब भी जितनी मर्जी हो गाड़ियां भेज सकते हैं.
हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि कारोबार पहले की तरह ही होगा. ब्रिटेन के एकल बाजार और सीमा शुल्क संघ से बाहर होने के बाद फर्मों को कई फॉर्म भरने पड़ेंगे और उन्हें कस्टम डिक्लैरेशन यानी सीमा शुल्क ब्यौरा देना होगा. बीते सालों में यह पहली बार होगा. इसके साथ ही सामान पर लगने वाले लेबल के लिए अलग नियम होंगे और कृषि उत्पादों की आरोग्य से जुड़ी जांच होगी.
सरकार का अनुमान है कि नए नियमों का नतीजा हर साल 21.5 करोड़ सीमा शुल्क ब्यौरे के रूप में सामने आएगा और जिस पर करीब 7 अरब पाउंड का खर्चा आएगा. हाालंकि इस डील ने बहुत सारी मुश्किलों और व्यापार की बाधाओं को पैदा होने से रोक दिया है. नए शुल्कों की वजह से ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच अलग अलग वर्ग के सामानों के व्यापार का खर्च बढ़ जाता. यही वजह है कि बहुत से लोग गुरुवार की डील को व्यापार के लिए एक बुरे दौर से कुछ बेहतर के रूप में देख रहे हैं.

तस्वीर: William Edwards/AFP/Getty Images

तात्कालिक असर

यह संभव है कि नई परिस्थितियों के मुताबिक ढलने में थोड़ा समय लगेगा. इसकी वजह से 1 जनवरी के बाद इंग्लिश चैनल के दोनों तरफ ट्रैफिक जाम होगा साथ ही बंदरगाहों पर भी कई दिनों या हफ्तों की देरी होगी. आशंका है कि खाने पीने की चीजों के दाम कुछ हफ्तों के लिए बढ़ सकते हैं. इनमें भी आयातित मांस और डेयरी के सामान पर ही असर पड़ने की ज्यादा आशंकाएं हैं.
समझौते में मछलियों को लेकर बात आखिर तक अटकी हुई थी. ब्रिटेन के पानी में यूरोपीय संघ के मछुआरों के मछली पकड़ने का कोटा यूके 80 फीसदी तक घटाना चाहता था लेकिन आखिरकार समझौते में इसे पहले की तुलना में महज एक चौथाई घटाने पर ही सहमति बनी.
यूरोपीय संघ का यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए खास कार्यक्रम है इरास्मुस. इसके तहत अलग अलग देशों के यूनिवर्सिटी छात्र एक दूसरे के देश में जा कर भाषा और दूसरी कई चीजें सीखते हैं. ब्रिटेन अब इस कार्यक्रम से बाहर हो रहा है उसका कहना है कि वह ऐसा कार्यक्रम पूरी दुनिया के साथ शुरू करेगा.
 

आर्थिक विकास पर नए रिश्ते का असर

अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि बगैर कारोबारी संधि के ब्रेक्जिट से संधि वाल ब्रेक्जिट बेहतर है. यह कोरोना वायरस की महामारी के कारण आई मंदी से उबरने में मदद करेगा. 2020 में इस महामारी की वजह से आर्थिक उत्पादन 12 फीसदी तक घटने के आसार है. यूरोपीय संघ और दूसरे कई देशों पर यह असर काफी कम है. अगर संधि नहीं होती तो इन देशों ने मुद्रा बाजार में कुछ उलटफेर देखा होता.
ब्रिटेन का करीब आधा निर्यात केवल यूरोपीय संघ को होता है. ऐसे में शुल्क का नहीं होना कई कंपनियों का फायदा करेगा. कंपनियों के अधिकारी पिछले कुछ वर्षों से ब्रेक्जिट की आशंका के कारण जिन निवेश योजनाओं को स्थगित रखे हुए हैं उन्हें वो शुरू कर सकते हैं. हालांकि यूरोपीय संघ के साथ हुई डील में सेवा क्षेत्र का पूरा ध्यान नहीं रखा गया है. ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है. यूरोपीय संघ पर ज्यादा निर्भर बैंकिंग और वित्त से जुड़े व्यापार के लिए भविष्य धुंधला हो सकता है.

तस्वीर: Andrew Matthews/AP/picture alliance

लंबे समय में क्या असर होगा?

लंबे समय की भविष्यवाणी करने वाले ज्यादातर लोग कह रहे हैं कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था आने वाले कुछ सालों में कुछ फीसदी सिकुड़ेगी जो यूरोपीय संघ में बने रहने पर शायद नहीं होता. इस साल की मंदी के संदर्भ में इसे देखा जाए तो यह बहुत ज्यादा नहीं है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि जीवन स्तर में गिरावट आएगी.
बेरेनबर्ग बैंक के अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि यूरोपीय संघ के सदस्य के तौर पर विकास की क्षमता सालाना 2.0 फीसदी है जो गुरुवार की डील के बाद 1.7 फीसदी और बगैर डील के 1.5 फीसदी होगी.

अब ब्रिटेन क्या अलग करेगा?

ब्रेक्जिट का मूल मुद्दा यह है कि इसके बाद ब्रिटेन अपने लिए अपने तरीके से नियम बनाएगा. कई महीनों तक इसी बात को लेकर माथापच्ची चलती रही कि जब यूरोपीय संघ के नियमों के उलट जा कर यूके नियम बनाएगा तब क्या होगा. यूरोपीय संघ लंबे समय से इस बात के लिए आशंकित रहा है कि संघ के सामाजिक, पर्यावरणीय और सरकारी सहायता के नियमों में कटौती कर ब्रिटेन संघ को निर्यात में छूट का अनुचित लाभ उठाएगा. ब्रिटेन का कहना है कि यूरोपीय संघ के नियमों को मानने से उसकी संप्रभुता का हनन होता है. काफी माथापच्ची के बाद बीच का यह रास्ता निकाला गया है कि यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस के जरिए विवादों को सुलझाना जरूरी नहीं होगा. यानी ब्रिटेन अब इस कोर्ट के दायरे से बाहर है. दोनों पक्षों में जब भी श्रम, नीति या रोजगार के उपायों के कारण कोई पक्ष यह समझेगा कि उसे क्षति हो रही है तो मध्यस्थता या फिर प्रतिक्रिया के उपायों के जरिए इसका समाधान किया जाएगा. अगर इन उपायों का किसी भी पक्ष ने बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया तो फिर डील के कारोबारी पहलुओं को दोबारा खोल कर उन पर चर्चा होगी.

यूरोपीय संघ से बाहर का कारोबार

31 दिसंबर तक ब्रिटेन 40 ऐसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बंधा हुआ है जो यूरोपीय संघ ने पिछले कुछ सालों में किए हैं. ब्रिटेन अब इन समझौतों को खत्म करना चाहता था जैसे कि जापान और मेक्सिको के साथ हुआ समझौता. हालांकि इनमें से कुछ अभी खत्म नहीं हुए हैं. 2021 की शुरुआत से ब्रिटेन जिसके साथ चाहे अपने लिए व्यापार संधि कर सकता है. ब्रिटेन ने अमेरिका के साथ पहले ही बातचीत शुरू कर दी है. अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस बात के संकेत दिए हैं कि जनवरी में पद संभालने के बाद कारोबारी संधियां उनकी पहली प्राथमिकता नहीं होंगी.
एनआर/ओएसजे(एपी)
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