पिछले बीस सालों में सूनामी विनाश का पर्याय बन गया है. दुनिया के अलग अलग इलाकों में यह तबाही मचाता रहा है. लेकिन रिसर्चर चेतावनी देते हैं कि भविष्य में इस तरह की आपदाएं बढ़ सकती हैं जिनके लिए तैयार रहना होगा.
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ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से दुनिया भर में तापमान के साथ साथ समुद्र का जलस्तर भी बढ़ रहा है. शोध दिखाते हैं कि समुद्र के जलस्तर में थोड़ी सी वृद्धि भी सूनामी जैसी आपदाओं के खतरे को बहुत बढ़ा सकती है.
2004 में हिंद महासागर, 2011 में जापान और फिर सितंबर 2018 में इंडोनेशिया में आई सूनामी में हुए विनाश में 'द इम्पॉसिबल' जैसी फिल्मों के दृश्य नजर आते हैं. यह हकीकत है जो लाखों लोगों को अपना शिकार बना चुकी है.
इंडोनेशिया की ताजा सूनामी में लगभग 1,350 लोग मारे गए जबकि इससे पहले जापान में लगभग 16 हजार और हिंद महासागर की सूनामी में सवा दो लाख लोगों की जानें गईं. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है जिससे सूनामी का असर घातक होता जा रहा है.
सूनामी के सबक
11 मार्च 2011 को समुद्र के भीतर रिक्टर स्केल पर 9 तीव्रता का भूकंप भीषण सूनामी लेकर आया. इसके क्या कुछ सबक थे देखें इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Rohan Kelly/Daily Telegraph
फुकुशिमा: एक स्थाई सबक
2011 की सूनामी तब और भयानक हो गई थी जब समुद्र से उठे तूफान और भीषण लहरों की चपेट में जापान के फुकुशिमा का परमाणु संयंत्र भी आ गया. परमाणु ऊर्जा के पक्षधर इसे बेहद सुरक्षित और पर्यावरण सम्मत बताते थे. लेकिन सूनामी से बर्बाद हो फुकुशिमा संयंत्र से पैदा हुई रेडियो सक्रियता ने इन दावों को गलत साबित कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.Kamoshida
परमाणु दुर्घटना
9 तीव्रता वाले भूकंप से उपजी सूनामी के कारण जापान के उत्तरी तटीय इलाके में मौजूद फुकुशिमा परमाणु संयंत्रों पर भी शक्तिशाली तूफान और लहरों का हमला हुआ. रिएक्टरों में टूट फूट हुई और परमाणु छड़ों के गलने से निकले विकिरणों के कारण जापान को भीषण परमाणु दुर्घटना झेलनी पड़ी.
तस्वीर: Getty Images/C. Furlong
परमाणु ऊर्जा: नो थैंक्स!
कुछ देशों ने फुकुशिमा की तबाही से सबक लिया और परमाणु ऊर्जा से परहेज की बात की. केवल जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा को पूरी तरह नकार दिया और सौर तथा पवन ऊर्जा के विकल्प की ओर ज्यादा निवेश करना शुरू किया. जर्मनी में अभी भी 8 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं. कभी 20 हुआ करते थे. अगले 6 सालों में उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/W. Moucha
आपदा या हादसा
हालांकि ये सबक सारे देशों ने नहीं लिए हैं. बहुत से देशों में फुकुशिमा को मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदा समझा गया. खुद जापान ने कुछ साल परमाणु बिजली घरों को बंद करने के बाद फिर से परमाणु संयंत्रों को चालू कर दिया है. फ्रांस और अमेरिका ने कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं. सिर्फ जर्मनी ने फुकुशिमा के सबक को लागू किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Dunand
परमाणु संयंत्र के बदले साहसिक पार्क
नीदरलैंड से लगी जर्मनी की सीमा के पास ही काल्कर के एक पुराने न्यूक्लियर पावर प्लांट को साहसिक खेलों के लिए एक रोचक पार्क में बदल दिया गया है. ये सबक सुनामी से भी पहले का है. यूक्रेन में हुए चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र हादसे की तबाही को देखते हुए पूरी तरह तैयार हो गए इस परमाणु संयंत्र को कभी भी इस्तेमाल न करने का फैसला लिया गया.
तस्वीर: Internationale Filmfestspiele Berlin
कुडनकुलम का विरोध
भारत में भी समुद्रतटीय राज्य तमिलनाडु के कुडनकुलम में भी रूस की मदद से 2000 मेगावाट का परमाणु संयंत्र लगाया गया है. इस परमाणु संयंत्र का भी स्थानीय लोगों और पर्यावरणवादियों की ओर से भारी विरोध हुआ है. विरोध कर रहे लोग फुकुशिमा की दुर्घटना और तबाही से सबक लेने की बात कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Arun Sankar K.
पीड़ितों का विरोध
भारत दिसंबर 1984 में पहले ही भोपाल गैस त्रासदी झेल चुका है. जिसमें यूनियन कार्बाइड के कारखाने से हुए गैस रिसाव के चलते करीब 3,787 लोग मारे गए थे और लाखों लोगों को भयानक रोगों से जूझना पड़ा. इसके चलते भोपाल गैस पीड़ित भी कुडनकुलम में लगाए गए परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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अमेरिका के वर्जीनिया टेक संस्थान में भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर रॉबर्ट वाइस ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारा शोध दिखाता है कि समुद्र में जलस्तर का बढ़ना सूनामी के खतरे को बढ़ा सकता है. इसका मतलब है कि आने वाले समय में छोटी सूनामी से भी उतना ही विनाश हो सकता है जितना आज बड़ी सूनामी से होता है."
वाइस उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने 'साइंस एडवांस' पत्रिका में प्रकाशित उस रिपोर्ट को लिखा है जिसमें सूनामी पर बढ़ते जलस्तर के असर की पड़ताल की गई है. स्टडी के लेखकों में शामिल सिंगापुर की अर्थ ऑब्जरवेट्री के एसोसिएट प्रोफेसर एडम स्वित्सर कहते हैं, "इंडोनेशिया के पालू में जिस तरह की सूनामी आई, अब से 50 साल के भीतर उसका परिणाम कहीं खतरनाक होगा क्योंकि दुनिया के उस हिस्से में जलस्तर बढ़ रहा है और जमीन नीचे जा रही है."
गांव के सामने खड़ा हिमखंड
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बहुत समय तक वैज्ञानिक सोचते रहे कि सूनामी और बढ़ते जलस्तर का आपस में कोई संबंध नहीं है. हालांकि इस पर उनकी बराबर नजर थी कि कैसे बढ़ता जलस्तर तूफान जैसी परिस्थितियों में तटों के करीब रहने वाले लोगों को जलमग्न कर सकता है, खास तौर से सोलोमन आईलैंड जैसे निचले इलाकों में. लेकिन ताजा अध्ययन सूनामी पर इसके असर की पुष्टि करता है.
चीन में मकाऊ के इलाके को अभी 'सूनामी से सुरक्षित' माना जाता है. लेकिन अगर जलस्तर अनुमान के मुताबिक बढ़ता रहा तो वह भी सुरक्षित नहीं रहेगा. स्वित्सर कहते हैं, "जो इलाके सूनामी से सुरक्षित हैं और जहां बाढ़ के लिए दो से तीन मीटर ऊंची लहरों की जरूरत पड़ती है, वहां आगे चलकर 1.5 से 2 मीटर ऊंची लहरें ही भारी बाढ़ ला सकती हैं."
भूकंप: सात सबसे खतरनाक जगहें
नेपाल में भूकंप के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय में इस तरह के और भी झटके महसूस किए जा सकते हैं. नेपाल दुनिया की उन जगहों में से एक है जहां भूकंप और उसके कारण तबाही का खतरा सबसे ज्यादा है.
तस्वीर: Reuters/N. Chitrakar
धरती के नीचे हरकत
धरती की ऊपरी सतह सात टेक्टॉनिक प्लेटों से मिल कर बनी है. जहां भी ये प्लेटें एक दूसरे से टकराती हैं वहां भूकंप का खतरा पैदा हो जाता है. नेपाल में यूरेशियन प्लेट और इंडियन प्लेट एक दूसरे पर दबाव डालती हैं. शनिवार को इसी के जमीन खिसकी और भूकंप आया. एक नजर दुनिया की सात सबसे खतरनाक जगहों पर.
नेपाल, भक्तपुर
इसे काठमांडू घाटी का सबसे अहम शहर माना जाता रहा है. क्षेत्रफल के हिसाब से भी यह घाटी का सबसे बड़ा शहर रहा है और मुख्य सांस्कृतिक केंद्र भी. किसी जमाने में यही नेपाल की राजधानी हुआ करती थी. भूकंप से पहले की तस्वीर.
