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भारतीय ट्रेनों में जर्मन डिब्बे लगेंगे

२३ जनवरी २०१७

एक के बाद एक ट्रेन हादसों के बीच भारत ने रेल के पुराने डिब्बों बदलने का फैसला किया है. अब जर्मनी में बने हाई-टेक वैगन इस्तेमाल किये जाएंगे.

Indien Zugsunglück bei Arakkonam
तस्वीर: Reuters

नवंबर में कानपुर के पास हुए ट्रेन हादसे में 146 लोग मारे गए. 28 दिसंबर को कानपुर के पास एक और रेल हादसा हुआ, जिसमें दो लोग की जान गई. तीसरा हादसा 21 जनवरी को आंध्र प्रदेश में हुआ और 39 लोगों की मौत हो गई. लगातार बढ़ते हादसों ने रेलवे अधिकारियों को चिंता में डाल दिया है. विशेषज्ञों के मुताबिक ब्रिटिश काल में बना विशाल रेल नेटवर्क अब पुराना और जर्जर हो चुका है. दशकों तक सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया जिसका नतीजा सामने आ रहा है.

अब रेल अधिकारी पुराने रेलवे कोचों को बदलने की तैयारी कर रहे हैं. भारतीय रेल के प्रवक्ता अनिल सक्सेना के मुताबिक चेन्नई की फैक्ट्री से निकले पुराने और परंपरागत रेलवे कोचों को बदला जाएगा. सक्सेना ने कहा, "इंटिग्रल कोच फैक्ट्री द्वारा बनाए गए पुराने डिजायन के डिब्बों का उत्पादन पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा. इन्हें 2018-19 तक लिंके होफमन बुश (LHB) डिब्बों से बदला जाएगा." लेकिन पुराने डिब्बों का क्या किया जाएगा, यह सवाल भी अधिकारियों को परेशान कर रहा है.

तीन महीनेे में तीन हादसेतस्वीर: Reuters/J.Prakash

जर्मनी में बने LHB डिब्बे "एंटी टेलिस्कोपिक" तकनीक से लैस हैं. अगर ट्रेन पटरी से उतर भी जाए तो ये डिब्बे एक दूसरे पर नहीं चढ़ते. सक्सेना के मुताबिक ऐसे डिब्बों से जान माल के नुकसान को कम किया जा सकेगा.

भारतीय रेल के पूर्व प्रशासनिक प्रमुख आरएन मल्होत्रा कहते हैं कि ये बदलाव जरूरी हैं. लेकिन इससे समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी. मल्होत्रा के मुताबिक, "रेलवे लाइन्स, सिग्नलिंग सिस्टम, डिब्बे और सब कुछ, इनकी एक उम्र होती है. एक निश्चित समय के बाद उन्हें बदला जाना चाहिए लेकिन इसके लिए पैसे की जरूरत पड़ती है. पिछले साल रेल मंत्रालय ने सेफ्टी फंड जारी करने के लिए सरकार को एक प्रस्ताव भेजा लेकिन अभी तक वित्त मंत्रालय ने इसे स्वीकृति नहीं दी है."

एक रेलवे यूनियन के अध्यक्ष संजय पंधी ट्रेन ड्राइवरों और गैंगमैनों की मनोदशा पर भी ध्यान देने की मांग कर रहे हैं. वह कहते हैं, "एक मामूली सी गलती से बड़ा हादसा हो सकता है. हमें ड्राइवर की मनोदशा पता करनी चाहिए, कहीं वह थका तो नहीं है, क्या उस पर काम का बहुत ज्यादा बोझ है या फिर वह अल्कोहल के प्रभाव में तो नहीं है."

पंधी काम काज के तरीके में बदलाव करने की वकालत भी कर रहे हैं, "एक ट्रैक इंस्पेक्टर हर दिन 8 से 12 घंटे काम करता है. उन्हें खुद जाकर ट्रैक चेक करने पड़ते हैं और इस दौरान 30 से 40 किलोग्राम भार वाले उपकरण भी ढोने पड़ते हैं. जर्मन डिब्बे लाकर भी समस्या हल नहीं होगी क्योंकि हाई-टेक मशीनों के समझने के लिए स्टाफ को ट्रेन ही नहीं किया गया है."

भारतीय रेल दुनिया का चौथा बड़ा रेल नेटवर्क है. हर दिन 2.3 करोड़ लोग भारतीय रेल के जरिये सफर करते हैं. लेकिन इस नेटवर्क का 90 फीसदी हिस्सा 1947 से पहले बनाया चुका था. ज्यादातर ट्रेनें आज भी दशकों पुरानी पटरियों पर सफर करती हैं.

(कानपुर ट्रेन हादसा: ऐसा था मौत का मंजर)

ओएसजे/वीके (एएफपी)

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