जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा तक का बदलाव इस सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में शामिल है. वैज्ञानिकों ने तकनीक तैयार कर ली है. अब जगह जगह सौर और पवन ऊर्जा के इस्तेमाल से बिजली बनाई जा रही है.
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जापान में परमाणु दुर्घटना के बाद से यूरोप में अक्षय ऊर्जा का काफी जोर दिया जा रहा है. जर्मनी ने तो परमाणु बिजली घरों को जल्द से जल्द बंद करने का फैसला भी ले लिया है और अक्षय ऊर्जा को तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है. 2015 में जर्मनी में बिजली उत्पादन में अक्षत ऊर्जा का हिस्सा 30 प्रतिशत था. भारत की 2022 तक 100,000 मेगावाट सौर बिजली बनाने की योजना है. यूरोप में हाल के सालों में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में प्रोत्साहित करने वाली प्रगति हुई है. जर्मनी की ड्रेसडेन शहर की एक कंपनी अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में एक नया कदम उठाने जा रही है. अगर यह सफल रहा, तो इसका काफी बड़ा फायदा हो सकेगा.
कंपनी के अधिकारियों का मानना है कि जैसे गूगल ने सॉफ्टवेयर की दुनिया को बदला है वैसे ही उनकी कंपनी ऊर्जा के क्षेत्र को बदल सकती है. इनका सपना कुछ ऐसा है कि एक सोलर शीट की मदद से दीवारें, खिड़की, दरवाजे, दरअसल घर में मौजूद हर सतह बिजली पैदा कर सकती है. फ्रांस के थीबो ले सेगुईलौं ड्रेसडेन में हेलियाटेक नाम की कंपनी चला रहे हैं, जिसे वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में टेक पायनियर का खिताब दिया है. उनकी सोलर शीट्स भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती हैं. उन्हें बस अब व्यापक पैमाने पर निवेश की जरूरत है.
ये शीट्स दरअसल ऑर्गेनिक सोलर सेल से बनी हैं. इनमें वही सामान्य चीजें हैं, कार्बन, हाइड्रोजन. सिलिकॉन से बनने वाले फोटो वोल्टाइक सेलों के विपरीत इन्हें आसानी से दीवार पर लगाया जा सकता है. शरणार्थियों के लिए बनाए गए शिविरों में भी इन्होंने अपनी सोलर शीटें लगाई है. भविष्य के स्मार्ट शहरों के लिए यह एक मिसाल बन सकती है. हेलियाटेक कंपनी के तकनीकी प्रमुख मार्टिन फाइफर कहते हैं, "हम यहां दुनिया भर में मौजूद लाखों वर्ग मीटर में फैली सतह की बात कर रहे हैं, जिसे ऊर्जा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दशकों लग सकते हैं."
कारखानों के अत्यंत साफ कमरों में सिंथेटिक फिल्म पर ऑर्गेनिक तत्व चढ़ाए जा रहे हैं. ये सूरज की रोशनी को ऊर्जा में बदलने का काम करते हैं. ये सेल अभी भी उतनी अच्छी तरह काम नहीं कर पाते हैं, जितना कि सिलिकॉन वाले सेल लेकिन वक्त के साथ इन्हें बेहतर बनाया जा रहा है. कंपनी अब निवेश करने में लगी है. शीट की चौड़ाई को तीस सेंटीमीटर तक बढ़ाना होगा. इसके लिए नई मशीनों की जरूरत है. करीब डेढ़ करोड़ यूरो का निवेश जरूरी है.
रेगिस्तान से फूटा ऊर्जा का झरना
मोरक्को के रेगिस्तान में बनने वाले दुनिया के सबसे बड़े केंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र का पहला चरण शुरु हो गया. अब तक अपनी जरूरत की लगभग सारी ऊर्जा बाहर से आयात करने वाला देश मोरक्को भविष्य में आत्मनिर्भर हो जाएगा.
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घर घर में बिजली
इस सोलर प्लांट को साल 2018 तक पूरा करने की योजना है. इसे बनाने वाले विश्व बैंक और मोरक्को सोलर एनर्जी एजेंसी (मासेन) का मानना है कि यह प्रोजेक्ट मोरक्को के 11 लाख घरों के लिए पर्याप्त ऊर्जा पैदा कर सकेगा.
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विशाल सहारा मरूस्थल
इस अफ्रीकी देश के रेगिस्तान में स्थापित सोलर संयत्र से मिलने वाली सोलर ऊर्जा से शुरुआत में करीब 6,50,000 स्थानीय लोगों की जरूरत पूरी की जा सकेगी. यह भोर से लेकर शाम को सूरज ढलने के तीन घंटे बाद तक इतने लोगों के काम की ऊर्जा दे सकता है.
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राजधानी जितना बड़ा
इसके सौर पैनल लगभग उतने क्षेत्र में फैले हैं जितनी बड़ी मोरक्को की राजधानी राबात है. नूर-1 नामके इस प्रोजेक्ट के पहले सेक्शन से 160 मेगावॉट की ऊर्जा पैदा हो रही है और इसकी अधिकतम क्षमता 580 मेगावॉट तक जाएगी. इससे मोरक्को अपने भारी कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी लाएगा.
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ग्रीन डेजर्ट
केंद्रित सौर संयत्र सामान्य फोटोवोल्टेइक सोलर से इस मायने में अलग होता है कि इसमें शीशों के खास विन्यास से सूरज की ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा पैनलों पर डाली जाती है. इस गर्मी से पैनल का एक द्रव्य गर्म होता है और फिर भाप पैदा होती है. इस भाप से जनरेटर चलता है और बिजली मिलती है.
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सीएसपी का होगा बोलबाला
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने बताया है कि 2050 तक दुनिया की कुल बिजली का करीब 11 फीसदी ऐसे ही केंद्रित सौर ऊर्जा पैनलों यानि सीएसपी से आएगा. इस रास्ते पर आगे बढ़कर अफ्रीका और मध्यपूर्व आने वाले समय के सबसे बड़े पावरहाउस बन सकते हैं.
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नवंबर में यूएन सम्मेलन
उत्तर अफ्रीका का देश मोरक्को 2010 तक ही अपनी जरूरत की 42 प्रतिशत ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से हासिल करना चाहती है. इसका एक तिहाई हिस्सा सोलर, विंड और हाइड्रोपावर स्रोतों से होगा. इसी साल नवंबर में अगली संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन बैठक मोरक्को में होने वाली है.
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बहुत दूरगामी असर
कुल 3.9 अरब डॉलर के निवेश से बने उआरजाजाटे सोलर कॉम्प्लेक्स में जर्मन निवेश बैंक के एक अरब डॉलर भी लगे हैं. यूरोपीय निवेश बैंक ने इसमें करीब 60 करोड़ डॉलर और विश्व बैंक ने 40 करोड़ डॉलर का निवेश किया है. भविष्य में यहां पैदा हुई ऊर्जा को यूरोप भेजने की भी योजना है.
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लेकिन निवेश के लिए धन जुटाना इतना आसान नहीं है. मार्टिन फाइफर कहते हैं, "यूरोप में लोगों में अभी भी बहुत संकोच है. वे किसी नई तकनीक में इतना सारा पैसा निवेश नहीं कर पाते. हम दुनिया भर में निवेशक खोज रहे हैं. एशिया में चीन है, जापान, कोरिया. वहीं दूसरी ओर अमेरिका है, जहां लोगों को बड़े कदम और बड़ा जोखिम उठाने की आदत है." निवेशकों को यह समझाना भी जरूरी था कि यह तकनीक ना केवल इमारतों पर, बल्कि गाड़ियों पर और यहां तक कि कपड़ों में भी इस्तेमाल की जा सकती है.
जल्द ही सोलर शीटों का व्यापक स्तर पर निर्माण शुरू हो जाएगा, जिन्हें दीवारों, खिड़कियों और गाड़ियों पर लगाया जा सकेगा. कंपनी को खुद पर भरोसा है और क्या पता भविष्य में वाकई दीवारें, खिड़की, दरवाजे, सब बिजली बनाने लगें.
ऊर्जा बचाने वाले घर
यूरोप और अमेरिका में बने घरों में ठंड से बचने के लिए हीटिंग सिस्टम लगाया जाता है. सामान्य तौर पर ये प्राकृतिक गैस या दूसरे पारंपरिक ईंधन से चलता है. अब ऐसे घर डिजाइन किए जा रहे हैं जो ऊर्जा बचा सकें.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घर की बिजली
ये मॉडल हाउस बर्लिन में है. आयडिया है कि इसमें घर की जरूरत से ज्यादा बिजली बने ताकि अतिरिक्त बिजली से ई-कार या फिर ई-साइकल चार्ज की जा सके. हालांकि पहली बार थोड़ी मुश्किल भी हुई.
