साल 2017 पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में बेहद ही खराब साबित हुआ है. वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश और शांतनु भौमिक सहित नौ पत्रकारों को इस साल अपनी जान गंवानी पड़ी है.
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पिछले सात महीने में देशभर में नौ पत्रकारों की हत्या ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. खासतौर पर बेंगलुरु में गौरी लंकेश की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.पत्रकारों की हत्याओं से चिंतित केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को परामर्श जारी कर ऐसी घटनाओं को रोकने के निर्देश दिए हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की चिंता और राज्यों को दी गयी हिदायत के बावजूद पत्रकारों पर हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. इस साल पत्रकार की हत्या का पहला मामला 15 मई को तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थानीय समाचार पत्र में काम करने वाले श्याम शर्मा की हत्या कर दी गई. इसके बाद मध्य प्रदेश में ही दैनिक नई दुनिया के पत्रकार कमलेश जैन की पिपलिया में गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
बेंगलुरु में गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या ने देश भर में चिंता की लहर पैदा कर दी. कन्नड़ भाषा के साप्ताहिक पत्र लंकेश पत्रिके की संपादक गौरी को हमलावरों ने उनके घर के बाहर कई गोलियां मारीं. गौरी की हत्या के 15 दिन बाद त्रिपुरा में स्थानीय टेलीविजन पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या से देश स्तब्ध रह गया. हत्या के समय वे इंडीजीनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा तथा त्रिपुरा राजेर उपजाति गणमुक्ति परिषद के बीच संघर्ष की कवरेज कर रहे थे.
प्रेस स्वतंत्रता में कौन देश कहां
लोकतांत्रिक देशों में अहम नेताओं के मीडिया विरोधी भाषणों, नये कानूनों और मीडिया को प्रभावित करने की कोशिशों की वजह से पत्रकारों और मीडिया की स्थिति खराब हुई है. यह कहना है रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स की ताजा रिपोर्ट का.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
1. नॉर्वे
पिछले साल नंबर 3
तस्वीर: Reuters
2. स्वीडन
पिछले साल नंबर 8
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3. फिनलैंड
पिछले साल नंबर 1
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Charliere
4. डेनमार्क
पिछले साल नंबर 4
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5. नीदरलैंड्स
पिछले साल नंबर 2
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6. कोस्टा रिका
पिछले साल नंबर 6
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7. स्विट्जरलैंड
पिछले साल नंबर 7
तस्वीर: AP
8. जमैका
पिछले साल नंबर 10
तस्वीर: Reuters/G. Bellamy
9. बेल्जियम
पिछले साल नंबर 13
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
10. आइसलैंड
पिछले साल नंबर 19
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16. जर्मनी
पिछले साल नंबर 16
तस्वीर: Reuters/A. Schmidt
31. दक्षिण अफ्रीका
पिछले साल नंबर 39
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40. ब्रिटेन
पिछले साल नंबर 38
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PA Wire/A. Devlin
43. अमेरिका
पिछले साल नंबर 41
तस्वीर: picture alliance/ZUMAPRESS/B. Woolston
84. भूटान
पिछले साल नंबर 94
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ Royal Office For Media/ Kingdom of Bhutan
100. नेपाल
पिछले साल नंबर 105
तस्वीर: Reuters/N. Chitrakar
103. ब्राजील
पिछले साल नंबर 104
तस्वीर: Reuters/A.Machado
120. अफगानिस्तान
पिछले साल नंबर 120
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124. इंडोनेशिया
पिछले साल नंबर 130
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
136. भारत
पिछले साल नंबर 133
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
139. पाकिस्तान
पिछले साल नंबर 147
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141. श्रीलंका
पिछले साल नंबर 141
तस्वीर: Getty Images/B.Weerasinghe
146. बांग्लादेश
पिछले साल नंबर 144
तस्वीर: bdnews24.com
148. रूस
पिछले साल नंबर 148
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ Y. Kochetkov
155. तुर्की
पिछले साल नंबर 151
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176. चीन
पिछले साल नंबर 176
तस्वीर: Reuters/T. Peter
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इसके बाद पंजाब के मोहाली में वरिष्ठ पत्रकार केजे सिंह, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में दैनिक जागरण के पत्रकार राजेश मिश्र, बंगाली अखबार स्यांदन पत्रिका के पत्रकार सुदीप दत्ता भौमिक की त्रिपुरा में, उत्तर प्रदेश में हिन्दुस्तान अखबार से जुड़े पत्रकार नवीन गुप्ता की हत्या हो चुकी है. ताजा मामला हरियाणा का है जहां एक अंशकालिक पत्रकार राजेश श्योराण की हत्या हुई है.
