कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ रहा है. बीमा कंपनियों के आंकड़े बताते हैं तनाव की वजह से वे बीमार हो रहे हैं. काम का बोझ घटाने के कई उपायों पर काम चल रहा है. उनमें एक सॉफ्टवेयर भी है जो तनाव की निगरानी करता है.
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भविष्य में शायद कर्मचारियों को उतना ही काम देना संभव होगा, जितना वे करने की स्थिति में हों. एक सॉफ्टवेयर इस बात का हिसाब रखेगा कि किस पर काम का कितना बोझ दिया जा सकता है. इसके लिए कर्मचारियों को पल्स मीटर पहनना होगा जो दिल की धड़कन पर नजर रखता है और एक कैमरा चेहरे के भावों को कैद करता रहेगा. इस सेट अप से कर्मचारियों के मूड का अंदाजा लगाया जाएगा. इसके जरिए सॉफ्टवेयर बताएगा कि कब वे काम के बोझ के कारण परेशान होने लगे हैं और वे कितना काम संभालने की हालत में हैं.
सॉफ्टवेयर की मदद से काम
टावनी कंपनी के मार्को मायर इस सॉफ्टवेयर को तैयार करने वाली टीम में हैं. वे चेडली के डाटा के विश्लेषण से जानेंगे कि उनके साथी काम के दौरान कैसा महसूस कर रहे थे और उनकी भावनात्मक स्थिति क्या थी. वे बताते हैं कि सॉफ्टवेयर ये जानकारी उपलब्ध कराता है कि क्या काम कर्मचारियों के लिए मुश्किल था या आसान. इससे यह पता किया जा सकेगा कि क्या वे काम का दबाव सहने की हालत में हैं. लेकिन कंप्यूटर यह तभी पता कर सकता है जब वह चेहरे के भावों को पढ़ पाए.
कर्मचारियों के स्ट्रेस टेस्ट में उन्हें अलग अलग टेक्स्ट टाइप करना होता है. लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि टेक्स्ट धीरे धीरे मुश्किल होता जाएगा. पहले उन्हें बच्चों की कहानी दी जाती है और फिर मुश्किल केमिकल फॉर्मूला वाला टेक्स्ट आता है. डिवाइस अपना काम करता रहता है और बताता रहता है कि दवाब का क्या असर हो रहा है. कैमरा उनके चेहरे की मांसपेशियों को कैप्चर करता है और उनकी भावनाओं के बारे में बताता है. जैसे कि मुंह के छोर की प्रतिक्रिया या फिर आंखों पर उभरने वाली लकीरें.
मार्को मायर बताते हैं कि डिवाइस चेहरों की भंगिमा को रजिस्टर कर एक ओर काम के दबाव के बारे में बताता है तो दूसरी ओर दिल की धड़कन भी मापता है. चिकित्सा विज्ञान और मनोविज्ञान के आधार पर तनाव, कर्मचारियों को दिए गए काम और उन्हें मिलने वाले आराम के बारे में निष्कर्ष निकाले जाते हैं. हो सकता है कि उनके चेहरे के भाव तटस्थ दिखें, लेकिन अंदर से वे तनाव में हो सकते हैं.
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निजता के सख्त कानून
जर्मनी में कर्मचारियों की सहमति के बिना उनकी निगरानी गैरकानूनी है. लेकिन क्या उनके पास इसे मना करने का कोई विकल्प है? मायर कहते हैं कि वह ना तो कर्मचारियों की निगरानी करना चाहते हैं, ना उनका डाटा जमा करना चाहते हैं, बल्कि इस टेस्ट के जरिए वह तो काम का ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जो हर किसी के लिए मुनासिब हो. जैसे कि जब ध्यान लगाकर काम कर रहे हों तो परेशान करने वाली कॉल फॉरवर्ड हो जाएं.
बहुत से लोग मानते हैं कि तेजी से डेवलप हो रही टेक्नोलॉजी उन्हें बहुत डिस्टर्ब भी कर रही है. कम्युनिकेशन के बहुत सारे चैनल आ गए हैं, ईमेल, मेसैंजर, सोशल मीडिया. खास तौर से काम के दौरान किसी चीज पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. इसलिए काम की लय में आ पाना मुश्किल होता जा रहा है, एकाग्रता से काम करना मुश्किल होता जा रहा है.
मार्को मायर कहते हैं, "उस स्थिति को आप बोरियत और काम के बोझ तथा तनाव के बीच एक बढ़िया संतुलन के तौर पर समझ सकते हैं. इसके बीच में ही कहीं वो जगह है जहां काम आपको चुनौती लगता है. लेकिन आप उसे कर सकते हैं. यही काम की लय है." इसी लय के दौरान हमारा शरीर खुशी वाले हार्मोन छोड़ता है. हमारा दिल अच्छी तरह धड़कता है और त्वचा भी सहज रहती है. मायर हमारी इन्हीं प्रतिक्रियाओं के जरिए कंप्यूटर को सिखाना चाहते हैं.
