अब तक सजना-संवरना महिलाओं का काम समझा जाता था. पुरुष तो शादी-ब्याह या कुछ खास समारोहों के मौके पर ही थोड़ा-बहुत इत्र-फुलेल और क्रीम लगा लेते थे. लेकिन भारत में अब यह तस्वीर तेजी से बदल रही है.
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भारतीय पुरुष भी सजने-संवरने और सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्च के मामले में महिलाओं से पीछे नहीं हैं. दिलचस्प बात यह है कि आम धारणा के विपरीत भारतीय पुरुष यह सब महिलाओं को आकर्षित करने के लिए नहीं करते. दूसरों से स्मार्ट और बेहतर दिखने की चाहत और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए लोग अब खुल कर ब्यूटी पार्लरों में जाकर अपनी जेबें ढीली कर रहे हैं. इसके साथ ही वे अब कास्मेटिक सर्जरी से भी नहीं हिचक रहे हैं. एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय पुरुष हर साल सजने-संवरने पर 50 अरब रुपये की भारी–भरकम रकम खर्च कर देते हैं. और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है.
स्टडी रिपोर्ट
मार्केट रिसर्च करने वाली कंपनी नीलसन के एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय पुरुष हर साल अपने सजने-संवरने की चाहत में पांच हजार करोड़ रुपये खर्च कर देते हैं. कुछ साल पहले तक इस बारे में कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष यह रकम महिलाओं को आकर्षित करने के लिए नहीं बल्कि दफ्तरों या कामकाज की जगह पर दूसरों से बेहतर व स्मार्ट दिखने के लिए करते हैं. एक निजी कंपनी में काम करने वाले मोहित सेन कहते हैं, "इससे दूसरे कर्मचारयों के मुकाबले स्मार्टनेस तो आती ही है, आत्मविश्वास भी बढ़ता है."
मेकअप सिर्फ लड़कियों के लिए?
कौन कहता है कि मेकअप और ब्यूटी पार्लर सिर्फ महिलाओं के लिए होता है. आजकल पुरुष भी इस साज सज्जा में पीछे नहीं. चाहे आइब्रो हो या वैक्सिंग.. या फिर फेशियल.. सभी पुरुषों के लिए भी है.
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ब्यूटी
किसी जमाने में पुरुषों के सीने पर बाल होना या पीठ पर बाल होना किसी को परेशान नहीं करता था. लेकिन आजकल इन्हें हटा देने का फैशन है. शेविंग से बचना ठीक है क्योंकि इससे बाल और कड़े और त्वचा संवेदनशील हो जाती है. ध्यान न रखा जाए तो स्किन एलर्जी भी हो सकती है.
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सुंदर भवें
वर्ल्ड कप फाइनल में जर्मनी को जिताने वाले मारियो गोएत्से का चेहरा हमेशा एकदम चमकता दमकता रहता है. उनकी भवें सुंदर बनी हुई और चेहरा एकदम सुंदर. फिर वो मैच खेलें या फिर विज्ञापन की शूटिंग.
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मोटी चमड़ी
कहा जाता है कि मर्दों की त्वचा मोटी होती है इसलिए उसे देखरेख की कोई जरूरत नहीं. वैज्ञानिक तौर पर यह सही भी है. डॉक्टरों के मुताबिक पुरुषों की त्वचा महिलाओं की तुलना में पांच गुना मोटी होती है. और उनकी त्वचा का पीएच मानक भी ज्यादा होता है. लेकिन उसकी देखभाल तो फिर भी जरूरी है.
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नियमित क्रीम जरूरी
त्वचा मोटी होने के कारण धूल धूप का असर मर्दों पर तुलनात्मक रूप से कम होता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि चेहरे का बिलकुल की ख्याल न रखा जाए. खासकर 40 के बाद चेहरे की त्वचा रूखी होने लगती है. ऐसे समय में नमी देने वाली क्रीम जरूरी है.
