1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारतीय एयरलाइन यूरोप से झगड़े को तैयार

२१ मार्च २०१२

भारत सरकार अपनी एयरलाइन कंपनियों को यूरोपीय संघ को कार्बन चार्ज न देने के लिए कहेगी. यूरोप में आने जाने वाले विमानों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की कीमत चुकाने पर दुनिया भर में छिड़ी बहस तेज हो गई है.

यूरोप में एयरलाइनों को देना होगा कार्बन टैक्सतस्वीर: REUTERS

भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बहुत जल्द भारतीय एयरलाइन कंपनियों से यह कहा जाएगा कि वो यूरोपीय संघ से कार्बन क्रेडिट न खरीदें. चीन फरवरी में ही कह चुका है कि वह अपनी कंपनियों को यूरोपीय संघ की एमिशन ट्रेडिंग स्कीम में तब तक शामिल नहीं होने देगा जब तक सरकार इसकी मंजूरी नहीं दे देती. चीन ने तो एक कदम और आगे जा कर विमान बनाने वाली यूरोपीय कंपनी एयरबस से 14 अरब डॉलर का विमान खरीदने का सौदा भी रद्द कर दिया है.

भारत ने फिलहाल एयरबस से विमान सौदा रद्द करने की बात तो नहीं की है लेकिन अगर विवाद बढ़ा तो यह कदम भी उठाया जा सकता है. अगर भारतीय विमानों को यूरोप आने जाने से रोका गया तो भारत भी इसी तरह के कदम उठाएगा. इसके साथ ही भारत की वायुसीमा से गुजरने वाले विमानों से भारी कीमत भी वसूली जाएगी. इस अधिकारी ने बताया,"अगर यूरोपीय संघ ने अपनी मांग वापस नहीं ली तो हमारे पास बहुत सारे उपाय हैं. हमारे पास अर्थव्यवस्था की ताकत है और उनके जैसी बुरी हालत हमारी नहीं." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यूरोप का यह कदम उनकी अपनी अर्थव्यवस्था और एयरलाइन कंपनियों का नुकसान करेगा.

यूरोपीय संघ का कहना है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने के लिए बहुत कुछ नहीं किया जा रहा है. इसलिए वह यह कदम उठा रहा है. यूरोपीय संघ यूरोप में आने जाने वाली सभी एयरलाइन कंपनियों से एक टैक्स मांग रहा है. कंपनियों पर एक जनवरी से यह चार्ज लगाया जा रहा है लेकिन इसका बिल उन्हें अगले साल अप्रैल से पहले नहीं मिलेगा. उस वक्त तक यूरोपीय संघ कार्बन उत्सर्जन की मात्रा का हिसाब लगाता रहेगा. चीन, रूस और अमेरिका ने अपनी तरफ से पहले ही इस बारे में चेतावनी जारी कर दी है. अमेरिका ने पिछले साल ही कह दिया कि अगर यूरोपीय संघ अपने फैसले पर विचार नहीं करता तो वो उचित कदम उठाएगा. संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संस्थान समस्या का हल निकालने की कोशिश में जुटा हुआ है. हालांकि साल खत्म होने से पहले उसकी कोशिश का कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं दिख रही है.

तस्वीर: AP

यूरोपीय संघ की इस योजना में लगने वाली टैक्स की रकम कोई बहुत ज्यादा नहीं है. फ्रैंकफर्ट से बीजिंग जाने वाली उड़ान के लिए प्रति यात्री दो यूरो का खर्च बढ़ेगा. ऐसे में कुछ लोग इसे एक अच्छा कदम भी मान रहे हैं. परिवहन और पर्यावरण के लिए गैरसरकारी अभियान चलाने वाली संस्था टी एंड ई के निदेशक जोस डिंग्स कहते हैं, "इटीएस में एयरलाइन कंपनियों के शामिल करने की वजह से आईसीएओ को इस वैश्विक योजना के लिए साल के अंत तक की समय सीमा तय करने पर मजबूर होना पड़ा है. क्योटो प्रोटोकॉल में विमान सेवा के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की जिम्मेदारी आईसीएओ पर डालने के 15 साल बाद लोगों को इसका महत्व समझ में आया है." हालांकि जाहिर है कि इसका असर सीधा मुसाफिरों की जेब पर पड़ेगा.

पर्यावरण में पदलाव पर काम कर रहे अंतरसरकारी पैनल ने हिसाब लगाया है कि 1999 में कुल ग्रीनहाउस गैसों का दो फीसदी विमानों से आता है. 1960 के बाद से यह हर साल नौ फीसदी की दर से बढ़ रहा है. यूरोपीय संघ का कहना है कि अगर आईसीएओ कोई बढ़िया विकल्प दे तो वो अपने कानून में बदलाव कर सकता है. इंटरनेशनल एयर ट्रैवल एसोसिएशन, आईएटीए के प्रमुख टोनी टाइलर का कहना है कि उद्योग कारोबारी जंग नहीं चाहता लेकिन यूरोप को मजबूत आधार देना होगा.

चीन, अमेरिका और भारत समेत दूसरे देशों का कहना है कि यूरोपीय संघ सभी विमानों की पूरी उड़ान के दौरान टैक्स लगा कर अपने न्यायिक अधिकार का दुरुपयोग कर रहा है. ज्यादा से ज्यादा उसे सिर्फ यूरोपीय वायु सीमा के बारे में सोचना चाहिए. हालांकि यूरोप की सर्वोच्च अदालत ने दिसंबर में यह फैसला दिया कि उसका कानून अंतरराष्ट्रीय करारों को नहीं तोड़ रहा है.

जानकारों का कहना है कि भारत फिलहाल नागरिक और रक्षा विमानों के परिवहन में भारी इजाफे के दौर में है. इसका एक बड़ा हिस्सा यूरोपीय कंपनियों से आना है. ऐसे में यूरोपीय संघ और दुनिया के बाकी देशों में तकरार बढ़ी तो मुमकिन है कि भारत विमानों की खरीद के बड़े सौदे का इस्तेमाल बातचीत में मोलभाव के लिए करे. भारत के व्यवसायिक विमानों में एयर बस की हिस्सेदारी करीब 73 फीसदी है. भारत की इंडिगो, गो-एयर और किंगफिशर ने 250 से ज्यादा विमानों के लिए ऑर्डर दे रखे है और आने वाले वक्त में मांग और बढ़ने वाली है.

भारत ने इस महीने अनजाने में गर्मी के मौसम की यूरोपीय समय सारणी को मंजूरी देने में एक दिन की देरी कर दी इससे कई यूरोपीय एयरलाइनों की पूरी समय सारणी गड़बड़ हो गई. अधिकारियों का कहना है कि इस एक घटना से समझ लेना चाहिए कि अगर विवाद बढ़ा तो भारत कितना नुकसान पहुंचा सकता है. एक अधिकारी ने कहा, "अगर ऐसा ही चलता रहा तो यूरोपीय विमानों को भारत के ऊपर उड़ान भरने से रोका जा सकता है और तब उन्हें हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी के ऊपर से जाना होगा. जो उनके लिए फायदेमंद नहीं होगा."

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः ए जमाल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें