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भारतीय चुनावः एनआरआई को क्यों लुभाने में लगी है बीजेपी?

सृष्टि पाल
१२ अप्रैल २०२४

आप्रवासी भारतीय (एनआरआई) स्वदेश लौटे बिना अगले आम चुनाव में मतदान नहीं कर सकते. इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी एनआरआई लोगों के समर्थन के लिए क्यों होड़ में लगी है?

UK Unterstützer von Premierminister Modi in London
तस्वीर: Isabel Infantes/PA Images/IMAGO

26 साल के भारतीय एयरोनॉटिकल इंजीनियर रॉबिन एस. का कहना है, "अगर मैं कर सकता तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ही वोट करता.” रॉबिन जर्मनी के वुर्त्सबुर्ग शहर में रहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे अपने देश में चल रही गतिविधियों की जानकारी रखना पसंद है. मैं चाहे कहीं भी रहूं, भारतीय ही रहूंगा.” वह बीजेपी का समर्थन क्यों करते हैं, इस सवाल पर वह थोड़ा रुके और फिर हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के राष्ट्रीय सुरक्षा, डिजिटल फाइनेंस, भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर में हुए सुधार समेत कई दूसरे पहलुओं को गिनाया. 

वह कहते हैं, "कोविड-19 की महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान आये संकट के बावजूद बीजेपी ने महंगाई को नियंत्रित किया है." हालांकि इसके साथ ही वह यह भी मानते हैं कि अभी सुधार की गुंजाइश है.”

विदेशों से प्रचार

विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश भारत में 19 अप्रैल से आम चुनाव शुरू होने हैं. इसके लिये अभियान भी जोर शोर से चल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी का प्रमुख चेहरा हैं और वह अपना लगातार तीसरा कार्यकाल पाने की उम्मीद कर रहे हैं. 

मोदी और उनके विरोधी विदेशों में बसे भारतीय समुदाय से समर्थन की उम्मीद रखते हैं, लेकिन भारतीय कानून के अनुसार रॉबिन जैसे कई एनआरआई देश के बाहर से मतदान नहीं कर सकते. उन्हें अपना नाम दर्ज कराने के बाद मतदान के दिन भारत में उपस्थित रहना होगा. 

रॉबिन एस. जैसे युवा प्रवासी भारतीय भी मोदी को पसंद करने वालों में हैंतस्वीर: Shristi Mangal Pal/DW

भाजपा के विदेश मामलों के समन्वयक विजय चौथाईवाले का कहना है कि कई भारतीय नागरिकों के लिए सिर्फ मतदान के लिए भारत पहुंचना कठिन लगता है, लेकिन मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए वह रैलियां, सामुदायिक बैठक और प्रार्थना जैसी धार्मिक गतिविधियां करना चाहते हैं.

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चौथाईवाले ने डीडब्ल्यू को बताया, "फ्रांस और लंदन समेत अमेरिका के 10 शहरों में भारतीय समुदाय द्वारा कार रैलियां आयोजित की जा रही हैं. प्रधानमंत्री मोदी के पोस्टर और भारतीय झंडे के साथ लंदन में लगभग 250 कारों की परेड निकाली गई.”

उन्होंने यह भी बताया कि कुछ एनआरआई स्वदेश आकर भी अभियान में हिस्सा लेना चाह रहे हैं. वह कहते हैं, "अधिकतर लोगों को अपनी मातृभूमि से अब तक लगाव है. वह सोचते हैं कि बीजेपी के शासन में आने से देश का भला होगा और यह उनके लिये भी बेहतर होगा.”

मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रवादियों का बढ़ता प्रभाव

टोरंटो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर संजय रूपारेलिया के अनुसार, चुनावी मौसम के दौरान भारतीय प्रवासी एक प्रतीकात्मक चेहरे से कहीं अधिक महत्व रखने लगते हैं. वह कहते हैं, "प्रवासी के रूप में रहने वाले भारतीय नागरिक विभिन्न दलों के लिए फंडिंग का जरिया भी बन सकते हैं.” 