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ध्यान देना जरूरी
शेविंग के बाद अगर तुरंत साबुन और अति अल्कोहल वाले आफ्टरशेव का इस्तेमाल बार बार किया जाए, तो यह त्वचा को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए नमी देने वाली क्रीम और अच्छे आफ्टर शेव का इस्तेमाल जरूरी है. शेविंग के बाद त्वचा रूखी होती हो तो वैसलीन सबसे बढ़िया उपाय है.
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फेयर एंड हैंडसम!!
उपभोक्तावाद के इस दौर में जो दिखता है वही चलता है. इसी तर्ज पर अब ढीले, बुरी दाढ़ी और बालों वाले मर्द कम पसंद किए जाते हैं. यही कारण है कि हैंडसम और फेयर बनाने के वादे वाली क्रीम भारतीय बाजार में भरी पड़ी हैं.
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टैटू और पियर्सिंग
कान नाक छिदवाना आधुनिक समाज में लंबे समय तक महिलाओं से जुड़ा रहा. जबकि आदिवासी समाज दिखाता है कि पुरुष भी गुदना और पियर्सिंग करवाते रहे हैं. आजकल कई देशों में इनका खूब चलन है.
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सुंदरता का आकर्षण
साफ सुथरा चेहरा और उतने ही साफ हाथ और पैर के नाखून.. जितना यह पुरुषों को आकर्षित करते हैं उतना ही महिलाओं को भी. तो अपना ख्याल रख अपनी जीवन साथी को खुश करने में हर्ज ही क्या है...
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नीलसन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अब एक दशक पहले के मुकाबले पुरुष भारी तादाद में फेसवाश और क्रीम खरीद रहे हैं. वर्ष 2009 से 2016 के दौरान चेहरा साफ करने वाली क्रीमों (फेस क्रीम्स) की बिक्री में 60 गुनी वृद्धि हुई है. पुरुषों में सजने-संवरने की तेजी से बढ़ती चाहत की वजह से अब तमाम कंपनियां उनके लिए लगभग हर महीने नए-नए उत्पाद बाजार में उतार रही हैं. कुछ साल पहले तक पुरुषों की सौंदर्य प्रसाधन सामग्री के नाम पर एकाध फेसवाश और बोरोलीन क्रीम ही बाजार में उपलब्ध थी. लेकिन अब ऐसे सैकड़ों उत्पाद उपलब्ध हैं. पुरुषों की सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने वाली कंपनियों के लिए साल 2017 तो वरदान साबित हुआ है.
तेजी से बढ़ता बाजार
पुरुषों की सौंदर्य सामग्री पर टेकसी की एक हालिया स्टडी में कहा गया है कि 2020 तक इस बाजार के सालाना 20 से 22 फीसदी की दर से बढ़ने की संभावना है. रिपोर्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना आय में वृद्धि, शहरी मध्यवर्ग की आबादी बढ़ने और पुरुषों में सुंदर दिखने की बढ़ती चाहत के चलते यह बाजार तेजी से बढ़ रहा है. ऐसा सिर्फ महानगरों में ही नहीं छोटे-छोटे शहरों में भी हो रहा है. पुरुषों में इस बढ़ती चाहत को भुनाने के लिए अब टीवी पर भी पुरुष सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापनों की भरमार हो गई है.पहले महज गोरे होने की क्रीम के विज्ञापन ही नजर आते थे. लेकिन अब प्रचार के मामले में यह महिला सौंदर्य प्रसाधनों से पीछे नहीं है.
दाढ़ी रखने के फायदे
मर्दाना लुक में दाढ़ी के योगदान को कौन नहीं मानता. शेविंग करने में आपका समय और खर्च तो लगता ही है, यहां देखिए दाढ़ी रखना आपकी सेहत के लिए भी कितना फायदेमंद होता है...
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अल्ट्रावायलेट किरणों से रक्षा
चेहरे पर भरी पूरी दाढ़ी हो तो सूरज से आने वाली 95 फीसदी तक अल्ट्रावायलेट किरणें रुक जाती हैं. ये यूवी किरणें त्वचा का कैंसर पैदा करने का कारण भी मानी जाती हैं. इस तरह दाढ़ी करती है त्वचा की दोहरी रक्षा.
