विश्व भर के वित्तीय बाजारों की नजर ब्रिटेन की जनता के ईयू के साथ रहने या अलग हो जाने के निर्णय पर लगी थी. देखिए नतीजे साफ होने पर कैसी रही दुनिया भर के मुख्य शेयर बाजारों की प्रतिक्रिया.
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ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने के फैसले से विश्व भर के स्टॉक बाजारों और तेल की कीमतों में तेज गिरावट देखी गई. यूके की मुद्रा पाउंड बीते तीन दशकों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई.
एशियाई सरकारों ने वित्तीय बाजारों को स्थायी रखने के लिए कई कदम उठाए हैं. टोक्यो स्टॉक्स में 2008 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट देखी गई. स्टॉक करीब 8 फीसदी गिरे. एशिया के दूसरे बाजार भी दिन के लिए बंद होने के समय तक घाटे में दिखे.
ब्रेक्जिट से सकते में आए निवेशकों ने सुबह बाजारों के खुलते ही फौरन ब्रिटिश स्टॉक्स को बेचना शुरु किया. फ्यूचर ट्रेडिंग वाले स्टॉक इंडेक्स लंदन के फुट्सी100 में करीब 8.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई. ब्रिटिश मुद्रा पाउंड जिसका कारोबार 24 घंटे होता है, 1985 से अपने सबसे निचले स्तर को छू चुका था.
बाजारों में आए इतने बड़े उथल पुथल पर निवेश विशेषज्ञ केन कोर्टिस ने बताया, "आप देख सकते हैं कि लोग किसी तरह बचना चाह रहे हैं." टोक्यो में स्टारफोर्ट इन्वेस्टमेंट होल्डिंग के अध्यक्ष कोर्टिस ने कहा कि निवेशकों ने ब्रिटेन के बाहर ना निकलने पर सट्टा लगाया था. अब जबकि नतीजे इसके उलट आए हैं तो आपको बाजार में "दूसरी दिशा में होता एडजस्टमेंट दिख रहा है." ब्रिटिश मुद्रा पाउंड अमेरिकी डॉलर के मुकाबले करीब 5.7 फीसदी और यूरो के मुकाबले 4 फीसदी कमजोर पड़ी.
अब ये करेगा ब्रेक्जिट का बवंडर
कभी कभी चुनावी वादा या जुमला बहुत महंगा पड़ जाता है. ब्रेक्जिट का मामला भी कुछ ऐसा ही है. नतीजों के बाद अब बड़े पैमाने पर उठा पटक होगी.
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कैमरन की विदाई
ब्रेक्जिट के पक्ष में आए नतीजों के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की विदाई होगी. वह अक्टूबर में इर्स्तीफा देंगे.इसे कैमरन के राजनैतिक भविष्य का अंत भी माना जा रहा है. कैमरन ने ही बीते चुनावों में जनमत संग्रह कराने का वादा किया था.
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महंगा पड़ा दांव
कैमरन को उम्मीद थी कि ब्रेक्जिट की बहस छेड़कर वह यूरोपीय संघ पर दबाव बना सकेंगे. ऐसा करने में वह काफी हद तक सफल भी हुए. लेकिन कैमरन को लगता था कि देश के हालात बेहतर कर वह ब्रेक्जिट के खिलाफ भी माहौल बना सकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
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यूके का विखंडन
उत्तरी आयरलैंड और स्कॉटलैंड के लोग जनमत संग्रह के नतीजों से बेहद दुखी हैं. दोनों प्रांत यूरोपीय संघ में बने रहना चाहते थे. ब्रेक्जिट वोट के बाद नादर्न आयरलैंड और स्कॉटलैंड यूके से अलग होने की मांग कर सकते हैं.
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भारी वित्तीय नुकसान
लंदन को अब तक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय राजधानी माना जाता था. यूरोपीय संघ की सदस्यता की वजह से दूसरे देश लंदन को वित्तीय खिड़की के तौर पर इस्तेमाल करते थे. ब्रेक्जिट खिड़की को बंद करेगा. लंदन के ज्यादातर बड़े वित्तीय संस्थान जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट आने की तैयारी कर रहे हैं.