सन 2008 के विश्व आर्थिक संकट के दौरान बैंक और उनका काम केंद्र में था. जानिए कोविड-19 के साये में कौन से पेशे सबसे अहम बन कर उभरे हैं.
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सबसे अहम काम करने वाले
इनके लिए एक नाम है "सिस्टेमिकली इंपॉर्टेंट" - ऐसी वित्तीय कंपनियां जो व्यवस्था को चलाने के लिए जरूरी हैं. बड़े बैंक और वित्तीय संस्थाएं 2008 में सबसे महत्वपूर्ण बन कर उभरे. बैंकों से शुरु हुए वित्तीय संकट ने पूरे विश्व को प्रभावित किया. तब से बैंकों और बैंकरों को एक तरह के सुरक्षा कवच में रख लिया गया ताकि उन पर ऐसी नौबत फिर ना आए.
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हर हाल में जिम्मेदारी उठाने वाले
वित्तीय संकट की जड़ भी खुद बड़े बैंकर ही थे. लेकिन उनकी गैरजिम्मेदाराना कदमों के कारण आई मुसीबत का मुकाबला करने के काम में कैशियर, नर्स, लैब टेकनीशियन से लेकर बस ड्राइवर तक को जुटना पड़ा. अब कोविड-19 के संक्रमण काल में इन सब पेशों से जुड़े लोग "सिस्टेमिकली इंपॉर्टेंट" हो गए हैं. इन्हीं पर सारी जरूरी चीजें चलाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है जबकि ये संकट इनका पैदा किया नहीं है.
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काम अहम मगर कमाई इतनी कम
दुकान चलाने वाले या नर्स का काम करने वाले हर दिन अपने काम के दौरान संक्रमित होने का भारी खतरा उठा रहे हैं. लेकिन उन्हें काम करते जाना है क्योंकि वे काम नहीं करेंगे तो किराया भरने के पैसे तक नहीं होंगे. जर्मनी में एक नर्स का औसत सालाना वेतन करीब 38,554 यूरो होता है.
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ऐसी होनी चाहिए कंपनी कार
कौन सा हाई फाई बैंकर कोई सस्ती कार चलाता होगा. 50,000 यूरो से कम की कार में तो वे बैठते भी नहीं. वहीं पेशे से ट्रक या बस चलाने वालों को देखें तो उनकी दुनिया के अलग ही नियम हैं. वे भले ही लाखों की गाड़ी चलाते हों लेकिन उनकी औसत सालाना कमाई केवल 29,616 यूरो होती है.
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इस पेशे की सही कदर नहीं
कुछ लोगों के ना होने पर ही उनकी कीमत का अंदाजा होता है. फिलहाल जर्मनी में किंडरगार्टेन बंद हैं और उनकी टीचरों को घर बैठना पड़ रहा है. वे बच्चों को मिस करती हैं और बच्चे अपना रूटीन. अब जब माता पिता को पूरे दिन बच्चों को घर पर ही संभालना और अपनी नौकरियां भी करनी पड़ रही हैं तो उन्हें इन टीचरों के काम की सही कीमत पता चल रही है. लेकिन फिर भी इनकी औसत सैलरी 36,325 यूरो ही है.
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पैसों से ऊपर है ये काम
बीमार और कमजोर इम्यूनिटी वाले बुजुर्गों की देखभाल का काम करने वाले खुद भी कोरोना के संक्रमण के भारी खतरे में हैं. लेकिन जर्मनी में इस पेशे से जुड़े कर्मचारियों की औसत सालाना आय केवल 32,932 है. तुलना के लिए देखिए कि एक ऑटो मेकैनिक भी इससे ज्यादा कमाता है. किसी इंवेस्टमेंट बैंकर से तुलना की तो सोची भी नहीं जा सकती.
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खतरे से बाहर निकालने वाले
कोरोना वायरस का खतरा तो तभी टला माना जा सकेगा जब इसका कोई टीका बन जाएगा. फार्मा कंपनियों में काम करने वाले लोग दिन रात इसमें जुटे हैं. जिनके काम पर दुनिया भर की सांसें टिकी हैं इनकी सालाना आय मात्र 28,698 है. वहीं कोई इंवेस्टमेंट बैंकर तो लाखों यूरो सालाना के नीचे बात ही नहीं करेगा.
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एक शर्मनाक तुलना
किसी बैंक के मुकाबले एक अस्पताल की इमारत या उसमें काम करने वालों को मिलने वाली सुविधाओं की तुलना भी नहीं की जा सकती. साफ पता चलता है कि हमारे सिस्टम में ऐसे लोगों के काम का कितना मूल्य है जो वाकई दूसरों के लिए काम करते हैं. सवाल यह है कि क्या कोरोना संकट बीतने के बाद हम इन बेहद अहम पेशों में लगे लोगों की बेहतरी के बारे में सोचेंगे? (डिर्क काउफमान/आरपी)