जिन लोगों को मौसम के बदलने पर और धूल या किसी खास पौधे के परागकणों से एलर्जी होती है, उन्हें भी दाढ़ी कुछ आराम पहुंचा सकती है. दाढ़ी के बाल एक प्राकृतिक फिल्टर का काम करते हैं और नाक के बालों की तरह कई एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों को नाक के भीतर जाने से रोकते हैं.
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सदा रखे जवान!
चेहरे पर बढ़ती उम्र का सबूत देती हैं झुर्रियां. दाढ़ी के कारण जब चेहरे पर सूरज की किरणें कम पड़ती हैं तो झुर्रियां भी कम आती हैं. दाढ़ी की ये कितनी मजेदार बात है कि इसे रखने से आप ज्यादा परिपक्व दिखते हैं, लेकिन ज्यादा दिनों तक जवान भी लगते हैं.
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दाग रहित त्वचा
त्वचा पर ब्लैक हेड्स और कई अन्य परेशानियां होने में भी शेविंग के कारण होने वाली इनग्रोथ, रेजर की चोटों का हाथ होता है. दाढ़ी रखने से त्वचा भी ठीक रहेगी और रोजमर्रा की चोट और खरोंचों से भी छुटकारा मिलेगा.
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रक्षा कवच
गर्मियों में कड़कती धूप से तो जाड़ों में गर्मी देने के काम आती है दाढ़ी. चेहरे पर तो और कोई ऊनी चीज पहनी नहीं जाती. ऐसे में दाढ़ी आपकी त्वचा की हर मौसम में रक्षा करती है.
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संक्रमण से बचाने वाली
बैक्टीरिया कई तरह के संक्रमण देते हैं. बालों को काटने से कई बार इनग्रोथ होती है और कई बार बाल की जड़ों में भी बैक्टीरिया अपना घर बना लेते हैं. यह त्वचा पर काले धब्बों के रूप में दिखता है. वहां बाल उगे होंगे तो ऐसे बैक्टीरिया बेघर हो जाएंगे.
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प्राकृतिक नमी
त्वचा के सूखेपन का भी यह बढ़िया जवाब है. हवा और ठंडक से चेहरे की त्वचा को बचाने वाली दाढ़ी उसे सूखने नहीं देती. और क्रीम का खर्च भी बचेगा.
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वक्त बचेगा
सन 1972 में अमेरिका की बॉस्टन यूनिवर्सिटी के त्वचाविज्ञानी डॉक्टर हर्बर्ट मेस्कॉन ने बताया था कि एक औसत व्यक्ति अपने जीवनकाल में करीब 3,350 घंटे शेविंग करने में खर्च करता है. इसका मतलब हुआ कि आपने जीवन के 139 दिन यानि पांच महीने का समय जो आप किसी और जरूरी काम में लगा सकते हैं.
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व्यापार संगठन एसोचैम की 2016 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय सौंदर्य उत्पादों का बाजार साढ़े छह अरब अमेरिकी डॉलर का है जिसके वर्ष 2025 तक बीस अरब डॉलर होने की उम्मीद है. इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पुरुषों में सौंदर्य के प्रति बढ़ती जागरूकता की वजह से बीते पांच वर्षों में सौंदर्य प्रसाधन का बाजार 42 फीसदी से अधिक बढ़ा है. सौंदर्य प्रसाधनों पर भारतीय किशोरों का औसतन मासिक खर्च बीते एक दशक में तीन से चार गुना बढ़ गया है.
लुक को लेकर जागरुक
उपभोक्ता फर्म डेलायट इंडिया के साझीदार रजत वाही कहते हैं, "सजने-संवरने पर अब सिर्फ महिलाओं का एकाधिकार नहीं रहा. अब पुरुष भी अपने लुक को लेकर काफी जागरुक व संवेदनशील हो गए हैं." सौंदर्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की आबादी में से लगभग आधे लोगों के 18 से 30 साल के आयुवर्ग में होने के कारण आने वाले वर्षों में पुरुष सौंदर्य प्रसाधन सामग्री का बाजार तेजी से बढ़ने की संभावना है. एसोचैम ने भी अपनी एक स्टडी में खुलासा किया कि देश में 18 से 25 साल की उम्र वाले पुरुष अपने संजने-संवरने और सौंद्रय प्रसाधनों पर महिलाओं के मुकाबले ज्यादा खर्च करते हैं.
