ब्रिटेन की संसद में यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर होने से जुड़े ब्रेक्जिट मसौदे को लेकर लगातार दूसरी बार भी सहमति नहीं बन सकी है. वहीं ईयू ने भी साफ कर दिया है कि अब इस मामले में जो करना है ब्रिटेन को करना है.
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ब्रिटिश संसद में एक बार फिर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे के ब्रेक्जिट प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है. संसद का यह फैसला उस वक्त आया है जब यूरोपीय संघ से ब्रिटेन को अलग होने में महज 17 दिन बाकी हैं. अब अगर सहमति नहीं बनती है तो संभावना है कि ब्रिटेन 29 मार्च को बिना किसी समझौते के अपने 46 साल पुराने सबसे बड़े कारोबारी साझेदार से अलग हो जाएगा.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने संसद को संबोधित करते हुए कहा कि अगर ब्रिटेन को "आर्थिक झटके" से बचाना चाहते हैं तो ब्रेक्जिट को लेकर किसी समझौते पर पहुंचना ही होगा. उन्होंने वोटिंग से पहले संसद में कहा था कि अगर संसद किसी डील पर नहीं पहुंचती है तो ब्रेक्जिट को हम खो भी सकते हैं. वहीं यूरोपीय संघ का विरोध करने वाला खेमा कहता है कि डील इतनी बुरी है कि इस पर समझौता नहीं होना ही सही है.
ब्रिटेन के पूर्व विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा, "हमें ऐसा रास्ता लेना चाहिए जो अभी बेहद ही कठिन नजर आ रहा है, लेकिन अंत में यही हमारे आत्मसम्मान को बचाएगा." उन्होंने कहा कि हमें कानूनी रूप से 29 मार्च को अलग होना है और एक बार फिर ऐसा स्वतंत्र देश बनना है जो अपनी नीतियों को स्वयं तय करेगा.
ब्रिटेन का बाजा बजाने लगा है ब्रेक्जिट
2016 में यूके ने ब्रेक्जिट का फैसला किया. अब उस पर अमल होने लगा है. संबंधों की कड़ियां एक एक कर टूट रही हैं और ब्रिटेन भारी मुश्किल में फंसता जा रहा है.
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फाइनेंस सेक्टर
ब्रेक्जिट की मार ब्रिटेन के बैंकिंग और फाइनेंस सिस्टम पर पड़ी है. कई बड़े बैंक लंदन छोड़कर जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट का रुख कर रहे हैं. सैकड़ों नौकरियां खत्म हो चुकी हैं. अनुमान है कि ब्रिटेन में फाइनेंस सेक्टर से जुड़ी कुल 75,000 नौकरियां खत्म होंगी.
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नेशनल हेल्थ सर्विस
यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) में यूरोपीय संघ के देशों के 62,000 लोग काम करते हैं. ज्यादातर विदेशी कर्मचारी ब्रिटेन छोड़ने लगे हैं. ब्रिटेन के सांसदों के मुताबिक इन कर्मचारियों के बिना NHS 24 घंटे के भीतर ठप जाएगा.
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पशु चिकित्सक
ब्रिटेन में काम करने वाले 90 फीसदी पशु चिकित्सक यूरोपीय संघ के 27 देशों से आते हैं. अब ये लोग भी ब्रिटेन से वापसी की तैयारी कर रहे हैं.
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सूने खेत खलिहान
अब तक यूरोपीय संघ के अलग अलग देशों से आए कुशल कर्मचारियों ने ब्रिटेन के खेतों में कामकाज किया. 65 फीसदी कमर्चारी ईयू से आते रहे. लेकिन ब्रेक्जिट के चलते अब ये कर्मचारी भी नहीं मिलेंगे.
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महंगाई की मार
ब्रेक्जिट के लागू होते ही ब्रिटेन में यूरोप के कई प्रोडक्ट महंगे हो जाएंगे. सिंगल टैक्स मार्केट से बाहर होने पर डेयरी प्रोडक्ट, फल, सब्जियां, प्रोसेस्ड फूड और वाइन जैसी चीजें भी महंगी होंगी.
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अरबों पाउंड का नुकसान
ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को अरबों पाउंड की चपत लगनी तय है. अब ब्रिटेन नए बाजार तलाश रहा है, लेकिन भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में पहले ही यूरोपीय संघ का अच्छा खासा दबदबा है.
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इससे पहले जनवरी में संसद ने ब्रेक्जिट मसौदे को खारिज कर दिया था, जिसके बाद प्रधानमंत्री मे ने बैकस्टॉप प्लान में बदलाव का वादा किया था. लेकिन नए प्लान पर भी संसद में सहमति नहीं सकी. यूरोपीय संघ के वरिष्ठ नेताओं ने खेद जताते हुए कहा है कि वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे.
