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भारतीय कांसुलेट पर हमला

२३ मई २०१४

अफगानिस्तान के हेरात शहर में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हथियारबंद हमलावरों ने धावा बोल दिया. हालांकि इसमें दूतावास के किसी सदस्य को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.

तस्वीर: Reuters

भारत बार बार कहता रहा है कि अफगानिस्तान में उसके ठिकानों को खतरा है. प्रांतीय पुलिस प्रमुख अब्दुल सामी कतरा का कहना है कि कम से कम तीन बंदूकधारियों ने वाणिज्य दूतावास पर हमला बोल दिया. कतरा का कहना है कि बाद में दो हमलावरों को ढेर कर दिया गया.

पुलिस प्रवक्ता रऊफ अहमदी का कहना है कि उन्हें शक है कि हमले में चौथा हमलावर भी शामिल हो सकता है क्योंकि गोलियां अलग अलग दिशाओं से चल रही थीं. पुलिस अधिकारियों ने इलाके को घेर लिया है और जवानों को संभल कर गोलियां चलाने की हिदायत दी गई है क्योंकि यह एक रिहाइशी इलाका है.

अभी तक किसी गुट ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है. विदेशी सेना के देश छोड़ने की तारीख पास आने के साथ ही अफगानिस्तान में चरमपंथी हमले बढ़ते जा रहे हैं. इस बीच देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव भी हो रहे हैं. उधर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने बताया कि जब तक अफगान सेना वहां नहीं पहुंची, तब तक भारतीय तिब्बती सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों ने मोर्चा संभाल रखा. अकबरुद्दीन के मुताबिक कांसुलेट में सभी भारतीय सुरक्षित हैं, "अफगानिस्तान में रह रहे हमारे वाणिज्य दूत और दूसरे राजनयिक खतरे में हैं."

हेरात अफगानिस्तान और ईरान की सीमा के पास है और आम तौर पर इसे सुरक्षित समझा जाता है. यहां ईरान का काफी प्रभाव है. इससे पहले सितंबर, 2013 में तालिबान के बंदूकधारियों ने यहां अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया था, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी. अफगानिस्तान में विदेशी दूतावास और वाणिज्य दूतावास पर आए दिन हमले होते हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर की चारदीवारी ऊंची है और उनके कई गेट हैं, जहां हथियारबंद सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं.

भारत ने अफगानिस्तान में दो अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश किया है. इससे पहले जलालाबाद में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला हुआ था, जिसमें नौ लोग मारे गए थे. काबुल में 2008 और 2009 में भारतीय दूतावास पर दो हमले हो चुके हैं, जिनमें 75 लोगों की मौत हो गई है.

आरोप लगते रहे हैं कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई तालिबान के साथ मिल कर अफगानिस्तान में भारतीय ठिकानों को निशाना बनाती है. हाल के दिनों में लश्कर ए तैयबा भी अफगानिस्तान में सक्रिय हो गया है.

मुंबई के थिंक टैंक इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशन के समीर पाटिल का कहना है कि हो सकता है कि इस हमले की पृष्ठभूमि भी पाकिस्तान में बनी हो, "हो सकता है कि इस हमले के साथ पाकिस्तान में भारत विरोधी तत्व नई सरकार को परखना चाहते हों, जो नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बनने वाली है. वे देखना चाहते हों कि आतंकवाद के मुद्दे से नई सरकार कैसे निपटती है."

एजेए/ओएसजे (एपी)

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