अफगानिस्तान को इराक जैसे हालात से बचाने में अमेरिका से प्रशिक्षित विशेष बल काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं. ऐसे सैनिकों को ट्रेनिंग दी जा रही है जो भविष्य में देश की सुरक्षा और जनता में विश्वास बहाली का जिम्मा उठा सकें.
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काबुल के बाहर स्थित विशाल सैन्य बेस बंजर पहाड़ियों से घिरा है. यहां कमांडोज को ऑल राउंडर बनने की ट्रेनिंग दी जा रही है. स्पेशल फोर्स के लिए इन जवानों को सेना से चुना गया है. अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के बाद इन्हीं जवानों के पास देश की सुरक्षा का जिम्मा होगा. जवानों को अभियानों के लिए योजना बनाने से लेकर उन्हें लागू करना तक की ट्रेनिंग दी जा रही है. शहरी इलाकों में युद्ध अभ्यास, गांवों में गश्त लगाने और एम 4 राइफल चलाने के अलावा क्लासरूम में पाठ पढ़ाए जा रहे हैं.
स्थानीय कमांडो की ट्रेनिंग
रिश खोर गांव के पास "कैंप कमांडो" के बाहर एक ऋंखला में हमर गाड़ियां खड़ी हैं, इनके ऊपर लगी मशीनगन एक संकेत है कि फोर्स का मॉडल अमेरिकी रेंजरों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. 13 साल तक तालिबान से लड़ने के बाद नाटो फौजें अफगानिस्तान से रवाना होने वाली है, ऐसे में ध्यान स्थानीय सुरक्षाबलों पर दिया जा रहा है, जिनके ऊपर राष्ट्रव्यापी अस्थिरता से जूझने का जिम्मा होगा.
स्पेशल फोर्स के कमांडर जनरल सैयद अब्दुल करीम के मुताबिक, "हमारे पास बेहतर योजना है, बढ़िया उपकरण और बढ़िया हथियार हैं, इसलिए हम इस बारे में नहीं सोचते हैं नाटो हमारा पार्टनर नहीं होगा. हो सकता है कि हमें कोई परेशानी हों, लेकिन हमने पहले ही अपने सैनिकों को परख लिया है और वे बहुत उच्च मनोबल वाले हैं. हमारी भूमिका हर जगह ऑपरेशन संचालन करने की है जहां हमें विद्रोहियों का जोखिम है." लेकिन इस आत्मविश्वास के बावजूद 11,500 सदस्यीय कमांडो फोर्स को लेकर गंभीर चिंताएं हैं. खासकर हवाई समर्थन की कमी जो गंभीर रूप से उनकी गतिशीलता को सीमा में बांध देते हैं.
अमेरिकी सेना की विरासत
पूर्व सैन्य अधिकारी और विश्लेषक अतिकुल्ला अमरखिल कहते हैं, "अफगान स्पेशल फोर्स अमेरिकी स्पेशल फोर्स के अनुयायी हैं, जिनके हाथ उन्हीं की तरह खून से सने नजर आते हैं. उन्हें सर्वश्रेष्ठ लोगों के बीच से चुना जाना चाहिए था, लेकिन ऐसे कई मामलों में कबीलाई सरदारों ने अपने लड़ाकों को स्पेशल फोर्स में दाखिल करा दिया. इसलिए यह भी हो सकता है कि उनके वफादार सरकार के साथ नहीं है."
अमरखिल का यह भी कहना है कि हेलिकॉप्टरों की कमी कमांडो की तैनाती की क्षमता को कम कर देता है जब पुलिस और सेना को उनकी ज्यादा जरूरत होगी. वे कहते हैं, "उनके पास प्रभावशाली हवाई समर्थन की कमी है, जिस पर अमेरिकी सुरक्षा बल भरोसा करते हैं. साथ ही साथ निगरानी और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के मामले में भी वह कमजोर हैं."
जनरल करीम इस बात को मानते हैं कि कमांडो कैंप में हेलिकॉप्टर नहीं हैं, लेकिन जोर देकर कहते हैं कि एक हेलिकॉप्टर जल्द तैनात किया जाएगा और साथ ही कहते हैं कि हवाई मदद स्पेशल फोर्स के लिए तेजी से सुधर रही है. कमांडो के कथित बुरी छवि के बारे में वे बात करने से बचते हैं. उसके बजाय जोर देते हैं कि सभी कमांडो को नागरिकों की इज्जत करने के बारे में सिखाया गया है.
इस साल के अंत तक नाटो के सभी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी होने जा रही है. हालांकि कुछ अमेरिकी स्पेशल फोर्स वहां बने रहेंगे और अलकायदा के खिलाफ समझदारी के साथ हमले भी जारी रखेंगे. कैंप के पास रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए कमांडो की मौजूदगी सुरक्षा की गारंटी होगी.
एए/एमजे (एएफपी)
जंग और जिंदगी के बीच अफगानिस्तान
पुरस्कृत फोटोग्राफर मजीद सईदी की तस्वीरें सालों से जंग की आग में झुलसते अफगानिस्तान के हालात दिखाती हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
नशे में डूबा बचपन
अफगानिस्तान में नशा एक बड़ी समस्या है. बचपन से ही अफीम की लत लगने का खतरा रहता है. नशे के शिकार बच्चों के कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह संख्या करीब तीन लाख है.
तस्वीर: Majid Saeedi
त्रासदी के खिलौने
काबुल में दो छोटी लड़कियां कृत्रिम हाथ से खेल रही हैं. इस तस्वीर के लिए मजीद सईदी को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुझे कहना है
मजीद सईदी ने 16 साल की उम्र में फोटोग्राफी करना शुरू किया. तब से वह लोगों के जीवन के संघर्ष को अपनी तस्वीरों में दिखाते आए हैं. उनकी तस्वीरें श्पीगल, वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी नामचीन पत्रिकाओं में छप चुकी हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान बच्चे
दसियों सालों से अफगान जंग के साए में जी रहे हैं. सईदी की तस्वीरें उनकी जिंदगी से रूबरू कराती हैं, जैसे यह अफगान बच्चा जो एक धमाके में अपने हाथ खो बैठा.
तस्वीर: Majid Saeedi
दास्तां सुनाते खंडहर
अफगानिस्तान के अतीत की कहानी सिर्फ लोग ही नहीं, देश भर में इमारतों के खंडहर भी सुनाते हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
सावधान!
काबुल में हर सुबह सैनिकों की ट्रेनिंग होती है. जर्मन सेना भी अफगान सेना की ट्रेनिंग में मदद कर रही है. मकसद है कि जब 2014 के अंत में जर्मन सेना अफगानिस्तान से वापसी करे तो अफगान सेना परिस्थितियों का खुद मुकाबला कर सके.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुश्किल बचपन
अफगानिस्तान में अच्छी शिक्षा व्यवस्था की भी कमी है. कई बच्चों को परिवार को सहारा देने के लिए बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर काम में लगना पड़ता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
पढ़ाई मयस्सर नहीं
1979 के बाद से देश में शिक्षा व्यवस्था पर बेहद खराब असर पड़ा. जर्मन सरकार द्वारा 2011 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान के 72 फीसदी पुरुष और 93 फीसदी महिलाओं को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली है.
तस्वीर: Majid Saeedi
गुड़ियां बनाते हाथ
एक मलेशियाई गैर सरकारी संगठन द्वारा दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में लड़कियां गुड़ियां बनाना सीख रही हैं. मकसद हैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाना.
तस्वीर: Majid Saeedi
तालिबान का बदला
2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद तालिबान हमले में चार लोग मारे गए और 36 घायल हुए. यह तस्वीर इनमें से दो पीड़ितों की है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान खेल
अफगानिस्तान में बॉडी बिल्डिंग को पुरुष बेहद पसंद करते हैं. कसरत के बाद आराम करते दो नौजवान.
तस्वीर: Majid Saeedi
जंग की फसल
पिछले तीस सालों ने अफगान जीवन को बहुत प्रभावित किया है. यहां के खेत और खलिहान भी जंग के शिकार हुए हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मदरसे
2011 की तस्वीर. कंधार के एक मदरसे में पढ़ते बच्चे.
तस्वीर: Majid Saeedi
मारने को तैयार
अफगानिस्तान में कुत्तों की आम लड़ाई लोकप्रिय है. कुत्तों को मुकाबले में लड़ने और मारने का प्रशिक्षण दिया जाता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अलग थलग
मनोवैज्ञानिक बीमारियों से जूझ रहे लोग बाकियों से अलग कई बार आमानवीय परिस्थितियों में रखे जाते हैं. हेरात शहर के एक अस्पताल का दृश्य.
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बदकिस्मती
अकरम ने अपने दोनो हाथ खो दिए. सोने से पहले वह अपने दोनों कृत्रिम हाथ निकाल कर अलग रख देता है. उसके जैसे कई और बच्चे हैं जो ऐसी बदनसीबी को झेल रहे हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मकसद
मजीद सईदी अपनी तस्वीरों के जरिए समाज के बारे में बहुत सी जरूरी बातें कहने की कोशिश करते हैं. पिछले दिनों पेरिस में उन्हें 2014 के लूकास डोलेगा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.