नरेंद्र मोदी प्रवासी भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय हैंतस्वीर: AP Photo/picture alliance

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राजनीतिक विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि आधुनिक भारतीय इतिहास में प्रवासियों का प्रभाव कुछ खास नहीं रहा है. हालांकि 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से इस रुझान में बदलाव आया है. बीजेपी और ‘संघ परिवार' राष्ट्रवादी हिंदू संगठनों के साथ कुछ चुने हुए प्रवासियों से मिलकर राजनीतिक समर्थन और वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए आगे आए हैं. रूपारेलिया कहते हैं, "प्रभावी एनआरआई सदस्य अपने देश और सरकार के लिए बेहतरीन प्रतिनिधि हो सकते हैं.”

इसके अलावा वह यह भी कहते हैं, "प्रतिवर्ष प्रवासी भारत में अरबों की रकम भेजते हैं." रुपारेलिया के मुताबिक इस फंडिंग का एक हिस्सा, "राजनीतिक दलों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं गतिविधियों के काम भी आता है.”

प्रवासी भारतीयों में लोकप्रिय मोदी

चौथाईवाले विदेश में रहने वाले भारतीयों से व्यापक स्तर पर मिलने वाले फंड की बात को सिरे से नकारते हैं. वह कहते हैं, "भाजपा एनआरआई लोगों के लिए फंडिंग अभियान नहीं संचालित करती. व्यक्तिगत स्तर पर किये गये केवल छोटे-मोटे दान ही लिये जाते हैं. भाजपा के लिए सबसे बड़ा योगदान प्रवासियों का समय, ऊर्जा और उनकी विशेषज्ञता है.”

एक खास बात और है कि प्रवासी भारतीयों में प्रधानमंत्री मोदी का खासा प्रभाव है. रूपारेलिया इस ओर इशारा करते हैं कि विदेशों में रहने वाले भारतीय, प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों के दौरान उनके भाषण सुनने के लिए व्यक्तिगत रूप से पहुंचते हैं. वह कहते हैं, "उनके अंतरराष्ट्रीय दौरे, विदेशी नेताओं के साथ मुलाकात और भव्य सभाएं उनकी छवि को देश के अंदर और बाहर मजबूत बनाने में मदद करती है.”

सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव प्रचार उद्योग

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भारत में ध्रुवीकरण

पश्चिमी सरकारों की आलोचना और देश में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के अभियान छेड़ने के बावजूद मोदी की लोकप्रियता बनी हुई है. आलोचकों का कहना है कि भारतीय प्रधानमंत्री हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं. इससे भारत की धर्मनिरपेक्ष नींव को ठेस पहुंचने, अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के लिए सिकुड़ते दायरे और देश के हिंदू राष्ट्र बनने के करीब पहुंचने का खतरा है. 

हैम्बर्ग में रहने वाली अमृता नार्लिकर कहती हैं कि भारत के ‘जीवंत लोकतंत्र' को पश्चिम गलत तरह से परखता है, और इस कारण प्रवासी रक्षात्मक स्थिति में होते हैं.

रॉबिन एस जैसे पढ़े-लिखे युवा बीजेपी की पश्चिमी खेमे से होने वाली आलोचनाओं को भली-भांति समझते हैं. वह भाजपा समर्थक हैं और आशान्वित हैं कि बीजेपी समर्थक उनका परिवार, घर से निकल कर मतदान के लिए जाएगा क्योंकि चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा है. फिर भी, सत्तारूढ़ पार्टी को लेकर उन्हें कुछ आपत्तियां भी हैं. वह कहते हैं, "मुझे इस बात का अंदाजा हो चला है कि वे पूरी तरह से सही भी नहीं हैं. बीजेपी के आने के बाद से धार्मिक और दक्षिणपंथी चरमपंथी सोच बढ़ी है. इस समय हमारा समाज काफी ध्रुवीकृत है.”

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