तस्वीर: BMVBS/Schwarz
फ्राइबुर्ग की सौर कॉलोनी
घरों को बहुत अच्छे से इंसुलेट किया गया है, इसमें बड़े बड़े कांच लगाए गए हैं जिससे सूरज की रोशनी अंदर आए. इस्तेमाल की गई हवा ताजी हवा को गर्म करती है और छत पर पैनल बिजली बनाते हैं. साल 2000 में यह कॉलोनी बनाई गई थी.
तस्वीर: Rolf Disch Solararchitektur
आरामदेह और किफायती
कमरे रोशनी से भरपूर हैं और हवा की गुणवत्ता अच्छी है. साथ ही तापमान भी स्थिर रहता है. इस तरह का घर बनाना सामान्य से महंगा है लेकिन इसके बाद ऊर्जा की बचत के कारण खर्चा कम होता है.
तस्वीर: Rolf Disch Solararchitektur
रिमेक भी अच्छा
1968 से बनी हुई फ्राइबुर्ग की इस बहुमंजिला इमारत की 2011 में मरम्मत की गयी. पहली बार किसी बिल्डिंग को इस तरह से इंसुलेट किया गया कि इसके 140 अपार्टमेंट की ऊर्जा खपत 80 फीसदी कम हो गई.
आल्पेन नाम की होटल चेन ने अपनी इमारतों को ऊर्जा बचाने वाली पैसिव हाउस स्टाइल में बदलना शुरू कर दिया है. अच्छे इंसुलेशन के कारण ठंड में भी हीटिंग के बिना ही काम चल जाता है और सौर पैनलों से बिजली की अधिकतर जरूरत पूरी हो जाती है.
तस्वीर: 2014 Oberstdorf Event
ठंड में भी
पैसिव हाउस पुरानों घरों की तुलना में दस फीसदी कम ऊर्जा लेते हैं. और अगर नए घरों की तुलना की जाए तो पांच फीसदी. तस्वीर में दिख रहे फिनलैंड के ये घर बहुत अच्छे से इंसुलेट किए गए हैं, हर खिड़की में चार कांच हैं.
तस्वीर: Kimmo Lylykangas Architects
किराएदारों के लिए अच्छा
शून्य ऊर्जा खपत वाले ये घर, फिलाडेल्फिया के पहले पैसिव हाउस हैं. कम आय वाले लोगों के लिए बनाए गए ये घर गरीब लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं क्योंकि इनमें ऊर्जा की खपत नहीं के बराबर है.
तस्वीर: Sam Oberter Photography
ऑस्ट्रिया से शुरुआत
दुनिया भर में पहले पैसिव ऑफिस विएना में बने थे. अब ऑस्ट्रिया और जर्मनी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और ज्यादा इकोफ्रेंडली और बिजली बचाने वाले भी हो गए हैं. दुनिया भर में करीब 50,000 पैसिव हाउस हैं. इसमें आधे ऑस्ट्रिया और जर्मनी में हैं.
बिजली बचाने वाले इन घरों को दुनिया भर में पसंद किया जा रहा है. फ्रैंकफर्ट के पुराने घरों में सुधार करने की योजना है. इतना ही नहीं शहर का प्रशासन स्कूल, किंडरगार्टन, ऑफिस मिला कर करीब 80,000 घरों को पैसिव हाउस में ढालना चाहता है. .
तस्वीर: DW/G. Rueter
चीन भी
जर्मन और चीनी पैसिव हाउस. ये एक कारखाने का मॉडल है जो चीन के हार्बिन में पैसिव हाउस स्टैंडर्ड के हिसाब से बनाया जा रहा है. चीनी कंपनी सायास इन मकानों के लिए खिड़कियां बनाना शुरू कर चुकी हैं और इस तरह के मकान बनाने वाली पहली चीनी कंपनी है.
तस्वीर: Benjamin Wünsch
यूरोप का मॉडल
पहला शून्य ऊर्जा वाला सरकारी ऑफिस बर्लिन में 2013 में शुरू हुआ. छत पर लगे सोलर पैनल पूरे ऑफिस के लिए बिजली बनाते हैं. यूरोपीय संघ में 2019 से सभी घर 'करीब करीब जीरो एनर्जी बिल्डिंग' होंगे.