तस्वीर: picture alliance/landov
नेपाल, भक्तपुर
हाल ही में आए भूकंप से यहां सबसे ज्यादा तबाही मची है. 10,000 लोगों के मारे जाने की आशंका है. अगला भूकंप कब आएगा, कहना मुश्किल है. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
जापान, फुकुशिमा
नेपाल से कुछ 5,000 किलोमीटर दूर स्थित जापान 2011 में इसी तरह के अनुभव से गुजर चुका है. देश की अब तक की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा में 18,000 से ज्यादा लोगों की जान गयी. फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को भी बंद करना पड़ा. हाल के समय की तस्वीर.
तस्वीर: AFP/Getty Images/JIJI Press
जापान, फुकुशिमा
भूकंप से बचाव की नीति में जापान दुनिया में सबसे आगे है. वहां भूकंप को ध्यान में रख कर घर बनाए जाते हैं. लेकिन भूकंप से उठी सूनामी लहरों ने भारी तबाही मचाई. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हिन्द महासागर, अंडमान
भारतीय द्वीप अंडमान ठीक उस जगह पर स्थित है जहां इंडोऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेटें आपस में टकराती हैं. ऐसे में भूकंप और उससे उठने वाले सूनामी का खतरा बना रहता है. हाल के समय की तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हिन्द महासागर, अंडमान
भारत समेत बांग्लादेश, म्यांमार, थाइलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया के तटवर्ती इलाकों में यह खतरा मंडराता रहता है. 26 दिसंबर 2004 को सुमात्रा के भूकंप से उठे सूनामी ने 2,30,000 लोगों की जान ली. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: AFP/Getty Images/Choo Youn Kong
चीन, युन्नान
दक्षिण पश्चिमी चीन में स्थित युन्नान प्रांत अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जितना जाना जाता है उतना ही भूकंप के लिए भी. यह प्रांत इंडोऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेटों की उत्तरी सीमा पर स्थित है. भूकंप से पहले की तस्वीर.
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press
चीन, युन्नान
2014 में यहां आए भूकंप से एक लाख लोग बेघर हो गए. इससे पहले 2008 में सिचुआन प्रांत में भूकंप के कारण 70,000 लोगों की जान गयी. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters
इटली, लाक्वीला
2009 में इटली में आए भूकंप में 300 लोगों की जान गयी और 10,000 से ज्यादा बेघर हुए. भूकंप के बाद सरकार ने सात भूवैज्ञानिकों को गिरफ्तार करने के आदेश दिए क्योंकि उन्होंने वक्त रहते भूकंप की चेतावनी जारी नहीं की. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: picture alliance/INFOPHOTO
इटली, लाक्वीला
गिरफ्तारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इटली की कड़ी आलोचना हुई. वैज्ञानिक जगत इस बात पर सहमत है कि भूकंप का सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. भूकंप से पहले की तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Barone
अमेरिका, सैन फ्रैंसिस्को
1906 में कैलिफोर्निया राज्य के इस शहर में जो भूकंप आया उसे अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़ा भूकंप माना जाता है. 3,000 लोग मारे गए और पूरा शहर तबाह हो गया. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
अमेरिका, सैन फ्रैंसिस्को
इस जगह नॉर्थ अमेरिकन प्लेट पैसिफिक प्लेट के नीचे खिसक रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस हलचल के कारण आने वाले समय में बहुत भयानक भूकंप का सामना करना पड़ सकता है. हाल के समय की तस्वीर.
तस्वीर: DW
चिली, वाल्दीविया
9.5 की तीव्रता के साथ 1960 में अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप चिली के तट पर अनुभव किया गया. इसमें 1,700 लोग मारे गए और लाखों बेघर हुए. भूकंप के बाद की तस्वीर.
तस्वीर: AP
चिली, वाल्दीविया
वैज्ञानिकों का कहना है कि चिली की धरती काफी समय से स्थिर है. एक तरफ तो यह स्थानीय लोगों के लिए अच्छी खबर है पर दूसरी ओर वैज्ञानिक इसे इस बात का संकेत भी मानते हैं कि जब भी कभी यहां प्लेटें हिलेंगी तब बेहद तबाही मचेगी. हाल के समय की तस्वीर.