ब्रेक्जिट पर ईयू में वार्ताकार की भूमिका निभा रहे मिशेल बार्नियर का कहना है कि ईयू के पास अब पेशकश करने के लिए कुछ नहीं बचा है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, "यूरोपीय संघ ने बाहर होने के समझौते पर सहमति बनाने को लेकर सब कुछ किया. लेकिन अब यह मुद्दा सिर्फ ब्रिटेन में ही सुलझ सकता है. अब हमारी नो-डील को लेकर तैयारियां पहले से कही अधिक अहम हो गई हैं."
जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने ट्वीट कर कहा कि नो वोट की सूरत में अब बिना किसी समझौते के ब्रेक्जिट पर अमल होने की संभावनाएं बढ़ गई है. उन्होंने कहा, "संसद का यह फैसला नो-डील की स्थिति के पास पहुंच गया है. इस स्थिति में बस इतना कह सकता हूं कि जर्मनी खुद को खराब से खराब परिस्थिति के लिए भी तैयार कर रहा है."
जर्मन ईयू कमिश्नर गुंथर ओटिंगर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अब ब्रिटेन, ईयू से बाहर निकलने की तारीख को स्थगित कर सकता है. उन्होंने कहा, "फिर हम देखेंगे कि इसके लिए क्या कारण दिए गए हैं और हम उनकी अच्छी तरह जांच करेंगे." ओटिंगर ने उम्मीद जताई कि समयसीमा के आगे बढ़ने से संभव है कि ब्रिटेन और ईयू किसी निर्णय पर पहुंच पाएं.
ईयू से अलग होकर क्या मिलेगा ब्रिटेन को
28 मार्च को ब्रिटेन ने 'अनुच्छेद 50' पर हस्ताक्षर के साथ औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. एक नजर उन बिंदुओं पर जो बेक्जिट की वजह माने जाते हैं.
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सरकारी धन पर बोझ
ब्रिटेन की समस्या यह है कि पूर्वी यूरोप के नए सदस्य देशों के नागरिकों के लिए खुली आवाजाही का सपना तो पूरा हुआ है लेकिन पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है.
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बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी
एक डर तो सस्ते विदेशी कामगारों के आने से देश में बेरोजगारी बढ़ने का और कामगारों के वेतन पर दबाव बढ़ने का है. इसकी वजह से ब्रिटेन में यूरोप विरोधी ताकतें मजबूत हुई हैं और परंपरागत पार्टियां कमजोर हुई हैं.
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वीटो का अधिकार
वित्तीय संकट के बाद एक ओर यूरोप को और एकताबद्ध करने की मांग हो रही है तो लंदन राष्ट्रीय संसदों की भूमिका बढ़ाना चाहता है. इससे राष्ट्रीय जन प्रतिनिधियों को ब्रसेल्स के मनमाने बर्ताव के खिलाफ लाल कार्ड दिखाने का अधिकार मिलेगा.
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सामाजिक भत्तों में कटौती
ब्रिटेन नहीं चाहता कि गरीब सदस्य देशों के सस्ते कामगार ब्रिटेन में सामाजिक भत्तों का लाभ उठाएं. ब्रिटेन चाहता है कि ईयू देशों से अचानक बहुत से लोगों के आने पर उसे रोक लगाने का हक होना चाहिए. आप्रवासियों को चार साल बाद भत्ता पाने का हक मिलेगा.
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संतान भत्ता
यूरोपीय संघ में वह सरकार संतान भत्ता देती है जहां मां बाप काम करते हैं, चाहे बच्चा कहीं और रह रहा हो. ब्रिटेन पोलैंड और रोमानिया के कामगारों को बच्चों के लिए भत्ता देता है. अब यह बहस हो रही है कि क्या भत्ते को संबंधित देश के जीवन स्तर के अनुरूप होना चाहिए.
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घनिष्ठ होता संघ
यूरोपीय संघ का लक्ष्य समय के साथ घनिष्ठ होना है. लंदन को यह पसंद नहीं है. ब्रिटेन को स्वीकार फॉर्मूला समापन घोषणा में है जिसमें कहा गया है कि ईयू का लक्ष्य खुले और लोकतांत्रिक समाज में रहने वाले साझा विरासत वाले लोगों के बीच भरोसा और समझ बढ़ाना है.
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दक्षिणपंथी ताकतों का असर
प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ईयू में बने रहने के लिए तमाम शर्तें रखी हैं. जाहिर है यूरोपीय संघ से रियायतें पाकर वे इसका पूरा राजनीतिक लाभ उठाएंगे और अति दक्षिणपंथी पार्टियों को कमजोर करना चाहेंगे.