पुरुष सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने वाली एक कंपनी के प्रबंध निदेशक मोहन अग्रवाल कहते हैं, "अपनी छवि को लेकर सजग पुरुष अब खुद को निखारने पर खासी रकम खर्च करते हैं. इससे इन उत्पादों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है." पहले पुरुषों के किट में कंघी, सेविंग के सामान, डियोडोरेंट और बालों में लगाने के जेल के अलावा कुछ और नहीं होता था.
अब बाल काटने वाले ज्यादातर हेयर कटिंग सैलून अब पुरुषों के ब्यूटी पार्लर के रूप में बदल गए हैं. अग्रवाल कहते हैं, "पुरुष अब अच्छे लुक के प्रति काफी जागरुक हैं. वह अपने शरीर को फिट रखने के साथ ही सजने-संवरने पर भी दिल खोल कर खर्च कर रहे हैं." ऑडिट कंपनी केपीएमजी के मुताबिक 2018 के अंत तक भारत में सौंदर्य प्रसाधन सामग्री का सालाना कारोबार बढ़ कर 800 अरब का आंकड़ा पार कर लेगा.
विज्ञापनों में महिलाएं
विज्ञापनों का मकसद सामान बेचना होता है. इसके लिए खरीदार को टार्गेट किया जाता है. कभी महिलाएं खुद टार्गेट होती हैं, तो कभी उनकी वजह से पुरुष कोई खास सामान खरीदने को प्रेरित होते हैं.
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अधिकतम असर
विज्ञापन तैयार करने वालों का काम होता है अधिकतम असर पैदा करना. इसके लिए हर तरीका जायज माना जाता है. अधिकतम असर का मतलब है असर की गहराई और गहनता.
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हाउसवाइफ की छवि
विज्ञापनों में महिलाओं की छवि जर्मनी सहित पूरी दुनिया में पिछले दशकों में काफी बदली है. जर्मनी में पहले महिलाओं को घर गृहस्थी चलाने वाली पोशाक में दिखाया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कामयाबी के सबूत
बाजार में कामयाबी सेक्स से संबंधित प्रचार के जरिए मिलती है, अब इसके सबूत हैं. इसलिए विज्ञापनों में उसका इस्तेमाल पहले से कहीं ज्यादा हो रहा है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
सेक्स सिंबल
समाज में महिलाओं की भूमिका बदलने के साथ विज्ञापनों में उनकी छवि भी बदली है. आधुनिक विज्ञापनों में महिलाओं को सेक्स सिंबल के रूप में दिखाया जाता है.
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बदली भूमिका
दुनिया भर में समाज में महिलाओं की भूमिका बदलने के साथ विज्ञापनों में उनको दिखाए जाने का तरीका भी बदला है. लेकिन पूरी दुनिया में विज्ञापनों में उनका इस्तेमाल जारी है.
तस्वीर: DW/N. Velickovic
कामकाजी महिलाएं
अभी भी करियर बनाने वाली महिलाएं ज्यादातर जगहों पर एक छोटा सा वर्ग है. इसलिए पश्चिमी देशों में भी उन्हें विज्ञापनों में कम ही दिखाया जाता है. विज्ञापनों में भेदभाव बड़ी समस्या है.
तस्वीर: picture-alliance / dpa
आम महिलाएं
मीडिया में दिखने वाली तस्वीरें समाज का प्रतिबिंब नहीं होती. फिल्मों या टेलिविजन पर दिखाई जाने वाली महिलाएं आम जिंदगी में दिखने वाली महिलाओं से अलग दिखती हैं.
तस्वीर: DW
सेक्सिज्म के आरोप
विज्ञापनों में अक्सर महिलाओं के शरीर के इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं. और दुनिया में हर कहीं इनका अलग अलग तरीके से विरोध भी हो रहा है.