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नौकरियां जाएंगी
लंदन से बैंकिंग सेक्टर की विदाई का मतलब होगा हजारों नौकरियों की कटौती. कई छोटी छोटी नौकरियां जाएंगी और उन जॉब्स से जुड़े बाकी इलाकों पर भी इसका असर पड़ेगा.
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आर्थिक संघर्ष
ब्रेक्जिट हो जाने के बाद यूके को यूरोपीय संघ के भीतर सरल व्यापार की सुविधा भी नहीं मिलेगी. पहले से ही जूझ रही ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को अब नए बाजार खोजने होंगे और वहां यूरोपीय संघ से संघर्ष करना होगा.
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लोगों का पलायन
यूरोपीय संघ के देशों रह रहे यूके के सैकड़ों लोग ब्रेक्जिट से निराश हैं. ब्रेक्जिट होने पर ज्यादातर लोग यूके नहीं लौटना चाहते हैं.
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ईयू में इमरजेंसी
यूरोपीय संघ के बाकी 27 देशों में अब अगले कई महीनों तक आपातकालीन बैठकें होंगी. यूरोपीय संघ भी खुद को ज्यादा मजबूत करना चाहेगा. ब्रेक्जिट का फैसला यूरोपीय संघ के भीतर एक दूसरे के प्रति ज्यादा उदारता को बढ़ाएगा. यूरोपीय संघ को भी अपनी कई कमियां दूर करनी ही होंगी, वरना अलगाव की मांग और जगह भी भड़क सकती है.
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ईयू से बाहर निकलने के ब्रिटेन के फैसले के बाद अब ब्लॉक के बाकी 27 देशों के साथ व्यापार के अलावा, रक्षा और राजनीति से संबंधित लंबी चर्चाएं होंगी और नए नियम तय किए जाएंगे.
2015 में ब्रिटेन में अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाला तीसरा सबसे बड़ा स्रोत भारत था. फिलहाल ब्रिटेन में करीब 800 भारतीय कंपनियां कार्यरत हैं. इन कंपनियों ने वहां अपने मैनुफैक्चरिंग सेंटर भी खोले हुए हैं, जिन्हें ब्रेक्जिट के बाद अपनी कंपनियों का पुनर्गठन करना पड़ेगा.
भारत की इकोनॉमिक अफेयर्स सचिव शक्तिकांत दास ने बताया है कि भारत सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आने वाले कई हफ्तों में होने वाले बदलावों के लिए तैयार हैं. उन्होंने साफ किया कि भारत को ब्रेक्जिट से कोई दीर्घकालीन नुकसान होने की आशंका नहीं है. भारतीय शेयर बाजार और मुद्रा बाजार में रूपये में रेफरेंडम के नतीजों के बाद भारी गिरावट देखी गई.
ईयू से अलग होकर क्या मिलेगा ब्रिटेन को
28 मार्च को ब्रिटेन ने 'अनुच्छेद 50' पर हस्ताक्षर के साथ औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. एक नजर उन बिंदुओं पर जो बेक्जिट की वजह माने जाते हैं.
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सरकारी धन पर बोझ
ब्रिटेन की समस्या यह है कि पूर्वी यूरोप के नए सदस्य देशों के नागरिकों के लिए खुली आवाजाही का सपना तो पूरा हुआ है लेकिन पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है.
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बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी
एक डर तो सस्ते विदेशी कामगारों के आने से देश में बेरोजगारी बढ़ने का और कामगारों के वेतन पर दबाव बढ़ने का है. इसकी वजह से ब्रिटेन में यूरोप विरोधी ताकतें मजबूत हुई हैं और परंपरागत पार्टियां कमजोर हुई हैं.
