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परमाणु हथियारों पर वैश्विक प्रतिबंध हुआ लागू

२२ जनवरी २०२१

परमाणु अस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संधि अब लागू हो चुकी है. जानकारों को चिंता है कि ताकतवर देशों के समर्थन के अभाव में यह संधि दुनिया को परमाणु अस्त्रों से मुक्त कराने में कितना सफल हो पाएगी.

England 50ter Jahrestag der Proteste gegen Aldermaston
तस्वीर: Peter Macdiarmid/Getty Images

संयुक्त राष्ट्र की नाभिकीय अस्त्र निषेध संधि (टीपीएनडब्ल्यू) शुक्रवार 22 जनवरी से लागू हो गई. संधि का उद्देश्य परमाणु अस्त्रों के विकास, उत्पादन, परीक्षण, आधिपत्य और प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है. 2017 में दुनिया के दो-तिहाई देशों ने इस के पक्ष में मतदान किया था, लेकिन परमाणु शक्तियों के रूप में जाने जाने वाले सभी देश और उनका संरक्षण पाने वाले कई देश संधि का हिस्सा नहीं बने हैं.

संधि देशों को दूसरे देशों में अपने अस्त्र रखने पर भी प्रतिबंध लगाती है. बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और तुर्की जैसे राष्ट्रों में अमेरिका के परमाणु वॉरहेड मौजूद हैं. संधि के लागू होने का स्वागत करते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "परमाणु अस्त्रों से खतरा बढ़ रहा है और उनके संभावित इस्तेमाल से जो अनर्थकारी मानवीय और पर्यावरण-संबंधी परिणाम होंगे उन्हें रोकने के लिए इन अस्त्रों को तुरंत ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए."

कुछ ऐसे ही विचार 2017 का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने के अंतर्राष्ट्रीय अभियान (आईसीएएन) ने भी व्यक्त किए. आईसीएएन को नोबेल संधि के लिए समर्थन जुटाने और परमाणु युद्ध की क्रूरता की तरफ दुनिया का ध्यान दिलाने के लिए दिया गया था. लेकिन इस संधि से निशस्त्रीकरण तब तक नहीं होगा जब तक परमाणु शस्त्र रखने वाले देश और नाटो इसका विरोध करते रहेंगे.

2017 में संयुक्त राष्ट्र की नाभिकीय अस्त्र निषेध संधि पर हस्ताक्षर के लिए आयोजित समारोह.तस्वीर: Don Emmert/AFP

संधि का निशस्त्रीकरण पर असर

संधि को शुरू में 122 देशों ने समर्थन दिया था, लेकिन उनमें से सिर्फ 51 देशों ने उसके आधार पर राष्ट्रीय कानून पास किए हैं. इनमें से अधिकतर विकासशील देश हैं. संधि के लागू होने के थोड़ी ही देर पहले नाटो के सदस्य देश जर्मनी ने चेतावनी दी थी कि संधि में "निशस्त्रीकरण पर हो रही बातचीत को और मुश्किल बनाने के क्षमता है." जापान ने भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. अक्टूबर तक 50 देशों ने संधि को मंजूरी दे दी थी.

परमाणु-विरोधी कार्यकर्ताओं का मानना है कि बड़ी शक्तियों के विरोध के बावजूद संधि सिर्फ सांकेतिक नहीं रहेगी. उन्हें उम्मीद है कि इससे परमाणु कार्यक्रमों पर धब्बा लगेगा और यथास्थिति की मानसिकता को चुनौती मिलेगी. विश्व में परमाणु हथियारों वाले कुल मिला कर नौ देश हैं, जिनमें अमेरिका और रूस के पास इस तरह के 90 प्रतिशत हथियार हैं. बाकी देशों में चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया शामिल हैं. इनमें से अधिकतर देशों का कहना है कि उनके अस्त्रों का उद्देश्य सिर्फ बचाव है और वो इसके पहले कि परमाणु प्रसार संधि के प्रति प्रतिबद्ध हैं.

2017 में ही परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने के अंतर्राष्ट्रीय अभियान द्वारा आयोजित परमाणु अस्त्रों वाले देशों के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन.तस्वीर: Emmanuele Contini/NurPhoto/picture alliance/dpa

अमेरिका-रूस के बीच परमाणु अस्त्र संधि जारी

इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शपथ लेते ही रूस को प्रस्ताव भेजा है कि दोनों देशों के बीच चल रही परमाणु अस्त्रों की संधि 'स्टार्ट' को पांच और सालों के लिए जारी रखा जाना चाहिए. मौजूदा संधि की मियाद फरवरी 2021 में खत्म हो जाएगी. रूस पहले ही कह चुका है कि वो संधि को जारी रखने का स्वागत करेगा. संधि का उद्देश्य दोनों देशों के सामरिक परमाणु हथियारों की संख्या पर लगाम रखना है.

माना जा रहा है कि शपथ लेते ही बाइडेन द्वारा यह प्रस्ताव दिया जाना परमाणु हथियारों पर नियंत्रण लगाने के उनके इरादे का संकेत है. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा कि संधि को पांच साल ताक जारी रखना "ऐसे समय में और भी तर्कसंगत है जब रूस के साथ हमारे रिश्ते विरोधात्मक हैं."

सीके/एए (डीपीए, एएफपी, एपी)

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