प्रेस पर बढ़ता दबाव
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि दुनिया भर में पत्रकारों और स्वतंत्र मीडिया पर दबाव बढ़ रहा है. प्रेस आजादी पर संस्था की अंतरराष्ट्रीय सूची में भारत तीन स्थान नीचे लुढ़क कर 136वें पर है. इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 2017 में मारे गये पत्रकारों की संख्या पिछले 14 साल में सबसे कम है. वैसे, भारत के संदर्भ में ऐसी स्थिति नहीं है. पिछले साल के मुकाबले इस साल मारे जाने वाले मीडियाकर्मियों की संख्या बढ़ी है. सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि 2015 से अब तक सरकार की आलोचना करने वाले नौ पत्रकारों की हत्या कर दी गई. सभी सरकारें मीडिया की स्वतंत्रता की बात कहती हैं और घोषित रूप से आलोचना के प्रति अपनी उदारता भी दिखाती हैं. असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल अपनी सरकार के प्रदर्शन पर मीडिया की आलोचना का स्वागत करते हुए कहते हैं कि अगर हम कोई गलती करते हैं तो मीडिया को हमारी आलोचना करने से नहीं हिचकना चाहिए.
प्रेस फ्रीडम? यहां नहीं!
कई देशों में पत्रकारों और ब्लॉगरों को नियमित तौर पर डराया, धमकाया और हमलों का निशाना बनाया जा रहा है. प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2015 में 'रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स' की 180 देशों की सूची में इन देशों का रहा सबसे खराब प्रदर्शन.
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अफ्रीका का उत्तरी कोरिया- इरिट्रिया
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में इरिट्रिया सबसे निचली पायदान पर है. तानाशाही शासन वाले इस पूर्व अफ्रीकी देश के खस्ताहाल की खबरें बाहर नहीं निकलतीं. कई पत्रकारों को मजबूरन देश छोड़ना पड़ा है. इरिट्रिया के बारे में निष्पक्ष जानकारी पाने के लिए पेरिस से चलने वाले रेडियो एरीना को एकलौता स्रोत माना जाता है.
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तानाशाह के इशारे पर
पूरी दुनिया की नजर से छिपे हुए उत्तरी कोरिया में भी प्रेस की आजादी नहीं पाई जाती. शासक किम जोंग उन की मशीनरी मीडिया में प्रकाशित सामग्री पर पैनी नजर रखती है. लोगों को केवल सरकारी टीवी और रेडियो चैनल मिलते हैं और जो लोग अपनी राय जाहिर करने की कोशिश करते हैं, उन्हें अक्सर राजनैतिक कैदी बना दिया जाता है.
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तुर्कमेनिस्तान पर नजर
केवल एक अखबार, रिसगाल को छोड़कर देश के लगभग सारे मीडिया संस्थानों के मालिक खुद राष्ट्रपति गुर्बांगुली बर्डीमुहामेदो ही हैं. इस अखबार के संपादकीय भी छपने से पहले जांचे जाते हैं. हाल ही में आए एक नए कानून से लोगों को कुछ विदेशी मीडिया संस्थानों की न्यूज तक पहुंच मिली है. इंटरनेट और तमाम वेबसाइटों पर सरकार की नजर होती है.
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आलोचकों का सफाया
विएतनाम में स्वतंत्र पत्रकारिता का कोई अस्तित्व ही नहीं है. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी पत्रकारों को बताती हैं कि क्या प्रकाशित होगा. कई मीडिया संस्थानों के पत्रकार, संपादक, प्रकाशिक खुद ही पार्टी के सदस्य हैं. अब ब्लॉगरों पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है. पार्टी के विरुद्ध लिखने पर जेल में डाल दिया जाता है.
तस्वीर: picture alliance/ZB/A. Burgi
चीन में नहीं आजादी
रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि चीन दुनिया में पत्रकारों और ब्लॉगरों के लिए सबसे बड़ी जेल है. किसी भी न्यूज कवरेज के पसंद ना आने पर शासन संबंधित पक्ष के विरुद्ध कड़े कदम उठाता है. विदेशी पत्रकारों पर भी भारी दबाव है और कई बार उन्हें इंटरव्यू देने वाले चीनी लोगों को भी जेल में बंद कर दिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Schiefelbein
सीरिया में सुलगते हालात
सीरिया में अब तक ऐसे कई पत्रकारों को मौत की सजा दी जा चुकी है, जो असद शासन के खिलाफ हुई बगावत के समय सक्रिय थे. रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स ने सीरिया को कई सालों से प्रेस की आजादी का शत्रु घोषित किया हुआ है. वहां असद शासन के खिलाफ संघर्ष करने वाला अल-नुसरा फ्रंट और आईएस ने बदले की कार्रवाई में सीरिया के सरकारी मीडिया संस्थान के रिपोर्टरों पर हमले किए और कईयों को सार्वजनिक रूप से मौत के घाट उतारा.
तस्वीर: Abd Doumany/AFP/Getty Images
भारत भी पीछे
लोकतांत्रिक और बहुजातीय देश होने के बावजूद भारत प्रेस फ्रीडम की सूची में शामिल 180 देशों में 136वें नंबर पर है. उसके आस पास के देशों में होंडुरास, वेनेज्वेला और चाड जैसे देश हैं.
तस्वीर: AP
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पत्रकारों पर कार्यवाई
भले ही सरकारें पत्रकारों को निष्पक्ष और भयमुक्त होकर काम करने की सुविधा प्रदान करने का दावा करती हों लेकिन वास्तविकता इसके उलट है. अकेले छत्तीसगढ़ में इस साल के शुरूआती 11 महीने में 14 पत्रकार गिरफ्तार किए गए. इसमें वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा भी शामिल हैं. लगभग 60 दिन जेल में बिताने के बाद जमानत पर रिहा हो चुके विनोद वर्मा के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें फंसा रही है.
छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा के अनुसार जनवरी से नवंबर के अंत तक राज्य की पुलिस ने कुल 14 पत्रकारों को गिरफ्तार किया है. पैकरा के अनुसार इन पत्रकारों के खिलाफ अलग-अलग अपराध पंजीबद्ध थे जिसके बाद इन्हें गिरफ्तार किया गया. कर्नाटक में भी विधायकों के खिलाफ अपमानजनक आलेख लिखने के मामले में कन्नड़ पत्रिका के दो पत्रकारों पर कार्यवाई की गयी. राज्य विधानसभा ने इस मामले में दोनों पत्रकारों को दंडित करने का फैसला लिया.
अक्सर आलोचनात्मक रवैया रखने वाले पत्रकारों को विज्ञापन देकर या कानूनी कार्यवायी का डर दिखा कर सरकार चुप कराने का प्रयास करती है. ऐसे ही प्रयासों के चलते सेल्फ-सेंसरशिप को बढ़ावा मिलता है, जो निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए घातक है. लोकतंत्र में 'विरोध का स्वर' पत्रकारों के जरिये ही मुखर होता है. इसके मंद पड़ने पर लोकतंत्र को ही नुकसान उठाना पड़ेगा.
वर्ल्ड प्रेस फोटो अवॉर्ड 2017 की तस्वीरें
एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर बुरहान ओजबिलिसी को 2017 के वर्ल्ड प्रेस फोटो ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. देखिये इस साल पुरस्कार जीतने वाली चुनिंदा तस्वीरें.
तस्वीर: Reuters/K. Pfaffenbach
प्रतिशोध की वायरल तस्वीर
बुरहान ओजबिलिसी ने तुर्की में रूस के राजदूत आंद्रे कार्लोव की हत्या के सेकेंड भर बाद यह तस्वीर खींची. इसमें रूसी राजदूत का शव और गुस्से में चीखता हमलावर है. इसे पहला पुरस्कार मिला.
यह सम्मानित तस्वीर अमेरिकी फोटोग्राफर जोनाथन बाखमान ने ली. लुइजियाना प्रांत में पुलिस की बर्बरता के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान यह तस्वीर ली गई. इसमें भारी पुलिस बल के सामने डटकर खड़ी 28 साल की सामाजिक कार्यकर्ता इशिया इवैंस है.
तस्वीर: Reuters/J. Bachman
एक युग का अंत
क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो के निधन ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं. टोमस मुनिटा ने कास्त्रो के अंतिम संस्कार के दौरान यह तस्वीर खींची. इसे डेली लाइफ, स्टोरीज श्रेणी का पुरस्कार मिला.
तस्वीर: Reuters/The New York Times/World Press Photo Foundation//T. Munita
कई घंटों तक पंजों के बल
ताइजुंग वांग ने यह तस्वीर चीन के शुझोऊ जिमनास्टिक स्कूल में ली. तस्वीर में बहुत ही कम उम्र के बच्चे काफी देर तक पंजों के बल डटे रहने की कोशिश करते दिख रहे हैं. इसे डेली लाइफ, स्टोरीज श्रेणी में दूसरा पुरस्कार मिला.
तस्वीर: Reuters/World Press Photo Foundation/Tiejun Wang
मौत से दूर
जनरल न्यूज श्रेणी में सेर्गेई पोनोमारेव की इस तस्वीर ने दूसरा पुरस्कार जीता. यह तस्वीर इराक के मोसुल शहर से भागने की कोशिश कर रहे एक परिवार की है. तस्वीर में तेल का एक जलता कुआं भी दिखाई पड़ रहा है.
तस्वीर: Reuters/World Press Photo Foundation/The New York Times/S. Ponomarev
अंतहीन त्रासदी
सैंटी पालेसियस की इस तस्वीर को भी जनरल न्यूज श्रेणी में दूसरा पुरस्कार मिला. यह तस्वीर नाइजीरिया से भागने वाले दो बच्चों की है. बायीं तरफ 11 साल की एक बच्ची है और दायीं तरफ 10 साल का उसका भाई है.
ब्रेंट स्टिरटन की इस तस्वीर को नेचर स्टोरीज श्रेणी में पहला पुरस्कार मिला. दक्षिण अफ्रीका के एचयू गेम रिजर्व में खींची गई यह तस्वीर वन्य जीवों पर इंसानी क्रूरता को दिखाती है.
तस्वीर: Reuters/World Press Photo Foundation/Getty Images for National Geographic/B. Stirton
मजा लेते हुए जीत
जमैका के यूसेन बोल्ट रियो ओलंपिक के 100 मीटर के सेमीफाइनल में मुस्कुराते हुए. काई प्लाफेनबाख की इस तस्वीर को स्पोर्ट श्रेणी में तीसरा पुरस्कार मिला.
रिपोर्ट: लुइजा शॉफर/ओएसजे