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वीटो का अधिकार
वित्तीय संकट के बाद एक ओर यूरोप को और एकताबद्ध करने की मांग हो रही है तो लंदन राष्ट्रीय संसदों की भूमिका बढ़ाना चाहता है. इससे राष्ट्रीय जन प्रतिनिधियों को ब्रसेल्स के मनमाने बर्ताव के खिलाफ लाल कार्ड दिखाने का अधिकार मिलेगा.
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सामाजिक भत्तों में कटौती
ब्रिटेन नहीं चाहता कि गरीब सदस्य देशों के सस्ते कामगार ब्रिटेन में सामाजिक भत्तों का लाभ उठाएं. ब्रिटेन चाहता है कि ईयू देशों से अचानक बहुत से लोगों के आने पर उसे रोक लगाने का हक होना चाहिए. आप्रवासियों को चार साल बाद भत्ता पाने का हक मिलेगा.
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संतान भत्ता
यूरोपीय संघ में वह सरकार संतान भत्ता देती है जहां मां बाप काम करते हैं, चाहे बच्चा कहीं और रह रहा हो. ब्रिटेन पोलैंड और रोमानिया के कामगारों को बच्चों के लिए भत्ता देता है. अब यह बहस हो रही है कि क्या भत्ते को संबंधित देश के जीवन स्तर के अनुरूप होना चाहिए.
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घनिष्ठ होता संघ
यूरोपीय संघ का लक्ष्य समय के साथ घनिष्ठ होना है. लंदन को यह पसंद नहीं है. ब्रिटेन को स्वीकार फॉर्मूला समापन घोषणा में है जिसमें कहा गया है कि ईयू का लक्ष्य खुले और लोकतांत्रिक समाज में रहने वाले साझा विरासत वाले लोगों के बीच भरोसा और समझ बढ़ाना है.
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दक्षिणपंथी ताकतों का असर
प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ईयू में बने रहने के लिए तमाम शर्तें रखी हैं. जाहिर है यूरोपीय संघ से रियायतें पाकर वे इसका पूरा राजनीतिक लाभ उठाएंगे और अति दक्षिणपंथी पार्टियों को कमजोर करना चाहेंगे.
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कच्चे तेल की कीमतों और अमेरिकी फ्यूचर्स में भी रेफरेंडम के नतीजे के बाद बड़ी गिरावट देखी गई. जापानी मुद्रा येन फायदे में रही और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले करीब 4 फीसदी चढ़ी. माना जा रहा है कि निवेशक सुरक्षित मुद्रा के रूप में जापानी करेंसी की ओर लपके. जापान के वित्त मंत्री तारो आसो ने कहा, "मुद्रा बाजार में खास तौर पर काफी उतार-चढ़ाव दिख रहे हैं, हम नजदीकी से उन पर नजर रखे हुए हैं. समय रहते ठोस कदम उठाने के लिए भी तैयार हैं."
यूरोपीय बाजारों में खासकर बैंकिंग के स्टॉक्स के गिरने के कारण काफी गिरावट दर्ज हुई. रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड, बार्कलेज और लॉयड्स जैसे बैंकिंग स्टॉक्स अपने बाजार मूल्य का करीब एक चौथाई खो चुके हैं. लंदन में ओआंडा के वरिष्ठ बाजार विश्लेषक क्रेग एर्लाम ने आगे की ओर इशारा करते हुए कहा, "सभी निगाहें अब दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों पर टिकी रहेंगी. यह देखने के लिए कि वे बाजार के इन बदलावों को लेकर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, खासकर इस पर कि बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान क्या करने वाले हैं."
पेरिस के सीएसी-40 इंडेक्स और फ्रैंकफर्ट के डैक्स इंडेक्स दोनों में एक समय 10 फीसदी तक की गिरावट दिखी. इस अवसर पर सुरक्षित निवेश की तलाश में निवेशकों ने सरकारी बॉन्डों को खरीदने में तेजी दिखाई. सोने में निवेश में भी दो सालों में सबसे अधिक तेजी देखी गई.